#इति_श्री_इतिहास
अंग्रेजी यातना सहकर एक चाचा स्वर्णसिंह की मौत हो चुकी थी, दूसरे चाचा अजीत सिंह अंग्रेजों से बचने के लिए विदेश में फरारी
काट रहे थे।घर में एक चाची विधवा थीं,दूसरी ना विधवा,ना सधवा। वो गोद में लेकर 3 साल के भगत सिंह को प्यार करती और नजरें मिलते ही रो पड़तीं 1/13
कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं, तो भगत के भी दिखने लगे थे। दुधमुहे दातों वाले 3 साल के भगत सिंह बड़ी चाची के गले में बाहें डालकर कहते
'रोओ मत , मैं अंग्रेजों को मार भगाऊंगा और चाचा जल्द लौट आएंगे। दूसरी चाची से कहते- मैं अंग्रेजों से बदला लूंगा।...
एक दिन बाग की जमीन तैयार कर आम के पौधे रोपे जा रहे थे, पिता सरदार किशन सिंह अपने मित्र मेहता नंदकिशोर को बाग दिखाने आए तो भगतसिंह को भी साथ
लाए। बेटा पिता की उंगली छोड़ खेत में जा बैठा और पौधों की तरह तिनके रोपने लगा। पिता ने पूछा- क्या कर रहे हो ?
जवाब आया- बंदूकें बो रहा हूं..
भगतसिंह का उत्तर सुन दोनों दंग रह गए और उनकी मुस्कान ने बता दिया कि क्रांति के बीज बोए जा चुके हैं।स्कूल की किताबों में दिल कम ही लगता था, मगर घर में रखी चाचा अजीत सिंह,लाला हरदयाल और सूफी अंबाप्रसाद की लिखी पचासों किताबें चौथी कक्षा में ही पढ़ गए।पूरा खानदान ही क्रांतिकारी था..
क्या अद्भुत परिवार था, दादा अर्जुन सिंह, पिता किशन सिंह और मां आर्यसमाजी तो दादी और दोनों चाचियां पक्की सिखड़ी।
पूरे परिवार की धार्मिक मान्यताएं बंटी हुई थी, मगर सब एक-दूसरे की धार्मिक आस्थाओं का पूरा सम्मान करते। एक उदाहरण भगतसिंह के यज्ञोपवीत के वक्त ही देखने को मिल जाता है..
हिंदू प्रथा से उनका मुंडन होना था, नाई आया। मगर दादी जयकौर की आस्था सिख धर्म में थी, केशों के प्रति मन में सहज धर्म भावना।दादी ने आग्रह किया तो केश नहीं काटे गए।
परिवार ही क्रांतिकारी था, भगत सिंह इससे कैसे अछूते रहते। 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन जलियांवाला कांड हुआ..
12 साल के भगतसिंह अगले दिन स्कूल ना जाकर सीधे अमृतसर पहुंच गए, वहां धरती का कण-कण कराह रहा था। शहर में आतंक था, गोरे भेड़िए किसी को भी अकारण गोली मार दे रहे थे,बेखौफ भगतसिंह फिर भी जलियांवाला बाग पहुंचे। शहीदों के खून से रंगी मिट्टी को चुटकी में भरकर माथे पर टीका लगाया और फिर...
थोड़ी मिट्टी एक छोटी सी शीशी में भरकर देर से घर पहुंचे। घर पर बहन को शीशी दिखाई, सारी कहानी बताई और फूल तोड़कर लाए, शीशी के चारों ओर रख दिया।फूल चढ़ाने का ये सिलसिला बहुत दिनों तक चला।डीएवी स्कूल में भी क्रांति की गतिविधियों में भाग लेते रहे,देश के प्रति ऐसे समर्पित हो चुके थे..
कि शादी का ख्याल त्याग दिया। फिर भी जानते हैं उनकी सगाई तय हो गई थी। मगर सगाई के कुछ दिन पहले ही वो घर से लाहौर गए और वहां से फरार हो गए। जाते-जाते पिता की मेज पर चिट्ठी रख गए
'' पूज्य पिताजी
नमस्ते
मेरी जिंदगी मकसदे-आला यानि आजादी-ए-वतनके उसूल के लिए वक्फ हो चुकी है...
इसलिए मेरी जिंदगी में आराम और दुनियावी ख्वाहिशात बायसे कशिश नहीं रही। उम्मीद है आप मुझे माफ फरमाएंगे- आपका ताबेदार भगत सिंह''
यूं तो भगत सिंह की जिंदगी छोटी ही रही, मगर चंद ट्वीट्स में उसे भी समेट पाना नामुमकिन है। लाहौर से कानपुर गए, वहां गणेश शंकर विद्यार्थी के साथ...
लेखन करते रहे। कानपुर में ही मार्क्सवाद को पढ़ना शुरू किया। 1920 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में कूद पड़े, 12 फरवरी 1922 को चौरीचौरा कांड के बाद जब गांधी जी ने आंदोलन वापस ले लिया तो भगतसिंह ने अपनी राहें अलग कर ली...
वैसे भी भगतसिंह 1914 में मात्र 18 साल की उम्र में फांसी चढ़ने वाले करतार सिंह सराभा को अपना आदर्श मानते थे, उनकी तस्वीर भी मेले से खरीद लाए थे। आजाद, सुखदेव,राजगुरु, बटुकेश्वर दत्त, अजय घोष, सुरेश भट्टाचार्या के साथ क्रांति का काफिला अलग रास्ते पर निकल पड़ा।...
#इति_श्री_इतिहास
सुबह शहीद-ए-आजम की फांसी और उससे जुड़ी तमाम किवंदतियों पर बात करेंगे, गांधी-नेहरू से संबंधों पर चर्चा करेंगे। व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी की तमाम शिक्षाओं को ध्वस्त करेंगे। देरी के लिए माफी, उम्मीद करता हूं आपमें उत्सुकता होगी। सिर्फ सुबह तक का इंतजार कर लीजिए
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शहीद-ए-आजम भगतसिंह की फांसी के लिए गांधी जी को ना जाने क्या कुछ कहा जाता है, आजकल तो सावरकर से भी संबंध जोड़े जाने लगे हैं तो ऐसे #इति_श्री_इतिहास क्या कहता है?
बात 28 अक्टूबर 1928 की,साइमन कमीशन का लाहौर में तगड़ा विरोध हुआ,बौखलाए अंग्रेजों ने क्रूरता की लाठियां चलवा दी 1/40
उप निरीक्षक सांडर्स ने लाला लाजपत राय जी पर सीधी लाठी चलाई, एक सीने पर, दूसरी कंधे और तीसरी सिर पर लगी। बुजुर्ग लाला जी लाठियों की मार से पूरे 18 दिन लड़े
और 17 नवंबर को देह त्याग दिया। लाला जी की नीतियों से भगतसिंह भले ही खिलाफ हो गए थे, मगर लाला जी पर पड़ी लाठियों ने...
उन्हें हिलाकर रख दिया। 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में अंग्रेज सुप्रीटेंडट स्कॉट को मारने का प्लान बना।स्कॉट को पहचानने की जिम्मेदारी जयगोपाल की थी, जिसने आगे चलकर
भगतसिंह से गद्दारी की, जयचंद बना और सरकारी गवाह बन गया। खैर! स्कॉट की जगह सामने 21 साल का सांडर्स आ गया...
आरोप लगता है कि नेहरू की वजह से कश्मीर समस्या है,पटेल की जगह नेहरू ने इसे अकेले हैंडल किया इसलिए सब गुड़गोबर हो गया, UN जाकर सत्यानाश किया।सच क्या है? #इति_श्री_इतिहास में लाल चौक पर झंडा फहराकर भीड़ के बीच खड़े पं.नेहरू की तस्वीर देखते हुए आज थोड़ा धैर्य पढ़िएगा
अब तथ्य 1/30
सितंबर का महीना,1949। कश्मीर घाटी में एक बेहद खास सैलानी पहुंचते हैं, नाम था पंडित जवाहर लाल नेहरू। झेलम नदी इस बात की गवाह है कि पं.नेहरू और शेख अब्दुला उसकी गोद
में थे। दोनों ने करीब 2 घंटे तक खुले आसमान के नीचे नौकाविहार किया।आगे-पीछे खचाखच भरे शिकारों की कतार थी...
हर कोई प.नेहरू को एक नजर निहार लेना चाहता था। नेहरू पर फूलों की वर्षा हो रही थी, नदी के किनारे आतिशबाजी हो रही थी, स्कूली बच्चे नेहरू-अब्दुला जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। इस पर टाइम मैग्जीन ने लिखा- ''सारे लक्षण ऐसे हैं कि हिंदुस्तान ने कश्मीर की जंग फतह कर ली है'' मगर ये...
WhatsApp University (WU) के झूठ का साम्राज्य कितना बड़ा है, उसे मात्र एक मेरे व्यक्तिगत वाकये से समझ लीजिए। आश्चर्य से मुंह खुला रह जाएगा
2019 के अगस्त महीने की बात है। मेरे परदादा की हार्ट सर्जरी AIIMS में हुई। इत्तेफाक देखिए डॉक्टरों की जो टीम अरुण जेटली जी का इलाज.. 1/9
कर रही थी,उन्हीं में एक बड़े हार्ट सर्जन मेरे परदादा का इलाज कर रहे थे।जेटली जी ग्राउंड फ्लोर पर थे,परदादा 4thफ्लोर पर।
नौकरी का सवाल है इसलिए डॉक्टर साहब नाम नहीं लिखूंगा, बस वाकया सुनते चलिए। सर्जरी के बाद एक दिन डॉक्टर साहब रुटीन चेकअप के लिए दादा के पास आए तो मैं वहीं था...
मेरे परदादा पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर रहे हैं तो बातों-बातों में डॉ.साहब इतिहास-भूगोल की बातें होने लगी। इत्ते में डॉक्टर साहब मेरी तरफ उंगली कर एक ऐसी लाइन बोल गए, जिसे मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकता, कहते हैं
"Do You Know ? Nehru, Jinna And Sheikh Abdullah Was Cousin Brother"
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी ही नहीं अपने आप में इंकलाब है। आज भले ही संकट से गुजर रही, वरना एक दौर था यूनिवर्सिटी नहीं बल्कि सिर्फ एक हॉस्टल 7-8 UPSC टॉपर निकल जाते थे। वरिष्ठ IAS विकास स्वरूप जी का 81 वाला बैच इसका उदाहरण है। नीचे टॉपर्स की लिस्ट देखिएगा।
1981 when a single Hostel, Amarnath Jha Hostel (Muir), Allahabad University had the following
AIR 1: Pradeep Shukla
AIR 2: Anuj Bishnoi
AIR 14: Anil Swarup
AIR 34 : Anand Mishra
AIR 56 : Hamid Ali Rai
AIR 64 : Shivraj Asthana
And many many more- @swarup58
राजनेताओं से लेकर साहित्यकारों तक एक लंबी फेहरिस्त इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से जुड़ी है। मगर अब वो गौरव धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। राजनीति के अलावा और भी कई कारण हैं। कभी चर्चा करूंगा
सालों से एक भ्रम लोगों के जहन में भर दिया गया। वो ये कि पं.नेहरू नहीं सरदार पटेल को पहला पीएम होना चाहिए था। अधूरे सच को पूरा बताकर ऐसे पेश किया कि जनता जांनिसार हो बैठी। असल सच क्या है? #इति_श्री_इतिहास
अप्रैल 1946 में कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव होने को था।पिछले 6 साल... 1/11
यानि 1940 से मौलाना आजाद कांग्रेस के अध्यक्ष थे। भारत छोड़ो आंदोलन की वजह से पूरी की पूरी कांग्रेस जेल में थी, इसलिए हर साल होने वाला चुनाव नहीं हो पाया था। अब 1946 में सवाल था कि अगला कांग्रेस अध्यक्ष कौन बनेगा ? सनद रहे! प्रधानमंत्री कौन बनेगा ये सवाल अभी नहीं जन्मा था...
आगे कुछ बताने से पहले एक बात बिल्कुल साफ कर देना चाहता हूं कि गांधी जी और वर्किंग कमेटी के कई नेता शुरू से 57 साल के पं.नेहरू के पक्ष में थे।मगर नेहरू इससे पहले 3 बार अध्यक्ष रहे थे और प्रदेश समितियां चाहती थी कि अब तक सिर्फ एक बार अध्यक्ष रहे 71 साल के सरदार पटेल को मौका मिले..
आज जब सत्ता और विपक्ष के बीच इतनी कड़वाहट है कि गद्दार से लेकर ना जाने क्या कुछ कहने से भी चलन हो चला है, चोट लगने पर भी उपहास होता है। तो क्या पहले भी ऐसा था ? #इति_श्री_इतिहास
26 मार्च 1977 को एक छोटी कद काठी और रौबीले चेहरे का व्यक्ति विदेश मंत्रालय में पहुंचता है 1/10
उस व्यक्ति को आज विदेश मंत्री का पद संभालना था।और कुर्सी पर बैठते ही वो कहता है,"मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मैं आज उस कमरे में बैठा हूं,जहां कभी पंडित नेहरू बैठा करते थे"
ऐसा कहने वाले कोई और नहीं अटल बिहारी वाजपेई थे। जो जनता सरकार में पहली बार सत्ता के गलियारे पहुंचे...
वाजपेई आज उस कमरे में बैठे थे,जहां पं.नेहरू प्रधानमंत्री रहते हुए बैठते और विदेश मंत्रालय भी अपने पास रखते थे। राजनीतिक विरोधी होने के बावजूद अटल जी के हीरो नेहरू जी हुआ करते थे। पं.नेहरू भी वाजपेई जी को खूब पसंद करते।युवा वाजपेई के भाषणों को पीएम नेहरू गंभीरता से सुनते..