साईं की मृत्यु के बाद दशकों तक उनका कहीं कोई नामलेवा नहीं था।
हो सकता है कि मात्र थोड़ी दूर तक के लोग जानते होंगे।
पर अब कुछ तीस या चालीस वर्षों में उनकी उपस्थिति आम हो गई है और लोगों की आस्था का पारा अचानक से उबाल बिंदु को पार करने लगा है।
आप किसी भी साठ या सत्तर साल के व्यक्ति से पूछ लें कि उन्होंने साईं बाबा का नाम पहली बार अपने जीवन में कब सुना था?.. निश्चित ही वो कहेगा कि उसने पहले नहीं सुना था... कोई नब्बे या कोई अस्सी के दशक में हीं सुना हुआ कहेगा।
फिर इतनी जल्दी ये इतने बड़े भगवान कैसे बन गए??
एक बात और... हिन्दुओं के भगवान बनाने के पहले इनके चेले चपाटों ने इन्हें कुछ इस प्रकार से पेश किया था जैसे कि सभी धर्मों के यही एकमात्र नियंता हों। हिन्दू , मुस्लिम, सिक्ख ईसाई... सभी के इष्ट यही थे।
और इन्हें पेश किसने किया? जरा ये भी समझिए...
सत्तर - अस्सी के दशक में जो फिल्में बनती थी या गाने होते थे उसमें या तो हिन्दूओं के भगवान या फिर मुस्लिमों के अल्लाह का जिक्र होता था। भगवान वाला सीन मुस्लिमों को स्वीकार नहीं था और अल्लाह वाला हिन्दूओं को।
पर नायक को अलौकिक शक्ति देने के लिए इनका सीन डालना भी जरूरी ही था।
किया क्या जाय?... तो....यह किसी निर्देशक की सोच रही होगी कि.. किसी ऐसे व्यक्ति को अलौकिक शक्ति से लैस करके दिखाया जाय ताकि किसी भी धर्म के लोगो का विरोध ना झेलना पड़े और वे अपनी फिल्म को सफल बना लें।
ऐसा ही कुछ उनके दिमाग में आया... और अचानक से उनके दिमाग की बत्ती जल गई होगी जब किसी ने साईं का नाम सुझाया दिया।
इस नये भगवान का सफल परीक्षण उस ऐतिहासिक दिन को किया गया जो साईं भक्तों के लिए एक पवित्र दिन से कम नहीं है।
7 जनवरी 1977 को रूपहले पर्दे पर एक फिल्म आई ""अमर अकबर एंथोनी
इस फिल्म में एक गाना बजा -"शिर्डी वाले साई बाबा आया है तेरे दर पे सवाली"??
बस क्या था.. फिल्म भी हिट... बाबा भी हिट....।
साई बाबा के चेले चपाटों के पैर अब तो जमीन पर पड़ ही नहीं रहे थे साई की स्वीकार्यता को देखकर।
उससे पहले तक ना कहीं तस्वीर, ना कहीं मूर्ती और ना ही कोई चर्चा।
और उसके बाद तो हर जगह साई ही साई। फोटोशॉप करके आग से भी निकाले गए साई, जो कई भक्तों के घरों की शोभा बढ़ा रहे हैं। धीरे धीरे, चुपके चुपके हिन्दुओं के मंदिरों में मुर्तियां बैठने लगी... इनके अपने मंदिर भी बनने लगे।
सवाल यहहै कि किसी अन्य धर्म के लोगों ने इन्हें स्वीकार क्यों नहीं किया सिवाय हिन्दुओं के??
अब देखिए, हमारा सनातनी हिन्दू समाज अब धीरे धीरे उस मोड़ पर जा रहा है जहाँ से दो धड़े साफ साफ दिखेंगे..."एक विधर्मी साईं" को मानने वाले हिन्दू और दूसरे अपने सनातनी मार्ग पर चलने वाले हिन्दू।
इनमें दूरियां बढ़ती जाएगी और आने वाले समय में इस समाज में दो फाड़ होगा। एक "सनातनी हिन्दू" और दूसरा "साईं पूजक हिन्दू"। और यही वो समय होगा जब हिन्दू समाज दो खेमे में बँट जायेगा।
बिल्कुल उसी तरह जैसे... मुस्लिम बंटकर शिया - सुन्नी हुए.... ईसाई बंटकर कैथोलिक --प्रोटेस्टेन्ट हुए.....जैन बंटे तो श्वेतांबर - दिगम्बर हुए..... बौद्ध बंटे तो हीनयान - महायान हुए।
"साईं बाबा" को एक "षडयंत्र" की तरह हमारे बीच रोपा गया है और यह हिन्दू समाज में इतना व्यापक होता जा रहा है कि असंख्य लोगों ने अपना सनातन मार्ग को छोड़ कर सॉई मार्ग पर चलना शुरू कर दिया है|
यह वास्तव में एक घोर विचारणीय विषय है|
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यूपी की सियासत के एक बड़े माहिर खिलाड़ी हुआ करते थे, नरेश अग्रवाल। हरदोई जिले में नरेश अग्रवाल के परिवार का खासा दबदबा माना जाता था। जिला पंचायत, नगर पालिका से लेकर हरदोई विधानसभा तक, 40 साल तक उनका कब्ज़ा रहा है।
कहने को तो वो खाँटी सपाई थे मगर प्रदेश में सरकार किसी की भी रही हो, नरेश अग्रवाल का जलवा हमेशा बरकार रहा।
अपने बयानों को लेकर नरेश अग्रवाल हमेशा अखबारों और मीडिया में चर्चा का विषय रहते थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर हिंदू देवी-देवताओं तक पर वो विवादित बयान दे देते थे। उन पर हिन्दू देवी देवताओं को लेकर गलत बयानबाज़ी के चलते एफआइआर तक दर्ज हुई थी।
A new clinical protocol issued by Director General of Health Services (DGHS) for #COVID treatment that dropped hydroxychloroquine (HCQ), ivermectin ,azithromycin, doxycycline, zinc , vitamins & antiviral drug favipiravir saying have no evidence of benefit...
यानी अब तक जो कोविड के मरीज ठीक हुए हैं उन्हें दवा ने नहीं दुआ ने ठीक किया है, और जो मरीज अस्पताल जाकर भी बच नहीं पाए वह शायद इन दवाओं के दुष्प्रभाव के कारण मरे होंगे।
भाई डॉक्टर साहब लोग जब तुम लोग भी तजुर्बा करके ही सीख रहे हो तो फिर आयुर्वेद को निशाना क्यों बनाते हो??
जब तुम लोग भी अपनी अज्ञानता के कारण उलट-पुलट किसी भी दवाई को लिख देते हो और उसे बाजार में हजारों लाखों रुपए के भाव में बिकवा देते हो तो फिर किसी देसी दवाई के प्रति घृणा क्यों फैलाते हो।
आपको प्रशांत किशोर नाम याद हैं!!
जरा दिमाग पर जोर डालिये और मात्र छह साल पहले 2014 अगस्त याद कीजिये जब काँग्रेस ने प्रशांत किशोर को ठेका दिया था राहुल गाँधी को राजनीति में चमकाने का!
प्रशांत ने 350 करोड़ में राहुल गाँधी को राजनीति का सूरज बना देने का कॉन्ट्रेक्ट साइन किया था।
अगस्त के आखिर में PK ने बाकायदा सोशल मीडिया पर विज्ञप्ति निकाली थी कि जो लोग सोशल मीडिया पर लिखने में एक्सपर्ट हैं वे उससे जुड़े, करीब 60 हजार लोगों की लिस्ट बनी थी। मुंबई में और दूसरी बनारस में मीटिंग रखी गयी।
5000 लोगों को छाँट कर एक IT Cell बनी जो काँग्रेस को अपग्रेड करते थे
दूसरा आपको "द वायर" याद है, जिसने अमित शाह के बेटे पर 300% मुनाफा कमाने का आरोप लगाया था और रातों रात चर्चा में आई थी??
हालाँकि 'द वायर' ने बाद में केजरीवाल की तरह माफी भी माँगी और कोर्ट में जुर्माना भी भरा था, लेकिन द वायर को चर्चा में आना था सो वह आ गई।
हमारे समाज में ऐसी धारणा है कि जमा हुआ शहद मिलावटी होगा, लेकिन यह पूरी तरह गलत धारणा है। शहद का जमना एक कुदरती प्रक्रिया है। शुद्ध शहद भी जम सकता है, क्रिस्टलाइज्ड हो सकता है।
शहद का जमना इस बात पर निर्भर करता है कि शहद किस स्रोत से उत्पन्न हुआ है अर्थात कौन से फूलों के रस से मधुमक्खियों ने शहद का निर्माण किया है। मधु के अंदर प्राकृतिक रूप से ग्लूकोस और फ्रुक्टोज जैसी शर्कराएं होते हैं।
यदि शहद के अंदर ग्लूकोज की मात्रा अधिक रही तो उसमें जमने की प्रवृत्ति अधिक होगी। जिन फूलों के रस में प्राकृतिक रूप से ग्लूकोज की मात्रा अधिक होती है उनके रस से अगर मधुमक्खी शहद का निर्माण करती है तो उस शहद में जमने का गुणधर्म ज्यादा रहेगा।
सपा के "बेवकूफ मुखिया" का यह कहना कि वे "भाजपा का वैक्सीन" नहीं लगाएंगे, अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है तथा निंदा करने योग्य है। वह स्वयं तो अपनी कोठी और बंगले में अपने आपको सुरक्षित रख लेगा लेकिन अपने वोट बैंक को कोरोना के सामने धकेल कर उन्हें मौत के मुंह में पहुंचाना चाहता है।
नेता वह होता है जो अपने अनुयायियों को मार्ग दिखाता है पर ये तो ऐसा मूर्ख है जो अपने ही लोगों का जीवन खतरे में डाल रहा है। जो लोग भी अखिलेश पर भरोसा करते हैं और उसका कहा मान कर वैक्सीन का विरोध करेंगे वह कहीं ना कहीं अपने लिए ही आत्मघाती कदम उठा रहे होंगे।
वैक्सीन इंसानों के लिए बन रही है जानवरों के लिए नहीं। स-मा-ज-वादी पार्टी के मुखिया akles और उनके अनुयाई "वोट बैंक" यदि इससे दूरी बनाना चाहें तो वह खुद अपने दुर्भाग्य को प्राप्त होंगे।
वैद्य, हकीम या डॉक्टर जब भी आपको शहद लेने की सलाह देते हैं तो उसमें एक बात छुपी होती है कि आपको #RawHoney अर्थात सीधे छत्ते से निकला हुआ शहद ही लेना चाहिए। बाजार में टिके बरसो पुराने शहद के मशहूर ब्रांड आपको प्रोसेस किया हुआ शहद देते हैं जिसमें जमकर मिलावट होती है
तथा गर्म किए जाने के कारण उसके अनेक गुणधर्म धर्म नष्ट हो जाते हैं।
अतः बड़े ब्रांड में मिलने वाला शहद सिरप के अलावा कुछ नहीं रह जाता।
जिस तरह से आप दूध लेने के लिए किसी आसपास के डेयरी की तलाश करते हैं उसी प्रकार से आप शुद्ध शहद के लिए अपने आसपास के #beekeeper से संपर्क करें।
एक beekeeper आपको शुद्ध शहद देने की क्षमता रखता है।
यदि आप किसी मधुमक्खी पालक के संपर्क में नहीं हैं तो हम आपको कोरियर के द्वारा उपलब्ध करा सकते हैं। wa.me/919412253377 #FabaHoney