(यहां मैं इस बारे में बात नहीं करूंगा कि KCC के पैसे का किसान क्या इस्तेमाल करता है, क्यूंकि ये तो एक सर्वविदित सी बात है)। KCC में ये सिस्टम होता है हर साल बिना मांगे 10% की लिमिट बढ़ा दी जाती है।
जैसे अगर किसी किसान की KCC लिमिट पहले साल में तीन लाख है तो दुसरे साल ये तीन लाख तीस हजार हो जायेगी, उसके अगले साले तीन लाख तिरेसठ हजार। अब तीन लाख तक 2% ब्याज की सब्सिडी तो बैंक ही देती है (सरकार बाद में वो पैसा बैंकों को वापिस करती है)।
यानी कि ब्याज लगा 7%। इसके बाद केंद्र और राज्य सरकार भी किसानों के लिए अपनी वफादारी दिखाने के लिए ब्याज पर 3% और 4% सब्सिडी और ऊपर से देती है (3 लाख तक)। मतलब तीन लाख तक के KCC पर ब्याज लगा 0%। शर्त यही है कि समय से लिमिट रिन्यू होनी चाहिए।
अब लिमिट कैसे रिन्यू होती है वो भी देख लीजिये। रबी खरीफ कि फसल का पैसा एक साथ ही दिया जाता है। पूरे साल कुछ भी भरने कि जरूरत नहीं। बस एक साल पूरा होने से पहले आकर एक मुश्त पैसा भरिये। और उसी दिन या अधिकतम एक दिन बाद 10% ज्यादा ले जाइये।
कहीं कहीं तो पैसा भरने कि भी जरूरत ही नहीं पड़ती। ऊपर से फरमान आ जाता है कि कैश में क्रेडिट एंट्री दिखा कर लिमिट रिन्यू कर दो, अगले साल की लिमिट में 10% ज्यादा मिलेगा ही। जैसे ही लिमिट रिन्यू हुई, खाते में कैश की डेबिट एंट्री दिखा दो।
मतलब किसान ने एक नया पैसा भरा नहीं और खाता रेगुलर हो गया। (मेरे कई सारे बैंक मित्र यहां आपत्ति कर सकते हैं कि बैंक के अंदरूनी कार्य प्रणाली कि जानकारी बाहर नहीं देनी चाहिए मगर ये कोई छुपी हुई बात तो है नहीं।पूरे देश में हर बैंक में हर ब्रांच में होता है ये)
ऊपर से हर दो तीन साल में राज्य सरकारें KCC पर स्केल ऑफ़ फाइनेंस भी बढ़ाती रहती हैं। यानी प्रति एकड़ कृषि भूमि पर मिलने वाली KCC की राशि भी बढ़ती रहती है। यानी सालों साल किसान को एक रुपया भरने की जरूरत नहीं और वो बढ़ी हुई लिमिट उठाता रहता है।
ये "ever-greening of agri credit" कही जा सकती है। आपने देखा होगा की सरकार हर साल एग्री क्रेडिट में बढ़ोतरी के नाम पे अपनी पीठ ठोकती रहती है इसके पीछे यही राज है। उस एग्री क्रेडिट में ब्याज अपने आप ही जुड़ जाता है।
इसीलिए जो एग्री क्रेडिट का सरकारी टारगेट 2016 में 9 लाख करोड़ था वो बढ़ते बढ़ते 2021 में 16.5 लाख करोड़ हो जाता है। हम यहां तालियां पीटते रहते हैं कि देखो हमारा किसान कितनी तरक्की कर रहा है।
किसान को KCC लिमिट देने के एवज में उसकी जमीन पर बैंक का चार्ज चढ़ाया जाता है। लेकिन उसकी भी लिमिट होती है। पचास हजार से नीचे के KCC पर कोई चार्ज नहीं चढ़ाया जाता (अलग अलग राज्यों के हिसाब से ये लिमिट कम ज्यादा हो सकती है),
मतलब इसके नीचे का KCC शुद्ध रूप से कोलैटरल फ्री लोन है जिसको लेकर अगर किसान भाग जाए तो कोई कुछ नहीं कर सकता।
अब आते हैं KCC के NPA सिस्टम पर। जहां आम आदमी अगर लगातार तीन किश्ते न चुकाए तो खाता NPA हो जाता है यानी 90 दिन तक पैसा नहीं भरा तो खाता NPA। KCC में ऐसा नहीं होता। KCC के मामले में महीने को साल से रिप्लेस कर दीजिये (अलग अलग फसल के हिसाब से ये अवधि अलग अलग हो सकती है)।
यानी KCC खाते को NPA होने में लगेंगे 3 साल। एक और बात। अगर आम आदमी का खाता एक बार NPA हो जाए तो उसका सिबिल स्कोर गिर जाता है और फिर उसे कोई बैंक लोन नहीं देता। KCC में सिबिल का कोई ख़ास महत्व नहीं होता।
खाता खराब होने के बाद कोई किसान अगर अगर आधे पैसे में सेटलमेंट करता है तो तो उसे दोबारा उसी बैंक से नया KCC दिया जा सकता है। इतने में चुनाव आ ही जाते हैं और पार्टियां वोट के लिए कृषि ऋण माफ़ी का जुमला पकड़ा देती हैं।
इसी उम्मीद में किसान पैसा भी नहीं भरता कि किसी न किसी दिन तो उसके भाग खुलेंगे ही और उसका पूरा लोन ब्याज सहित माफ़ हो जायेगा।
अब आते हैं इसी से जुड़े दूसरे गोरखधंधे पर। सालाना KCC लिमिट रिन्यू करने के लिए बैंक इंस्पेक्शन चार्ज, प्रोसेसिंग फीस वगैरह लेती हैं।
अब चूंकि किसान को तो पता है कि KCC फ्री का पैसा पैसा है लिए उसे भी इस चीज पर ऑब्जेक्शन नहीं रहता। इसी का फायदा बैंक से जोंक की तरह चिपकी हुई बीमा कंपनियां उठाती हैं।
अनपढ़ किसानों से रिन्युल के दौरान चुपके से तीन चार तरह से एक्सीडेंटल बीमा, जीवन बीमा वगैरह के फॉर्म पर साइन करवा लिए जाते हैं। जिससे ब्रांच का बीमा का टारगेट भी पूरा हो जाता है। अब इतने लोग फायदा उठा रहे हैं तो बाकी क्यों पीछे रहें। आते हैं सरकार की फसल बीमा योजना पर।
फसल बीमा के लिए KCC जरूरी बताया जाता है (वैसे शायद है नहीं)। फसल बीमा के लिए अक्सर प्राइवेट बीमा कंपनियों को ठेका दिया जाता है। फसल बीमा के नाम पर किसानों से प्रीमियम वसूला जाता है और उसका कुछ हिस्सा सरकार भी भरती है।
ये पूरा पैसा प्राइवेट बीमा कंपनी के पास जाता है जिसके आधार पर फसल में नुक्सान होने पर किसानों को मुआवजा दिया जाता है। मगर कितना प्रीमियम वसूला गया और कितना मुआवजा दिया गया ये उस बीमा कंपनी की सरकार से सांठ गाँठ पर निर्भर करता है। एक उदाहरण यहाँ देखिये। financialexpress.com/money/insuranc…
कई बार नेता लोग किसानो की सहानुभूति के लिए बिना किसी फसल के नुक्सान के भी फसल बीमा कंपनियों पर दबाव डाल कर किसानों को मुआवजा दिलवा देती हैं। और अक्सर फसल तबाह होने पर भी बीमा कंपनियां क्लेम रिजेक्ट कर देती हैं।
वैसे तो सरकार का ये निर्देश है कि फसल के नुकसान के सर्वे के लिए बीमा कम्पनिया किसानों से कोई पैसा नहीं लेंगी मगर किसानों को ये कौन बताये। बीमा कंपनियों का जो आदमी इंस्पेक्शन करने आता है वो अक्सर इसके लिए किसानों से हज़ारों रूपये इंस्पेक्शन चार्ज के नाम पर भी वसूलता है।
कुल मिला कर KCC एक ऐसी बहती गंगा है जिसमें सभी हाथ धो रहे हैं, सरकार, नेता, बैंक, जीवन एवं सामान्य बीमा कंपनियां, फसल बीमा कंपनियां, कंपनियों के एजेंट, किसान। अब इतने लोग फायदा उठा रहे हैं तो किसी कि जेब तो काटी ही जा रही है। जेब कटती है ईमानदार की।
वो ईमानदार किसान जो समय पर अपना लोन चुकता है। वो ईमानदार टैक्सपेयर जिसकी जेब से ये सब सब्सिडी और ऋण माफ़ी का पैसा लिया जा रहा है। वो ईमानदार बैंकर जो कड़ी धूप में और भरी बारिश में घुटनों घुटनों पानी में खेतों में जाकर निरीक्षण करता है और NPA रिकवरी करता है।
डिस्क्लेमर: अगर किसी किसान प्रेमी भाई को मेरी बात बुरी लगी हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ। किसी सरकार प्रेमी भाई को हमारी बात बुरी लगी हो तो वो भाड़ में जाए।
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
बड़ा तगड़ा प्रेशर था ऑनलाइन लोन बेचने का। डेढ़ सौ कस्टमर्स की लिस्ट पकड़ा दी गई। सबको कॉल करो और लोन लेने के लिए कन्विंस करो (गिड़गिड़ाओ)। अब सात तो ब्रांच का रायता समेटते-समेटते ही बज गए थे।
मन घर जाने का कर रहा था कि अचानक साहब का फ़ोन आ गया। "कितने लोगों को कॉल किया ऑनलाइन लोन के लिए आज?" जवाब में बोले कि दिन में टाइम कहाँ मिलता है, तो ये साहब को नागवार गुजरा। खरी-खोटी सुनाते हुए कहा कि अभी के अभी कॉल करो सबको।
आज "जीरो फिगर" नहीं जाना चाहिए तुम्हारी ब्रांच से। BM ने सोचा कि जीरो फिगर के लिए तो लड़कियां मरी जा रही हैं, इनको पता नहीं क्या आपत्ति है। फिर भी, करीना कपूर का ध्यान करते हुए लिस्ट उठायी और फ़ोन घुमाकर लोन बेचना शुरू किया।
जब UP के एक बड़े नेताजी ने रेप को लेकर कहा था कि "लड़के हैं गलतियां हो जाती हैं", तब हमने खूब कोहराम मचाया था। फिर एक समझदार आदमी ने हमसे कहा कि इन्होंने जो कहा है वो आपके लिए नहीं कहा है। इनके अपने वोट बैंक के लिए कहा है।
आप पढ़े लिखे समझदार लोगों को ये बात भले ही नागवार गुजरे मगर आप इनके वोट बैंक नहीं हैं। इन्होंने जो बात कही है वो इनके वोट बैंक तक पहुंच गई है। नेता कोई बेवकूफ नहीं होते हैं। आखिर सत्ता की इतनी सीढियां चढ़कर करोड़ों लोगों पर राज करने वाला आदमी बेवकूफ तो नहीं ही हो सकता।
इनको भी पता है कि जो इन्होंने कहा है वो अक्षरशः गलत है। मगर इनको ये भी पता है कि इनका वोट बैंक क्या सुनना चाहता है। इनकी ये दकियानूसी बात सुनकर जितने लोग इनको वोट नहीं देंगे उससे ज्यादा लोग इनको वोट देने के लिए प्रेरित होंगे।
कस्टमर- (साढ़े पांच बजे, ब्रांच के गेट के बाहर से चिल्लाते हुए) मेरे ATM से पैसा नहीं निकल रहा। मेरा खाता क्यों बंद किया?
BM- सर, कस्टमर सर्विस टाइम 4 बजे तक है। कल टाइम से आइए, देख लेंगे जो समस्या होगी।
कस्टमर- मैं SBI का रिटायर्ड चीफ मैनेजर हूँ, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे मना करने की?
(अब तक BM का भी माथा गरम हो चुका था)
BM- तो मैं क्या करूं? बैंक का टाइम खत्म हो गया। कल आइए।
कस्टमर- केवल कैश का टाइम खत्म हुआ है। इन्क्वायरी के लिए बैंक हमेशा खुला रहता है।
BM- (जानते हुए कि कस्टमर झूठ बोल रहा है) अच्छा दिखाओ क्या समस्या है।
कस्टमर- गेट खोलो पहले।
BM- गेट नहीं खुलेगा, बाहर से ही बताओ।
कस्टमर- मैं SBI का रिटायर्ड...
BM- जो बोलना है बाहर से बोलो
कस्टमर- (ATM की स्लिप दिखाते हुए) मेरा खाता बंद क्यों किया? पैसे क्यों नहीं निकल रहे।
हमारी 1+1 की ब्रांच है। BM और कैशियर बारी बारी से लंच करने जाते हैं ताकि ग्राहकों को जवाब देने के लिए कोई काउंटर पर मौजूद हो। लंच भी 10 मिनट से ज्यादा नहीं करते। ढाई बजे थे। कैशियर मैडम लंच करने गईं। तभी ब्रांच में एक महोदय आए। उम्र लगभग 70-80 साल।
आते ही चिल्लाने लगे- "कैश काउंटर खाली क्यों है?" हमने इज्जत से जवाब दिया कि "लंच करने गईं हैं, 10 मिनट बैठिए।" सुनते ही साहब का पारा सातवें आसमान पर। "तो किसी दूसरे कोई बिठाओ काउंटर पर, तुम्हारे लंच के चक्कर में कस्टमर इंतजार करेगा क्या?"
हमने समझाने की कोशिश की तो साहब और भड़क गए। "अगर मेरे लड़के को इलाज के लिए पैसे की सख्त जरूरत तो और तुम्हारे लंच के चक्कर में मेरा लड़का मर जाए तो!!! मैं कुछ नहीं जानता, मुझे मेरा पैसा चाहिए अभी के अभी।" ब्रांच का माहौल अब तक बिल्कुल खराब हो चुका था।
बेरोजगारी के साइड इफ़ेक्ट 1. अपराध बढ़ता है 2. नशे की प्रवृत्ति बढ़ती है 3. घरेलू हिंसा बढ़ती है 4. खाली बैठा आदमी जातिवाद और सम्प्रदायिकता के जाल में फंस जाता है 5. आबादी बढ़ती है (ताकि घर में कमाने वाले लोग बढ़ सकें) 6. लोगों की औसत आय कम होती है
7. मौजूदा वर्कफोर्स पर अत्याचार बढ़ता है 8. खेती की जमीन के और छोटे टुकड़े होते हैं 9. शिक्षा पर से लोगों का विश्वास खत्म होता है 10. विदेशी सैलानियों के साथ बदतमीजी बढ़ती है जिससे देश की इमेज खराब होती है 11. आतंकवाद, इंसरजेंसी, मिलिटेंसी बढ़ती है।
12. देश के बहुमूल्य संसाधन बर्बाद होते हैं (बेरोजगार देश के लिए NPA जैसा होता है) 13. गांवों से शहरों की ओर पलायन बढ़ता है। 14. देश के टैक्सपेयर और सरकारी खजाने पर दबाव बढ़ता है। 15. लैंगिक असमानता बढ़ती है 16. जनता में असुरक्षा की भावना बढ़ती है 17. जनता में असंतोष बढ़ता है
During Emergency period, Shri R K Talwar was the Chairman of SBI. He received a loan proposal which was not viable. Contemporary PM Mrs. Indira Gandhi called the Chairman and asked him to sanction the big budget loan.
Being a man of integrity, Shri Talwar refused. He was removed immediately, a puppet was posted as SBI Chairman who willingly obeyed the dictator. Now, if that loan goes bad, whose fault is it? Will you still blame the banker?
Apparently, in every sector and organization you can find people who will do anything for a favor. You cannot expect everyone in the banking sector to have full integrity. In a democracy, everyone has a boss. Even for the top most banker, there is a political boss.