अब ओलंपिक्स मेडल लेकर आएगी बचपन में लकड़ी बीनने वाली लड़की?
क़रीब 14 साल पहले की बात है. मणिपुर की राजधानी इम्फाल से लगभग 20 किलोमीटर दूर पड़ने वाले एक गांव की पहाड़ियों पर दो बच्चे पसीने से तरबतर खड़े थे.
जलावन की लकड़ियां लेने घर से निकले 16 साल के सनातोम्बा मीटी और उनकी 12 साल की बहन की समझ नहीं आ रहा था, कि अब करें क्या. आसपास कोई मदद करने वाला भी नहीं था और सनातोम्बा से लकड़ियों का गट्ठर उठे ही ना. तभी उनकी बहन ने कहा,
‘मैं उठाऊं क्या?’
पहले तो सनातोम्बा समझ नहीं पाए कि उसे क्या जवाब दें. जो गट्ठर उनसे नहीं उठ रहा, वो पूरे चार साल छोटी बहन कैसे उठाएगी? लेकिन कोई और चारा ना देख सनातोम्बा ने हां कर दी. और फिर जो हुआ उसने उस 12 साल की लड़की को ओलंपिक तक पहुंचा दिया.
ये बात और है कि अब 26 साल की हो चुकी वो लड़की साल 2016 के रियो ओलंपिक्स को याद नहीं करना चाहती. अब उसका लक्ष्य Tokyo2020 Olympics में अच्छा कर रियो की यादों को मिटाने का है.
दी लल्लनटॉप की ‘उम्मीद’ के पांचवे एपिसोड में हम बात करेंगे उस वर्ल्ड चैंपियन लड़की की, जिसका बचपन पहाड़ से जलावन की लकड़ियां बीनते बीता. नाम- सेखोम मीराबाई चानू, काम- वजन उठाना.
# कौन हैं Mirabai?
सुदूर मणिपुर की रहने वाली मीराबाई बचपन से ही भारी वजन उठाने की मास्टर हैं.
हालांकि ऐसा भी नहीं है कि उन्होंने शुरू में ही तय कर लिया था कि आगे चलकर इसी में करियर बनाना हैं. मीराबाई बचपन में तीरंदाज यानी आर्चर बनना चाहती थीं. लेकिन कक्षा आठ तक आते-आते उनका लक्ष्य बदल गया.
दरअसल कक्षा आठ की किताब में मशहूर वेटलिफ्टर कुंजरानी देवी का ज़िक्र था.
इम्फाल की ही रहने वाली कुंजरानी भारतीय वेटलिफ्टिंग इतिहास की सबसे डेकोरेटेड महिला हैं. सरल शब्दों में कहें तो कोई भी भारतीय महिला वेटलिफ्टर कुंजरानी से ज्यादा मेडल नहीं जीत पाई है. बस, कक्षा आठ में तय हो गया कि अब तो वजन ही उठाना है. इसके साथ ही शुरू हुआ मीराबाई का करियर.
हालांकि ये आसान नहीं था. वेटलिफ्टिंग के सबसे नजदीकी सेंटर के लिए भी मीराबाई को घर से 60 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था. PWD में निचले स्तर पर काम करने वाले पिता और छोटी सी दुकान चलाने वाली मां मिलकर इतना नहीं कमा पाते थे कि मीराबाई की बहुत ज्यादा मदद कर पाएं.
लेकिन ये मुश्किलें अगर मीराबाई को रोक लेतीं तो दुनिया हैरान कैसे होती? बस, काम चलता रहा. फिर आया साल 2014. ग्लास्गो में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स.
और इन गेम्स में लोगों ने पहली बार मीराबाई को नोटिस किया. मीराबाई ने यहां सिल्वर मेडल जीता.
मजे की बात ये कि इवेंट का गोल्ड भी भारत के हिस्से ही आया. जाहिर है कि जब ऐसा हाल होगा तो लोग गोल्ड को ही ज्यादा भाव देंगे. ऐसा ही हुआ और मीराबाई के मन में इसकी टीस रह गई. यह टीस निकली साल 2016 में. रियो ओलंपिक्स में जाने के लिए ट्रायल्स चल रहे थे.
और इन ट्रायल्स की निगहबान थीं कुंजरानी देवी.
वही कुंजरानी जिन्हें जानकर मीराबाई ने ये करियर चुना था. बस फिर क्या था, मीराबाई ने अपना दम दिखा दिया. पटियाला में हुए ट्रायल्स में ही मीराबाई ने नेशनल कोच कुंजरानी का नेशनल रिकॉर्ड तोड़ डाला.
12 साल पुराना यह रिकॉर्ड तोड़ते ही मीराबाई चश्मेबद्दूर बन गईं. उन्हें रियो में मेडल की सबसे बड़ी उम्मीद बताया जाने लगा. लेकिन रियो में तो कुछ और ही हो गया. मेडल जीतना तो दूर, मीराबाई क्लीन एंड जर्क के अपने तीनों प्रयासों में नाकाम रहीं. वजन ही नहीं उठा पाईं.
लेकिन ये नाकामयाबी मीराबाई की पहचान नहीं थी.
फिर क्या थी वो पहचान? बताएंगे, थोड़ा तो धैर्य रखिए.
# खास क्यों हैं Mirabai Chanu?
रियो ओलंपिक्स में कुल 12 लिफ्टर्स में मीराबाई सिर्फ दूसरी ऐसी लिफ्टर थीं जो वजन उठाए बिना बाहर हुईं. और फिर शुरू हुआ आलोचनाओं का दौर.
लोग मीराबाई, उनके कोच और फेडरेशन को भला-बुरा कहने लगे. ऐसे लोगों को जवाब देने हुए मीराबाई ने कहा,
‘ओलंपिक्स से पहले कोई भी मुझे सपोर्ट करने नहीं आया और जब मैं ओलंपिक्स में अपना मेडल जीतने से चूक गई हूं तो सभी लोग फेडरेशन और मेरे कोच विजय शर्मा पर लांछन लगा रहे हैं.
जबकि यह सिर्फ उन्हीं की बदौलत है कि मैं यहां तक पहुंची हूं. और मैं आप सभी को भरोसा दिलाती हूं कि मैं खत्म नहीं हुई. मैं आने वाले इवेंट्स में अपना बेस्ट दूंगी.’
मीराबाई ने जो कहा, वो किया भी. वह खत्म नहीं हुईं बल्कि और मजबूत बनकर उभरीं.
इस हार के बाद उन्होंने लगातार बड़ी प्रतियोगिताओं में मेडल्स जीते और बन गईं बेहद खास.
2016 रियो ओलंपिक्स के बाद आई 2017 की वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप. आलोचकों को लगा था कि मीराबाई इस बार भी प्रेशर में बिखर जाएंगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
मीराबाई ने यहां इतिहास रच दिया. वह कर्णम मल्लेश्वरी के बाद वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने वाली सिर्फ दूसरी भारतीय महिला वेटलिफ्टर बन गईं. इसके बाद उन्होंने अगले ही साल हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में अपने पिछले मेडल का रंग भी बदल दिया.
2014 कॉमनवेल्थ गेम्स की सिल्वर मेडलिस्ट मीराबाई ने 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीत लिया. गोल्ड कोस्ट में हुए इन कॉमनवेल्थ गेम्स में मीराबाई ने कुल 196 किलो वजन उठाया. स्नैच में 86 जबकि क्लीन एंड जर्क में 110 किलो. यह उनका पर्सनल बेस्ट भी था.
साल 2021 के अप्रैल महीने में मीराबाई ने ताशकंद में हुई एशियन चैंपियनशिप 2020 का ब्रॉन्ज़ मेडल जीता. जबकि चोट के चलते वह एशियन गेम्स में भाग ही नहीं ले पाई थीं.
# Mirabai से ‘उम्मीद’ क्यों?
मीराबाई ने रैंकिंग के आधार पर टोक्यो 2020 ओलंपिक्स के लिए क्वॉलिफाई किया है.
वह अभी वर्ल्ड रैंकिंग में दूसरे नंबर पर हैं. जानने लायक यह भी है कि मीराबाई को यह रैंकिंग नॉर्थ कोरिया के नाम वापस लेने के चलते मिली है. इससे पहले वह चौथे स्थान पर थीं. सिर्फ चार फुट 11 इंच लंबी मीराबाई इस साल के बेस्ट वेटलिफ्टर्स में से एक हैं.
इस साल सिर्फ चाइनीज वेटलिफ्टर्स ही उनसे ज्यादा वजन उठा पाई हैं.
और वेटलिफ्टिंग का खेल एकदम सीधा है. इसमें ज्यादा उलटफेर की संभावना नहीं होती. लगभग सारे प्रतिभागियों को मालूम होता है कि वे कितना वजन उठा सकते हैं.
साथ ही उन्हें यह भी पता होता है कि सामने वाले लिफ्टर की क्षमता कितनी है. और इन सबका गुणा-गणित यही कहता है कि मीराबाई का मेडल पक्का है.
लेकिन ओलंपिक के प्रेशर में अक्सर एथलीट्स से गलतियां हो जाती हैं. और मीराबाई को तो ओलंपिक्स के पहले ही दिन मुकाबले में उतरना है.
इसका अर्थ सीधा है, उनके प्रदर्शन से भारतीय दल का भविष्य जुड़ा है. अगर वह अच्छा करती हैं तो निश्चित तौर पर टीम इंडिया का मनोबल बढ़ेगा. और उम्मीद है कि मीराबाई अच्छा ही करेंगी. क्योंकि वह कभी भी कम में संतुष्ट नहीं होतीं. इल बारे में उनका फलसफा सीधा है,
‘अच्छा खेलना और भाग लेना ही काफी नहीं है. मुझे महानता का पीछा करना है. अपनी क्षमता का अहसास करना है और कभी भी योग्यता से कम पर समझौता नहीं करना है.’ @mirabai_chanu
इस बार ओलंपिक्स मेडल जीत पाएंगी 'पुनर्जन्म' लेकर लौटी विनेश फोगाट?
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बचपन में जब हमें खेलते-खेलते चोट लगती थी तो घर के बड़े-बुजुर्ग हमें चुप कराने के लिए कहते थे- चोट खेल का हिस्सा हैं. बड़े हुए तो समझ आया कि बात सही तो थी लेकिन इतनी सीधी नहीं.
चोट खेल का हिस्सा तो है लेकिन इसे खेल में कोई चाहता नहीं, ये जबरदस्ती घुसपैठ करती है. कई बार तो प्लेयर्स इससे उबरकर वापसी कर लेते हैं, लेकिन कई दफा ये चोट करियर भी खत्म कर जाती है.
उम्मीद के हमारे चौथे एपिसोड में आज बात ऐसी ही एक प्लेयर की, जिसे चोट ने और बेहतर बना दिया.
जिसकी चोट इतनी खतरनाक थी कि लोगों को लगा अब करियर खत्म! लेकिन हरयाणे की इस छोरी ने दंगल जारी रखा. चोट को परास्त कर वापसी की और एक बार फिर से तैयार है… दुनिया पर छा जाने के लिए. विनेश फोगाट नाम की ये पहलवान Tokyo2020 Olympics में मेडल की हमारी सबसे बड़ी उम्मीदों में से एक है.
ग़रीबी को तो पटक दिया लेकिन ओलंपिक्स मेडल की रेस जीत पाएगा 'योगी का चेला'?
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ग़रीबी. तंगहाली या गुरबत. वो शय जिसकी चपेट में आने वाला परेशान ही रहता है. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस शय को ऐसा पटकते हैं, कि फिर ये लौटकर उनके पास नहीं जा पाती.
दी लल्लनटॉप की Tokyo2020 स्पेशल सीरीज ‘उम्मीद’ के तीसरे एपिसोड में आज बात ऐसे ही एक एथलीट की, जिसने ग़रीबी को अपने रास्ते में नहीं आने दिया. और ऐसा दांव चला कि आज पूरी दुनिया उसकी फैन है.
# कौन हैं Bajrang Punia?
बजरंग पूनिया.
रेसलिंग के लगभग हर बड़े इवेंट में मेडल जीतने वाले भारतीय रेसलर. हरियाणा के झज्जर जिले से आते हैं. बजरंग जब छोटे थे तो उनके परिवार के पास खेल-कूद का सामान खरीदने के पैसे नहीं थे. लेकिन बजरंग का मन तो खेल-कूद में ही लगता था. ऐसे में उन्होंने अपनी समस्या का सटीक जुगाड़ निकाला.