Sir, 1. The setup (including the infra like Parliament, Rashtrapati Bhawan etc.) on which your govt is running was actually created by the British. So as per you logic we should invite the British to take over.
2. The residential territory on which you live today, actually belong to the Feudal Princes. Lets invite them to take over. 3. The land we live on, actually belong to the animals and forest. So you should immediately vacate and shift to a cave.
4. Since you are talking about DFI, can you please tell why exactly you are privatising IDBI which had the similar purpose. Why couldn't you restructure IDBI which could've been much easier?
5. Since you talked about YES bank failure, what steps did your govt take to avoid such frauds in future since you are so pro-privatization? Did you fix any accountability for the regulators like RBI? One after another pvt bank failed due frauds vanishing away lifetime savings.
6. Since you believe that the govt should have minimum presence in the business, how do you plan to cleanup the mess in the Cooperative sector, which are corruption heaven for our politicians.
7. Since you are favoring the private ownership of the businesses, please enlighten us about the steps you took to punish those whose name came up in Panama papers and Pandora papers? You know that that's the public money they stole and laundered in tax heavens.
8. If you believe that it's the private sector which should lead the growth of the country, then why the tax burden shifted from the rich corporates to the poor masses? How do you plan to pat the income deficit created due to reduction of the corporate tax?
9. If you are so gaga about the private sector, how do you plan to bring back the 9 lakh crore eaten away by the same corporates in form of NPA and write offs, which again actually belong to the lifetime savings of the masses?
10. Since we have seen corporates like DHFL, HDIL defrauding public of their hard-earned income, what plans do you have to recover the money, punish the culprits, and make sure this doesn't repeat in future? Have you punished anyone?
11. What the hell is actually happening at NCLT? What do you mean with haircuts like 90%.
12. With all above this happening, how do you expect public to trust the private sector with shady regulations, poorly implemented laws, and things like electoral bond?
13. Final question. Why should we not call you and your government a puppet in the hands of greedy capitalists?
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बेरोजगारी के साइड इफ़ेक्ट 1. अपराध बढ़ता है 2. नशे की प्रवृत्ति बढ़ती है 3. घरेलू हिंसा बढ़ती है 4. खाली बैठा आदमी जातिवाद और सम्प्रदायिकता के जाल में फंस जाता है 5. आबादी बढ़ती है (ताकि घर में कमाने वाले लोग बढ़ सकें) 6. लोगों की औसत आय कम होती है
7. मौजूदा वर्कफोर्स पर अत्याचार बढ़ता है 8. खेती की जमीन के और छोटे टुकड़े होते हैं 9. शिक्षा पर से लोगों का विश्वास खत्म होता है 10. विदेशी सैलानियों के साथ बदतमीजी बढ़ती है जिससे देश की इमेज खराब होती है 11. आतंकवाद, इंसरजेंसी, मिलिटेंसी बढ़ती है।
12. देश के बहुमूल्य संसाधन बर्बाद होते हैं (बेरोजगार देश के लिए NPA जैसा होता है) 13. गांवों से शहरों की ओर पलायन बढ़ता है। 14. देश के टैक्सपेयर और सरकारी खजाने पर दबाव बढ़ता है। 15. लैंगिक असमानता बढ़ती है 16. जनता में असुरक्षा की भावना बढ़ती है 17. जनता में असंतोष बढ़ता है
During Emergency period, Shri R K Talwar was the Chairman of SBI. He received a loan proposal which was not viable. Contemporary PM Mrs. Indira Gandhi called the Chairman and asked him to sanction the big budget loan.
Being a man of integrity, Shri Talwar refused. He was removed immediately, a puppet was posted as SBI Chairman who willingly obeyed the dictator. Now, if that loan goes bad, whose fault is it? Will you still blame the banker?
Apparently, in every sector and organization you can find people who will do anything for a favor. You cannot expect everyone in the banking sector to have full integrity. In a democracy, everyone has a boss. Even for the top most banker, there is a political boss.
आधुनिकता कहती है कि जैसे जैसे समाज तरक्की करता जाता है, काम अधिक जटिल होता जाता है, जिसके लिए विशेषज्ञता अपरिहार्य हो जाती है। किसी भी क्षेत्र में जितनी अधिक विशेज्ञता प्राप्त कर लेते हैं, उतने ही अधिक सफल समझे जाते हैं।
जैसे कि बैंक का ही उदाहरण ले लेते हैं। एक बैंकर को ब्रांच मैनेजर बनाया और उसने बहुत अच्छी ब्रांच चलायी तो बहुत अधिक सम्भावना है कि वो अगले कई वर्षों तक BM ही बनाया जायेगा। क्यूंकि उसको मैनेजरी में महारथ/विशेज्ञता हासिल हो चुकी है।
उसके ब्रांच मैनेजर के अनुभव को जाया थोड़े ही जाने देगी बैंक। अब इससे कोई फरक नहीं पड़ता कि वो आदमी क्या चाहता है। वो एक सर्टिफाइड एफ्फिसिएंट BM बन चुका है। बड़े सन्दर्भ में हम इसे कैरियर प्रोग्रेशन कह सकते हैं।
वैसे ताइजी तो कुछ और बोल रही थी। ऑयल बॉन्ड वाला झूठ पकड़ा गया तो आ गए वही पुराना राग अलापने पर। कुणाल कामरा मुझे पसंद नहीं लेकिन ये लोग हर बार उसकी बात को सच साबित कर देते हैं। "वहां सियाचिन में सैनिक मर रहे हैं तुम इतना भी नहीं कर सकते?"
"वहां LOC पर सैनिक खड़े हैं, तुम भूखे नहीं रह सकते?" " वहां सैनिक...तुम...नहीं कर सकते"? कब तक चलाओगे ये एक ही गाना? 2014 से पहले सैनिक नहीं थे? कपड़े नहीं पहनते थे? बंदूक की जगह लाठी लेकर घूमते थे? 2014 से पहले वायुसेना हैरी पॉटर की झाड़ू लेकर उड़ती थी?
नौसेना के पास तो पनडुब्बियां तो अभी भी पूरी नहीं हैं। तीन एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत है नौसेना को। जरा बताइए तो हमारी मौजूदा सरकार ने कितने नए एयरक्राफ्ट कैरियर का ऑर्डर दिया? (विक्रांत का नाम मत लेना क्योंकि इसका ऑर्डर बहुत पहले हुआ था, अभी केवल कमिशन हुआ है)
पेट्रोल डीजल की कीमतें ऐसे ही नहीं बढ़ रही हैं। सरकार लाख बहाना बनाये कि ऑयल बांड का ब्याज चुका रहे हैं, अंतर्राष्ट्रीय कीमतें बढ़ रही हैं, या घोड़ी ने गधे का बच्चा दिया है। पर थोड़ी थोड़ी सच्चाई सभी को पता है। मुझे लगता है कि सरकार ये कीमतें जान बूझकर बढ़ा रही है ताकि:
1. ताकि लोग त्राहि त्राहि कर उठें। फिर सरकार आकर बताएगी कि तेल इसलिए महंगा है क्यूंकि ये GST के अंतर्गत नहीं आता। और ईंधन को GST में लाने के लिए राज्य सरकारें मान नहीं रहीं। मतलब ठीकरा राज्य सरकारों के सर फोड़ा जाए, जिससे राज्य सरकारों से तेल पर टैक्स लगाने का अधिकार छीना जा सके।
2. देश में सबसे बड़ी रिफाइनरी आज रिलायंस के पास है। बाकी आप समझदार हैं। 3. सरकार की मेहरबानी से आज सारे नए ऑयल और गैस एक्सप्लोरेशन फील्ड प्राइवेट के पास ही जा रहे हैं। सरकार इस बात का ख़ास ध्यान रख रही है कि PSUs को इससे जितना हो सके दूर ही रखा जाए।
मीडिया के पास जाओगे तो आपको बताया जाएगा कि कैसे ये पैसा पाकिस्तान से गिलगित बाल्टिस्तान जीतने में लगाया जाएगा।
विपक्ष के पास जाओगे तो वो सरकार के खिलाफ एक ट्वीट कर देंगे फिर बैंकॉक छुट्टी मनाने चले जायेंगे।
सरकारी अधिकारियों के पास जाओगे तो सेब की कीमत सुनकर वो आश्चर्य में पड़ जाएंगे क्योंकि उनको सेब खरीदने ही नहीं पड़ते, उनको तो कंपनी पहले ही फ्री में दे रही है।