#प्रसंगवश..
दिशा रवि की आयु 21, 22 या 24 कुछ भी हो सकती है..किंतु उसके विचारों से परिलक्षित उसकी सोच हमें यह सोचने पर बाध्य करती है कि हम कहाँ चूके हैं..
यदि आपका संवाद इन दिनों किसी किशोरवय के बालक या बालिका से हुआ हो तो आप जानते पाएंगे कि वामपंथी घुन कितने गहरे पैठ चुका है।
स्वाभाविक भी है..
पूर्व प्राथमिक कक्षाओं से ही छद्म धर्मनिरपेक्षता और विकृत वैश्विकता का विष घोला जाता है।
आप धार्मिक हों या न हों उससे कोई अंतर नहीं पड़ता क्योंकि आपके पास समय नहीं है और हवा में जहर घुला है..
हमारे चारों ओर का वातावरण कुछ ऐसा बना दिया गया है कि बच्चे न चाह कर भी विष पीने को बाध्य हो रहे हैं।
किशोरावस्था तक पहुँचते-पहुँचते स्थिति
आपके नियंत्रण से बाहर चली जाती है।
कई तो लाॅक डाउन की अवधि में यह सोचने पर विवश हुए होंगे कि आप अपने बच्चे को जानते ही नहीं हैं.
यदि आप भाजपा अथवा मोदी समर्थक हैं तो स्थिति और भी गंभीर हो जाती है.
वैचारिक विरोध अवश्यंभावी है क्योंकि आप के चारों ओर आपको भक्त या गोबरमस्तिष्क कहने-समझने वालों का घेरा है..
आप का बच्चा स्कूल में,कक्षा में यही सब सुनता है और आपकी दी गई सीमित शिक्षा अपने सहपाठियों, विदेशी जीवन शैली,विदेशी संस्थानों, विदेशी नौकरियों की रुपहली चमक के आगे फीकी पड़ जाती है।
आपका बच्चा आपसे सहमत होते हुए भी अपने सहपाठियों की बात मानना चाहेगा क्योंकि उसे उनके बीच अपनी जगह बनाए रखनी है।
अध्यापकों की सोच भी परेशानी का कारण है।
अध्यापिका यदि कक्षा में ये कहे कि डेमोक्रेसी मूर्खों की सरकार बनाती है इसलिए चुनाव नहीं होने चाहिए तो?
है कोई तर्क आपके पास?
किसान,मजदूर,शोधार्थी के नाम की दुहाई देकर बच्चों के मासूम मन में सहानुभूति उत्पन्न करना कठिन नहीं है।
आप के पास कोई तर्क नहीं है स्वयं को सही सिद्ध करने के लिए..
एक सुनियोजित कार्य योजना के साथ किशोर मन पर अधिकार किया जाता है..ईश्वर के प्रति मन में संदेह के बीज बोए जाते हैं..
और तेरह-चौदह बरस का बच्चा स्वयं को नास्तिक घोषित कर देता है..आप पर,आपकी सोच पर अंगुली उठाता है..
"Sorry..नहीं मानता मैं आपके भगवान को.."
सोशल मीडिया पर चहुँ ओर बिखरे लुभावने स्वच्छंद व्यवहार के सामने आपकी वर्जनाएं उसे अपनी स्वतंत्रता का हनन लगती हैं..
फिर पेड़ के आँसू,धरती का चीत्कार, बिल्लियों और कुत्तों का प्यार अपना वार करते है,छोटे-मोटे पर्यावरणीय भाषण पर उसका महिमामंडन होता है,
देश-विदेश में 6-7 वर्ष के बच्चे एक्टीविस्ट की उपाधि से अलंकृत किए जाते हैं,Environment Ambassador बना दिए जाते हैं,
और हो जाती है बचपन की हत्या..!
पर्यावरण की रक्षा इस सीमा तक हावी हो जाती है कि बच्चा चिता में लकड़ी देना भी पर्यावरण विरुद्ध मानने लगता है..!
दिशा तो 21 की है,मैं 13-15 वर्ष की बालिकाओं को जानती हूँ जो उम्र से पहले बूढ़ी हो गईं हैं,नहाती नहीं, अस्त-व्यस्त कपड़े,बालों का खोंपा कसा हुआ और च्यूईंग गम की जुगाली..!
और हाँ..ये सभी सुशिक्षित कामकाजी परिवारों के बच्चे हैं जिनके माता-पिता धर्मभीरु हैं किंतु अपनी आस्था और विश्वास का अंशमात्र अपने बच्चों को नहीं दे पाए..!
फिर ये अपरिपक्व मस्तिष्क पहुँच जाते हैं महाविद्यालयों में जहाँ छात्र राजनीति के नाम पर वामपंथी भेड़िए तैयार खड़े होते हैं..
इसीलिए अपने बच्चों को एक व्यक्ति मानिए और उसके मन में अपने ईश्वर की आस्था का बीज बोइए ताकि कोई कँटीली विषैली खरपतवार वहाँ जड़ें ना जमा ले।
किशोर मन की उर्वरता में छोटी सी चूक महँगी सिद्ध होगी.
अच्छे कपड़े-जूतों के साथ अच्छे संस्कार देना आपका उत्तरदायित्व है और धार्मिक ऋण भी..
🙏
सारांश..
परिवेश जो सिखाए वो सम्यक् नहीं,
स्वयं उठाएँ बीड़ा,कोई हिचक नहीं..
उऋण तभी होंगे धर्म,पितृ ऋण से,
करना होगा प्रयत्न,कोई विकल्प नहीं..
🙏
*जानते पाएंगे को जानते होंगे पढ़ें..
🙏
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न्यूनतम समर्थन मूल्य की बात करें?
कैसे चलता है नकली किसानों का गोरखधंधा?
कैसे लगाते हैं वो देश की अर्थव्यवस्था को चूना..?
आइए सीधे शब्दों में समझने का प्रयास करते हैं..
तो शुरुआत से शुरू करते हैं..
एक किसान 70 रुपये की अपनी उपज
80 रुपये में एक नकली किसान को बेचता है..नकद..बिना किसी आय कर के..
नकली किसान 80 रुपये की ये खरीद
सरकार को 100 रुपये में बेचता है..
आय कर विभाग के लिए कोई गुंजाइश नहीं यहाँ ..
किसने कितना कमाया..कोई हिसाब नहीं..
नया कृषि कानून खरीदने और बेचने वाले दोनों से आधार और PAN नम्बर की अनिवार्यता चाहता है जो नकली किसानों यानि दलालों के लिए परेशानी वाली बात होगी..
आइए आज बात करते हैं श्री रामचन्द्र काक की जो 1945 से 1947 तक कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे।
एक कश्मीरी पंडित होने के नाते रामचन्द्र जी अच्छी तरह जानते थे किस प्रकार सूफी समाज ने कश्मीरी संस्कृति और रिवाजों का ह्रास किया और उन्होंने महाराजा हरी सिँह से परिग्रहण संधि पर हस्ताक्षर करने से पहले कुछ वर्ष रुक कर निर्णय लेने को कहा..
सप्तॠषि वैदिक काल के सबसे महान ऋषि माने जाते हैं। अपनी योग और प्रायश्चित की शक्ति से उन्होंने बहुत लंबी आयु अर्थात् लगभग अमरत्व की सिद्धि प्राप्त की..।
सप्त ऋषियों को चारों युग में मानव प्रजाति के मार्गदर्शन का कार्य सौंपा गया ।वे आदि योगी शिव के सहयोग से पृथ्वी पर संतुलन बनाये रखते हैं..
आठवीं सदी की कहानी है.
बप्पा रावल के रणबाँकुरे लाम पे निकलते थे मुँह अँधेरे,
तलवार के धनी आटे की लोईयां सुबह रेत में दबाते,शाम तक जब लौट के आते,गर्म रेत में दबी लोईयां निकालते, फोड़ कर छाछ दूध संग खाते..
बस यही थी बाटी की शुरुआत..
सौंधा रहा होगा ना रेत में सिंकी बाटी का वो स्वाद?
एक बार गलती से बाटियों में गन्ने का रस गिर गया..
रेगिस्तान के लोग खाने को फेंकने की सोच भी नहीं सकते..वैसे ही चूर कर खाई गईं और जन्म हुआ बाटियों के साथी चूरमे का..
कालांतर में बाटी की मुलाकात दाल से हुई..आगे तो आप जानते ही हैं..
दाल बाटी चूरमा, जो खाए वो सूरमा..
बाटी राजस्थान के साथ-साथ मालवा क्षेत्र का भी लोकप्रिय व्यंजन है..
राजस्थान में इसे उड़द की छिलके वाली दाल या उड़द मोगर के साथ बनाया जाता है तो मालवा में अरहर की दाल के साथ किंतु सबसे अधिक पसंद की जाती है पंचमेल दाल जिसमें पाँच प्रकार की दालें मिला कर पकाई जाती हैं..
टेनिस कोई वास्ता न होते हुए भी राज्य टेनिस एसोसिएशन के अध्यक्ष बन बैठे।
फिर सरकारी जमीन पर कब्ज़ा कर अपना टेनिस कोर्ट बनाया।
समरथ को नहीं दोष गोसाईं..
एक दिन उस चौदह वर्षीय खिलाड़ी लड़की के पिता से बोले कि उसमें प्रतिभा है पर विशेष प्रशिक्षण चाहिए..
अगले दिन लड़की अपनी एक सहेली के साथ टेनिस के विशेष प्रशिक्षण के लिए अधिकारी महोदय के टेनिस कोर्ट पहुँची।
This looks like a vicious circle.. @BajajHousing..
Why does it take 15 days for you to issue a revised fore closure letter..?
None of your customer help lines receive calls..neither does your executives cooperate..
The request was raised on Nov 2nd after you executives refused to receive the cheque payment ..Which was acknowledged on 4th of Nov..
It takes 2 working days for you to acknowledge a request.. @BajajHousing