आठवीं सदी की कहानी है.
बप्पा रावल के रणबाँकुरे लाम पे निकलते थे मुँह अँधेरे,
तलवार के धनी आटे की लोईयां सुबह रेत में दबाते,शाम तक जब लौट के आते,गर्म रेत में दबी लोईयां निकालते, फोड़ कर छाछ दूध संग खाते..
बस यही थी बाटी की शुरुआत..
सौंधा रहा होगा ना रेत में सिंकी बाटी का वो स्वाद?
एक बार गलती से बाटियों में गन्ने का रस गिर गया..
रेगिस्तान के लोग खाने को फेंकने की सोच भी नहीं सकते..वैसे ही चूर कर खाई गईं और जन्म हुआ बाटियों के साथी चूरमे का..
कालांतर में बाटी की मुलाकात दाल से हुई..आगे तो आप जानते ही हैं..
दाल बाटी चूरमा, जो खाए वो सूरमा..
बाटी राजस्थान के साथ-साथ मालवा क्षेत्र का भी लोकप्रिय व्यंजन है..
राजस्थान में इसे उड़द की छिलके वाली दाल या उड़द मोगर के साथ बनाया जाता है तो मालवा में अरहर की दाल के साथ किंतु सबसे अधिक पसंद की जाती है पंचमेल दाल जिसमें पाँच प्रकार की दालें मिला कर पकाई जाती हैं..
राजस्थान में बाटी गट्टे की सब्ज़ी या दही की कढ़ी के साथ भी खाई जाती है..माँसाहारी लोग माँस के साथ भी बाटी का सेवन करते हैं..
बिहार में बाटी का स्वरूप थोड़ा अलग है..वहाँ यह सत्तू भर कर बनाई जाती है जिसे लिट्टी कहा जाता है और आलू के चोखा के साथ खाई जाती है..
राजस्थान में दाल बाटी चूरमा की गोठ अक्सर बरसात के महीनों में आयोजित की जाती है..राज्य के कोने-कोने में बने शिव और हनुमान मंदिरों में परसादी भी दाल बाटी चूरमा की ही होती है..
यदि आप जयपुर के आसपास रहते हैं तो खोले के हनुमानजी के मंदिर अवश्य गए होंगे..
खोले के हनुमान जी के मंदिर में इस कार्य के लिए व्यवस्थित पचासों रसोइयाँ बनी हुई हैं जो पूरे वर्ष बुक रहती हैं..वहाँ की रसोई में बनी बाटियों का स्वाद लेने के लिए हम सभी प्रतीक्षारत रहते हैं..
चलिए..बाटी बनाने की विधि पर आते हैं..
झगरा या भूभर सुना है आपने?
भूमि पर कंडों की परतें जमा कर जलाई जाती है और उनके बीच बाटियाँ पकने के लिए रख दी जाती हैं जो धीमे-धीमे पकती रहती हैं..कंडों के ऊपर दाल का बर्तन रख दिया जाता है..जब तक सारी बाटियाँ पकती हैं दाल भी पक जाती है..
साथ में दाल में बघार की तैयारी चलती रहती है।
मजे की बात यह है कि दाल-बाटी बनाने का कार्य पुरुषों के जिम्मे होता है..यानि उस दिन महिलाओं की छुट्टी..
अब तो बाटी तंदूर में, कुकर में या माइक्रो वेव में बनाई जाने लगी है..
आँगन जो नहीं रहे हैं ..
बाटियाँ कई प्रकार की होती हैं..
बाफला बाटी, तली हुई मसाला बाटी, आलू बाटी, अचारी बाटी, बाजरे की बाटी..ड्राइफ्रूट बाटी, मेथी की बाटी..
मक्का की हाजी वाली बाटी को पानिया कहा जाता है..
बाफला बाटी पहले उबाली जाती है और फिर सेंकी या तली जाती है..
इसका आकार भी थोड़ा अलग होता है..
आप अप्पा मेकर में भी बाटी बना सकते हैं बस अच्छा सा मोयन, नमक और अजवायन डालना न भूलें..इससे बाटी खस्ता और नरम बनती है..
बाटियों के संगी चूरमे की शान भी कम नहीं है..इलायची और सूखे मेवों वाले चूरमे के अलावा केसर चूरमा, सुजी चूरमा, गुलाब चूरमा, बेसन चूरमा, बाजरा चूरमा ..आम चूरमा.. और तो और अब वनीला चूरमा भी मिलने लगा है..
दाल बाटी चूरमा के साथ मिर्ची के टिपोरे और छाछ भी मिल जाए तो बस आनंद ही आनंद..
तो सोच क्या रहे हैं..?
फोन उठाइए और अभी आॅर्डर कीजिए..
मगर जरा सँभल कर..बाटी पानी बहुत माँगती है तो इसे खाने के बाद पानी अवश्य पिएँ ..
तो हो जाए दाल बाटी चूरमा..😋
टेनिस कोई वास्ता न होते हुए भी राज्य टेनिस एसोसिएशन के अध्यक्ष बन बैठे।
फिर सरकारी जमीन पर कब्ज़ा कर अपना टेनिस कोर्ट बनाया।
समरथ को नहीं दोष गोसाईं..
एक दिन उस चौदह वर्षीय खिलाड़ी लड़की के पिता से बोले कि उसमें प्रतिभा है पर विशेष प्रशिक्षण चाहिए..
अगले दिन लड़की अपनी एक सहेली के साथ टेनिस के विशेष प्रशिक्षण के लिए अधिकारी महोदय के टेनिस कोर्ट पहुँची।
This looks like a vicious circle.. @BajajHousing..
Why does it take 15 days for you to issue a revised fore closure letter..?
None of your customer help lines receive calls..neither does your executives cooperate..
The request was raised on Nov 2nd after you executives refused to receive the cheque payment ..Which was acknowledged on 4th of Nov..
It takes 2 working days for you to acknowledge a request.. @BajajHousing
दुर्गा भाभी..
अद्वितीय देशभक्ति की एक अनूठी मिसाल..@Sheshapatangi
नारी शक्ति का पर्याय दुर्गा भाभी जो जतिन्द्र नाथ दास की पार्थिव देह के साथ लाहौर से कलकत्ता आईं..जतीन्द्र नाथ जिनकी मृत्यु लाहौर कारागार में लगातार 63 दिनों के अनशन के कारण हुई,पूरे रास्ते लोग स्वतंत्रता के इस दीवाने को श्रृद्धांजलि देने के लिए जुड़ते रहे.
वे अपने घर में अकेली थी,उनके पति श्री भगवती चरण वोहरा 17/12/1928 को आयोजित काँग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए कलकत्ता गए थे..
लाला लाजपतराय की मृत्यु के लिए उत्तरदायी अंग्रेज पुलिस अधिकारी जाॅन सांडर्स मारा गया था और अंग्रेजी सरकार ने लाहौर में कड़ी पाबंदियां लगाई हुई थी।
आज ग्यारह सितम्बर है..
भारतीय इतिहास का एक बहुत बड़ा दिन..
आज ही के दिन स्वामी विवेकानंद ने
शिकागो में विश्व हिंदू सम्मेलन में वह ऐतिहासिक भाषण दिया था जिसके बारे में सोच कर आज भी हमारा ह्रदय अपने धार्मिक वैभव और थाती पर गर्व से आल्हादित हो उठता है..
आज का दिन हमारी गौरवशाली परंपरा के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि ये दिन देश की एक और महान विभूति से जुड़ा है।
आइए आज बात करते हैं कविवर सुब्रह्मण्यम भारती की जिनके गीत हम गाते हैं, जिनका देवलोक गमन आज ही के दिन हुआ..
और जिनके अंतिम संस्कार में केवल चौदह व्यक्ति सम्मिलित हुए थे..
है ना आश्चर्य की बात..?
कहते हैं कि ऐसा तो किसी शत्रु के साथ भी न हो..किंतु बिल्कुल ऐसा ही हुआ तमिलनाडु के सबसे लोकप्रिय स्वातंत्र्यवीर 'भारतीयार' के साथ.. @Sheshapatangi
जलियाँवाला बाग सुनते ही आज भी हर सच्चे भारतीय की आत्मा सिहर उठती है और लहू खौल उठता है..
आइए बात करते हैं उस अमर बलिदानी की जिसने इस जघन्य हत्याकांड का प्रतिशोध लेने के लिए 21साल प्रतीक्षा की.. #उधम_सिंह
आगे बढ़ने से पहले जानने योग्य बात यह है कि उधम सिंह द्वारा प्रतिशोध की कार्यवाही पर चाचा जी और बापू जी की प्रतिक्रिया क्या रही..
उधमसिंह के इस कार्रवाई को अधिकांश भारतीयों ने अंग्रेजों के अत्याचारों पर एक प्रतिक्रिया ही माना किंतु भारत के तथाकथित कर्ताधर्ताओं ने इसकी भर्त्सना की।
बापू ने इसे पागलपन बताते हुए कहा कि"इस अतिरेक से मुझे बहुत कष्ट पहुँचा है और मैं इसे पागलपन समझता हूँ।"
"बहरों को सुनाने के लिए धमाकों की आवश्यकता पड़ती है.."
कितने लोगों को ये संवाद याद है?
8 अप्रैल 1929 को दिल्ली की केन्द्रीय विधान सभा में हुए धमाके की गूँज सात समंदर पार ब्रितानी सरकार के कानों तक सुनाई दी थी..
बात करते हैं बटुकेश्वर दत्त की जो इस साहसिक कारनामे में भगत सिंह के साथ थे..