जब तक नया क़ानून नहि बनता तुरंत प्रभाव से पहाड़ी ज़िलों की कृषि योग्य ज़मीन की बिक्री,ख़रीद, रेजिस्ट्री पूर्ण तरीक़े से बंद हो.
++ #उत्तराखंड_मागें_भू_कानून
कमेटी टाइम बाउंड (30-40 दिन ) हो
जिसने सभी पहलू
पहाड़ियों की संस्कृति
पर्यावरण
कितना पैसा खर्चा होगा
अड्मिनिस्ट्रेशन कैसे करेगा
कितना टाइम लगेगा
++ #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
२०१८ के बाद जिन ज़मीनो को ग़लत तरीक़े से ख़रीदा/यूज़ किया जा रहा है, उस पर भी ऐक्शन हो,कमेटी बताए की कैसे इन ग़लतियों को ठीक किया जाए,
+++ #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
क़ानूनविद्/ जानकर लोगों को डेटा / लोगों से मिले सुझाव दिए जायें
ओर टाइम लाइन सेट किया जाए एक मज़बूत क़ानून बनाने का,
+++ #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
१- पहाड़ी ज़िलों में कृषि योग्य भूमि की बिक्री अन्य कार्यों के लिए पूर्ण तरीक़े से बंद हो
२- इन्वेस्टर्स का स्वागत है, कृषि/बाग़वानी/मेडिकल/टुरिज़म में पहाड़ी लोगों के साथ कॉंट्रैक्ट/लीज़ / प्रोफ़िट शेयरिंग बेसेज़
+++ #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
पर वह काम करे जिससे पहाड़ी का वर्तमान ओर भविष्य सुरक्षित हो , ऐसे इन्वेस्टर भाइयों को सरकार सब्सिडी दे सपोर्ट करे , रेड कार्पेट बिछाए
३-ओर एक डिपार्टमेंट/ मॉनिटरिंग संस्था/ टीम बनाए जो एन्शुर करे की
सरकार /पार्टियाँ बदलने पर इस शख़्त क़ानून को अपने फ़ायदे के लिए कोई आसानी से चेंज नहि कर पाए !
+++ #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
हमारी जन्मभूमि देवभूमि उत्तराखंड के लिए यहाँ के लोगों के हक़ के लिए सभी पहाड़ियों को आवाज़ उठानी है ओर जो हमारा है उसे लेना है !
हिमालयी राज्य उत्तराखंड में भूमि (संशोधन) दबकर रह गया। यह मसला सत्तारूढ़ बीजेपी के खिलाफ विपक्षी कांग्रेस के लिए बेहद काम का हो सकता था,लेकिन कांग्रेस ने अपने पूरे कैंपेन में इसका जिक्र तक नहीं किया। कारण है बारी-बारी सत्ता संभालने की चाहत और साझा हित। #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
6 दिसंबर 2018 को जब विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सरकार ने यह संशोधन विधेयक पेश किया तो कांग्रेस ने ‘मित्र विपक्ष’ की भूमिका निभाते हुए इसे आराम से पास होने दिया।
नए संशोधन के जरिए राज्य सरकार ने अब तक चले आ रहे कानून में++ #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
धारा 143-क और धारा-154 (2) जोड़ते हुए पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा खत्म कर दी
राज्य में कृषि योग्य जमीन खरीदने की अधिकतम सीमा 12.5 एकड़ थी और इसे वही व्यक्ति खरीद सकता था जो सितंबर, 2003 से पहले तक यहां जमीन का खातेदार रहा हो। #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
पहाड़ी है हम,हमारे हर घर से कोई ना कोई सेना मै है ओर देश ओर देशवासी हमारे लिए सबसे पहले है
हमसे ज्यादा इस बात को कोई अच्छे से नहीं समझ सकता
पहला 21 दिन का लॉकडाउन पूरा होने के बाद भी आपने बाहर युवाओं के लिए कोई हेल्प अरेंज नहीं करी, #पहाड़ी_सेना_4_यूके
हमें रातों में डीटीसी की बसों में भर कर आनंद विहार छोड़ दिया गया
कितने बच्चे,बुजुर्ग,महिला, पैदल भूखे प्यासे उत्तराखंड पहुंचे आपने उनके बारे मै कुछ नहीं कहा,
ना सोचा की वह कहा है क्या कर रहे है
कैसे रह रहे है,क्या खा रहे है, उनके छोटे बच्चो के क्या हाल है? #पहाड़ी_सेना_4_यूके
नए नवेले मुख्यमंत्रियों से भी आप कुछ नहीं शिख रहे है, 50 लाख के हेल्प की कहा था आपने
वह भी पीरूल के प्लांट, डबल हेंंप के खेती की तरह गायब हो गया,
कैसे हेल्प मिलेगी, कब मिलेगी, कितने दिन में मिलेगे
कुछ पता नहीं है