आज जब सत्ता और विपक्ष के बीच इतनी कड़वाहट है कि गद्दार से लेकर ना जाने क्या कुछ कहने से भी चलन हो चला है, चोट लगने पर भी उपहास होता है। तो क्या पहले भी ऐसा था ? #इति_श्री_इतिहास
26 मार्च 1977 को एक छोटी कद काठी और रौबीले चेहरे का व्यक्ति विदेश मंत्रालय में पहुंचता है 1/10
उस व्यक्ति को आज विदेश मंत्री का पद संभालना था।और कुर्सी पर बैठते ही वो कहता है,"मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मैं आज उस कमरे में बैठा हूं,जहां कभी पंडित नेहरू बैठा करते थे"
ऐसा कहने वाले कोई और नहीं अटल बिहारी वाजपेई थे। जो जनता सरकार में पहली बार सत्ता के गलियारे पहुंचे...
वाजपेई आज उस कमरे में बैठे थे,जहां पं.नेहरू प्रधानमंत्री रहते हुए बैठते और विदेश मंत्रालय भी अपने पास रखते थे। राजनीतिक विरोधी होने के बावजूद अटल जी के हीरो नेहरू जी हुआ करते थे। पं.नेहरू भी वाजपेई जी को खूब पसंद करते।युवा वाजपेई के भाषणों को पीएम नेहरू गंभीरता से सुनते..
विदेशी मेहमानों से भी अटल जी का परिचय बेहतरीन सांसद के तौर पर कराते, नेहरू कहते- वाजपेई विपक्ष के युवा नेता हैं, मेरे आलोचक हैं लेकिन मैं उनमें बहुत संभावनाएं देखता हूं। मगर पंडित जी से ऐसे रिश्तों के उनके चमचे नहीं जानते थे। और कमरे में से नेहरू जी तस्वीर हटा दी।...
वाजपेई तुरंत चटक गए। तीखे स्वर में पूछा- पंडित जी की तस्वीर उस दीवार पर लगी थी, वो कहां गई। सबकी सांसें अटक गई। वाजपेई जी की तेवर भरी नज़रों का जवाब किसी के पास नहीं था। एकदम सन्नाटा छा गया।थोड़ी देर आंखें तरेरते हुए वाजपेई निकल गए अगले दिन आए तो नेहरू जी तस्वीर यथास्थान पर...
वापस लगा दी गई थी। चमचों को नेहरू का कद और वाजपेई का पद दोनों समझ आ चुका था।
जिन्हें इसके बावजूद सत्ता और विपक्ष का असल संबंध नहीं पता चल पाया था, उन्हेंं समझाने का काम 27 फरवरी 1994 को पीएम नरसिम्हा राव ने कर दिया था। इस बार कांग्रेस सत्ता में थी और बीजेपी विपक्ष में...
पीएम राव ने कश्मीर पर बोलने के लिए विपक्षी नेता वाजपेई जी को UN भेज दिया, पाकिस्तानी हतप्रभ थे,विपक्षी नेता की वो कल्पना तक नहीं कर सकते थे। वाजपेई उनके सिलेबस से बाहर की चीज थे, तो भारी भी खूब पड़े।
एक 1977 की राजनीतिक कड़वाहट के कुछ हिस्सों को छोड़ दें तो भारतीय इतिहास...
सत्ता-विपक्ष के वैचारिक विरोध और सामाजिक सहयोग के किस्सों से पटा पड़ा है।आजादी मिलते ही गांधी जी के निर्देश पर खुद पीएम नेहरू ने अपने विरोधी श्यामा प्रसाद मुखर्जी, आंबेडकर,षणमुखम शेट्टी सरीखे नेताओं को ना सिर्फ कैबिनेट में जगह दी, बल्कि वित्त, कानून जैसे अहम मंत्रालय भी सौंपे..
इतना ही नहीं आजादी के पहले पं.नेहरू के नेतृत्व में बनी 1946 की अतंरिम सरकार में वित्त मंत्री लियाकत अली खान थे,जो आगे चलकर पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने।जबकि दोनों वैचारिक विरोधी थे।
भारतीय राजनीति में हमेशा इतनी शुचिता जरूर रही कि विरोधी को गद्दार नहीं कहा जाता गया...
याद नहीं आता कि सत्ता में रहते हुए वाजपेई जी ने कभी किसी विरोधी को श्रीमती/श्रीमान के नीचे संबोधित किया हो।विरोधियों के लिए महारानी,शहजादे जैसे शब्द उनके शब्दकोश
के बाहर थे। व्यक्तिगत और पारिवारिक हमले के तो वो घनघोर विरोधी।मनमोहन युग में भी वो परिपाटी काफी हद तक बनी रही।मगर..
2013ने सब बदल दिया।विरोधी सांसद को संसद में सूर्पनखा,तो कभी ट्यूबलाइट कहा गया।विपक्षी भी कभी पीएम को डंडे मारता तो,कभी नीच कहता नजर आया।सत्ता से उम्मीद ज्यादा शुचिता की होती है।मगर वाजपेई तो हैं नहीं,ना ही वैसी पार्टी।और अब तो पोस्टर से भी गायब कर दिए गए तो उम्मीद किससे करें?
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WhatsApp University (WU) के झूठ का साम्राज्य कितना बड़ा है, उसे मात्र एक मेरे व्यक्तिगत वाकये से समझ लीजिए। आश्चर्य से मुंह खुला रह जाएगा
2019 के अगस्त महीने की बात है। मेरे परदादा की हार्ट सर्जरी AIIMS में हुई। इत्तेफाक देखिए डॉक्टरों की जो टीम अरुण जेटली जी का इलाज.. 1/9
कर रही थी,उन्हीं में एक बड़े हार्ट सर्जन मेरे परदादा का इलाज कर रहे थे।जेटली जी ग्राउंड फ्लोर पर थे,परदादा 4thफ्लोर पर।
नौकरी का सवाल है इसलिए डॉक्टर साहब नाम नहीं लिखूंगा, बस वाकया सुनते चलिए। सर्जरी के बाद एक दिन डॉक्टर साहब रुटीन चेकअप के लिए दादा के पास आए तो मैं वहीं था...
मेरे परदादा पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर रहे हैं तो बातों-बातों में डॉ.साहब इतिहास-भूगोल की बातें होने लगी। इत्ते में डॉक्टर साहब मेरी तरफ उंगली कर एक ऐसी लाइन बोल गए, जिसे मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकता, कहते हैं
"Do You Know ? Nehru, Jinna And Sheikh Abdullah Was Cousin Brother"
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी ही नहीं अपने आप में इंकलाब है। आज भले ही संकट से गुजर रही, वरना एक दौर था यूनिवर्सिटी नहीं बल्कि सिर्फ एक हॉस्टल 7-8 UPSC टॉपर निकल जाते थे। वरिष्ठ IAS विकास स्वरूप जी का 81 वाला बैच इसका उदाहरण है। नीचे टॉपर्स की लिस्ट देखिएगा।
1981 when a single Hostel, Amarnath Jha Hostel (Muir), Allahabad University had the following
AIR 1: Pradeep Shukla
AIR 2: Anuj Bishnoi
AIR 14: Anil Swarup
AIR 34 : Anand Mishra
AIR 56 : Hamid Ali Rai
AIR 64 : Shivraj Asthana
And many many more- @swarup58
राजनेताओं से लेकर साहित्यकारों तक एक लंबी फेहरिस्त इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से जुड़ी है। मगर अब वो गौरव धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। राजनीति के अलावा और भी कई कारण हैं। कभी चर्चा करूंगा
सालों से एक भ्रम लोगों के जहन में भर दिया गया। वो ये कि पं.नेहरू नहीं सरदार पटेल को पहला पीएम होना चाहिए था। अधूरे सच को पूरा बताकर ऐसे पेश किया कि जनता जांनिसार हो बैठी। असल सच क्या है? #इति_श्री_इतिहास
अप्रैल 1946 में कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव होने को था।पिछले 6 साल... 1/11
यानि 1940 से मौलाना आजाद कांग्रेस के अध्यक्ष थे। भारत छोड़ो आंदोलन की वजह से पूरी की पूरी कांग्रेस जेल में थी, इसलिए हर साल होने वाला चुनाव नहीं हो पाया था। अब 1946 में सवाल था कि अगला कांग्रेस अध्यक्ष कौन बनेगा ? सनद रहे! प्रधानमंत्री कौन बनेगा ये सवाल अभी नहीं जन्मा था...
आगे कुछ बताने से पहले एक बात बिल्कुल साफ कर देना चाहता हूं कि गांधी जी और वर्किंग कमेटी के कई नेता शुरू से 57 साल के पं.नेहरू के पक्ष में थे।मगर नेहरू इससे पहले 3 बार अध्यक्ष रहे थे और प्रदेश समितियां चाहती थी कि अब तक सिर्फ एक बार अध्यक्ष रहे 71 साल के सरदार पटेल को मौका मिले..
कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है।
वैसे ही किसान हैं,वैसा ही आंदोलन और वही देशद्रोह की धारा।इतिहास को पढ़ते हुए वर्तमान को याद रखिए,सबकुछ आंखों के सामने से गुजरता जाएगा #इति_श्री_इतिहास
बात 17 Mar 1907 की है।शहीद भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह लाहौर के एक मंच पर चढ़े...1/12
और बोलना शुरू किया 'भाइयों !हमें फिरंगियों को आज ही इस प्लेटफॉर्म से चुनौती देना है।इसके लिए माझा और मालवा के ताकतवर सरदारों की मंजूरी हमारे पास है।हमारी मांग है कि किसानों के खिलाफ आए काले कानून न्यू कॉलोनी एक्ट को सरकार रद्द कर दे।दो माह में ऐसा ना हुआ तो कोई टैक्स नहीं देंगे'
तब किसान आंदोलन के चेहरा बने सरदार अजीत सिंह उस कानून का विरोध कर रहे थे जो किसानों की जमीन उनसे छीन रहा था। दरअसल 1906 में न्यू कॉलोनी एक्ट में किसानों का आस्तित्व मिटा देने का उपाय था। कानून कहता था कि किसान की जमीन का वारिस सिर्फ उसका बड़ा बेटा हो सकता है। छोटा बेटा नहीं..
विनायक दामोदर सावरकर का किरदार जितना विवादित रहा है,उतना ही रहस्यमयी भी #इति_श्री_इतिहास
अंग्रेजों से माफी मांगी
गोडसे के साथी रहे
दोनों के परिवार में रिश्तेदारी रही
महात्मा गांधी के हत्या के आरोपी
क्या सावरकर सिर्फ इतने थे या इससे भी ज्यादा?
पहली कहानी कहां से शुरू ?1/6
दिसंबर का सर्द महीना था। तारीख थी 19। साल 1919। नासिक के कलेक्टर जैक्सन के शरीर में 4 गोलियां उतार दी गई, प्राण निकलने में पल भर ना लगा। गोली मारने वाले 18 साल के युवा क्रांतिकारी अनंत लक्ष्मण कान्हरे थे। 1910 में कान्हरे को फांसी हुई। सावरकर भी इसी मामले में लंदन से गिरफ्तार..
क्योंकि आरोप था कि जिस पिस्तौल से गोली चली,वो सावरकर ने लंदन से भेजी थी। सावरकर को गिरफ्तार कर लंदन से भारत लाया जा रहा था, एक बंदरगाह के नजदीक उन्होंने दुबले शरीर का फायदा उठाया और शौचालय के पॉटहोल से समंदर में कूद गए। 15 मिनट तैरकर वो किनारे पर पहुंच गए।मगर किनारे पर ही फिर..
महिला दिवस के मौके पर #इति_श्री_इतिहास उस महिला की अदम्य कूटनीति पर।जिसने दिमाग की धार से दुनिया के मानचित्र को बदल कर रख दिया।कहानी बड़ी है मगर1971 के असल राष्ट्रवाद को बताते हुए रोंगटे खड़े कर देगी। एक पल भी बोझिल नहीं होने दूंगा।इंदिरा गांधी क्या हस्ती थीं,आज जान ही लीजिए1/22
अप्रैल 1971 में पाकिस्तानी सितम के मारे 5 लाख बांग्लादेशी शरणार्थी हिंदुस्तान में शरण ले चुके थे।युद्ध साफ नजर आ रहा था। मगर यहां सिर्फ भारतीय सेना को पाकिस्तान से नहीं लड़ना था बल्कि लड़ाई अमेरिका-चीन जैसी दो महाशक्तियों से भी होनी थी। दोनों खुलकर पाकिस्तान के साथ खड़े थे...
मगर इंदिरा जी भी अडिग थीं। इस बीच अप्रैल 1971 में चीनी प्रधानमंत्री ने पाकिस्तानी राष्ट्रपति याह्या खान को चिट्ठी लिखी और साफ शब्दों में कहा-"हिंदुस्तान अगर पाकिस्तान पर हमला करने का दुस्साहस करता है तो पाकिस्तान की संप्रभुता और स्वतंत्रता के लिए हर मुमकिन मदद चीन करेगा"