टेनिस कोई वास्ता न होते हुए भी राज्य टेनिस एसोसिएशन के अध्यक्ष बन बैठे।
फिर सरकारी जमीन पर कब्ज़ा कर अपना टेनिस कोर्ट बनाया।
समरथ को नहीं दोष गोसाईं..
एक दिन उस चौदह वर्षीय खिलाड़ी लड़की के पिता से बोले कि उसमें प्रतिभा है पर विशेष प्रशिक्षण चाहिए..
अगले दिन लड़की अपनी एक सहेली के साथ टेनिस के विशेष प्रशिक्षण के लिए अधिकारी महोदय के टेनिस कोर्ट पहुँची।
बालिका की सहेली को बाहर भेज टेनिस एसोसिएशन के अध्यक्ष महोदय ने अपने आफिस में विशेष प्रशिक्षण आरंभ किया।
बालिका ने विरोध किया और तब तक उसकी सहेली भी लौट आई।
घर लौट कर किसी को कुछ बताया नहीं..
लेकिन जब फिर विशेष प्रशिक्षण का बुलावा आया तो बच्ची ने अपने माता-पिता को बताया और उन्होंने इस बात की शिकायत दर्ज करवाई।
उसके बाद तो कहर टूट पड़ा।
किराए के लोगों से लड़की के घर के बाहर प्रदर्शन करवाया गया।
दोषी पाए जाने पर भी प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की गई।
मामला दबा दिया गया।
दो महीने बाद लड़की को स्कूल से निकाल दिया गया..कहा कि फीस नहीं दी..
फीस देने गए तो लेने से मना कर दिया।उसकी माँ, भाई और पिता के विरुद्ध
मामले दर्ज किए गए।
घटना की एकमात्र गवाह उसकी सहेली पर भी दसियों मामले लगाए गए।
उसके पिता को चोरी के झूठे आरोप लगवा कर नौकरी से निकाल दिया गया।
वो बाहर निकलती तो लोग फिकरे कसते..
उसके भाई को पाँच बार पकड़ा गया, पीटा गया और एक बार तो हथ-कड़ी डाल कर घर के बाहर घुमाया गया ताकि मुकदमा वापस लेने का दबाव बनाया जाए..
आखिर लड़की की हिम्मत टूट गई..न्याय से विश्वास उठ गया और उसने आत्महत्या कर ली..
जब उसके माता-पिता ने झूठी पोस्ट मार्टम रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने से मना किया तो उसके भाई को जान से मारने की धमकी दी गई।
सप्ताह भर में सरकार ने केस बंद कर दिया।
और उस आला अधिकारी का क्या हुआ?
कुछ नहीं..
शान से सरकारी नौकरी करता रहा..
लड़की के पिता ने उच्च न्यायालय का द्वार खटखटाया..बारह साल मुकदमा चला और साहब को छह महीने की सजा सुनाई गई और दो मिनट में जमानत भी मिल गई।
26 साल , 65 स्थगन और 500 सुनवाईयों के बाद साहब की उम्र का लिहाज करते हुए उन्हें सिर्फ 6 महीने की सजा सुनाई गई..
बात नई नहीं..जानी पहचानी है..
आज इसलिए उठाई गई कि आप जान सकें कि-
क्या होती है तंत्र की ताकत..?
कैसा छलावा है हमारी न्याय व्यवस्था..?
कितने निरंकुश हैं कानून के रखवाले..?
क्या कीमत है एक आम लड़की की इज्ज़त और जान की..?
क्या हैसियत है एक परिवार की..?
चाहे जिसे जब अंदर कर दें..
आम आदमी का जीवन इस देश में कीड़े मकोड़े से ज्यादा नहीं है..कुछ नहीं बदलता..
सरकारें बदलती हैं..
अधिकारी वही रहते हैं..
तंत्र वही रहता है..
और ये जो मीडिया नामक तथाकथित चौथा स्तंभ है उसका काम भी सिर्फ अपना उल्लू सीधा करना है..
सोशल मीडिया पर चिल्लाते रहिए आप..
मोटी चमड़ी के इन रक्त पिपासु पिस्सुओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि ये सब के सब एक हैं एक आम आदमी का खून चूसने के लिए ..
इसलिए संभल कर चलिए यदि आप अपना और अपने अपनों का भला चाहते हैं..ठकुरसुहाती कीजिए..चुप रहिए..
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This looks like a vicious circle.. @BajajHousing..
Why does it take 15 days for you to issue a revised fore closure letter..?
None of your customer help lines receive calls..neither does your executives cooperate..
The request was raised on Nov 2nd after you executives refused to receive the cheque payment ..Which was acknowledged on 4th of Nov..
It takes 2 working days for you to acknowledge a request.. @BajajHousing
दुर्गा भाभी..
अद्वितीय देशभक्ति की एक अनूठी मिसाल..@Sheshapatangi
नारी शक्ति का पर्याय दुर्गा भाभी जो जतिन्द्र नाथ दास की पार्थिव देह के साथ लाहौर से कलकत्ता आईं..जतीन्द्र नाथ जिनकी मृत्यु लाहौर कारागार में लगातार 63 दिनों के अनशन के कारण हुई,पूरे रास्ते लोग स्वतंत्रता के इस दीवाने को श्रृद्धांजलि देने के लिए जुड़ते रहे.
वे अपने घर में अकेली थी,उनके पति श्री भगवती चरण वोहरा 17/12/1928 को आयोजित काँग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए कलकत्ता गए थे..
लाला लाजपतराय की मृत्यु के लिए उत्तरदायी अंग्रेज पुलिस अधिकारी जाॅन सांडर्स मारा गया था और अंग्रेजी सरकार ने लाहौर में कड़ी पाबंदियां लगाई हुई थी।
आज ग्यारह सितम्बर है..
भारतीय इतिहास का एक बहुत बड़ा दिन..
आज ही के दिन स्वामी विवेकानंद ने
शिकागो में विश्व हिंदू सम्मेलन में वह ऐतिहासिक भाषण दिया था जिसके बारे में सोच कर आज भी हमारा ह्रदय अपने धार्मिक वैभव और थाती पर गर्व से आल्हादित हो उठता है..
आज का दिन हमारी गौरवशाली परंपरा के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि ये दिन देश की एक और महान विभूति से जुड़ा है।
आइए आज बात करते हैं कविवर सुब्रह्मण्यम भारती की जिनके गीत हम गाते हैं, जिनका देवलोक गमन आज ही के दिन हुआ..
और जिनके अंतिम संस्कार में केवल चौदह व्यक्ति सम्मिलित हुए थे..
है ना आश्चर्य की बात..?
कहते हैं कि ऐसा तो किसी शत्रु के साथ भी न हो..किंतु बिल्कुल ऐसा ही हुआ तमिलनाडु के सबसे लोकप्रिय स्वातंत्र्यवीर 'भारतीयार' के साथ.. @Sheshapatangi
जलियाँवाला बाग सुनते ही आज भी हर सच्चे भारतीय की आत्मा सिहर उठती है और लहू खौल उठता है..
आइए बात करते हैं उस अमर बलिदानी की जिसने इस जघन्य हत्याकांड का प्रतिशोध लेने के लिए 21साल प्रतीक्षा की.. #उधम_सिंह
आगे बढ़ने से पहले जानने योग्य बात यह है कि उधम सिंह द्वारा प्रतिशोध की कार्यवाही पर चाचा जी और बापू जी की प्रतिक्रिया क्या रही..
उधमसिंह के इस कार्रवाई को अधिकांश भारतीयों ने अंग्रेजों के अत्याचारों पर एक प्रतिक्रिया ही माना किंतु भारत के तथाकथित कर्ताधर्ताओं ने इसकी भर्त्सना की।
बापू ने इसे पागलपन बताते हुए कहा कि"इस अतिरेक से मुझे बहुत कष्ट पहुँचा है और मैं इसे पागलपन समझता हूँ।"
"बहरों को सुनाने के लिए धमाकों की आवश्यकता पड़ती है.."
कितने लोगों को ये संवाद याद है?
8 अप्रैल 1929 को दिल्ली की केन्द्रीय विधान सभा में हुए धमाके की गूँज सात समंदर पार ब्रितानी सरकार के कानों तक सुनाई दी थी..
बात करते हैं बटुकेश्वर दत्त की जो इस साहसिक कारनामे में भगत सिंह के साथ थे..
क्या कहें उन्हें ?
एक मुख्यमंत्री, एक हत्यारा.. या एक हत्यारा मुख्यमंत्री..?
आइए बात करते हैं ज्योति बासु की..आज उनके जन्मदिन पर..
ज्योति बासु ने पूरे 23 साल, 4 महीने और 17 दिन पश्चिम बंगाल पर एकछत्र राज किया 1977 से 2000 तक मुख्यमंत्री के रूप में..
एक कम्युनिस्ट आतंकी जो अपने कार्यकाल में हर रोज कम से कम
5 हत्याओं के लिए उत्तरदायी रहे.. लोगों की और उद्योगों की..
1977 में सत्ता में आने से बहुत पहले ही मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने हत्या को राजनैतिक अस्त्र की तरह काम में लेना शुरू कर दिया था।
1970 से जब उन्होंने बर्धवान के सेन परिवार से सम्बंधित कांग्रेस के दो प्रमुख नेताओं का वध किया।