लखनऊ में Era Medical college है, मीसम अली खान इसके कर्ताधर्ता हैं। हमारे RSS वाले अंकल यहीं से कोरोना को हराकर लौटे हैं। अंकल बताते हैं- अस्पताल अद्भुत है, यहां जो नर्सें हैं, शाहीन हों या शबनम या और कोई एकदम फ्लोरेंस नाइटिंगेल का रूप।मरीज को अपने हाथ से खाना तक खिलाती हैं। 1/2
करते हैं ऐसा सेवाभाव कहीं देखा ही नहीं। इससे पहले वो बलराम जिला अस्पताल में एडमिट थे, वहां की जो हालत थी उसे बताते हुए डर जाते हैं। मगर Era की इतनी तारीफ करते हैं कि पूछिए मत। नफरतों के दौर में मोहब्बतों ऐसे पैगाम जिंदगी के रौशनदान खोलते हैं।आदमी गलत हो सकता है कौम नहीं। 🙏
कोरोना का मरीज को बिना डरे खाना तक खिलाने वाली नर्सों और 24 घंटे इलाज करने वाले डॉक्टरों के हम सब का सलाम पहुंचे। ईश्वर से कामना है आप और आपका परिवार सलामत रहे
लोग यकीन नहीं करेंगे, खाने से लेकर नाश्ते तक का इंतजाम ऐसा होता है कि होटल फेल है। बहुत दुआ मिलेगी इनको।
लखनऊ के लोग अच्छे तरीके से जानते हैं
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#इति_श्री_इतिहास
सोवियत संघ के लेलिनग्राद में बालशोई बैले ग्रुप का डांस चल रहा था,मंच पर 'स्वैन लेक' की परफॉर्मेंस हो रही थी।सामने बैठा एक भारतीय मेहमान असहज हो रहा था,कह सकते हैं लजा रहा था।क्योंकि नर्तकियों की टांगे नग्न थी
छोटे कद और ऊंचे विचार का ये व्यक्ति कोई और नहीं 1/9
गृहमंत्री के तौर पर वहां मौजूद लालबहादुर शास्त्री थे। बगल में उनकी पत्नी जिन्हें अम्मा कहते थे, वो भी बगल में बैठी थीं तो लजाने की वजह दोगुनी हो गई थी।
इस पर मध्यांतर के वक्त उनके सूचना सलाहकार रहे कुलदीप नैय्यर ने पूछ लिया कि
नृत्य कैसा लगा ?
शास्त्री जी बोले-बड़ी शर्म आ रही..
शास्त्री जी घोर परंपरावादी थे और आडंबरी दुनिया से भी उनका वास्ता ना था। एक बार की बात है कि निर्माता-निर्देशक कमाल अमरोही ने अपनी फिल्म 'पाकीजा' की पार्टी में शास्त्री जी को बुलाया। ये वो दौर था जब कमाल अमरोही की पत्नी और हीरोइन मीना कुमारी प्रसिद्धि के उत्तुंग शिखर पर थीं...
आरोप लगाया जाता है कि पं. नेहरू ने जम्मू कश्मीर को जानबूझ कर अतिरिक्त छूट दी(370),जबकि सरदार पटेल इसके खिलाफ थे। तो आइए सच्चाई जान लेते हैं #इति_श्री_इतिहास
पहली बात तो लोगों को ये समझना चाहिए कि जब आज के गृहमंत्री 370 को निष्प्रभावी करने का प्रस्ताव संसद में पेश करते हैं 1/19
तो तब के गृहमंत्री पटेल 370 लागू करने से भला कैसे दूर रहें होंगे। कॉमन सेंस की बात है। अब इतिहास में आते हैं
बात तब कि है जब जम्मू कश्मीर का विलय भारत में हो चुका था, शेख अब्दुल्ला वहां के प्रीमीयर बन चुके थे, उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और जो कहा...
वो बहुत महत्वपूर्ण था ''हमने भारत के साथ काम करने और जीने-मरने का निश्चय किया है लेकिन भारत के साथ काम करने और जीने-मरने के इरादे के साथ-साथ कश्मीरियों की अपनी स्वायत्तता और अपनी आकांक्षाओं के अनुरूप शासन का स्वप्न भी उनके लिए उतना ही महत्वपूर्ण है'
और यही वो बिंदु था जहां से..
#1232KMs
ऐसा नहीं है कि हम इन्हें जानते नहीं,पहचानते नहीं, यहीं हमारे आस-पास ही तो रहते हैं, कहीं मजदूरी करते हैं, कहीं रिक्शा चलाते हैं, मां रोटी लाती है पत्थर तोड़कर, बच्चे खाते और सो जाते हैं जमीन बिछा,आसमान ओढ़कर।... 1/7
बड़े-बड़े शहरों में जिन ऊंची-ऊंची इमारतों को इन्होंने अपने पसीने के घोल से बनाया, उन्हीं इमारतों के किसी लिजलिजे तहखानों पड़े रहते हैं, बिल्कुल चुपचाप दीन-हीन-मलीन, कभी दिखते हैं, कभी हम देखना नहीं चाहते। मुफलिसी के हाथों हमेशा से मजबूर थे और जब
अचानक से लॉकडाउन लगा तो इनकी दो वक्त की रोटी पर भी कर्फ्यू लग गया।सरकार ने दर्जनों ऐलान किए लेकिन ये कहते राशनकार्ड तो गांव में है, खाता तो गांव में है। तो ऐसे डर बैठ गया कि शहरों कैसे रहेंगे, क्या खाएंगे और तब हमारे चमकते-दमकते शहरों में इन्हें भविष्य का अंधेरा ही अंधेरा
कॉमरेड ओगिलवी ने 3 साल की उम्र में तीन को छोड़कर सारे खिलौने तोड़ डाले।जो खिलौने उन्होंने रखे वो थे..ढोल,छोटी मशीनग और हेलिकॉप्टर।
6 वर्ष की आयु में वो बाल जासूसों के सरदार बन गए।9 की उम्र में अपने राष्ट्रदोही चाचा को उन्होंने पुलिस के हवाले कर दिया 1/7
17 साल की उम्र में कॉमरेड ओगिलवी सेक्स विरोधी लीग के जिला संयोजक बन गए। 19 की उम्र में उन्होंने ऐसा हथगोला बनाया जिसे शांति मंत्रालय (जो कि अशांति फैलाता था) ने देशहित में उपयोग के लिए स्वीकार कर लिया। जब उन हथगोलों का पहली बार प्रयोग किया तो उससे 31 यूरेशियन सैनिक मारे गए...
23साल की उम्र में वो जब हिंद महासागर के ऊपर हवाई जहाज से यात्रा कर रहे थे तब शत्रु के जेट विमानों ने उनका पीछा किया,उनके पास महत्वपूर्ण कागज थे,चुंकि कॉमरेड बचपन से बहादुर थे तो अपनी मशीन गन के साथ कागज जेब में रखकर समुद्र में कूद गए।23 साल की उम्र में वीरगति को प्राप्त हो गए..
जिज्ञासा हमेशा पढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
एक किताब मिल गई जिसमें 1971 में पीएम मोदी के जेल जाने का जिक्र है। मगर यहां जिक्र थोड़ा अलहदा है।
ऐंडी मरीनो लिखते हैं कि 1971 में RSS के लोग सेना में शामिल होने का अधिकार मांग रहे जबकि तब RSS पर बैन था...
लेकिन युद्ध के मोर्चे पर भेजने के बजाय सरकार ने हमें गिरफ्तार कर लिया। ऐसा ऐंडी मरीनो से पीएम मोदी कहते हैं।
अबतक जनसंघ के प्रदर्शन की बात आई थी, मगर ये नई और रोचक बात है।
मरीनो लिखते हैं कि उनकी कैद चंद दिनों की थी और नरेंद्र को जल्द ही रिहा कर दिया गया। जिससे यह संकेत साफ..
मिलता है कि यह घटना सिर्फ इसलिए हुई क्योंकि अधिकारी सड़कों को साफ करना चाहते थे। संघ आगे भी युद्ध शामिल होने की बात करता रहा है। मगर बिना प्रशिक्षण युद्ध में नहीं भेजा जाता।
कई और किताब के पन्ने ट्वीट कर रहे हैं जिसमें बांग्लादेश को मान्यता देने पर जनसंघ के प्रदर्शन में...
मैं ये नहीं कहता कि पीएम संघर्ष में जेल नहीं गए होंगे। मगर ये 1000% दावे के साथ कह सकता हूं कि आपने गुजराती में लिखी 'संघर्षमां गुजरात' नहीं पढ़ी होगी।
मगर मैंने 227 पन्नों का हिंदी अनुवाद दो बार पढ़ी।पूरी किताब 1975 की इमरजेंसी पर है,इसमें कहीं भी 1971 का जिक्र नहीं है
मैं ये दावे के साथ कह सकता हूं BJP के तमाम नेता और तमाम प्रबुद्ध लोग इस किताब को खोल के देखे तक नहीं होंगे। देखे होते तो ये इस किताब को 'टूल किट' की तरह ना इस्तेमाल करते। दुर्भाग्य से आप भी इस 'टूल किट' का शिकार हो।पढ़ता-लिखता रहता हूं, लजाने की जरूरत मुझे नहीं पड़ेगी। 🙏🙏
मेरी रीच कम है, फॉलोअर्स कम हैं,इसलिए कम लोग पढ़ेंगे।आपको ज्यादा पढ़ते हैं,आप जो कहेंगी WhatsApp University और Twitter University में सच माना जाएगा।फिर भी सच यही है कि पीएम मोदी ने 1971 का जिक्र कहीं भी नहीं किया है।
माफ करिएगा जवाब देने में देर हुई क्योंकि किताब ही पढ़ रहा था