कानपुर के "आलम बेग" की खोपड़ी के साथ एक चिट्ठी भी दफ़्न थी। उस चिट्ठी में यह बात दर्ज है कि 32 वर्ष के न थकने वाले नौजवान को रानी विक्टोरिया के समक्ष सियालकोट में ब्रिटिश कमिश्नर हेनरी कूपर के आदेश पर तोप से उड़ा दिया गया था।
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आलम बेग 1857 की क्रांति में 46वीं रेजिमेंट बंगाल नार्थ इन्फैंट्री बटालियन का नेतृत्व कर रहे थे। रावी तट पर पकड़े गए और रानी के समक्ष तोप से उड़ा दिए गए। उनका सिर 1858 में इंग्लैण्ड ले जाया गया और दफ़ना दिया गया। एक ने यह सब ब्यौरा एक पत्र में करके खोपड़ी के भीतर रख दिया।
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वह खोपड़ी दो साल पहले मिली थी। (अमर उजाला की रिपोर्ट)
यह अंग्रेज इतने हरामी थे कि इन्होंने भारतीयों का दमन तो किया ही, इतिहास से भारी छेड़छाड़ भी की। इन्होंने इतिहास का निर्माण अपने मन मुताबिक किया। यह वह समय था जब उन्हें पुरातत्व और खुदाई का महत्त्व पता चल गया था।
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उन्होंने इतिहास को जज्ब करने के लिए यह सब हरकतें भी कीं। इन अंग्रेजों के इतिहास को ध्यान से देखने के बाद आपको यूरोपीय लोगों से भारी घृणा हो जाएगी, लेकिन अफसोस यह है कि देश की एक बड़ी आबादी और तथाकथित पढ़ी-लिखी आबादी अंग्रेजों का एहसान मानती है और उनके गुणगान करती है।
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उन्हें भारतीयता में खोट ही खोट दिखता है और अंग्रेजों में सब कुछ अच्छा अच्छा। उपनिवेशवादी सोच बहुत घातक होती है। भारत में यह सोच बड़ी और बड़ी होती जा रही है।
लेकिन एक न एक दिन कब्रें खुदेंगी!
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निहंग सिखों का उदय दसवें गुरु गोविंद सिंह के समय में हुआ।
सिखों के नवें गुरु तेग बहादुर का औरंगजेब ने शिरोच्छेद करवा दिया था।उनका शव पहरे में रखा गया था। किन्तु सिखों का एक समुदाय उनका शीश लेकर भागा और करनाल होते हुए आनंदपुर साहिब पहुंच गया।
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जहां शिरोच्छेद किया गया, वह जामा मस्जिद, दिल्ली के पार्श्व में ही है, लाल किले के समीप। आजकल वहां शीशगंज गुरुद्वारा है। धड़ चुराकर एक प्यारा, लखी शाह वंजारा भागा और अपने घर में उनका संस्कार किया। उसने अपना घर जला डाला। जहां उनका धड़ जलाया गया, वहां रकाबगंज गुरुद्वारा है।
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गुरु तेग बहादुर को डराने के लिए पहले उनके सामने भाई मतिदास को जिंदा आरे से चीर दिया गया, उसके बाद भाई दयाला को उबलते पानी में फेंक कर मार डाला और आखिर में भाई सतीदास को ज़िंदा जला दिया गया।
नंदीग्राम प्रकरण में आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर तापसी मल्लिक पर बातें।
#नंदीग्राम से पहले 16 दिसम्बर, 2006 को कोलकाता के निकट सिंगूर में तापसी मल्लिक का पहले बलात्कार हुआ और उसके बाद उनकी हत्या हुई। उनका शव जली हुई अवस्था में खेत में मिला।
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तापसी मल्लिक हत्या और बलात्कार केस में कॉमरेड सुह्रद दत्त और देबू मलिक को दोषी पाया गया। यह दोनों कम्युनिस्ट पार्टी के नेता थे। सीपीएम ने सिंगुर में विपक्षी पार्टियों के विरोध को कुचलने की ज़िम्मेदारी सुह्रद दत्ता और उनके सहयोगी देबू मलिक को सौंपा था।
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तापसी मल्लिक नंदीग्राम आंदोलन में एक आइकन बन गई थीं। जब 14 मार्च, 2007 की रात को #नंदीग्राम में बड़े पैमाने पर नरसंहार हुआ तो अगले 36 घंटों तक शासन की शह पर उस पूरे परिक्षेत्र में नंगई चलती रही। कामरेड्स बलात्कार और लूट पाट में व्यस्त रहे।
आगामी बंगाल विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम पुनः चर्चा के केंद्र में है। निवर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी परंपरागत सीट की बजाय #नंदीग्राम से चुनाव लड़ेंगी। उनके समक्ष भाजपा से सुवेंदु अधिकारी रहेंगे। सीपीआई+काग्रेस का प्रत्याशी कौन? कोई जानना भी नहीं चाहता।
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2006 में हल्दिया विकास प्राधिकरण ने #नंदीग्राम में एसईजेड की घोषणा की थी। 2007 से वहां जमीनी प्रतिरोध शुरू हुआ था। तब वहां के विधायक थे- मोहम्मद इलियास। तमलुक लोकसभा के सांसद थे- मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के लक्ष्मण सेठ। यह क्षेत्र वामपंथ का गढ़ था।
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स्वतंत्रता प्राप्ति के समय कृष्णचंद्र बेरा #नंदीग्राम के एक महत्त्वपूर्ण नेता थे। उन्होंने गांधी जी की सभा भी कराई थी। बाद में फॉरवर्ड ब्लॉक से जुड़कर नेताजी के साथ आ गए थे। महात्मा गांधी की हत्या के बाद उन्होंने नंदीग्राम में खादी ग्रामोद्योग में स्वयं को खपा दिया था।
जब विद्योत्तमा ने सभी पंडितों को हरा दिया तो अपमानित पंडितों ने निश्चित किया कि इस विदुषी का अहंकार टूटना चाहिए। विद्वान को पराजित करने के लिए सभी विद्वानों ने मंत्रणा की। परिणामस्वरूप उचित व्यक्ति की तलाश शुरू हुई।
विद्वान को मूर्ख ही हरा सकता है - यह निश्चित है।
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उचित व्यक्ति मिला। वह आलू से सोना बना सकने की तकनीक जानता था और जिस डाल पर बैठा था, उसे ही कुल्हाड़ी से काट रहा था। डाल कटती तो वह भी निश्चित ही धराशायी होता। इससे उपयुक्त व्यक्ति कौन होगा? पंडितों ने निश्चित किया। यह कालिदास थे।
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सबने कालिदास को विद्योत्तमा के सम्मुख शास्त्रार्थ हेतु प्रस्तुत किया। "मौन भी अभिव्यंजना है!" यह उक्ति तो परवर्ती है। विद्वानों ने मौन की, संकेत की अभिव्यक्ति अपने तरीके से करने का निश्चय किया।
विद्योत्तमा ने मौन के शास्त्रार्थ को स्वीकार कर लिया और पहली शास्त्रोक्ति की -