#इति_श्री_इतिहास
आजादी की लड़ाई में शहीद तो बहुत हुए, सीने पर गोली झेली, बहुतों की गर्दन ने फांसी झूली।
मगर मात्र 23 साल का एक लड़का शहीद-ए-आजम कैसे हुआ ? सोचा है कभी ?
वजह ये नहीं थी कि हथियार उठाया, वजह ये थी कि उन्होंने एक हाथ में हथियार,दूसरे में किताब उठाई।भगत सिंह तो...
खुद कहते थे।
"क्रांति शब्द का अर्थ प्रगति के लिए परिवर्तन की भावना और आकांक्षा है। हथियार और गोला बारूद क्रांति के लिए कभी-कभी आवश्यक हो सकते हैं लेकिन इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है।"
भगत सिंह साफ लिखते हैं कि
"बम और पिस्तौल क्रांति के पर्यायवाची नहीं हैं"
भगत सिंह को ढूंढना है तो बंदूक की नाल और बारूद की गंध में नहीं, किताबों की सुगंध में तलाशिए।भगत सिंह, ऊंचे स्वर में लगते नारों की जगह शांत भाव से लिखे अपने लेखों में मिलेंगे।
उनपर लिखी गई किताबों में दिखेंगे।
भगत सिंह अंग्रेजी हुकूमत के लिए वाकई घातक थे क्योंकि वो...
हथियारबंद से ज्यादा वैचारिक क्रांतिकारी थे।
23 साल की उम्र इतनी किताबें पढ़ ली, जितनी आम आदमी ताउम्र नहीं पढ़ पाता। और पढ़ा लिखा आदमी खिलाफ है तो सर्वशक्तिमान सत्ता के लिए सबसे घातक होता है।इसलिए गांधीजी की तमाम कोशिशों और चिट्ठियों के बावजूद लॉर्ड इरविन ने फांसी माफ नहीं की।
अंतिम दिन गांधी जी ने चिट्ठी में इरविन से वादा किया था कि भगत सिंह का संगठन अब कोई हिंसक गतिविधि नहीं करेगा। लेकिन एक तरफ पंजाब पुलिस का लॉर्ड इरविन पर दबाव और दूसरी तरफ भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों का प्रभाव। इरविन बड़ा दिल नहीं दिखा पाया। फांसी होकर रही। लेकिन फांसी ने...
भगत सिंह को ना सिर्फ अमर कर दिया, बल्कि शहीद-ए-आजम भी बना दिया। कुछ लोग कहते हैं फांसी रोकने के लिए गांधी जी ने कुछ नहीं किया, सच्चाई ये ऐसा जो लोग ये कहते हैं वो उन्हीं के अनुयायी हैं, जो अंग्रेजों के अंगूठे तले ना कुछ करते थे, ना करना चाहते थे। गांधी तो वो नेता थे जो...
वैचारिक रूप से दूसरे छोर पर खड़े होने के बावजूद अंतिम दिन तक फांसी रुकवाने के लिए प्रयासरत थे। भगत सिंह हिंसा के रास्ते पर थे, मगर जब वो बम-बंदूक को क्रांति का पर्यायवाची नहीं बताते हैं तो साथ ही ये भी बताते हैं कि एक गांधी उनमें भी है। उनकी लड़ाई सिर्फ अंग्रेजों से नहीं संपूर्ण
साम्राज्यवाद के खिलाफ थी।भगत सिंह की फोटो स्टेटस लगाना आसान है,बम-बंदूकों के पीछे आकर्षित हो जाना भी,मगर भगत को समझना है तो उनके लेखों को पढ़ना होगा।किताबों में उतना होगा।यकीं मानिए उन्हें पढ़ लिया तो नारों के जोर पर चलते राष्ट्रवाद और असली राष्ट्रवाद का फर्क जान जाएंगे।जय हिंद।
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कई दिनों बाद #इतिश्रीइतिहास
जन्म जयंती से ठीक एक दिन पहले बात आज उस प्रधानमंत्री की जिसने असल मायने में हिंदुस्तान की तकदीर बदलकर रख दी। वो प्रधानमंत्री जिसके पास पूरी ताकत नहीं थी,जो आधा शेर था। फिर भी हिंदुस्तान के ख्वाबों की ताबीर बदल दी।
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वो जिनके व्यक्तित्व में नेहरू, इंदिरा, राजीव जैसा करिश्मा नहीं था, ना ही मोदी जैसा जादुई भाषण देना आता था। लेकिन फिर भी वो सब कर गए जिसकी ऋणि पीढ़ियां रहेंगी...वो प्रधानमंत्री जिसे यश की जगह अपयश मिला, उसे अच्छे की जगह बुरे कामों के लिए याद किया गया...
संन्यासी से सम्राट...
अप्रैल 1991 में कांग्रेस के टिकट बांटे जा रहे थे, गांधी परिवार के नजदीकी संकेत दे रहे थे कि राजीव गांधी युवा मंत्रीमंडल की योजना बना रहे हैं। लगातार 8 बार सांसद रह चुके नरसिम्हा राव बूढ़े हो चुके थे, उनका पत्ता कट चुका था, वो भी ये समझ चुके थे।
ST वर्ग के एक टोले में लालू यादव पहुंचते हैं,पूरा टोला भागकर आता है,उसमें 30 साल की महिला।वो लालू के नजर आना चाहती थी, नजर पड़ी तो लालू बोले-सुखमनिया तुम यहां ?तोहरा बिहाय यहां हुआ है ?
साथ में खड़े शिवानंद तिवारी अचंभित कि इसे कैसे जानते हैं ?यही लालू का करिश्मा है वो जिससे...
एक बार मिल लें उसे भूलते नहीं। वो महिला पटना के वेटरनरी कॉलेज के पास किसी टोले में रहती थी। लालू तब से उसे जानते थे।आशीर्वाद दिया,उसकी बहन का नाम लेकर पूछा, वो कहां है ? हाल-चाल लिया। हाथ में 500 रुपए रखे और चल दिए। यही बातें लालू प्रसाद यादव को आम लोगों का नेता बनाती है।
आज भी बिहार में लालू माइनस राजनीति की कल्पना नहीं हो सकती। लालू ही वो नेता हैं जिन्होंने दबी-पिछड़ी जनता को जुबान दी।
खेत में हेलिकॉप्टर उतरवा गरीबों को उसपर घुमाना हो या किसी भी सामान्य आदमी पूछ लेना- खैनी है तुम्हारे पास। ये वो अंदाज है जो उन्हें औरों से अलग करता है।
#इति_श्री_इतिहास
''एक सपना अधूरा रह गया,एक गीत मौन हो गया और एक लौ बुझ गई।दुनिया को भूख और भय से मुक्त करने का सपना,गुलाब की खुशबू,गीता के ज्ञान से भरा गीत और रास्ता दिखाने वाली लौ। कुछ भी नहीं रहा''
पं.नेहरू को श्रद्धाजंलि देते हुए ये वाजपेयी जी के शब्द थे। आगे कहते हैं...
''यह एक परिवार,समाज या पार्टी का नुकसान भर नहीं है। भारत माता शोक में है क्योंकि उसका सबसे प्रिय राजकुमार सो गया। मानवता शोक में है क्योंकि उसे पूजने वाला चला गया।दुनिया के मंच का मुख्य कलाकार अपना आखिरी एक्ट पूरा करके चला गया।उनकी जगह कोई नहीं ले सकता''
मई 1964 में जब...
वाजपेयी संसद ये भाषण दे रहे थे हर सांसद की आंखें नम थीं। वो यहीं नहीं रुके ''लीडर चला गया है लेकिन उसे मानने वाले अभी हैं, सूर्यास्त हो गया है,लेकिन तारों की छाया में हम रास्ता ढूंढ लेंगे। ये इम्तहान की घड़ी है, लेकिन उनको असली श्रद्धांजलि भारत को मजबूत बनाकर दी जा सकती है''...
लखनऊ में Era Medical college है, मीसम अली खान इसके कर्ताधर्ता हैं। हमारे RSS वाले अंकल यहीं से कोरोना को हराकर लौटे हैं। अंकल बताते हैं- अस्पताल अद्भुत है, यहां जो नर्सें हैं, शाहीन हों या शबनम या और कोई एकदम फ्लोरेंस नाइटिंगेल का रूप।मरीज को अपने हाथ से खाना तक खिलाती हैं। 1/2
करते हैं ऐसा सेवाभाव कहीं देखा ही नहीं। इससे पहले वो बलराम जिला अस्पताल में एडमिट थे, वहां की जो हालत थी उसे बताते हुए डर जाते हैं। मगर Era की इतनी तारीफ करते हैं कि पूछिए मत। नफरतों के दौर में मोहब्बतों ऐसे पैगाम जिंदगी के रौशनदान खोलते हैं।आदमी गलत हो सकता है कौम नहीं। 🙏
कोरोना का मरीज को बिना डरे खाना तक खिलाने वाली नर्सों और 24 घंटे इलाज करने वाले डॉक्टरों के हम सब का सलाम पहुंचे। ईश्वर से कामना है आप और आपका परिवार सलामत रहे
#इति_श्री_इतिहास
सोवियत संघ के लेलिनग्राद में बालशोई बैले ग्रुप का डांस चल रहा था,मंच पर 'स्वैन लेक' की परफॉर्मेंस हो रही थी।सामने बैठा एक भारतीय मेहमान असहज हो रहा था,कह सकते हैं लजा रहा था।क्योंकि नर्तकियों की टांगे नग्न थी
छोटे कद और ऊंचे विचार का ये व्यक्ति कोई और नहीं 1/9
गृहमंत्री के तौर पर वहां मौजूद लालबहादुर शास्त्री थे। बगल में उनकी पत्नी जिन्हें अम्मा कहते थे, वो भी बगल में बैठी थीं तो लजाने की वजह दोगुनी हो गई थी।
इस पर मध्यांतर के वक्त उनके सूचना सलाहकार रहे कुलदीप नैय्यर ने पूछ लिया कि
नृत्य कैसा लगा ?
शास्त्री जी बोले-बड़ी शर्म आ रही..
शास्त्री जी घोर परंपरावादी थे और आडंबरी दुनिया से भी उनका वास्ता ना था। एक बार की बात है कि निर्माता-निर्देशक कमाल अमरोही ने अपनी फिल्म 'पाकीजा' की पार्टी में शास्त्री जी को बुलाया। ये वो दौर था जब कमाल अमरोही की पत्नी और हीरोइन मीना कुमारी प्रसिद्धि के उत्तुंग शिखर पर थीं...