ST वर्ग के एक टोले में लालू यादव पहुंचते हैं,पूरा टोला भागकर आता है,उसमें 30 साल की महिला।वो लालू के नजर आना चाहती थी, नजर पड़ी तो लालू बोले-सुखमनिया तुम यहां ?तोहरा बिहाय यहां हुआ है ?
साथ में खड़े शिवानंद तिवारी अचंभित कि इसे कैसे जानते हैं ?यही लालू का करिश्मा है वो जिससे...
एक बार मिल लें उसे भूलते नहीं। वो महिला पटना के वेटरनरी कॉलेज के पास किसी टोले में रहती थी। लालू तब से उसे जानते थे।आशीर्वाद दिया,उसकी बहन का नाम लेकर पूछा, वो कहां है ? हाल-चाल लिया। हाथ में 500 रुपए रखे और चल दिए। यही बातें लालू प्रसाद यादव को आम लोगों का नेता बनाती है।
आज भी बिहार में लालू माइनस राजनीति की कल्पना नहीं हो सकती। लालू ही वो नेता हैं जिन्होंने दबी-पिछड़ी जनता को जुबान दी।
खेत में हेलिकॉप्टर उतरवा गरीबों को उसपर घुमाना हो या किसी भी सामान्य आदमी पूछ लेना- खैनी है तुम्हारे पास। ये वो अंदाज है जो उन्हें औरों से अलग करता है।
#इति_श्री_इतिहास
''एक सपना अधूरा रह गया,एक गीत मौन हो गया और एक लौ बुझ गई।दुनिया को भूख और भय से मुक्त करने का सपना,गुलाब की खुशबू,गीता के ज्ञान से भरा गीत और रास्ता दिखाने वाली लौ। कुछ भी नहीं रहा''
पं.नेहरू को श्रद्धाजंलि देते हुए ये वाजपेयी जी के शब्द थे। आगे कहते हैं...
''यह एक परिवार,समाज या पार्टी का नुकसान भर नहीं है। भारत माता शोक में है क्योंकि उसका सबसे प्रिय राजकुमार सो गया। मानवता शोक में है क्योंकि उसे पूजने वाला चला गया।दुनिया के मंच का मुख्य कलाकार अपना आखिरी एक्ट पूरा करके चला गया।उनकी जगह कोई नहीं ले सकता''
मई 1964 में जब...
वाजपेयी संसद ये भाषण दे रहे थे हर सांसद की आंखें नम थीं। वो यहीं नहीं रुके ''लीडर चला गया है लेकिन उसे मानने वाले अभी हैं, सूर्यास्त हो गया है,लेकिन तारों की छाया में हम रास्ता ढूंढ लेंगे। ये इम्तहान की घड़ी है, लेकिन उनको असली श्रद्धांजलि भारत को मजबूत बनाकर दी जा सकती है''...
लखनऊ में Era Medical college है, मीसम अली खान इसके कर्ताधर्ता हैं। हमारे RSS वाले अंकल यहीं से कोरोना को हराकर लौटे हैं। अंकल बताते हैं- अस्पताल अद्भुत है, यहां जो नर्सें हैं, शाहीन हों या शबनम या और कोई एकदम फ्लोरेंस नाइटिंगेल का रूप।मरीज को अपने हाथ से खाना तक खिलाती हैं। 1/2
करते हैं ऐसा सेवाभाव कहीं देखा ही नहीं। इससे पहले वो बलराम जिला अस्पताल में एडमिट थे, वहां की जो हालत थी उसे बताते हुए डर जाते हैं। मगर Era की इतनी तारीफ करते हैं कि पूछिए मत। नफरतों के दौर में मोहब्बतों ऐसे पैगाम जिंदगी के रौशनदान खोलते हैं।आदमी गलत हो सकता है कौम नहीं। 🙏
कोरोना का मरीज को बिना डरे खाना तक खिलाने वाली नर्सों और 24 घंटे इलाज करने वाले डॉक्टरों के हम सब का सलाम पहुंचे। ईश्वर से कामना है आप और आपका परिवार सलामत रहे
#इति_श्री_इतिहास
सोवियत संघ के लेलिनग्राद में बालशोई बैले ग्रुप का डांस चल रहा था,मंच पर 'स्वैन लेक' की परफॉर्मेंस हो रही थी।सामने बैठा एक भारतीय मेहमान असहज हो रहा था,कह सकते हैं लजा रहा था।क्योंकि नर्तकियों की टांगे नग्न थी
छोटे कद और ऊंचे विचार का ये व्यक्ति कोई और नहीं 1/9
गृहमंत्री के तौर पर वहां मौजूद लालबहादुर शास्त्री थे। बगल में उनकी पत्नी जिन्हें अम्मा कहते थे, वो भी बगल में बैठी थीं तो लजाने की वजह दोगुनी हो गई थी।
इस पर मध्यांतर के वक्त उनके सूचना सलाहकार रहे कुलदीप नैय्यर ने पूछ लिया कि
नृत्य कैसा लगा ?
शास्त्री जी बोले-बड़ी शर्म आ रही..
शास्त्री जी घोर परंपरावादी थे और आडंबरी दुनिया से भी उनका वास्ता ना था। एक बार की बात है कि निर्माता-निर्देशक कमाल अमरोही ने अपनी फिल्म 'पाकीजा' की पार्टी में शास्त्री जी को बुलाया। ये वो दौर था जब कमाल अमरोही की पत्नी और हीरोइन मीना कुमारी प्रसिद्धि के उत्तुंग शिखर पर थीं...
आरोप लगाया जाता है कि पं. नेहरू ने जम्मू कश्मीर को जानबूझ कर अतिरिक्त छूट दी(370),जबकि सरदार पटेल इसके खिलाफ थे। तो आइए सच्चाई जान लेते हैं #इति_श्री_इतिहास
पहली बात तो लोगों को ये समझना चाहिए कि जब आज के गृहमंत्री 370 को निष्प्रभावी करने का प्रस्ताव संसद में पेश करते हैं 1/19
तो तब के गृहमंत्री पटेल 370 लागू करने से भला कैसे दूर रहें होंगे। कॉमन सेंस की बात है। अब इतिहास में आते हैं
बात तब कि है जब जम्मू कश्मीर का विलय भारत में हो चुका था, शेख अब्दुल्ला वहां के प्रीमीयर बन चुके थे, उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और जो कहा...
वो बहुत महत्वपूर्ण था ''हमने भारत के साथ काम करने और जीने-मरने का निश्चय किया है लेकिन भारत के साथ काम करने और जीने-मरने के इरादे के साथ-साथ कश्मीरियों की अपनी स्वायत्तता और अपनी आकांक्षाओं के अनुरूप शासन का स्वप्न भी उनके लिए उतना ही महत्वपूर्ण है'
और यही वो बिंदु था जहां से..
#1232KMs
ऐसा नहीं है कि हम इन्हें जानते नहीं,पहचानते नहीं, यहीं हमारे आस-पास ही तो रहते हैं, कहीं मजदूरी करते हैं, कहीं रिक्शा चलाते हैं, मां रोटी लाती है पत्थर तोड़कर, बच्चे खाते और सो जाते हैं जमीन बिछा,आसमान ओढ़कर।... 1/7
बड़े-बड़े शहरों में जिन ऊंची-ऊंची इमारतों को इन्होंने अपने पसीने के घोल से बनाया, उन्हीं इमारतों के किसी लिजलिजे तहखानों पड़े रहते हैं, बिल्कुल चुपचाप दीन-हीन-मलीन, कभी दिखते हैं, कभी हम देखना नहीं चाहते। मुफलिसी के हाथों हमेशा से मजबूर थे और जब
अचानक से लॉकडाउन लगा तो इनकी दो वक्त की रोटी पर भी कर्फ्यू लग गया।सरकार ने दर्जनों ऐलान किए लेकिन ये कहते राशनकार्ड तो गांव में है, खाता तो गांव में है। तो ऐसे डर बैठ गया कि शहरों कैसे रहेंगे, क्या खाएंगे और तब हमारे चमकते-दमकते शहरों में इन्हें भविष्य का अंधेरा ही अंधेरा