During Emergency period, Shri R K Talwar was the Chairman of SBI. He received a loan proposal which was not viable. Contemporary PM Mrs. Indira Gandhi called the Chairman and asked him to sanction the big budget loan.
Being a man of integrity, Shri Talwar refused. He was removed immediately, a puppet was posted as SBI Chairman who willingly obeyed the dictator. Now, if that loan goes bad, whose fault is it? Will you still blame the banker?
Apparently, in every sector and organization you can find people who will do anything for a favor. You cannot expect everyone in the banking sector to have full integrity. In a democracy, everyone has a boss. Even for the top most banker, there is a political boss.
If that political boss decides to do a fraud, there is no way for a banker to stop it.
In the case of ADM Jabalpur vs Shivkant Shukla (1976) in the Hon'ble SC, a Constitutional Bench of five top most SC judges was set up to decide fate of Art 21 (Right to Life and Liberty).
Among the five judges, only Justice H R Khanna (who was next in line to become CJI after the incumbent Justice A N Ray), came up with the decision that Right to Life and Liberty cannot be curtailed even during the Emergency, while the other 4 sided with the government.
The inevitable happened and Justice HR Khanna was superseded by his Junior Justice H Beg. Now, will you blame the entire judiciary for this faulty judgement? Who is to be blamed here?
You do understand the fact that, 1. it's the big frauds which affect the health of the bank financial system. 2. Big loans are sanctioned only by the top most officers in the bank. 3. The top most appointments in the banks are decided by the government.
Now, if the government decides that a fraud is to take place, is there anyone in the bank who can stop the government?
If you think that it's still the fault of the bank and not the government, you are mistaken sir.
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बेरोजगारी के साइड इफ़ेक्ट 1. अपराध बढ़ता है 2. नशे की प्रवृत्ति बढ़ती है 3. घरेलू हिंसा बढ़ती है 4. खाली बैठा आदमी जातिवाद और सम्प्रदायिकता के जाल में फंस जाता है 5. आबादी बढ़ती है (ताकि घर में कमाने वाले लोग बढ़ सकें) 6. लोगों की औसत आय कम होती है
7. मौजूदा वर्कफोर्स पर अत्याचार बढ़ता है 8. खेती की जमीन के और छोटे टुकड़े होते हैं 9. शिक्षा पर से लोगों का विश्वास खत्म होता है 10. विदेशी सैलानियों के साथ बदतमीजी बढ़ती है जिससे देश की इमेज खराब होती है 11. आतंकवाद, इंसरजेंसी, मिलिटेंसी बढ़ती है।
12. देश के बहुमूल्य संसाधन बर्बाद होते हैं (बेरोजगार देश के लिए NPA जैसा होता है) 13. गांवों से शहरों की ओर पलायन बढ़ता है। 14. देश के टैक्सपेयर और सरकारी खजाने पर दबाव बढ़ता है। 15. लैंगिक असमानता बढ़ती है 16. जनता में असुरक्षा की भावना बढ़ती है 17. जनता में असंतोष बढ़ता है
Sir, 1. The setup (including the infra like Parliament, Rashtrapati Bhawan etc.) on which your govt is running was actually created by the British. So as per you logic we should invite the British to take over.
2. The residential territory on which you live today, actually belong to the Feudal Princes. Lets invite them to take over. 3. The land we live on, actually belong to the animals and forest. So you should immediately vacate and shift to a cave.
4. Since you are talking about DFI, can you please tell why exactly you are privatising IDBI which had the similar purpose. Why couldn't you restructure IDBI which could've been much easier?
आधुनिकता कहती है कि जैसे जैसे समाज तरक्की करता जाता है, काम अधिक जटिल होता जाता है, जिसके लिए विशेषज्ञता अपरिहार्य हो जाती है। किसी भी क्षेत्र में जितनी अधिक विशेज्ञता प्राप्त कर लेते हैं, उतने ही अधिक सफल समझे जाते हैं।
जैसे कि बैंक का ही उदाहरण ले लेते हैं। एक बैंकर को ब्रांच मैनेजर बनाया और उसने बहुत अच्छी ब्रांच चलायी तो बहुत अधिक सम्भावना है कि वो अगले कई वर्षों तक BM ही बनाया जायेगा। क्यूंकि उसको मैनेजरी में महारथ/विशेज्ञता हासिल हो चुकी है।
उसके ब्रांच मैनेजर के अनुभव को जाया थोड़े ही जाने देगी बैंक। अब इससे कोई फरक नहीं पड़ता कि वो आदमी क्या चाहता है। वो एक सर्टिफाइड एफ्फिसिएंट BM बन चुका है। बड़े सन्दर्भ में हम इसे कैरियर प्रोग्रेशन कह सकते हैं।
वैसे ताइजी तो कुछ और बोल रही थी। ऑयल बॉन्ड वाला झूठ पकड़ा गया तो आ गए वही पुराना राग अलापने पर। कुणाल कामरा मुझे पसंद नहीं लेकिन ये लोग हर बार उसकी बात को सच साबित कर देते हैं। "वहां सियाचिन में सैनिक मर रहे हैं तुम इतना भी नहीं कर सकते?"
"वहां LOC पर सैनिक खड़े हैं, तुम भूखे नहीं रह सकते?" " वहां सैनिक...तुम...नहीं कर सकते"? कब तक चलाओगे ये एक ही गाना? 2014 से पहले सैनिक नहीं थे? कपड़े नहीं पहनते थे? बंदूक की जगह लाठी लेकर घूमते थे? 2014 से पहले वायुसेना हैरी पॉटर की झाड़ू लेकर उड़ती थी?
नौसेना के पास तो पनडुब्बियां तो अभी भी पूरी नहीं हैं। तीन एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत है नौसेना को। जरा बताइए तो हमारी मौजूदा सरकार ने कितने नए एयरक्राफ्ट कैरियर का ऑर्डर दिया? (विक्रांत का नाम मत लेना क्योंकि इसका ऑर्डर बहुत पहले हुआ था, अभी केवल कमिशन हुआ है)
पेट्रोल डीजल की कीमतें ऐसे ही नहीं बढ़ रही हैं। सरकार लाख बहाना बनाये कि ऑयल बांड का ब्याज चुका रहे हैं, अंतर्राष्ट्रीय कीमतें बढ़ रही हैं, या घोड़ी ने गधे का बच्चा दिया है। पर थोड़ी थोड़ी सच्चाई सभी को पता है। मुझे लगता है कि सरकार ये कीमतें जान बूझकर बढ़ा रही है ताकि:
1. ताकि लोग त्राहि त्राहि कर उठें। फिर सरकार आकर बताएगी कि तेल इसलिए महंगा है क्यूंकि ये GST के अंतर्गत नहीं आता। और ईंधन को GST में लाने के लिए राज्य सरकारें मान नहीं रहीं। मतलब ठीकरा राज्य सरकारों के सर फोड़ा जाए, जिससे राज्य सरकारों से तेल पर टैक्स लगाने का अधिकार छीना जा सके।
2. देश में सबसे बड़ी रिफाइनरी आज रिलायंस के पास है। बाकी आप समझदार हैं। 3. सरकार की मेहरबानी से आज सारे नए ऑयल और गैस एक्सप्लोरेशन फील्ड प्राइवेट के पास ही जा रहे हैं। सरकार इस बात का ख़ास ध्यान रख रही है कि PSUs को इससे जितना हो सके दूर ही रखा जाए।
मीडिया के पास जाओगे तो आपको बताया जाएगा कि कैसे ये पैसा पाकिस्तान से गिलगित बाल्टिस्तान जीतने में लगाया जाएगा।
विपक्ष के पास जाओगे तो वो सरकार के खिलाफ एक ट्वीट कर देंगे फिर बैंकॉक छुट्टी मनाने चले जायेंगे।
सरकारी अधिकारियों के पास जाओगे तो सेब की कीमत सुनकर वो आश्चर्य में पड़ जाएंगे क्योंकि उनको सेब खरीदने ही नहीं पड़ते, उनको तो कंपनी पहले ही फ्री में दे रही है।