WhatsApp University (WU) के झूठ का साम्राज्य कितना बड़ा है, उसे मात्र एक मेरे व्यक्तिगत वाकये से समझ लीजिए। आश्चर्य से मुंह खुला रह जाएगा
2019 के अगस्त महीने की बात है। मेरे परदादा की हार्ट सर्जरी AIIMS में हुई। इत्तेफाक देखिए डॉक्टरों की जो टीम अरुण जेटली जी का इलाज.. 1/9
कर रही थी,उन्हीं में एक बड़े हार्ट सर्जन मेरे परदादा का इलाज कर रहे थे।जेटली जी ग्राउंड फ्लोर पर थे,परदादा 4thफ्लोर पर।
नौकरी का सवाल है इसलिए डॉक्टर साहब नाम नहीं लिखूंगा, बस वाकया सुनते चलिए। सर्जरी के बाद एक दिन डॉक्टर साहब रुटीन चेकअप के लिए दादा के पास आए तो मैं वहीं था...
मेरे परदादा पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर रहे हैं तो बातों-बातों में डॉ.साहब इतिहास-भूगोल की बातें होने लगी। इत्ते में डॉक्टर साहब मेरी तरफ उंगली कर एक ऐसी लाइन बोल गए, जिसे मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकता, कहते हैं
"Do You Know ? Nehru, Jinna And Sheikh Abdullah Was Cousin Brother"
ये सुनते ही सन्न रह गया, रुका नहीं गया जवाब देने लगा। इतने में दादा जी ने हाथ पकड़ लिया,बोले डॉक्टर साहब की पूरी बात सुनो।
इसके बाद डॉक्टर साहब नेहरू से लेकर इंदिरा तक अपना अधकचरा ज्ञान देते गए।दादा जी मेरा हाथ पकड़े मुस्कुरा कर सुनते गए। और मैं विचलित होता गया।
सोचने लगा कि एक डॉक्टर जो इंसान के लिए भगवान है। जिस की जिंदगी ये डॉक्टर बचाएंगे,अगर उन्हें ये बातें इतना पढ़ा लिखा(सिर्फ डॉक्टरी की) डॉक्टर बोलेगा तो वो क्यों सच नहीं मान लेगा ? डॉक्टर साहब करीब आधा घंटा बोलने के बाद चले गए। दादा से मैंने रूठ कर पूछा आपने बोलने क्यों नहीं दिया?
दादा तो ठहरे पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर। मुस्कुरा कर बोले मेरा मोबाइल दो, मोबाइल दिया, पहले ही पल WhatsApp खोला और बोले ये पढ़ो- डॉक्टर साहब यही बता रहे थे ना!
वो अंग्रेजी में लिखा लंबा-चौड़ा मैसेज था, नेहरू खानदान पर सारी मनगढ़ंत बातें उसमें समाहित थी। मैं दंग हो गया, मगर...
उस दिन WU के झूठ का पूरा मॉड्यूल समझ आया। हुआ ये है कि सबसे पहले English में मनगढ़ंत बातें लिख उस प्रबुद्ध वर्ग को टारगेट किया गया जो समाज में प्रभाव रखते हैं। चुंकि इंग्लिश कुपढ़ों में सच की भाषा मानी जाती है तो वो भी सच मान बैठे। फिर वो प्रबुद्ध लोग झूठी अफवाहों को घूम-घूम...
बताने लगे।जाहिर है जो कम पढ़ा लिखा व्यक्ति बेड पर अधमरा होगा,उसे डॉक्टर की कही बात अच्छी-सच्ची लगेगी।इसी तरह दूसरे क्षेत्रों में प्रभाव रखने वालों को आगोश में लिया गया, फिर धीरे-धीरे हिंदी में झूठा प्रचार शुरू हुआ। प्रबुद्ध लोग जो कहते वही पब्लिक कोWU में पढ़ने को मिल जाता।इस..
तरह से झूठी बातें बड़े ही चरणबद्ध तरीके से लोगों के दिमाग में घर करती गईं।किताबों में लिखा सच झूठ हो गया,इतिहासकारों पर विचारधारा का ठप्पा लगा अप्रांसगिक कर दिया गया
डॉ साहब के अज्ञानी विचारों ने छोटी उम्र में मुझे बड़ा तजुर्बा दे दिया।दोबारा मुलाकात हुई तो तगड़ी क्लास लगाऊंगा
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
आरोप लगता है कि नेहरू की वजह से कश्मीर समस्या है,पटेल की जगह नेहरू ने इसे अकेले हैंडल किया इसलिए सब गुड़गोबर हो गया, UN जाकर सत्यानाश किया।सच क्या है? #इति_श्री_इतिहास में लाल चौक पर झंडा फहराकर भीड़ के बीच खड़े पं.नेहरू की तस्वीर देखते हुए आज थोड़ा धैर्य पढ़िएगा
अब तथ्य 1/30
सितंबर का महीना,1949। कश्मीर घाटी में एक बेहद खास सैलानी पहुंचते हैं, नाम था पंडित जवाहर लाल नेहरू। झेलम नदी इस बात की गवाह है कि पं.नेहरू और शेख अब्दुला उसकी गोद
में थे। दोनों ने करीब 2 घंटे तक खुले आसमान के नीचे नौकाविहार किया।आगे-पीछे खचाखच भरे शिकारों की कतार थी...
हर कोई प.नेहरू को एक नजर निहार लेना चाहता था। नेहरू पर फूलों की वर्षा हो रही थी, नदी के किनारे आतिशबाजी हो रही थी, स्कूली बच्चे नेहरू-अब्दुला जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। इस पर टाइम मैग्जीन ने लिखा- ''सारे लक्षण ऐसे हैं कि हिंदुस्तान ने कश्मीर की जंग फतह कर ली है'' मगर ये...
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी ही नहीं अपने आप में इंकलाब है। आज भले ही संकट से गुजर रही, वरना एक दौर था यूनिवर्सिटी नहीं बल्कि सिर्फ एक हॉस्टल 7-8 UPSC टॉपर निकल जाते थे। वरिष्ठ IAS विकास स्वरूप जी का 81 वाला बैच इसका उदाहरण है। नीचे टॉपर्स की लिस्ट देखिएगा।
1981 when a single Hostel, Amarnath Jha Hostel (Muir), Allahabad University had the following
AIR 1: Pradeep Shukla
AIR 2: Anuj Bishnoi
AIR 14: Anil Swarup
AIR 34 : Anand Mishra
AIR 56 : Hamid Ali Rai
AIR 64 : Shivraj Asthana
And many many more- @swarup58
राजनेताओं से लेकर साहित्यकारों तक एक लंबी फेहरिस्त इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से जुड़ी है। मगर अब वो गौरव धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। राजनीति के अलावा और भी कई कारण हैं। कभी चर्चा करूंगा
सालों से एक भ्रम लोगों के जहन में भर दिया गया। वो ये कि पं.नेहरू नहीं सरदार पटेल को पहला पीएम होना चाहिए था। अधूरे सच को पूरा बताकर ऐसे पेश किया कि जनता जांनिसार हो बैठी। असल सच क्या है? #इति_श्री_इतिहास
अप्रैल 1946 में कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव होने को था।पिछले 6 साल... 1/11
यानि 1940 से मौलाना आजाद कांग्रेस के अध्यक्ष थे। भारत छोड़ो आंदोलन की वजह से पूरी की पूरी कांग्रेस जेल में थी, इसलिए हर साल होने वाला चुनाव नहीं हो पाया था। अब 1946 में सवाल था कि अगला कांग्रेस अध्यक्ष कौन बनेगा ? सनद रहे! प्रधानमंत्री कौन बनेगा ये सवाल अभी नहीं जन्मा था...
आगे कुछ बताने से पहले एक बात बिल्कुल साफ कर देना चाहता हूं कि गांधी जी और वर्किंग कमेटी के कई नेता शुरू से 57 साल के पं.नेहरू के पक्ष में थे।मगर नेहरू इससे पहले 3 बार अध्यक्ष रहे थे और प्रदेश समितियां चाहती थी कि अब तक सिर्फ एक बार अध्यक्ष रहे 71 साल के सरदार पटेल को मौका मिले..
आज जब सत्ता और विपक्ष के बीच इतनी कड़वाहट है कि गद्दार से लेकर ना जाने क्या कुछ कहने से भी चलन हो चला है, चोट लगने पर भी उपहास होता है। तो क्या पहले भी ऐसा था ? #इति_श्री_इतिहास
26 मार्च 1977 को एक छोटी कद काठी और रौबीले चेहरे का व्यक्ति विदेश मंत्रालय में पहुंचता है 1/10
उस व्यक्ति को आज विदेश मंत्री का पद संभालना था।और कुर्सी पर बैठते ही वो कहता है,"मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मैं आज उस कमरे में बैठा हूं,जहां कभी पंडित नेहरू बैठा करते थे"
ऐसा कहने वाले कोई और नहीं अटल बिहारी वाजपेई थे। जो जनता सरकार में पहली बार सत्ता के गलियारे पहुंचे...
वाजपेई आज उस कमरे में बैठे थे,जहां पं.नेहरू प्रधानमंत्री रहते हुए बैठते और विदेश मंत्रालय भी अपने पास रखते थे। राजनीतिक विरोधी होने के बावजूद अटल जी के हीरो नेहरू जी हुआ करते थे। पं.नेहरू भी वाजपेई जी को खूब पसंद करते।युवा वाजपेई के भाषणों को पीएम नेहरू गंभीरता से सुनते..
कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है।
वैसे ही किसान हैं,वैसा ही आंदोलन और वही देशद्रोह की धारा।इतिहास को पढ़ते हुए वर्तमान को याद रखिए,सबकुछ आंखों के सामने से गुजरता जाएगा #इति_श्री_इतिहास
बात 17 Mar 1907 की है।शहीद भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह लाहौर के एक मंच पर चढ़े...1/12
और बोलना शुरू किया 'भाइयों !हमें फिरंगियों को आज ही इस प्लेटफॉर्म से चुनौती देना है।इसके लिए माझा और मालवा के ताकतवर सरदारों की मंजूरी हमारे पास है।हमारी मांग है कि किसानों के खिलाफ आए काले कानून न्यू कॉलोनी एक्ट को सरकार रद्द कर दे।दो माह में ऐसा ना हुआ तो कोई टैक्स नहीं देंगे'
तब किसान आंदोलन के चेहरा बने सरदार अजीत सिंह उस कानून का विरोध कर रहे थे जो किसानों की जमीन उनसे छीन रहा था। दरअसल 1906 में न्यू कॉलोनी एक्ट में किसानों का आस्तित्व मिटा देने का उपाय था। कानून कहता था कि किसान की जमीन का वारिस सिर्फ उसका बड़ा बेटा हो सकता है। छोटा बेटा नहीं..
विनायक दामोदर सावरकर का किरदार जितना विवादित रहा है,उतना ही रहस्यमयी भी #इति_श्री_इतिहास
अंग्रेजों से माफी मांगी
गोडसे के साथी रहे
दोनों के परिवार में रिश्तेदारी रही
महात्मा गांधी के हत्या के आरोपी
क्या सावरकर सिर्फ इतने थे या इससे भी ज्यादा?
पहली कहानी कहां से शुरू ?1/6
दिसंबर का सर्द महीना था। तारीख थी 19। साल 1919। नासिक के कलेक्टर जैक्सन के शरीर में 4 गोलियां उतार दी गई, प्राण निकलने में पल भर ना लगा। गोली मारने वाले 18 साल के युवा क्रांतिकारी अनंत लक्ष्मण कान्हरे थे। 1910 में कान्हरे को फांसी हुई। सावरकर भी इसी मामले में लंदन से गिरफ्तार..
क्योंकि आरोप था कि जिस पिस्तौल से गोली चली,वो सावरकर ने लंदन से भेजी थी। सावरकर को गिरफ्तार कर लंदन से भारत लाया जा रहा था, एक बंदरगाह के नजदीक उन्होंने दुबले शरीर का फायदा उठाया और शौचालय के पॉटहोल से समंदर में कूद गए। 15 मिनट तैरकर वो किनारे पर पहुंच गए।मगर किनारे पर ही फिर..