In fact, it's exactly the opposite. Here superiority of Gyankanda (Upanishad) over Upasana Kanda and Karmakanda is being stated as a Siddhanta of Smarta-Sharuata parampara.
What Tulsidas saying in that poem from Gitavali is very subtle and profound Vedic Siddhanta that one has to leave the means (in the form of Karma Kanda and Upasana Kanda) to realize the goal of Gyanakanda (Upanishads).
Let me do some quoting.
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"त्यज धर्ममधर्म च उभे सत्यानृते त्यज।
उभे सत्यानृते त्यक्त्वा येन त्यजसि तत्तयज।।" ~ महाभारत’ शान्तिपर्व
भावार्थ: धर्म और अधर्मको छोड़ो। सत्य और असत्यको मी त्याग दो और उन दोनोंका त्याग करके जिसके द्वारा त्याग करते हो उसको भी त्याग दो। 3/ sanskritdocuments.org/mirrors/mahabh…
There is one whole chapter (12th chapter in 11th Skandha) in श्रीमद्भागवत on कर्म and कर्मत्याग की विधि.
Sri Krishna says the following to Udhava in the abv chapter.
तस्मात्त्वमुद्धवोत्सृज्य चोदनां प्रतिचोदनाम् ।
प्रवृत्तं च निवृत्तं च श्रोतव्यं श्रुतमेव च ॥ १४॥
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भावार्थ: तुम (उद्धव) श्रुति-स्मृति, विधि-निषेध, प्रवृत्ति-निवृत्ति और सुनने योग्य तथा सुने हुए विषय का भी परित्याग करके सर्वत्र मेरी ही भावना करते हुए समस्त प्राणियों के आत्मस्वरूप मुझ एक की ही
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शरण सम्पूर्ण रूप से ग्रहण करो; क्योंकि मेरी शरण में आ जाने से तुम सर्वथा निर्भय हो जाओगे।
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Same thing has been said in अन्नपूर्णोपनिषत् as follows:
यही बात भगवान
श्रीकृष्ण गीता का समापन करते हुये बोलते हैं।
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।" ~श्रीमद्भगवद्गीता (१८.६६)
(सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ)
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धर्मपालन साधन है एक साध्य को प्राप्त करने के लिये। तो वह साध्य जब प्राप्त हो जाय तो साधन को तो छोड़ना पडे़गा।
In short, you will have to read Scriptures in a Guru-Shishya Parampara. Not in self-study mode with English translation by some Padre or his brown parrot.
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But a Purva-Mimansaka (Karmakandi) will never accept it. This was the point of Shashtrartha between Adi Sankara and Mandana Mishra.
Upasaks too will never accept this resulting in the Dvita-Advaita debate.
Pushtimarg Vaishnavism mein aisa maante hain kya ki Bhagwan Ka Avatar nahin hota, Ishwar Avatar leta hai yah human mind ki imagination hai aur Ram Ravana se bade Rakashas the?
पहले गाँवो में बियाह-कटवा होते थे जो लड़के या लड़की के बारे में कुछ झूठ लड़की या लड़के वाले को बताकर शादी कटवा देते थे। मेरे गाँव एक चाचा की बारात जब गयी तो वहाँ लड़की के घर वाले बिना द्वार-पूजा हुये ही दूल्हे को घर के अन्दर ले गये यह कहकर उनके यहाँ ऐसी ही परम्परा है।
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उनको एक कमरे में ले जाकर बैठा दिया गया। फिर नाउन (नाई की स्त्री) आयी और उनका नाडा़ खोलने लगी। वो हड़बडा़ गये और बोले ये क्या कर रही हो? तब वो बोली की आप के बारे में खबर आयी है कि आपके पास बन्दूक नही है और आप हिजडे़ हैं। तो अगर आप जाँचने नहीं देंगे तो यह विवाह नहीं हो पायेगा☺️
2/
तब उन्होने कहा कि जब ये बात है तो अच्छी तरह से जाँच कर लो और अपना पाजामा खोल दिया।
तो वैसा ही कुछ सिस्टम यहाँ भी होना चाहिये। 3/
अगर धर्म और भगवान में से एक चुनना पडे़ तो किसको चुनेंगे? इसपर गीतावली से गोस्वामी तुलसीदास का यह पद:
सुनहु राम मेरे प्रानपियारे।
वारों सत्य बचन श्रुति-सम्मत, जाते हौं बिछुरत चरन तिहारे ॥१॥
1/
भावार्थ: [भगवान् रामके मुखसे वनगमनका प्रस्ताव सुन माता कौसल्या कहने लगीं-] "मेरे प्राणधार राम ! सुनो, जिनके कारण तुम्हारे चरणोंका वियोग होता हो, उन श्रुतिसम्मत सत्य वचनोंको मैं तुम्हारे ऊपर निछावर करती हूँ॥१॥
2/
बिनु प्रयास सब साधनको फल प्रभु पायो, सो तो नाहिं संभारे।
हरि तजि घरमसील भयो चाहत, नृपति नारि बस सरबस हारे ॥२॥
3/
भगवान श्रीराम इतने सीधे और सरल हैं कि बार-बार परीक्षा देते रहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ऐसा कभी नहीं करेंगे। ☺️
विश्वामित्रजी जानते थे कि दशरथ के पुत्र के रुप में भगवान ही हैं इसीलिये उनको लेने गये थे।
1/
गाधितनय मन चिंता ब्यापी। हरि बिनु मरहिं न निसिचर पापी॥
तब मुनिबर मन कीन्ह बिचारा। प्रभु अवतरेउ हरन महि भारा॥
2/
भावार्थ:-गाधि के पुत्र विश्वामित्रजी के मन में चिन्ता छा गई कि ये पापी राक्षस भगवान के (मारे) बिना न मरेंगे। तब श्रेष्ठ मुनि ने मन में विचार किया कि प्रभु ने पृथ्वी का भार हरने के लिए अवतार लिया है।
3/
Obviously, this Sekoolar-Savarna लुटिया is resorting to the time tested Lutyenmedia technique of fake anecdote. Whichever locality she lives in, Hindus should boycott such people lest their progeny gets corrupted and become trash due to bad company.
The poem @Janaki_Sr refers to was written by rabid Islamist (with the mask of atheist) Dad of Shabana Aazmi after the removal of Babri mosque from to guilt trip Hindus per larger political agenda of Ashraf and their Dhimmi companion Sekoolar-Savarnas. 1/ kavitakosh.org/kk/index.php?t…
For all his pretensions as an atheist and left-leaning intellectual Kaifi Aazmi never wrote a poem condemning the gangster deeds, not to mention subhuman acts like abducting, raping, selling into slavery women etc, of the followers of Islam.
2/
This incident quoted from the book on Irani's victory in Amethi should give you some idea about the chameleon stuntbaaj character of Nehru-Gandhi family presently displayed by Pappu very often but exposed by SM. @iMac_too
1/
"फूलपुर इलाहाबाद से करीब तीस किलोमीटर दूर स्थित एक कस्बा है। भारत के पहले प्रधानमन्त्री का संसदीय क्षेत्र होने के बाद भी यहाँ विकास की कोई गति ही नहीं।
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नेहरू-गाँधी परिवार के लिए इस क्षेत्र का पिछड़ापन वह सीढ़ी था, जिससे उनके करिश्माई व्यक्तित्व को वह मजबूती मिलती थी जिससे वे चुनाव जीतते थे। पुराने लोग पंडित नेहरू के जमाने का एक किस्सा बताते हैं।
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