निहंग सिखों का उदय दसवें गुरु गोविंद सिंह के समय में हुआ।
सिखों के नवें गुरु तेग बहादुर का औरंगजेब ने शिरोच्छेद करवा दिया था।उनका शव पहरे में रखा गया था। किन्तु सिखों का एक समुदाय उनका शीश लेकर भागा और करनाल होते हुए आनंदपुर साहिब पहुंच गया।

१/n Image
जहां शिरोच्छेद किया गया, वह जामा मस्जिद, दिल्ली के पार्श्व में ही है, लाल किले के समीप। आजकल वहां शीशगंज गुरुद्वारा है। धड़ चुराकर एक प्यारा, लखी शाह वंजारा भागा और अपने घर में उनका संस्कार किया। उसने अपना घर जला डाला। जहां उनका धड़ जलाया गया, वहां रकाबगंज गुरुद्वारा है।

२/n Image
गुरु तेग बहादुर को डराने के लिए पहले उनके सामने भाई मतिदास को जिंदा आरे से चीर दिया गया, उसके बाद भाई दयाला को उबलते पानी में फेंक कर मार डाला और आखिर में भाई सतीदास को ज़िंदा जला दिया गया।

३/n Image
यह सब बर्बर तरीके डर, दहशत और आतंक का वातावरण निर्मित करने के लिए किया गया। औरंगजेब ने सिखों पर बहुत जुल्म किए थे। अंग भंग, सार्वजनिक रूप से हत्या, हत्या के ऐसे तरीके जिसमें आत्मा कांप जाए, वह प्रयुक्त करता रहता था। सबके सामने उसने मतिदास को आरे से चीर दिया था।

४/n Image
उबलते पानी में किसी को डाल दिया जाए तो उसकी क्या दशा होगी, यह अनुमान से परे है किंतु मुगल शासक इसे एक प्रचलित तरीके की तरह प्रयुक्त करते थे। इससे उनकी क्रूरता और बर्बरता तो दिखती ही थी, अन्य समुदायों के प्रति उनका दृष्टिकोण भी झलकता था। सतीदास को जिंदा जला दिया गया था।

५/n Image
मुगलों के ऐसे अत्याचारों से भी बिना आतंकित हुए, अडिग रहकर सिखों ने अपना संघर्ष जारी रखा। दसवें गुरु गोविंद सिंह ने सशस्त्र प्रतिरोध किया। बलिदान किए। निहंगों का गठन किया। यह निहंग दुर्बल, असहाय और कमजोरों की रक्षा के लिए हमेशा कृपाण धारण करते, सेवा के लिए तत्पर रहते।

६/n
बीते दिनों में उनका उद्देश्य कितना गर्हित और निम्न स्तर तक पहुंच गया है, इसका अनुमान किया जा सकता है।
जिस सिख संप्रदाय का प्रवर्तन गुरु नानक ने ऊंच नीच का भेदभाव हटाने के लिए किया था, उसके निहंग एक निहत्थे, कमज़ोर और दलित का अंग भंग कर रहे थे। उसे तड़पते हुए देख रहे थे।

७/n
उसका वीडियो बना रहे थे। उसे प्रताड़ित कर रहे थे। वह कह रहा था कि मार दो किंतु उसे तड़पते हुए देख रहे थे।
यह सामान्य लिंचिंग नहीं है। अबोध, अज्ञानी, लुच्चे जब लिंचिंग करते हैं तो वह उदंडता अधिक होती है, किंतु ऐसे रक्षक लोग करें! तो डर लगता है। यह समूचा समुदाय भटक गया है।

८/n
सरकार की जैसी भूमिका है, नहीं लगता कि वह इसे गंभीर विषय मानती है। उसके लिए यह एक स्ट्रोक है। संभवतः जन समुदाय आंदोलनकारियों के प्रति घृणा से भर जाए। उनका प्रभाव क्षीण हो। किसान, आंदोलनकारी और उसकी समस्या गौण हो जाए। आंदोलनकारी अन्य कारणों से कुख्यात हो, अप्रासंगिक हो जाएं।

९/n
इसलिए सरकारी भूमिकाओं को यदि दृष्टि से ओझल रखा जाए और निहंगों पर ध्यान केंद्रित रखें तो समझ में आता है कि यह समुदाय पथभ्रष्ट हो गया है। इसे सिख समुदाय, गुरु नानक और गुरु गोविंद सिंह से कोई सरोकार नहीं है। इसने अपना इस्लामीकरण कर लिया है और बर्बरता के सभी पाठ सीख लिए हैं।

१०/n
यह एक दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष है। बर्बरता की ओर लौटना, प्रतिगामी होना किसी भी समाज के लिए सबसे दु:खद संकेत है। सेवा भाव से प्रताड़ना में सुख पाने (सैडिस्ट होने) तक की यात्रा निहंगों ने अपना ली है। इस किसान आंदोलन ने इस तथ्य को भी उद्घाटित कर दिया है।

११/ समाप्त।
#SinghuBorderHorror

• • •

Missing some Tweet in this thread? You can try to force a refresh
 

Keep Current with डॉ रमाकान्त राय Dr Rama Kant Roy

डॉ रमाकान्त राय Dr Rama Kant Roy Profile picture

Stay in touch and get notified when new unrolls are available from this author!

Read all threads

This Thread may be Removed Anytime!

PDF

Twitter may remove this content at anytime! Save it as PDF for later use!

Try unrolling a thread yourself!

how to unroll video
  1. Follow @ThreadReaderApp to mention us!

  2. From a Twitter thread mention us with a keyword "unroll"
@threadreaderapp unroll

Practice here first or read more on our help page!

More from @RamaKRoy

11 Jan
#एक_धागा

कानपुर के "आलम बेग" की खोपड़ी के साथ एक चिट्ठी भी दफ़्न थी। उस चिट्ठी में यह बात दर्ज है कि 32 वर्ष के न थकने वाले नौजवान को रानी विक्टोरिया के समक्ष सियालकोट में ब्रिटिश कमिश्नर हेनरी कूपर के आदेश पर तोप से उड़ा दिया गया था।

१/५ Image
आलम बेग 1857 की क्रांति में 46वीं रेजिमेंट बंगाल नार्थ इन्फैंट्री बटालियन का नेतृत्व कर रहे थे। रावी तट पर पकड़े गए और रानी के समक्ष तोप से उड़ा दिए गए। उनका सिर 1858 में इंग्लैण्ड ले जाया गया और दफ़ना दिया गया। एक ने यह सब ब्यौरा एक पत्र में करके खोपड़ी के भीतर रख दिया।

२/५
वह खोपड़ी दो साल पहले मिली थी। (अमर उजाला की रिपोर्ट)
यह अंग्रेज इतने हरामी थे कि इन्होंने भारतीयों का दमन तो किया ही, इतिहास से भारी छेड़छाड़ भी की। इन्होंने इतिहास का निर्माण अपने मन मुताबिक किया। यह वह समय था जब उन्हें पुरातत्व और खुदाई का महत्त्व पता चल गया था।

३/५
Read 5 tweets
8 Mar 21
नंदीग्राम प्रकरण में आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर तापसी मल्लिक पर बातें।

#नंदीग्राम से पहले 16 दिसम्बर, 2006 को कोलकाता के निकट सिंगूर में तापसी मल्लिक का पहले बलात्कार हुआ और उसके बाद उनकी हत्या हुई। उनका शव जली हुई अवस्था में खेत में मिला।

तापसी मल्लिक हत्या और बलात्कार केस में कॉमरेड सुह्रद दत्त और देबू मलिक को दोषी पाया गया। यह दोनों कम्युनिस्ट पार्टी के नेता थे। सीपीएम ने सिंगुर में विपक्षी पार्टियों के विरोध को कुचलने की ज़िम्मेदारी सुह्रद दत्ता और उनके सहयोगी देबू मलिक को सौंपा था।

तापसी मल्लिक नंदीग्राम आंदोलन में एक आइकन बन गई थीं। जब 14 मार्च, 2007 की रात को #नंदीग्राम में बड़े पैमाने पर नरसंहार हुआ तो अगले 36 घंटों तक शासन की शह पर उस पूरे परिक्षेत्र में नंगई चलती रही। कामरेड्स बलात्कार और लूट पाट में व्यस्त रहे।

Read 7 tweets
7 Mar 21
नंदीग्राम +

आगामी बंगाल विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम पुनः चर्चा के केंद्र में है। निवर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी परंपरागत सीट की बजाय #नंदीग्राम से चुनाव लड़ेंगी। उनके समक्ष भाजपा से सुवेंदु अधिकारी रहेंगे। सीपीआई+काग्रेस का प्रत्याशी कौन? कोई जानना भी नहीं चाहता।

2006 में हल्दिया विकास प्राधिकरण ने #नंदीग्राम में एसईजेड की घोषणा की थी। 2007 से वहां जमीनी प्रतिरोध शुरू हुआ था। तब वहां के विधायक थे- मोहम्मद इलियास। तमलुक लोकसभा के सांसद थे- मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के लक्ष्मण सेठ। यह क्षेत्र वामपंथ का गढ़ था।

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय कृष्णचंद्र बेरा #नंदीग्राम के एक महत्त्वपूर्ण नेता थे। उन्होंने गांधी जी की सभा भी कराई थी। बाद में फॉरवर्ड ब्लॉक से जुड़कर नेताजी के साथ आ गए थे। महात्मा गांधी की हत्या के बाद उन्होंने नंदीग्राम में खादी ग्रामोद्योग में स्वयं को खपा दिया था।

Read 8 tweets
28 Feb 21
जब विद्योत्तमा ने सभी पंडितों को हरा दिया तो अपमानित पंडितों ने निश्चित किया कि इस विदुषी का अहंकार टूटना चाहिए। विद्वान को पराजित करने के लिए सभी विद्वानों ने मंत्रणा की। परिणामस्वरूप उचित व्यक्ति की तलाश शुरू हुई।
विद्वान को मूर्ख ही हरा सकता है - यह निश्चित है।

१/
उचित व्यक्ति मिला। वह आलू से सोना बना सकने की तकनीक जानता था और जिस डाल पर बैठा था, उसे ही कुल्हाड़ी से काट रहा था। डाल कटती तो वह भी निश्चित ही धराशायी होता। इससे उपयुक्त व्यक्ति कौन होगा? पंडितों ने निश्चित किया। यह कालिदास थे।

सबने कालिदास को विद्योत्तमा के सम्मुख शास्त्रार्थ हेतु प्रस्तुत किया। "मौन भी अभिव्यंजना है!" यह उक्ति तो परवर्ती है। विद्वानों ने मौन की, संकेत की अभिव्यक्ति अपने तरीके से करने का निश्चय किया।

विद्योत्तमा ने मौन के शास्त्रार्थ को स्वीकार कर लिया और पहली शास्त्रोक्ति की -

Read 7 tweets

Did Thread Reader help you today?

Support us! We are indie developers!


This site is made by just two indie developers on a laptop doing marketing, support and development! Read more about the story.

Become a Premium Member ($3/month or $30/year) and get exclusive features!

Become Premium

Too expensive? Make a small donation by buying us coffee ($5) or help with server cost ($10)

Donate via Paypal

Or Donate anonymously using crypto!

Ethereum

0xfe58350B80634f60Fa6Dc149a72b4DFbc17D341E copy

Bitcoin

3ATGMxNzCUFzxpMCHL5sWSt4DVtS8UqXpi copy

Thank you for your support!

Follow Us on Twitter!

:(