इस हिंदूओं को ठगने वाली "मुँह में राम दिल में अल्ला/जेहोवा" विधा को राजनीति में लानेवाला गाँधी था।
Pushtimarg Vaishnavism mein aisa maante hain kya ki Bhagwan Ka Avatar nahin hota, Ishwar Avatar leta hai yah human mind ki imagination hai aur Ram Ravana se bade Rakashas the?

Lol! Kya Bhai, Ab Sekoolar-Savarna propaganda ko bhee counter karna padega, wo bhee aap jaison se?

But Gandhi has said exactly what I stated in abv tweet. Gandhi's Ram isn't even the Nirgun Ram of Guru Nanak and Kabir.

1/

Always remember this assessment of Gandhi by none other than Aurobindo.

"the Upanishads or the Gita which he interprets in the light of his own ideas."
And what are those ideas? Again to quote Aurobindo.
2/
"He (Gandhi) is largely influenced by Tolstoy,the Bible, and has a strong Jain tinge in his teachings; at any rate more than by the Indian scriptures"
So don't go by the literal meaning of Gandhi's utterings supplemented by your own understanding of it.3/3
voiceofdharma.org/books/ir/IR_pa…
Ye to aap Gandhi ko Ram-Bhakta batakar pracharit karnewale unke sekoolar-Savarna followers se poocho. Main to jo Gandhi ne swayam kaha uspar jyada vishwas karta hoon.

The eyewitness of Gandhi's slaying, Gopal Godse, had this to say on "Hey Ram" propaganda by Sekoolar-Savarnas.

"first act they(Nehru & @INCIndia
)did was to put Hey Ram into Gandhi's dead mouth." ~ Gopal Godse

content.time.com/time/world/art…

And how does that go with the principles of Vaishnavism? I repeat again:
"..the Upanishads or the Gita which he interprets in the light of his own ideas.."
So Gandhi selectively speaks from Hinduism which resonated with his Christian Sanskaras.
Goswami Tulsidas reserves choiciest words for those, like Ganhdi, who say Rama of Ayodhya is different from the Rama (ब्रह्म) of Upanishads.

एक बात नहिं मोहि सोहानी। जदपि मोह बस कहेहु भवानी॥
तुम्ह जो कहा राम कोउ आना। जेहि श्रुति गाव धरहिं मुनि ध्याना॥4॥

1/
भावार्थ:-परंतु हे पार्वती! एक बात मुझे अच्छी नहीं लगी, यद्यपि वह तुमने मोह के वश होकर ही कही है। तुमने जो यह कहा कि वे राम कोई और हैं, जिन्हें वेद गाते और मुनिजन जिनका ध्यान धरते हैं-

कहहिं सुनहिं अस अधम नर ग्रसे जे मोह पिसाच।
पाषंडी हरि पद बिमुख जानहिं झूठ न साच॥
2/
भावार्थ:-जो मोह रूपी पिशाच के द्वारा ग्रस्त हैं, पाखण्डी हैं, भगवान के चरणों से विमुख हैं और जो झूठ-सच कुछ भी नहीं जानते, ऐसे अधम मनुष्य ही इस तरह कहते-सुनते हैं॥
3/
अग्य अकोबिद अंध अभागी। काई बिषय मुकुर मन लागी॥
लंपट कपटी कुटिल बिसेषी। सपनेहुँ संतसभा नहिं देखी॥1॥
4/
भावार्थ:-जो अज्ञानी, मूर्ख, अंधे और भाग्यहीन हैं और जिनके मन रूपी दर्पण पर विषय रूपी काई जमी हुई है, जो व्यभिचारी, छली और बड़े कुटिल हैं और जिन्होंने कभी स्वप्न में भी संत समाज के दर्शन नहीं किए॥
5/
कहहिं ते बेद असंमत बानी। जिन्ह कें सूझ लाभु नहिं हानी॥
मुकुर मलिन अरु नयन बिहीना। राम रूप देखहिं किमि दीना॥2॥
6/
भावार्थ:-और जिन्हें अपने लाभ-हानि नहीं सूझती, वे ही ऐसी वेदविरुद्ध बातें कहा करते हैं, जिनका हृदय रूपी दर्पण मैला है और जो नेत्रों से हीन हैं, वे बेचारे श्री रामचन्द्रजी का रूप कैसे देखें!
7/
जिन्ह कें अगुन न सगुन बिबेका। जल्पहिं कल्पित बचन अनेका॥
हरिमाया बस जगत भ्रमाहीं। तिन्हहि कहत कछु अघटित नाहीं॥3॥
8/
भावार्थ:-जिनको निर्गुण-सगुण का कुछ भी विवेक नहीं है, जो अनेक मनगढ़ंत बातें बका करते हैं, जो श्री हरि की माया के वश में होकर जगत में (जन्म-मृत्यु के चक्र में) भ्रमते फिरते हैं, उनके लिए कुछ भी कह डालना असंभव नहीं है॥
9/
बातुल भूत बिबस मतवारे। ते नहिं बोलहिं बचन बिचारे॥
जिन्ह कृत महामोह मद पाना। तिन्ह कर कहा करिअ नहिं काना॥4॥
10/
भावार्थ:-जिन्हें वायु का रोग (सन्निपात, उन्माद आदि) हो गया हो, जो भूत के वश हो गए हैं और जो नशे में चूर हैं, ऐसे लोग विचारकर वचन नहीं बोलते। जिन्होंने महामोह रूपी मदिरा पी रखी है, उनके कहने पर कान नहीं देना चाहिए॥
11/
And then Tulsidas states Vedic Sanatana position (Vedantic/Upanishdic) as follows:
12/12

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10 Mar
This review of a book on Hindu Astronomy (by a Gora) published in Nature magazine published in the year 1896.
cc @jayasartn @Koenraad_Elst
Two things to note:
1) Astronomical data in Hindu texts contradicts AIT and it makes the book reviewer uncomfortable.
1/
2) Hindus had a more accurate estimate of the rate of precession than Ptolemy but check any book on astronomy and its section on Precession, it simply ignores Hindu contribution (which IMO is original, Greeks borrowed from us) with proud mention of Hipparchus and Ptolemy.

2/
"He begins by a discussion of the ancient zodiac, and its general correspondence amongst the Indians, Chinese, Chaldæans, Arabians, and Egyptians;
3/
Read 11 tweets
10 Mar
Please pay attention to what Gandhi is saying.

" There is no reason to believe that any historical figure was the incarnation of God or God as a historical figure was born in human or any other form".

That's the end of Vaishnavism.
Who are these "Hindu reformists"? you mean Brahmos and Arya samajis?

Sanatana Dharma may survive after this but Vaishnavism won't. Smiling face

Read 7 tweets
9 Mar
पहले गाँवो में बियाह-कटवा होते थे जो लड़के या लड़की के बारे में कुछ झूठ लड़की या लड़के वाले को बताकर शादी कटवा देते थे। मेरे गाँव एक चाचा की बारात जब गयी तो वहाँ लड़की के घर वाले बिना द्वार-पूजा हुये ही दूल्हे को घर के अन्दर ले गये यह कहकर उनके यहाँ ऐसी ही परम्परा है।
1/
उनको एक कमरे में ले जाकर बैठा दिया गया। फिर नाउन (नाई की स्त्री) आयी और उनका नाडा़ खोलने लगी। वो हड़बडा़ गये और बोले ये क्या कर रही हो? तब वो बोली की आप के बारे में खबर आयी है कि आपके पास बन्दूक नही है और आप हिजडे़ हैं। तो अगर आप जाँचने नहीं देंगे तो यह विवाह नहीं हो पायेगा☺️
2/
तब उन्होने कहा कि जब ये बात है तो अच्छी तरह से जाँच कर लो और अपना पाजामा खोल दिया।
तो वैसा ही कुछ सिस्टम यहाँ भी होना चाहिये।
3/
Read 4 tweets
8 Mar
In fact, it's exactly the opposite. Here superiority of Gyankanda (Upanishad) over Upasana Kanda and Karmakanda is being stated as a Siddhanta of Smarta-Sharuata parampara.
This isn't Smarta belief but must requirement for any Sampradaya to be a Vedic one.
1/
What Tulsidas saying in that poem from Gitavali is very subtle and profound Vedic Siddhanta that one has to leave the means (in the form of Karma Kanda and Upasana Kanda) to realize the goal of Gyanakanda (Upanishads).
Let me do some quoting.

2/
Read 11 tweets
8 Mar
अगर धर्म और भगवान में से एक चुनना पडे़ तो किसको चुनेंगे? इसपर गीतावली से गोस्वामी तुलसीदास का यह पद:

सुनहु राम मेरे प्रानपियारे।
वारों सत्य बचन श्रुति-सम्मत, जाते हौं बिछुरत चरन तिहारे ॥१॥
1/
भावार्थ: [भगवान् रामके मुखसे वनगमनका प्रस्ताव सुन माता कौसल्या कहने लगीं-] "मेरे प्राणधार राम ! सुनो, जिनके कारण तुम्हारे चरणोंका वियोग होता हो, उन श्रुतिसम्मत सत्य वचनोंको मैं तुम्हारे ऊपर निछावर करती हूँ॥१॥
2/
बिनु प्रयास सब साधनको फल प्रभु पायो, सो तो नाहिं संभारे।
हरि तजि घरमसील भयो चाहत, नृपति नारि बस सरबस हारे ॥२॥
3/
Read 10 tweets
26 Feb
भगवान श्रीराम इतने सीधे और सरल हैं कि बार-बार परीक्षा देते रहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ऐसा कभी नहीं करेंगे। ☺️
विश्वामित्रजी जानते थे कि दशरथ के पुत्र के रुप में भगवान ही हैं इसीलिये उनको लेने गये थे।
1/
गाधितनय मन चिंता ब्यापी। हरि बिनु मरहिं न निसिचर पापी॥
तब मुनिबर मन कीन्ह बिचारा। प्रभु अवतरेउ हरन महि भारा॥

2/
भावार्थ:-गाधि के पुत्र विश्वामित्रजी के मन में चिन्ता छा गई कि ये पापी राक्षस भगवान के (मारे) बिना न मरेंगे। तब श्रेष्ठ मुनि ने मन में विचार किया कि प्रभु ने पृथ्वी का भार हरने के लिए अवतार लिया है।
3/
Read 23 tweets

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