राजस्थान में दलित की मॉब लिंचिंग पर भाजपा की चुप्पी को राष्ट्रवादियों ने खूब कोसा।
लखीमपुर खीरी में वाहन चालक समेत चार लोगों की लिंचिंग पर भी शीर्ष नेतृत्व को खूब कोसा गया। मामला चाहे किसान के नाम पर खालिस्तानियों का लाल किला से लखीमपुर तक का हुड़दंग का हो।
चाहे शाहीन बाग या पालघर का। शीर्ष नेतृत्व को अपने ही धड़ा के लोग इतना कोसते हैं मानो मोदी जी मनमोहन सिंह जी से भी कम बोलते हों।
"अपने-अपने मानवाधिकार" की बात आज मोदी जी ने कही। राजस्थान में दलित लिंचिंग का मामला मीडिया में जगह पाया। बस एक दिन में दो चार डिबेट एपिसोड हुए।
बात खत्म। राष्ट्रवादी धरा अपने प्रधानमंत्री से क्या सिर्फ एक दिन वाला परिणाम चाह रहा है? हम शासन के तरीके को कांग्रेसी शासन के तरीके से क्यों तुलना करना चाहते हैं? क्यों हम चाहते हैं कि केंद्र सरकार चुनाव आयोग द्वारा घोषित लोकतांत्रिक सरकार को इंदिरा गांधी के
जैसे खारिज करने का कदम उठाए? हम कभी बंगाल की सरकार को खारिज करने की मांग मोदी से करते हैं, तो कभी महाराष्ट्र की।
इंदिरा गांधी के समय भारत में राजनीति की आबोहवा कैसी थी? हमें सोचना चाहिए क्या आज किसी भी तरह से संभव है कि देश भर की मीडिया को बंद कर रातों-रात इमरजेंसी लगा दी जाए।
बिल्कुल नहीं। आज रेडियो युग नहीं है। आज का युग टेलीविजन का युग है। सोशल मीडिया का युग है। रेडियो के युग में हम केवल सूचनाएं ग्रहण करते थे। लेकिन आज के युग में हम में से हर एक सूचनाओं का प्रसार करने की योग्यता रखता है।
दूसरी बात कि उसके बाद हस्र क्या हुआ इंदिरा गांधी का?
कितना दिन राजनीति में रहीं? आज क्या स्थिति है कांग्रेस की? क्या हमें भारत में केवल एक दो शासनकाल को ध्यान में रखकर नीतियां तय करनी चाहिए? अगर राष्ट्रवाद की सत्ता को लंबे समय तक शासन में रहना है तो राजनीति अपने तरीके से करना होगा। क्योंकि हम राष्ट्र के पक्ष की धड़ा हैं।
तो हममें नैतिकता की भी आवश्यकता होगी। समावेशी नीतियां भी चाहिए। दूरगामी और सशक्त एक्शन भी।
एक झटके में 370 हटा देने वाली सरकार से हम राजस्थान, लखीमपुर और पालघर की घटनाओं पर प्रधानमंत्री का बयान चाहते हैं। रिटोरिकल पॉलिटिक्स से राष्ट्रवाद की सत्ता लंबी नहीं चलने वाली।
एक्शन वाली पॉलिटिक्स चाहिए। हमारी सरकार पीओके वापसी की तैयारी कर रही है। ऐसे में प्रधानमंत्री के लिए 10 मिनट का वक्त भी कितना मायने रखता होगा! हम उस दस मिनट को एक छोटी सी घटना पर प्रधानमंत्री के बयान के लिए खर्च कर देना चाहते हैं।
साभार
विशाल झा @Sabhapa30724463@badal_saraswat
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🙏 जय श्री राम 🙏
*अंधभक्ति किसे कहते हैं, चलो आज समझते हैं*🤔 1. कांग्रेस की स्थापना अंग्रेजो ने की,
ये "स्थानीय राष्ट्रिय पार्टी" नहीं अंग्रेजों की पार्टी थी, ("अंधभक्ति") 2. नेहरू ने चंद्रशेखर आजाद की खबर अंग्रेजों को देकर उन्हें मरवा दिया.... ("अंधभक्ति")
3. लाल बहादुर शास्त्री को मरवाया... फिर भी ("अंधभक्ति") 4. 1923 में नाभा रियासत में गैर कानूनी ढंग से प्रवेश करने पर अंग्रेजों ने नेहरू को 2 साल की सजा दी,
तब नेहरू ने माफीनामा देकर दो हफ्ते में ही अपनी सजा माफ करवा ली,
( "अंधभक्ति" ) 5. नेहरू ने कश्मीर, लद्दाख, अरुणाचल का
हिस्सा चीन, पाकिस्तान को दे दिया और खुद को भारत रत्न दे दिया..
है ना ("अंधभक्ति") 5. नेहरू ने नेपाल को भारत में मिलाने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था,
फिर भी "अंधभक्ति" 6. UN में स्थाई सदस्यता के लिए मना किया फिर वही भीख मांगने पहुंचा, कश्मीर का मुद्दा
गृहमंत्री अमित शाह जी के आदेशानुसार गृह मंत्रालय एक एडवाइजरी जारी करके पंजाब के भारत पाकिस्तान सीमा से 50 किलोमीटर दायरे तक एरिया को बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स BSF के हवाले कर दिया है !! अब BSF बिना राज्य कानून के किसी भी तरह का कार्यवाई कर सकती है !!
अब BSF बिना रोकटोक के आतंकवादीयों की तलाशी, हथियार सप्लायर, नशे के तस्कर की तलाश और घरों की तलाशी 50km के दायरे में कर सकते हैं !! अब बहुत सारे शहर इसकी जद में आ जाएंगे.
अब धमाकेदार बात यह है कि, पंजाब के बाद अब पश्चिम बंगाल ओर असम के लिए भी केन्द्रीय गृह मंत्रालय एडवाइजरी
जारी किया है !! अब इसको लेकर कुछ दलों में हड़कंप मच गया है. अब पंजाब की तरह BSF इन दो राज्यों में आतंकी गतिविधियां, हथियार सप्लायर, नशे के तस्कर की तलाश और घरों की तलाशी 50km के दायरे में कर सकते हैं. असम तो भाजपा शासित प्रदेश है, इसमें राज्य सरकार की तरफ से कोई दिक्कत नहीं है !!
भारत को रोज किसी न किसी षड्यंत्र का शिकार बनाया जा रहा है। अब विदेश में यह संकेत भेजा जा रहा है कि अगर आपने भारत में प्लांट लगाया तो आपको भयंकर बिजली की शॉर्टेज का सामना करना पड़ेगा।
यह तो आप सबको मालूम ही होगा कि चीन में कोयले की शॉर्टेज के चलते भयानक तौर पर बिजली की कमी है।
बस अपने देश के लोगों का इस ओर से ध्यान हटाने के लिए चीन ने यह खेल भारत में भी रच दिया। कहा जा रहा है कि पहले मीडिया खरीदा गया जिन्होंने थर्मल प्लांट्स पर भारी कोयले की कमी की खबरें व्यापक तौर पर फैलाईं।
फिर उन राज्यों के इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड को खरीदा गया जहां विपक्ष की सरकारें राज कर रही हैं। उनके द्वारा कोयले की परचेस में देरी करवाकर कोयले की सप्लाई बाधित की गई और आर्टिफिशल शॉर्टेज क्रिएट की गई।
पर सरकार ने कल बयान जारी कर कह दिया है की कोयले के पर्याप्त भंडार हैं
*कृषि बिल वापस हो जाना या लागू रहना। हार या जीत ।*
*कृपया पुरा पढ़ें ।-*
*ये किसान बिल किसी के हार जीत का सवाल नहीं है, मै गत कई सालों से इनकमटैक्स दे रहा हूँ, लेकिन न तो इंदिरागांधी, राजीवगांधी, देवेगौड़ा, वाजपेई, मनमोहन सिंह ने कभी मुझसे पूछा :
मैं टैक्स के रेट तय कर रहा हूँ, बता तुझे क्या चाहिए ! मैं ही क्यों, करोड़ों लोग टैक्स देते हैं लेकिन क्या सरकारें उनसे पूछकर टैक्स दर तय करती हैं ? आज हमारे देश में करोड़ों लोग कार, आटो , ट्रक वगैरा चलाते हैं, क्या RTO और पुलिस द्वारा लगाए जाने वाले कायदे और दंड इन सब से पूछकर
बनाए गए हैं ?*
*आरक्षण का Bill संसद मे नेहरू सरकार ने सामान्य वर्ग से पूछकर बनाया था?, अगर नहीं तो वो भी वापिस ले सरकार।
कानूनी तौर पर देखे तो कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है और हर एक कानुन में समय समय पर संशोधन किया जाता है,हमारे संविधान में भी समय-समय पर संशोधन हुए हैं.
हमें जिताओ !
स्कूटी देंगे
साइकिल देंगे
बिजली पानी फ्री देंगे
कर्जे माफ करेंगे
राशन फ्री देंगे
टीवी और सिलाई मशीन देंगे
ये भी देंगे वो भी देंगे
सब मुफ्त देंगे
छोड़ो सबको बस हमें जिताओ
कानून और संविधान कहता है !
रिश्वत लेना और देना अपराध
भ्रष्ट आचरण अपराध
प्रलोभन देना अपराध
मतदाता को रिझाना अपराध
चुनाव सीमा से अधिक धन का प्रयोग अपराध
चुनाव में कैश देना अपराध
चुनावी गिफ्ट अपराध
कौन ले संज्ञान !
चुनाव आयोग
राज्य या केंद्र सरकार
हाईकोर्ट सुप्रीमकोर्ट
डीएम और एसएसपी
राज्यों में चुनाव !
कर्मचारियों को बोनस शुरू
रुके बकाया की देनदारी शुरू
मंहगाई भत्ते की अतिरिक्त किश्त
कर्मचारी कल्याण योजनाएं
छात्रों को छात्रवृत्ति
बिजली बिल माफी शुरू
कृषि ऋण माफी शुरू
बढ़ी दरें घटना शुरू
वेतन वृद्धि और प्रमोशन
आजादी के 75 साल बाद की तस्वीर । बेशक कोई भी पार्टी हो , वादों की भरमार । जातीय संगठनों के पौबारह ।
हरी "कलगी" वाला "कबूतर" सभी जगह उड़ रहा है; उस कबूतर से ध्यान नहीं हटना चाहिए।
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आढ़तियों के फर्जी आंदोलन को सरकार ने इतनी छूट क्यों दी हुई है?
आवश्यकता है कि इस विषय को एक अन्य एंगल से भी देखा जाए।
हम सभी ने जादूगरों का खेल देखा है। कई प्रसिद्ध जादूगर कार्यक्रम के बीच में एकाएक खाली हैट से या किसी खाली टोकरी से एक सफ़ेद कबूतर - कबूतर सदैव सफ़ेद रंग का होता है - निकालकर हाल में उड़ा देते है।
मुझे सदैव इस प्रश्न ने परेशान किया है कि इतने प्रसिद्ध जादूगरों को इतना पिटा-पिटाया खेल दिखाने की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
सभी दर्शक चौक कर, कुछ अचंभित, कुछ मंत्रमुग्ध होकर उस कबूतर की हाल के पीछे तक की उड़ान को गर्दन मोड़कर देखते है। फिर प्रसन्न होकर ताली बजाते है।