ऋग्वेद १.३७.४

प्र वः॒ शर्धा॑य॒ घृष्व॑ये त्वे॒षद्यु॑म्नाय शु॒ष्मिणे॑ ।

दे॒वत्तं॒ ब्रह्म॑ गायत ॥

अनुवाद:

वः - तुम्हारे।

शर्धाय - बलवान।

घृष्वये - शत्रु का दमन करनेवाला।

त्वेषद्युम्नाय -दीप्तिमान कीर्तियुक्त।

शुष्मिणे - बलवान के लिए।
देवत्तम् - देवताओं के अनुग्रह से प्राप्त।

ब्रह्म - हवि के रूप मे।

प्र गायत - स्तुति करना।

भावार्थ:यहां ऋषियों से कहा जा रहा है कि कि वे बलशाली, शत्रु विनाशक और देदीप्यमान कीर्तिवाले मरूतों की देवताओ से अनुग्रह प्राप्त हवि के उद्देश्य से स्तुति करें।
गूढार्थ:इसमें कहा गया है कि प्राण तो शुद्व होता है, उसमें अशुद्धि आती है वासना से और वासना का स्थान चित्त है, मन है, बुद्धि है। प्राण तो सदैव क्रियाशील होता है। जब शरीर सोता है तब प्राण नहीं सोता बल्कि मन और चित्त सो जाते हैं।
प्राण को देवता मानकर(मरूदगण को प्राण कहा गया है) उसकी स्तुति करने के लिए कहा गया है क्योंकि प्राण नहीं होगा तो शरीर के सारे अवयव निरर्थक हो जायेंगे।

@Anshulspiritual

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13 Jan
ध्यान देने योग्य (मृत्यु के संकेत या चिन्ह) पर ध्यान देने योग्य संकेत

स्कंद पुराण के अनुसार, कार्तिकेय ने मुनि अगस्त्य को आने वाली मृत्यु के संकेतों के बारे में सुनाया था। यह इस प्राचीन ग्रंथ के अनुसार है। Image
यदि कोई लगातार सही नथुने से निकलने वाली हवा का अनुभव करता है, तो यह देखा जाता है कि व्यक्ति तीन साल के भीतर मर जाता है। यदि श्वास दोनों नासिका छिद्रों से ऊपर की ओर निरंतर हो, तो व्यक्ति दो तीन दिनों के भीतर मर सकता है।
यदि श्वास नासिका के बजाय मुंह से होती है तो व्यक्ति केवल दो दिनों तक जीवित रह सकता है। व्यक्ति को किसी भी आकस्मिक मृत्यु के पश्चाताप के इन संकेतों को सह-अस्तित्व में लेना चाहिए।
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12 Jan
श्रीसूक्त: अर्थ एवं महत्व रंजू नारंग धन की अधिष्ठात्री देवी मां लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्ति के लिए ऋग्वेद में वर्णित श्री सूक्त का पाठ एक ऐसी साधना है जो कभी निष्फल नहीं होती। मां लक्ष्मी के आह्वान एवं कृपा प्राप्ति के लिए श्री सूक्त पाठ की विधि द्वारा आप बिना किसी ।
विशेष व्यय के भक्ति एवं श्रद्ध ापूर्वक मां लक्ष्मी की आराधना करके आत्मिक शांति एवं समृद्धि को स्वयं अनुभव कर सकते हैं। यदि संस्कृत में मंत्र पाठ संभव न हो तो हिंदी में ही पाठ करें।
दीपावली पर्व पांच पर्वों का महोत्सव है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी (धनतेरस) से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भैयादूज) तक पांच दिन चलने वाला दीपावली पर्व धन एवं समृद्धि प्राप्ति,
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11 Jan
माता लक्ष्मी किन कारणों से आपके घर नही आती

चूंकि ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण देवता को तपस्या का सामना करना पड़ रहा था, जब इंद्र ने इसे पहनने के बजाय हाथियों के सिर पर पारिजात (इंद्र के आशीर्वाद के रूप में दिया गया)
फूल रखा, लक्ष्मी माता ने देवता के निवास में प्रवेश करने से इनकार कर दिया। तो देवता सलाह के लिए ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा ने उन्हें नारायण कवच दिया और भक्तों को प्रार्थना करने और क्षीर सागर में लक्ष्मी को संतुष्ट करने के लिए कहा।
उनकी समर्पित विनती और प्रार्थना से लक्ष्मी प्रसन्नतापूर्वक उनके सामने प्रकट हुईं।
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11 Jan
ऋग्वेद १.३७.२

ये पृष॑तीभिर्ऋ॒ष्टिभिः॑ सा॒कं वाशी॑भिरं॒जिभिः॑ ।

अजा॑यंत॒ स्वभा॑नवः ॥

अनुवाद:

ये - जिन ने।

पृषतिभीः - बिन्दु चिन्ह संयुक्त मृगीरूप वाहन के साथ।

स्वभानवः - स्वयं की दीप्ति से प्रकाश।

वाशीभिः - जोरदार गर्जन।

ऋष्टिभिः - अायुध।
अञ्जिभिः - विभिन्न अलंकार युक्त।

साकम् - सभी।

अजायन्त - जन्म लेना।

भावार्थ:ये मरूदगण स्वतः की दीप्ति से प्रकाशित धब्बों वाले मृगी के वाहन सहित तथा विभिन्न आभूषणों से युक्त होकर घोर गर्जना करते हुए प्रगट हुए ।
गूढार्थ: यहां गर्जना करते हुए का तात्पर्य है कि मरूदगण अर्थात उनका प्राण में प्रवेश हुअा(दस तरह के प्राण और उप प्राण हैं- प्राण, अपान, उदान,व्यान, समान, देवदत्त, धनंजय, क्रिकल, नाग और कूर्म )।अर्थात बल प्राप्त हुआ।इस बल से हमे परम वस्तु को प्राप्त करना है वह भी इसी उपाधि या शरीर
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10 Jan
ब्राह्मण पुराण का महत्व और वर्णव्यवस्था।

यह भाव कल्प पर आधारित है और इसमें बारह हजार श्लोक हैं। इसके चार चरण हैं। उन्हें प्राकृतपाद, अनुषंगपाद, उपगोदपाद और उपसम्हारपाद के नाम से जाना जाता है। पहले भाग में दो खंड हैं जिन्हें पूर्वाभाग के नाम से जाना जाता है।
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पहले भाग में कर्तव्यों पर एक शिक्षा, नैमिष की कहानी, हिरण्यगर्भ की उत्पत्ति आदि शामिल हैं।

दूसरे अनुष्टपद में कल्प और मन्वंतर का वर्णन है, जनरल ज्ञान, मानुषी की श्रृष्टि,
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30 Dec 20
धान यानी चावल की फसल के अविष्कारक भी भगवान परशुराम ही थे भगवान ने ना सिर्फ पापियों को समूल विनास किया लाखो सामाजिक कार्य किए

पापियों के विनास के बाद भगवान परशुराम ने समाज सुधार व कृषि के कार्य हाथ में लिए। केरल, कोंकण मलबार और कच्छ क्षेत्र में समुद्र में डूबी ऐसी भूमि को
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अगस्त्य को समुद्र का पानी पी जाने वाले ऋषि और इन्द्र का जल-देवता इसीलिए माना जाता है। परशुराम ने इसी क्षेत्र में परशु का उपयोग रचनात्मक काम के लिए किया। शूद्र माने जाने
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इन्हें जनेउ धारण कराए। और अक्षय तृतीया के दिन एक साथ हजारों युवक-युवतियों को परिणय सूत्र में बांधा। परशुराम द्वारा
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