इस बार ओलंपिक्स मेडल जीत पाएंगी 'पुनर्जन्म' लेकर लौटी विनेश फोगाट?
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बचपन में जब हमें खेलते-खेलते चोट लगती थी तो घर के बड़े-बुजुर्ग हमें चुप कराने के लिए कहते थे- चोट खेल का हिस्सा हैं. बड़े हुए तो समझ आया कि बात सही तो थी लेकिन इतनी सीधी नहीं.
चोट खेल का हिस्सा तो है लेकिन इसे खेल में कोई चाहता नहीं, ये जबरदस्ती घुसपैठ करती है. कई बार तो प्लेयर्स इससे उबरकर वापसी कर लेते हैं, लेकिन कई दफा ये चोट करियर भी खत्म कर जाती है.
उम्मीद के हमारे चौथे एपिसोड में आज बात ऐसी ही एक प्लेयर की, जिसे चोट ने और बेहतर बना दिया.
जिसकी चोट इतनी खतरनाक थी कि लोगों को लगा अब करियर खत्म! लेकिन हरयाणे की इस छोरी ने दंगल जारी रखा. चोट को परास्त कर वापसी की और एक बार फिर से तैयार है… दुनिया पर छा जाने के लिए. विनेश फोगाट नाम की ये पहलवान Tokyo2020 Olympics में मेडल की हमारी सबसे बड़ी उम्मीदों में से एक है.
# कौन हैं Vinesh?
यो भी कोई बताने की बात सै? अरे वही, दंगल वाले फोगाट साब के घर की छोरी है. फोगाट सिस्टर्स को कौन नहीं जानता? इन्हीं के लिए तो महावीर फोगाट बने आमिर ने कहा था- म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के? लेकिन विनेश आज जहां हैं, वहां का रास्ता फिल्मी कहानी से भी मुश्किल था
विनेश ने सिर्फ 9 साल की उम्र में अपने पिता राजपाल को खो दिया. जमीनी विवाद में उनकी हत्या के कुछ ही दिन बाद पता चला कि विनेश की मां को कैंसर है. इन समस्याओं से जूझते विनेश के परिवार की मदद उनके ताऊ महावीर सिंह फोगाट ने की. उन्होंने विनेश, उनकी बहन और भाई को अपने साथ रखा.
यहां इन भाई-बहनों ने कुश्ती सीखना शुरू किया और महावीर ने अपने भाई राजपाल के अधूरे सपने को पूरा करने में जी-जान लगा दी. और इस काम में उन्हें साथ मिला विनेश की मां प्रेमलता का. प्रेमलता ने अपने बच्चों को रेसलिंग की प्रैक्टिस करने से कभी नहीं रोका.
उन्हें जब भी मदद की जरूरत होती, वह बेटियों की जगह बेटे हरविंदर को आवाज देतीं. यहां तक कि वह कीमोथेरेपी के लिए गांव बलाली से रोहतक तक अकेली चली जाती थीं, जिससे उनके बच्चों की प्रैक्टिस पर असर ना आए.
फिर आया साल 2010. दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स.
यहां विनेश की बड़ी बहन गीता ने 55kg का गोल्ड जबकि बबीता ने 51kg का सिल्वर मेडल जीत लिया. बहनों के गले में लटका मेडल और गांव में हुए उनके स्वागत ने विनेश को उनका लक्ष्य डेफिनिट कर दिया- करना तो यही है. पूरी शिद्दत से रेसलिंग में जुटीं विनेश की मेहनत 2013 में रंग लाई.
उन्होंने इस साल यूथ रेसलिंग चैंपियनशिप का सिल्वर मेडल जीत लिया.
# खास क्यों हैं Vinesh?
विनेश की तमाम खासियतों में उनकी बदली टेक्नीक भी एक है. पहले टोटल अटैक करने वाली विनेश साल 2016 के रियो ओलंपिक्स तक 48kg कैटेगरी में खेलती थीं.
ओलंपिक्स की इस कैटेगरी के क्वॉर्टर-फाइनल में उनके घुटने में बेहद खतरनाक चोट लग गई. रोती हुई विनेश को स्ट्रेचर पर लादकर बाहर ले जाया गया. इस चोट के चलते वह लगभग नौ महीने तक मैट से दूर रहीं. विनेश ने इस चोट से अपनी वापसी का ऐलान 2017 की एशियन चैंपियनशिप के सिल्वर मेडल के साथ किया.
साल 2018 में वह एशियन गेम्स का गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला रेसलर भी बन गईं. विनेश ने 2014 और 2018 के कॉमनवेल्थ गेम्स के गोल्ड मेडल भी जीते हैं.
साल 2016 की एशियन चैंपियनशिप से ही इस टूर्नामेंट की 53kg कैटेगरी में खेल रही विनेश 2019 तक 53kg कैटेगरी में परमानेंट हो गईं
रियो की चोट के बाद हुए ‘पुनर्जन्म’ के बाद अपनी टेक्नीक में आए बदलाव के बारे में विनेश ने एक बार ESPN से कहा था,
‘पहले मुझे विपक्षियों के गेम की स्टडी करना कमजोरी का प्रतीक लगता था. मैचों के दौरान मैं लगातार, बिना थके अटैक करती थी.
मुझे इस बात से फर्क नहीं पड़ता था कि मैं हार रही हूं या जीत. लेकिन अब मैं मैट पर काफी मूवमेंट करती हूं और मेरी टेक्नीक भी पहले से बेहतर हुई है.
अब मैं अपने अटैक मौके के हिसाब से करती हूं. हर विपक्षी के खिलाफ रणनीति पहले से तैयार होती है.
हम शनिवार और बाउट से पहले मेरे प्रतिद्वंद्वी के गेम्स की स्टडी करते हैं. पहले मैं ये सब नहीं करती थी. लेकिन अब मुझे पता है कि इससे बड़ा अंतर आता है.’
साल 2019 से अब तक विनेश ने वर्ल्ड चैंपियनशिप समेत कई सारे मेडल अपने नाम किए हैं.
वह टोक्यो 2020 ओलंपिक्स में नंबर एक रेसलर की हैसियत से जा रही हैं. विनेश ने अपनी वेट कैटेगरी बदलने के 2019 की वर्ल्ड चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज़ मेडल जीता. इस जीत के दौरान उन्होंने दो बार की वर्ल्ड चैंपियनशिप ब्रॉन्ज़ मेडलिस्ट मारिया प्रेवोलारकी को मात दी.
इसके साथ ही विनेश वर्ल्ड चैंपियनशिप में मेडल जीतने वाली पांचवीं भारतीय विमेन रेसलर बन गईं. विनेश टोक्यो के लिए क्वॉलिफाई करने वाली पहली भारतीय रेसलर भी हैं.
# Vinesh से ‘उम्मीद’ क्यों?
विनेश से उम्मीद करने की सबसे बड़ी वजह उनकी कभी ना टूटने वाली हिम्मत है.
अपने छोटे से करियर में तमाम झटके सहने वाली विनेश ने कभी हार नहीं मानी. रियो में मेडल की सबसे बड़ी दावेदार रहीं विनेश का सफर बेहद बुरे अंदाज में खत्म हुआ, लेकिन उन्होंने इससे बेहतरीन वापसी की. अगले तीन साल में उन्होंने अपनी तमाम कमियों को दूर कर ओलंपिक्स के लिए क्वॉलिफाई किया.
लेकिन इसके बाद पूरी दुनिया में कोविड-19 फैलने के चलते ओलंपिक्स टल गए. और इसी बीच विनेश को भी कोविड हो गया. लेकिन उन्होंने इस बाधा को भी पार किया और फिर मैटेओ पेल्लिकोन और एशियन चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर बता दिया कि उन्हें रोकना आसान नहीं है.
अपनी तमाम चोटों के बारे में विनेश ने हाल ही में कहा था,
‘उतार-चढ़ावों ने मुझे मजबूत, परिपक्व बनाया है. अगर लोग आज मुझे मानसिक रूप से मजबूत समझते हैं, तो सिर्फ इसीलिए क्योंकि मैंने इन तमाम कठिनाइयों का सामना किया है. रियो ने मुझे बहुत कुछ सिखाया.’
विनेश ने हाल के दोनों गोल्ड मेडल्स के दौरान एक भी पॉइंट नहीं गंवाया. लेकिन इन इवेंट्स में कोरिया, चाइना और जापान जैसे दिग्गज देश नहीं थे. ऐसे में उनके लिए ओलंपिक्स में मेडल जीतना आसान नहीं होगा.
भले ही विनेश ने इसी जून महीने में हुए पोलैंड रैंकिंग टूर्नामेंट को मिलाकर लगातार तीन गोल्ड मेडल जीते हों, और टोक्यो में नंबर वन सीड रेसलर बनकर जा रही हों, लेकिन उन्हें मेडल की राह में कड़ी चुनौती मिलनी तय है.
नॉर्थ कोरियन मि योंग के ओलंपिक्स में ना आने और जापानी दिग्गज माया मुकाइदा के इस सीजन कोई इंटरनेशनल टूर्नामेंट ना खेलने के चलते विनेश को टोक्यो के लिए नंबर वन की रैंक मिली है.
और उन्हें टोक्यो में मेडल जीतने के लिए मुकाइदा के साथ इक्वाडोर की लुइसा वाल्वेर्दे और चाइना की क़िन्यु पैंग जैसी दिग्गजों से पार पाना होगा. @Phogat_Vinesh
अब ओलंपिक्स मेडल लेकर आएगी बचपन में लकड़ी बीनने वाली लड़की?
क़रीब 14 साल पहले की बात है. मणिपुर की राजधानी इम्फाल से लगभग 20 किलोमीटर दूर पड़ने वाले एक गांव की पहाड़ियों पर दो बच्चे पसीने से तरबतर खड़े थे.
जलावन की लकड़ियां लेने घर से निकले 16 साल के सनातोम्बा मीटी और उनकी 12 साल की बहन की समझ नहीं आ रहा था, कि अब करें क्या. आसपास कोई मदद करने वाला भी नहीं था और सनातोम्बा से लकड़ियों का गट्ठर उठे ही ना. तभी उनकी बहन ने कहा,
‘मैं उठाऊं क्या?’
पहले तो सनातोम्बा समझ नहीं पाए कि उसे क्या जवाब दें. जो गट्ठर उनसे नहीं उठ रहा, वो पूरे चार साल छोटी बहन कैसे उठाएगी? लेकिन कोई और चारा ना देख सनातोम्बा ने हां कर दी. और फिर जो हुआ उसने उस 12 साल की लड़की को ओलंपिक तक पहुंचा दिया.
ग़रीबी को तो पटक दिया लेकिन ओलंपिक्स मेडल की रेस जीत पाएगा 'योगी का चेला'?
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ग़रीबी. तंगहाली या गुरबत. वो शय जिसकी चपेट में आने वाला परेशान ही रहता है. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस शय को ऐसा पटकते हैं, कि फिर ये लौटकर उनके पास नहीं जा पाती.
दी लल्लनटॉप की Tokyo2020 स्पेशल सीरीज ‘उम्मीद’ के तीसरे एपिसोड में आज बात ऐसे ही एक एथलीट की, जिसने ग़रीबी को अपने रास्ते में नहीं आने दिया. और ऐसा दांव चला कि आज पूरी दुनिया उसकी फैन है.
# कौन हैं Bajrang Punia?
बजरंग पूनिया.
रेसलिंग के लगभग हर बड़े इवेंट में मेडल जीतने वाले भारतीय रेसलर. हरियाणा के झज्जर जिले से आते हैं. बजरंग जब छोटे थे तो उनके परिवार के पास खेल-कूद का सामान खरीदने के पैसे नहीं थे. लेकिन बजरंग का मन तो खेल-कूद में ही लगता था. ऐसे में उन्होंने अपनी समस्या का सटीक जुगाड़ निकाला.