ब्रांच मैनेजर अपने केबिन के बाहर लगी भीड़ से परेशान। केबिन भी क्या ही था, क्यूबिकल जैसा था जिसमें सामने दो कुर्सियां लगी थीं। भीड़ देखकर BM का केबिन कम और इन्क्वायरी काउंटर ज्यादा लग रहा था। एक मलिन सी महिला बिना नहाये हुए तीन छोटे छोटे बच्चों को लेकर आयी।
BM की टेबल पे तीन पासबुक रखी और डरते हुए बोली साहब बैलेंस बता दो। BM ने एक नजर उस महिला और उसके बच्चों को देखा और फिर उन गंदली सी पासबुकों को। झुंझलाते हुए पासबुक उठाई और तड़-तड़ करते हुए कीबोर्ड में अकाउंट नंबर टाइप करने लगा।
"तिरेपन रूपये", "सैंतीस रूपये", "इसमें तो आठ ही रूपये हैं", बताते हुए एक एक करके पासबुक टेबल पे पटकता गया। "फिर हरामी ने सारे पैसे निकाल लिए।" महिला को खातों में पैसे होने की उम्मीद नहीं थी मगर BM का जवाब और रवैया देखकर और भी बुझ गई।
"साहब, मेरा आदमी इन बच्चों के खातों में से सरकारी छात्रवृत्ति का सारा रुपया निकाल लेता है और फिर दारु पी जाता है। आप कुछ करो न"। महिला लगभग रोने को हो आयी। तब तक ब्रांच का संविदा कर्मी BM के पास पहुँच गया था।
"सर, इस बेचारी की बहुत समस्या है। इसका पति खूब दारू पीता है, इसको और बच्चों को मारता है। पिछले शनिवार जो ब्रांच में हंगामा किया था वो इसका आदमी ही तो था।" ब्रांच में हंगामे वाली बात याद आते ही BM की संवेदनाएं जाग उठी। पुलिस की धमकी दी थी उसको तब जाकर गया था।
BM ने दिमाग लगाया कि क्या किया जा सकता है। बच्चों के खातों में बाय डिफ़ॉल्ट पिता ही संरक्षक था। बच्चे 10 साल से छोटे थे, मतलब बिना संरक्षक के खाता नहीं चला सकते थे। बाप अकेले आकर बच्चों का पैसा निकाल सकता था। बिना संरक्षक की अनुमति के खाता बंद कर नहीं सकते।
BM ने RBO के एक विश्वस्त और समझदार आदमी को फ़ोन लगाया। महिला की राम कहानी सुनाई। RBO के अधिकारी ने साफ़ कह दिया, "सर, इन सब पचड़ों में मत पड़िये।
कुछ नहीं हो सकता। जब तक महिला कोर्ट या पुलिस का आदेश नहीं लाती तब तक बिना बाप के न तो खाता बंद कर सकते हैं, न बाप को खाते में से पैसा निकालने से रोक सकते हैं।
और मान लीजिये आप भावनाओं में बहकर खातों में से बाप को संरक्षक हटा कर माँ को बना देते हैं तो फिर बाप आएगा ब्रांच में हंगामा करने। कौन संभालेगा उसको? ये औरत कोर्ट या पुलिस के पास जाएगी नहीं। और अगर इसका पति इसको बीच ब्रांच में मारेगा तो भी ये कुछ नहीं बोलेगी।
और तो और आप यदि बचाने जाओगे तो आप ही से लड़ने लगेगी। जाने दीजिये उसको। कुछ नहीं हो सकता।" BM ने फ़ोन रखा। और महिला को बोल दिया, कोर्ट जाओ या पुलिस के पास। तभी कुछ हो सकता है। महिला रोते हुए अपने बच्चों को लेकर चली गई।
BM, जो कि दो-तीन साल पहले सरकार के बच्चों के खातों में पैसे भेजने वाले इस कदम को UPSC के पेपर में "क्रन्तिकारी" बता रहा था, एक झटके में असलियत से वाक़िफ़ हो गया। मूड खराब हो ही चुका था। उठा और अपना 1 से 4 वाला शाही लंच करने चला गया।
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ये जो 5 रूपये कम करके दिवाली के तोहफे और गरीबों की भलाई का ढोल पीटा जा रहा है ये एक घटिया मानसिकता और एक सोची समझी चाल छुपी हुई है। ये है गुलामी की मानसिकता। जरा कल्पना कीजिये कि गुलाम कैसे कैसे रहते होंगे?
ज़ंजीरों में बंधे, एक एक सांस के लिए अपने मालिक की परमिशन के लिए तरसते हुए। वही खाते हैं जो मालिक देता है, जब देता है। गुलामों से काम पूरा लिया जाता था, तरीके से चूसा जाता था। इतना कि मरने जैसी हालत हो जाती थी। हाँ, लेकिन मरने दिया जाता नहीं था।
इस बात का भी पूरा ध्यान रखा जाता था कि गुलाम आपस में मिलकर विद्रोह न का कर दें। कुछ कुछ वैसा ही आज भी चल रहा है। वैसे तो ये एनालॉजी हर क्षेत्र में मिल जायेगी मगर अभी के लिए, जहां से बात शुरू की थी उसी को लेते हैं हैं। यानी तेल।
(यहां मैं इस बारे में बात नहीं करूंगा कि KCC के पैसे का किसान क्या इस्तेमाल करता है, क्यूंकि ये तो एक सर्वविदित सी बात है)। KCC में ये सिस्टम होता है हर साल बिना मांगे 10% की लिमिट बढ़ा दी जाती है।
जैसे अगर किसी किसान की KCC लिमिट पहले साल में तीन लाख है तो दुसरे साल ये तीन लाख तीस हजार हो जायेगी, उसके अगले साले तीन लाख तिरेसठ हजार। अब तीन लाख तक 2% ब्याज की सब्सिडी तो बैंक ही देती है (सरकार बाद में वो पैसा बैंकों को वापिस करती है)।
बड़ा तगड़ा प्रेशर था ऑनलाइन लोन बेचने का। डेढ़ सौ कस्टमर्स की लिस्ट पकड़ा दी गई। सबको कॉल करो और लोन लेने के लिए कन्विंस करो (गिड़गिड़ाओ)। अब सात तो ब्रांच का रायता समेटते-समेटते ही बज गए थे।
मन घर जाने का कर रहा था कि अचानक साहब का फ़ोन आ गया। "कितने लोगों को कॉल किया ऑनलाइन लोन के लिए आज?" जवाब में बोले कि दिन में टाइम कहाँ मिलता है, तो ये साहब को नागवार गुजरा। खरी-खोटी सुनाते हुए कहा कि अभी के अभी कॉल करो सबको।
आज "जीरो फिगर" नहीं जाना चाहिए तुम्हारी ब्रांच से। BM ने सोचा कि जीरो फिगर के लिए तो लड़कियां मरी जा रही हैं, इनको पता नहीं क्या आपत्ति है। फिर भी, करीना कपूर का ध्यान करते हुए लिस्ट उठायी और फ़ोन घुमाकर लोन बेचना शुरू किया।
जब UP के एक बड़े नेताजी ने रेप को लेकर कहा था कि "लड़के हैं गलतियां हो जाती हैं", तब हमने खूब कोहराम मचाया था। फिर एक समझदार आदमी ने हमसे कहा कि इन्होंने जो कहा है वो आपके लिए नहीं कहा है। इनके अपने वोट बैंक के लिए कहा है।
आप पढ़े लिखे समझदार लोगों को ये बात भले ही नागवार गुजरे मगर आप इनके वोट बैंक नहीं हैं। इन्होंने जो बात कही है वो इनके वोट बैंक तक पहुंच गई है। नेता कोई बेवकूफ नहीं होते हैं। आखिर सत्ता की इतनी सीढियां चढ़कर करोड़ों लोगों पर राज करने वाला आदमी बेवकूफ तो नहीं ही हो सकता।
इनको भी पता है कि जो इन्होंने कहा है वो अक्षरशः गलत है। मगर इनको ये भी पता है कि इनका वोट बैंक क्या सुनना चाहता है। इनकी ये दकियानूसी बात सुनकर जितने लोग इनको वोट नहीं देंगे उससे ज्यादा लोग इनको वोट देने के लिए प्रेरित होंगे।
कस्टमर- (साढ़े पांच बजे, ब्रांच के गेट के बाहर से चिल्लाते हुए) मेरे ATM से पैसा नहीं निकल रहा। मेरा खाता क्यों बंद किया?
BM- सर, कस्टमर सर्विस टाइम 4 बजे तक है। कल टाइम से आइए, देख लेंगे जो समस्या होगी।
कस्टमर- मैं SBI का रिटायर्ड चीफ मैनेजर हूँ, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे मना करने की?
(अब तक BM का भी माथा गरम हो चुका था)
BM- तो मैं क्या करूं? बैंक का टाइम खत्म हो गया। कल आइए।
कस्टमर- केवल कैश का टाइम खत्म हुआ है। इन्क्वायरी के लिए बैंक हमेशा खुला रहता है।
BM- (जानते हुए कि कस्टमर झूठ बोल रहा है) अच्छा दिखाओ क्या समस्या है।
कस्टमर- गेट खोलो पहले।
BM- गेट नहीं खुलेगा, बाहर से ही बताओ।
कस्टमर- मैं SBI का रिटायर्ड...
BM- जो बोलना है बाहर से बोलो
कस्टमर- (ATM की स्लिप दिखाते हुए) मेरा खाता बंद क्यों किया? पैसे क्यों नहीं निकल रहे।
हमारी 1+1 की ब्रांच है। BM और कैशियर बारी बारी से लंच करने जाते हैं ताकि ग्राहकों को जवाब देने के लिए कोई काउंटर पर मौजूद हो। लंच भी 10 मिनट से ज्यादा नहीं करते। ढाई बजे थे। कैशियर मैडम लंच करने गईं। तभी ब्रांच में एक महोदय आए। उम्र लगभग 70-80 साल।
आते ही चिल्लाने लगे- "कैश काउंटर खाली क्यों है?" हमने इज्जत से जवाब दिया कि "लंच करने गईं हैं, 10 मिनट बैठिए।" सुनते ही साहब का पारा सातवें आसमान पर। "तो किसी दूसरे कोई बिठाओ काउंटर पर, तुम्हारे लंच के चक्कर में कस्टमर इंतजार करेगा क्या?"
हमने समझाने की कोशिश की तो साहब और भड़क गए। "अगर मेरे लड़के को इलाज के लिए पैसे की सख्त जरूरत तो और तुम्हारे लंच के चक्कर में मेरा लड़का मर जाए तो!!! मैं कुछ नहीं जानता, मुझे मेरा पैसा चाहिए अभी के अभी।" ब्रांच का माहौल अब तक बिल्कुल खराब हो चुका था।