सप्तॠषि वैदिक काल के सबसे महान ऋषि माने जाते हैं। अपनी योग और प्रायश्चित की शक्ति से उन्होंने बहुत लंबी आयु अर्थात् लगभग अमरत्व की सिद्धि प्राप्त की..।
सप्त ऋषियों को चारों युग में मानव प्रजाति के मार्गदर्शन का कार्य सौंपा गया ।वे आदि योगी शिव के सहयोग से पृथ्वी पर संतुलन बनाये रखते हैं..
ब्रह्मा के मानस पुत्र सप्त ऋषि एक मनवन्तर की आयु जीते हैं यानि कि पृथ्वी के 306,720,000 वर्ष..
इस अवधि में वे ब्रह्मा के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं और एक मनवन्तर के अंत में ब्रह्माण्ड की समाप्ति हो जाती है और सप्तर्षि ईश्वर में समा जाते हैं और नये संसार रचना नये सप्तर्षि करते हैं..
सभी सप्तर्षि ब्रह्मर्षि होते हैं यानि कि वे ब्राह्मण का अर्थ पूरी तरह समझते हैं। केवल वरीयता के आधार पर ब्रह्मर्षि नहीं बना जा सकता क्योंकि इस परंपरा की स्थापना दैवीय रूप से स्वयं ब्रह्मा ने की थी और वही इन की नियुक्ति करते हैं।
तथापि विश्वामित्र योग्यता के आधार पर ब्रह्मर्षि बने।उन्होंने हजारों वर्षों तक तपस्या की और स्वयं ब्रह्मा ने उन्हें ब्रह्मर्षि का पद प्रदान की।
जीवन-मृत्यु से परे ब्रह्मर्षि इतने समर्थ होते हैं कि वे किसी भी अस्त्र को जीत सकते हैं,भविष्यवाणी कर सकते हैं।
सामर्थ्य और पवित्रता की दृष्टि से सप्तर्षि देवताओं से भी आगे होते हैं और उनका स्थान राजर्षियों और महर्षियों से भी ऊँचा होता है।
संस्कृत में महर्षि शब्द का अर्थ महान साधु होता है जो दिव्य ज्ञानियों के लिए प्रयुक्त होता है।
उनका तीसरा नैत्र पूरा खुला होता है और वे अपनी प्रज्ञा शक्ति का पूरा उपयोग करते हैं। उनका ध्यान सम्पूर्ण ब्रह्मांड पर होते हुए भी वे अपने कार्य और विचार में चमत्कारी सूझबुझ रखते हैं।
राजर्षि यानि राजा समान या राज परिवार से संबंध रखने वाले ऋषि जैसे विश्वामित्र और जनक।
ऋषि अंगीरस के वंशज भारद्वाज वैदिक समय के महान ऋषियों में से एक हैं। आयुर्वेद के लेखक और द्रौणाचार्य के पिता भारद्वाज के पिता देवर्षि बृहस्पति थे। उनका आश्रम आज भी प्रयागराज में स्थित है।
वे दिव्यास्त्रों और अग्रणी सैन्य कलाओं में भी सिद्धहस्त थे। उनकी पत्नी का नाम सुशीला था और उनकी संतानों में एक पुत्र गंगा और एक पुत्री देववर्णीनी थे।
कौरवों और पांडवों के गुरू भारद्वाज पुत्र द्रौणाचार्य का जन्म ॠषिवर की एक अप्सरा के प्रति आसक्ति के परिणामस्वरूप हुआ।
कुछ पुराणों के अनुसार राजा भरत के दत्तक पुत्र भारद्वाज राजा भरत को गंगा नदी के किनारे मिले थे।
उनमें वेदों को जानने की तीव्र उत्कंठा थी और उन्होंने वेदों के उत्तरोतर ज्ञान के लिए इंद्र, भगवान शिव और पार्वती का ध्यान भी किया था।
ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में पाए जाने वाले गायत्री मंत्र के दाता विश्वामित्र सबसे अधिक जाने जाने वाले सप्तर्षियों में से एक हैं।
वे ब्राह्मण नहीं क्षत्रिय थे और महानतम साधु कहे जाने के लिए वशिष्ठ से उनकी प्रतिस्पर्धा बड़ी ही रोचक है।
जन्म से क्षत्रिय होने के कारण लड़ने, हारने और वशिष्ठ से क्षमादान ने राजा पर बहुत गहरा प्रभाव छोड़ा। उन्हें अहसास हुआ कि तप से प्राप्त शक्ति शारीरिक बल से श्रेष्ठ होती है।
और राजपाट त्याग कर वे वशिष्ठ से भी बड़े सिद्ध ऋषि बनने के प्रयास में जुट गए।
हजारों वर्षों के अनुष्ठान और तप के बल पर उन्होंने वशिष्ठ और ब्रह्मा, दोनों से ब्रह्मर्षि की उपाधि प्राप्त की।
ऋषि वशिष्ठ भी इस मनवन्तर के एक सप्तर्षि थे। ब्रह्मा के पुत्र और सूर्य वंश के राजगुरु वशिष्ठ की पत्नी का नाम अरुंधती था।उन्होंने वशिष्ठ संहिता की रचना की।
इस मनवन्तर के ही एक और सप्तर्षि हैं गौतम ऋषि। वे भी अंगीरस की वंश परंपरा से थे। उनके पुत्रों के नाम नामदेव, नोधास और शतानंद थे। गौतम धर्म सूत्र, ऋग्वेद और सामवेद के मंत्रों के रचयिता गौतम ऋषि विधि के पहले लेखकों में से थे।
ब्रह्मा की पुत्री अहिल्या उनकी पत्नी थी।ब्रहा ने घोषणा की थी कि अहिल्या का विवाह वे उसी से करेंगे जो पृथ्वी की परिक्रमा सबसे पहले पूरी कर लेगा। गौतम ऋषि ने देवों की गाय की परिक्रमा कर यह शर्त पूरी की और अहिल्या का विवाह उनसे किया गया।
गौतम ऋषि बहुत ही विनम्र थे।
जब धरती पर भीषण दुर्भिक्ष आया और पानी की कमी हो गई तो महर्षि गौतम ने एकनिष्ठता से वरुण देव की तपस्या की जिससे प्रसन्न हो कर वरुण देव ने उन्हें दर्शन दिए। गौतम ऋषि ने उनसे वर्षा का आग्रह किया।
वरुण देव ने समझाया,"विधि के अनुसार इस अवधि में वर्षा नहीं होनी चाहिए और में विधि के विरुद्ध नहीं जा सकता क्यों कि पाँचों तत्व बल भगवान शिव के अधीन हैं इसलिए कुछ और माँग लो"।
तब ऋषि ने जलाशयों में जल की अबाध आपूर्ति का वर माँगा और पृथ्वी वासियों की रक्षा की।
ब्रह्मा के पुत्र ऋषि अत्रि भी वर्तमान मनवन्तर के सप्तर्षि हैं।
उन्हें पवित्र सूत्र जनेऊ के योगदान के लिए जाना जाता है। उन्होंने अनेक पवित्र मंत्रों की रचना की।
उनकी पत्नी अनुसूया सतीत्व की साक्षात मूर्ति थीं।
एक बार त्रिदेव ने उनके सतीत्व की परीक्षा लेने का विचार किया और उनके घर ब्राह्मण वेश में पहुँच गए।उन्होंने उन से निर्वस्त्र हो कर भिक्षा देने को कहा। सती उन्हें पहचान गईं और अपने सतीत्व के बल से उन्हें बालक बना दिया।
सतीत्व की शक्ति से प्रभावित त्रिदेव ने उन्हें माता मान लिया।
त्रिदेव ने सती अनुसूया से प्रार्थना की कि उन्हें उनके मूल रूप में ले आएं ।
अत्रि ऋषि ने अत्रि संहिता और अत्रि स्मृति की रचना की।
कश्यप ब्रह्मा के पौत्र और मरीचि के पुत्र थे। वे देवों, असुरों, नागों, गरूड़ों, वामन, अग्नि, आदित्य, दैत्य, आर्यमान,मित्र, पुसान, वरुण और समस्त मानव वंश के पिता थे। वे प्रजापति थे।
उन्होंने कश्यप संहिता की रचना की जो आयुर्वेदिक शिशु चिकित्सा,स्त्री रोग और प्रसूतिविज्ञान के लिए एक संदर्भ ग्रंथ माना जाता है।
जब राजा परीक्षित की मृत्यु सर्प तक्षक के काटने से हो जाती है तो कश्यप ऋषि उसे रोकने आते हैं।तक्षक एक पेड़ को डसकर उसे राख कर देता है।
अपनी यौगिक शक्ति से कश्यप उस वृक्ष में प्राण फूँकते हैं।
किंतु द्विज पुत्र के श्राप के बारे में सुनकर वे वहाँ से चले जाते हैं और प्रायश्चित के लिए तिरुपति जाते हैं।
प्रजापति ऋषि भृगु के वंशज जमदग्नि भगवान विष्णु के छठें अवतार
परशुराम के पिता थे। उनकी पत्नी रेणुका अपने सतीत्व की शक्ति से मिट्टी के कच्चे घड़े में नदी से जल भर कर लाती थीं।
एक दिन आकाश मार्ग से जाते गंधर्वों को देख कर मन में विषय भावना जागने से उनका घड़ा गल जाता है।
अपने पति के क्रोध से भयभीत हो वे घर नहीं लौटीं।
अपनी योग शक्ति से यह जान कर जमदग्नि ने अपने पुत्र परशुराम से उनकी माता का वध करने को कहा और परशुराम ने ऐसा ही किया।
हमारी वंश परंपरा, कुल, गोत्र आदि का सीधा संबंध सप्त ऋषियों से है।
एक हिंदू के जन्म पर दिए गए वंश अथवा कुल को गोत्र कहा जाता है।
अधिकांशतः यह व्यवस्था पैतृक है और पिता का गोत्र ही पुत्र को दिया जाता है।
@Shrimaan द्वारा अंग्रेजी में लिखी ट्वीट श्रृंखला से साभार।
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आठवीं सदी की कहानी है.
बप्पा रावल के रणबाँकुरे लाम पे निकलते थे मुँह अँधेरे,
तलवार के धनी आटे की लोईयां सुबह रेत में दबाते,शाम तक जब लौट के आते,गर्म रेत में दबी लोईयां निकालते, फोड़ कर छाछ दूध संग खाते..
बस यही थी बाटी की शुरुआत..
सौंधा रहा होगा ना रेत में सिंकी बाटी का वो स्वाद?
एक बार गलती से बाटियों में गन्ने का रस गिर गया..
रेगिस्तान के लोग खाने को फेंकने की सोच भी नहीं सकते..वैसे ही चूर कर खाई गईं और जन्म हुआ बाटियों के साथी चूरमे का..
कालांतर में बाटी की मुलाकात दाल से हुई..आगे तो आप जानते ही हैं..
दाल बाटी चूरमा, जो खाए वो सूरमा..
बाटी राजस्थान के साथ-साथ मालवा क्षेत्र का भी लोकप्रिय व्यंजन है..
राजस्थान में इसे उड़द की छिलके वाली दाल या उड़द मोगर के साथ बनाया जाता है तो मालवा में अरहर की दाल के साथ किंतु सबसे अधिक पसंद की जाती है पंचमेल दाल जिसमें पाँच प्रकार की दालें मिला कर पकाई जाती हैं..
टेनिस कोई वास्ता न होते हुए भी राज्य टेनिस एसोसिएशन के अध्यक्ष बन बैठे।
फिर सरकारी जमीन पर कब्ज़ा कर अपना टेनिस कोर्ट बनाया।
समरथ को नहीं दोष गोसाईं..
एक दिन उस चौदह वर्षीय खिलाड़ी लड़की के पिता से बोले कि उसमें प्रतिभा है पर विशेष प्रशिक्षण चाहिए..
अगले दिन लड़की अपनी एक सहेली के साथ टेनिस के विशेष प्रशिक्षण के लिए अधिकारी महोदय के टेनिस कोर्ट पहुँची।
This looks like a vicious circle.. @BajajHousing..
Why does it take 15 days for you to issue a revised fore closure letter..?
None of your customer help lines receive calls..neither does your executives cooperate..
The request was raised on Nov 2nd after you executives refused to receive the cheque payment ..Which was acknowledged on 4th of Nov..
It takes 2 working days for you to acknowledge a request.. @BajajHousing
दुर्गा भाभी..
अद्वितीय देशभक्ति की एक अनूठी मिसाल..@Sheshapatangi
नारी शक्ति का पर्याय दुर्गा भाभी जो जतिन्द्र नाथ दास की पार्थिव देह के साथ लाहौर से कलकत्ता आईं..जतीन्द्र नाथ जिनकी मृत्यु लाहौर कारागार में लगातार 63 दिनों के अनशन के कारण हुई,पूरे रास्ते लोग स्वतंत्रता के इस दीवाने को श्रृद्धांजलि देने के लिए जुड़ते रहे.
वे अपने घर में अकेली थी,उनके पति श्री भगवती चरण वोहरा 17/12/1928 को आयोजित काँग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए कलकत्ता गए थे..
लाला लाजपतराय की मृत्यु के लिए उत्तरदायी अंग्रेज पुलिस अधिकारी जाॅन सांडर्स मारा गया था और अंग्रेजी सरकार ने लाहौर में कड़ी पाबंदियां लगाई हुई थी।
आज ग्यारह सितम्बर है..
भारतीय इतिहास का एक बहुत बड़ा दिन..
आज ही के दिन स्वामी विवेकानंद ने
शिकागो में विश्व हिंदू सम्मेलन में वह ऐतिहासिक भाषण दिया था जिसके बारे में सोच कर आज भी हमारा ह्रदय अपने धार्मिक वैभव और थाती पर गर्व से आल्हादित हो उठता है..
आज का दिन हमारी गौरवशाली परंपरा के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि ये दिन देश की एक और महान विभूति से जुड़ा है।
आइए आज बात करते हैं कविवर सुब्रह्मण्यम भारती की जिनके गीत हम गाते हैं, जिनका देवलोक गमन आज ही के दिन हुआ..
और जिनके अंतिम संस्कार में केवल चौदह व्यक्ति सम्मिलित हुए थे..
है ना आश्चर्य की बात..?
कहते हैं कि ऐसा तो किसी शत्रु के साथ भी न हो..किंतु बिल्कुल ऐसा ही हुआ तमिलनाडु के सबसे लोकप्रिय स्वातंत्र्यवीर 'भारतीयार' के साथ.. @Sheshapatangi
जलियाँवाला बाग सुनते ही आज भी हर सच्चे भारतीय की आत्मा सिहर उठती है और लहू खौल उठता है..
आइए बात करते हैं उस अमर बलिदानी की जिसने इस जघन्य हत्याकांड का प्रतिशोध लेने के लिए 21साल प्रतीक्षा की.. #उधम_सिंह
आगे बढ़ने से पहले जानने योग्य बात यह है कि उधम सिंह द्वारा प्रतिशोध की कार्यवाही पर चाचा जी और बापू जी की प्रतिक्रिया क्या रही..
उधमसिंह के इस कार्रवाई को अधिकांश भारतीयों ने अंग्रेजों के अत्याचारों पर एक प्रतिक्रिया ही माना किंतु भारत के तथाकथित कर्ताधर्ताओं ने इसकी भर्त्सना की।
बापू ने इसे पागलपन बताते हुए कहा कि"इस अतिरेक से मुझे बहुत कष्ट पहुँचा है और मैं इसे पागलपन समझता हूँ।"