वे कहते है कि ब्राह्मण भिक्षा लेकर जीवन यापन करते थे और आज भी करते है वैदिक काल मैं ब्राह्मण सिर्फ 5 घरों से भिक्षा लिया करते थे उन 5 घरों से जो कुछ भी मिलता उस से ही सन्तुष्ट हो जाते थे फिर अपने गुरुकुल आदि के कार्यो मैं लग जाते थे।
भिक्षा लेकर जीवन यापन करने का उद्देश्य इस लिए था कि शिक्षा को कोई भी बेच ना सके जैसे कि आज के समय मैं बड़े बड़े स्कूल कोचिंग संस्थान लाखों रुपयों की फीस हड़प लेते है आज के समय मैं ब्राह्मण 1 परसेंट ही दान दक्षिणा पर निर्भर है वो भी 10 लाख की शादी मैं बिना खाएं पिए पूरे रात
जागने के बाद 101 रुपए दिए जाते है उस मै भी लुटेरा होने का टैग लग जाता है
ब्राह्मणो ने भिक्षा लेकर
1 ज़ीरो की खोज दी
2 विमान शास्त्र लिखा जो कि आज तक कोई भी उसके तथ्यो को गलत साबित नही कर सका
3 कृषि पराशर नामक ग्रँथ लिखा इस ग्रँथ के नियम अनुसार ही आज तक खेती की जारी रही है
4 महर्षि सुश्रुत ने सुश्रुत सहिंता नामक ग्रँथ लिखा जो कि दुनिया की पहली सर्जरी करता है आज भी यूरोप सुश्रुत सहिंता पर अपनी खोज जारी रखता है
5 महर्षि पाणिनि = महर्षि ने दुनिया की पहली व्याकरण दी
6 श्रीनिवास रामानुजन ने गणित की 120 थ्योरम्स दी,
7 ऋषि कणाद = कणाद को परमाणुशास्त्र का जनक माना जाता है। आचार्य कणाद ने बताया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं। कणाद प्रभास तीर्थ में रहते थे। विख्यात इतिहासज्ञ टीएन कोलेबु्रक ने लिखा है कि अणुशास्त्र में आचार्य कणाद यूरोपीय वैज्ञानिकों की तुलना में विश्वविख्यात थे।
8 बौधायन जी गणितज्ञ और शुल्ब सूत्र तथा श्रौतसूत्र के रचयिता हैं। पाइथागोरस के सिद्धांत से पूर्व ही बौधायन ने ज्यामिति के सूत्र रचे थे ।दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी उतने क्षेत्रफल का 'समकोण' समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के
समान के वृत्त में परिवर्तन करना, इस प्रकार के अनेक कठिन प्रश्नों को बौधायन ने सुलझाया।
9 भास्कराचार्य जी को प्राचीन भारत के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री के रूप मैं जाना जाता है भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रंथों का अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में किया जा चुका है। भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रंथों ने अनेक विदेशी विद्वानों को भी शोध का रास्ता दिखाया है।
न्यूटन से 500 वर्ष पूर्व भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण के नियम को जान लिया था और उन्होंने अपने दूसरे ग्रंथ 'सिद्धांतशिरोमणि' में इसका उल्लेख भी किया है।
10 महर्षि पतंजलि पतंजलि के लिखे हुए 3 प्रमुख ग्रंथ मिलते हैं- योगसूत्र, पाणिनी के अष्टाध्यायी पर भाष्य और आयुर्वेद पर ग्रंथ। पतंजलि को भारत का मनोवैज्ञानिक और चिकित्सक कहा जाता है। पतंजलि ने योगशास्त्र को पहली दफे व्यवस्था दी और उसे चिकित्सा और मनोविज्ञान से जोड़ा।
आज दुनियाभर में योग से लोग लाभ पा रहे हैं।
11 महर्षि चरक = चरक की गणना भारतीय औषधि विज्ञान के मूल प्रवर्तकों में होती है
ऋषि चरक ने 300-200 ईसापूर्व आयुर्वेद का महत्वपूर्ण ग्रंथ 'चरक संहिता' लिखा था। उन्हें त्वचा चिकित्सक भी माना जाता है। आचार्य चरक ने शरीरशास्त्र, गर्भशास्त्र, रक्ताभिसरणशास्त्र, औषधिशास्त्र इत्यादि विषय
में गंभीर शोध किया तथा मधुमेह, क्षयरोग, हृदयविकार आदि रोगों के निदान एवं औषधोपचार विषयक अमूल्य ज्ञान को बताया।
12 नागार्जुन = नागार्जुन ने रसायन शास्त्र और धातु विज्ञान पर बहुत शोध कार्य किया। रसायन शास्त्र पर इन्होंने कई पुस्तकों की रचना की जिनमें 'रस रत्नाकर' और 'रसेन्द्र मंगल' बहुत प्रसिद्ध हैं रसायनशास्त्री व धातुकर्मी होने के साथ-साथ इन्होंने अपनी चिकित्सकीय सूझ-बूझ से अनेक असाध्य
रोगों की औषधियाँ तैयार कीं। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में इनकी प्रसिद्ध पुस्तकें 'कक्षपुटतंत्र', 'आरोग्य मंजरी', 'योग सार' और 'योगाष्टक' हैं नागार्जुन द्वारा विशेष रूप से सोना धातु एवं पारे पर किए गए उनके प्रयोग और शोध चर्चा में रहे हैं। उन्होंने पारे पर संपूर्ण अध्ययन कर सतत
12 वर्ष तक संशोधन किया। नागार्जुन पारे से सोना बनाने का फॉर्मूला जानते थे। अपनी एक किताब में उन्होंने लिखा है कि पारे के कुल 18 संस्कार होते हैं। पश्चिमी देशों में नागार्जुन के पश्चात जो भी प्रयोग हुए उनका मूलभूत आधार नागार्जुन के सिद्धांत के अनुसार ही रखा गया।
ब्रह्मगुप्त (५९८-६६८) प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ थे। ब्रह्मगुप्त ने किसी वृत्त के क्षेत्रफल को उसके समान क्षेत्रफल वाले वर्ग से स्थानान्तरित करने का भी यत्न किया।
ब्रह्मगुप्त ने पृथ्वी की परिधि ज्ञात की थी, जो आधुनिक मान के निकट है।
ब्रह्मगुप्त पाई (pi) (३.१४१५९२६५) का मान १० के वर्गमूल (३.१६२२७७६६) के बराबर माना।
ब्रह्मगुप्त अनावर्त वितत भिन्नों के सिद्धांत से परिचित थे।
इन्होंने एक घातीय अनिर्धार्य समीकरण का पूर्णाकों में व्यापक हल दिया, जो आधुनिक पुस्तकों में इसी रूप में पाया जाता है और अनिर्धार्य वर्ग समीकरण, K y2 + 1 = x2, को भी हल करने का प्रयत्न किया।
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
कृपाचार्य, द्रोणाचार्य और अश्वत्थामा का जन्म ओर भगवान परशुराम ने कैसे द्रोणाचार्य को शस्त्र प्रशिक्षण दिया।
कृपाचार्य का जन्म:- ऋषि गौतम का एक पुत्र था जिसका नाम शरदवान गौतम था। कहा जाता है कि उनका जन्म रीड (घास) के बीच हुआ था। शरदवन धनुर्विद्या में पारंगत थे और गहन तपस्या का अभ्यास कर रहे थे। इससे इंद्र चिढ़ गए क्योंकि उन्हें लगा कि यह व्यक्ति उनके लिए एक चुनौती पेश कर रहा है।
अत: इन्द्र ने अप्सरा नाम की जनपद को तपस्या से विमुख करने के लिए भेजा। तो यह अप्सरा शरदवान के आश्रम में गई और धनुष और तीर चलाने वाले ऋषि को आकर्षित करने की कोशिश करने लगी वह एक ही कपड़ा पहनकर जंगल में घूमने लगी उसे देखकर ऋषि उसकी ओर आकर्षित हो गए। उसका धनुष-बाण नीचे गिर पड़े।
जैसे ही अक्रूर ने वृंदावन की सीमामें प्रवेश किया उन्होंने गायों के पैरों के निशान और भगवान कृष्ण के पैरों के निशान देखे जो उनके एकमात्र ध्वज त्रिशूल और कमल के फूल के संकेतों से प्रभावित हुए कृष्ण के पदचिन्हों को देखकर अक्रूर भगवान की सच्ची भक्ती के कारण तुरंत रथ से नीचे कूद पड़े
वे परमानंद के सभी लक्षणों से अभिभूत हो गए वे रोने लगे और उनका शरीर कांप उठा। कृष्ण के चरण कमलों की धूल को देखकर अत्यधिक हर्षित होकर, अक्रूर अपने चेहरे पर मिट्टी लगाने लगे और जमीन पर लुढ़कने लगे। वृंदावन की अक्रूर की यात्रा अनुकरणीय है।
अक्रूर की तरह भगवान के पदचिन्हों का अनुसरण करना चाहिए और हमेशा भगवान की लीलाओं और गतिविधियों के बारे में सोचना चाहिए। जैसे ही आप वृंदावन की सीमा पर पहुँचे तो उसे तुरंत अपनी भौतिक स्थिति और प्रतिष्ठा के बारे में सोचे बिना वृंदावन की धूल को अपने शरीर पर लगाना चाहिए।
झींगा। तंत्र पर विभिन्न वर्णनात्मक रचनाएँ लिखने वाले पंडित जी ने श्री विष्णु के प्रबल भक्त प्रहलाद की कहानी सुनाई।
कहानी दो उद्देश्यों को पूरा करती है:
• यह तंत्र की शक्ति का वर्णन करता है।
• शक्ति का दुरूपयोग होने की स्थिति में यह दुष्परिणामों को प्रदर्शित करती है।
लेकिन इससे पहले कि हम कहानी शुरू करें, मैं आपको कृत्या के बारे में कुछ बता दूं।
कृत्य एक तामसिक शक्ति है जो तंत्र में गहन साधना के बाद प्राप्त होती है। वह राक्षसी का एक रूप है जो कुछ अनुष्ठानों के प्रदर्शन के बाद जब भी उसे बुलाया जाता है,वो उसी साधक की सेवा करती है।
आदेश के बाद कोई सौदा नहीं वह अजेय और निर्दयी है।
एक बार जब वह एक लक्ष्य की ओर निर्देशित हो जाती है, तो वह यह देख लेगी कि कार्य अत्यंत सटीकता के साथ समाप्त हो गया है या नही जैसे कि । तीनों लोकों में कोई स्थान नहीं है जो आपको कृष्ण के त्रिशूल से बचा सके ।
कुंती के तीन पुत्रों के जन्म के बाद, माद्री को चिंता थी कि उसका कद कम हो जाएगा क्योंकि उसने मातृत्व प्राप्त नहीं किया था। माद्री ने महसूस किया कि वह सभी पहलुओं में कुंती के बराबर है लेकिन अब एक बच्चे की कमी ने उसे परेशान किया है
चूँकि पांडु शाप के कारण सहवास नहीं कर सकता था माद्री चाहती थी कि कुंती उसी विधि से गर्भवती होने में कुंती की मदद करे जो कुंती ने की थी लेकिन माद्री कुंती से सीधे बात करने से हिचक रही थी।
इसलिए उसने अपने पति पांडु को अपनी चिंताओं और समस्याओं के बारे में बताया।
माद्री ने पांडु को अपनी ओर से कुंती से उसी प्रकार के बच्चे के जन्म के बारे में बात करने के लिए कहा जैसा कुंती ने गोद लिया था। पांडु के मन में भी यही विचार था।
पांडु ने कुंती से माद्री को गर्भवती होने में मदद करने के लिए कहा
जिस पर सुश्रुतसंहिता नामक ग्रँथ भी है सुश्रुतसंहिता आयुर्वेद एवं शल्यचिकित्सा का प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ है सुश्रुतसंहिता आयुर्वेद के तीन मूलभूत ग्रन्थों में से एक है। आठवीं शताब्दी में इस ग्रन्थ का अरबी भाषा में 'किताब-ए-सुस्रुद' नाम से अनुवाद हुआ था
आयुर्वेद भारतीय चिकित्सा ज्ञान और शल्य चिकित्सा का खजाना है यह "ज्ञान भारद्वाज, अत्रेय, अग्निकाया, चरक, धन्वंतरि, सुश्रुत और कई अन्य जैसे प्राचीन काल के महान ब्राह्मण ऋषियों की ओर से दुनिया को एक उपहार है वास्तव में यह दुनिया को भारत का एक शाश्वत उपहार है।
ऋग्वेद के छंदों में उल्लेख है कि एक महिला योद्धा जिसे राजा खेला की रानी "विशपाल" कहा जाता था अश्विनी चिकित्सकों द्वारा एक कृत्रिम लोहे के पैर के साथ फिट किया गया था जब उसने एक युद्ध में अपना पैर खो दिया था इन चिकित्सकों को अगले श्लोक में नेत्र प्रत्यारोपण के लिए सराहा गया।