मैं एक दलित-मजदूर परिवार में जन्मी, हमारा जन्मना ही इस सभ्य समाज के लिए किसी हादसे से कम नहीं. इस बात का बहुत दुख है कि जन्म के साथ ही इस देश में जाति/धर्म के आधार पर आपका कसूर लिख दिया जाता है. मेरे मां-बाप ने अपमान का घूंट पीकर पढ़ाया. जब बाबा साहेब को जाना तो 1/1
अपने वजूद का पता चला, उनकी किताबों और विचारों ने हमें हमारा होना समझाया.
साथियों, बाबा साहेब ने हमारे लिए हजारों कष्ट सहे, कदम-कदम पर अपमान के घूंट पिए, अपने बच्चों की कुर्बानी देकर हमें सदियों की दासता से मुक्ति दिलवाई. उन्हें पता था कि ब्राह्मणवादी-पितृसत्तात्मक व्यवस्था 2/2
हम जैसे करोड़ों लोगों को गुलाम बनाए रखना चाहती है. वे उस दौर में लड़े और जीते. सही मायने में उन्होंने ही हमें आजादी दिलवाई.
बचपन में बाबा साहेब को स्कूल में अलग बैठाया गया, साथ में पानी तक नहीं पीने दिया गया. तमाम कष्ट सहकर उन्होंने दलितों-आदिवासियों-महिलाओं-अल्पसंख्यकों 3/3
के लिए रहने लायक भारत बनाया, समानता और मानवता का मतलब समझाया, अपने एक हस्ताक्षर से करोड़ों लोगों की जिंदगी बदल दी.
महज जन्म के आधार पर मुझे भी कदम-कदम पर तोड़ने की कोशिश की गई, भरे न्यूज़रूम में अपमानित किया गया, नकारा गया, दुत्कारा गया लेकिन इन सबके बावजूद मैं टूटी नहीं, 4/4
घूटने नहीं टेके. BBC हिंदी में मैं इकलौती दलित पत्रकार थी, आदिवासी को तो ये लोग इंट्री भी नहीं देते. भयानक पीड़ा से मैं वहां गुजरी, अपमान के घूंट पिए, भरी न्यूज़रूम में जलील किया गया, मीटिंग में कहा गया कि मीना कोटवाल इस स्टोरी को करने के लायक ही नहीं है क्योंकि उनके भीतर 5/5
हमारे प्रति एक नफरत है जो समय-समय पर दिख जाता है, वे बर्दाश्त नहीं कर पाते कि दलित हमारे साथ या हमारे ऊपर काम करेंगे. अगर मैं गलत हूं तो आजादी के 70 साल बाद भी उच्च पदों पर ढूंढने पर भी दलित-आदिवासी क्यों नहीं मिलते?
खैर हमारे संघर्ष और पीड़ा का अंत नहीं है, 6/6
हमें अपने देश और समाज में सबकुछ ढकोसला लगता है, ऐसा महसूस होता है कि इस स्थिति के लिए जैसे सभी कसूरवार है, मौन सहमति और चुप्पी का नतीजा है कि महज मजदूरी मांगने पर दलित का हाथ काटा जा रहा, बच्चे की रीढ़ तोड़ी जा रही है, पढ़े लिखे लोगों की यह खामोशी देश समाज को लगातार कमजोर और 7/7
खोखला कर रही है, भारत और संविधान दिन-प्रतिदिन कमजोर हो रहा है.
दोस्तों, बड़े-बड़े संस्थानों में, इस सभ्य समाज में हमें इग्नोर किया जाता है. बचपन से हमें एहसास कराया जाता है कि हम 'छोटे' लोग हैं, हमारी जाति छोटी है! हमारी कष्ट और पीड़ा से अमूमन इस सभ्य समाज को 8/8
कुछ लेना देना नहीं है. हमारे संघर्ष को वे खारिज कर देते हैं, एहसास करवाते हैं कि गलत जगह आ गए हो और अगर आपने यह सब दुनिया को बता दिया तो सो कॉल्ड लिबरल-प्रोग्रेसिव दफ्तरों में हमारे लिए रास्ते बंद कर दिये जाते हैं. इनकी सारी लेखनी और भावनाएं दिखावटी हैं क्योंकि 9/9
ये हमारे जैसे लोगों के साथ बैठकर काम तक नहीं करना चाहते हैं. शायद वे 'अपवित्र' हो जाएंगे! दुनिया की तमाम रिपोर्ट्स चिख-चिख कर इसकी तस्दीक करते हैं कि मीडिया में दलित-आदिवासी ना के बराबर है लेकिन इनके कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है, शायद न्याय, समानता, प्रतिनिधित्व 10/10
इनके चरित्र में ही नहीं है! तमाम सामंति लोग कागजों पर लोकतंत्र को देखना चाहते हैं जबकि असल जिंदगी में ये दलितों से नफरत करते हैं, उनका हक मार रहे हैं!
साथियों, मैं आज जो भी हूं सिर्फ और सिर्फ बाबा साहेब और उनके संविधान की वजह से हूं. मेरे जैसे करोड़ों लोगों को 11/11
डॉ. आंबेडकर ने सदियों की गुलामी से मुक्ति दिलाया. जब तक डोम, सरभंग जैसी जातियां मुख्यधारा में नहीं आ जाती, मैं चैन से नहीं सो सकती. इनकी पीड़ा अब मेरी पीड़ा है. बाबा साहेब का सपना अब मेरा सपना है. समानता और मानवता की लड़ाई ताउम्र जारी रहेगी. मेरी पत्रकारिता और लेखनी 12/12
दलित, पिछड़े, आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिला, LGBTQIA+, किसान-मजदूरों के लिए है. गिनती के चंद लोग जो करोड़ों लोगों का हक मार रहे हैं, उनसे छीनकर हाशिए पर खड़े लोगों में बांट दिया जाना चाहिए, बस यही एक सपना है!
कई लोगों ने मुझे फोन और मैसेज कर कहा कि BBC के पत्रकार विकास त्रिवेदी ने बाबासाहेब के बारे में जो अपमानजनक कमेंट किया है उसपर अपनी राय जरूर रखें. ट्विटर पर #ArrestVikasTrivedi ट्रेंड कराया जा रहा है और मुझे भी ज्यादातर ट्वीट में टैग किया जा रहा है. विकास त्रिवेदी ने बाबासाहेब 1/1
के लिए जो कमेंट किया है, उससे पता चलता है कि विकास को समाजिक न्याय की बिल्कुल भी समझ नहीं है, ना ही उन्हें बाबा साहेब के संघर्ष का रत्ती भर भी एहसास है. अगर समाजिक न्याय की समझ विकास को है भी तो शायद उनके मन में बाबा साहेब के प्रति घृणा का भाव है जो ज्यादातर विशेषाधिकार 1/2
प्राप्त लोगों में होता है. ऐसे लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता कि एक अछूत जाति में जन्म लेने की वजह से यहां जिंदगी तबाह हो जाती है, जिंदगी बदत्तर हो जाती है. चूंकि इस देश में सबसे बड़ा गुनाह माना जाता है जब आप अछूत घर में जन्म लेते हैं.
1990 में 'ब्राह्मण पॉवर' शीर्षक से लिखे एक लेख में खुशवंत सिंह ने कहा-
ब्राह्मणों की जनसंख्या हमारे देश की कुल जनसंख्या में से 3.5 फीसदी से अधिक नहीं है लेकिन आज वे 70 फीसदी नौकरियों पर काबिज हैं. मैं यह मानकर चलता हूं कि यह आंकड़ा केवल 1/1
राजपत्रित पदों का है. उपसचिव से ऊपर के उच्च प्रशासनिक पदों पर 500 में से 310 ब्राह्मण हैं यानी 63 फीसदी, 26 प्रदेश मुख्य सचिवों में से 19 ब्राह्मण हैं, 27 राज्यपाल और उपराज्यपालों में से 13 ब्राह्मण हैं, सुप्रीम कोर्ट के 16 न्यायधीशों में 9 ब्राह्मण हैं, 330 उच्च न्यायालय के 1/2
न्यायधीशों में से 166 ब्राह्मण है, और 140 राजदूतों में से 58 ब्राह्मण है. कुल 3300 भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों में से 2376 ब्राह्मण है. निर्वाचित पदों पर भी इनका प्रदर्शन इतना ही बढ़िया है. 508 लोकसभा सदस्यों में से 190 ब्राह्मण है, 244 राज्यसभा सदस्यों में से 89 ब्राह्मण है. 1/3
ब्रांड्स के जरिए अरबों कमाने वाले को पूंजीवाद कैसे मसीहा बनाता है, इसकी बानगी है रोनाल्डो-कोक प्रकरण
हाल ही में मीडिया में यह मामला छाया रहा कि कैसे फुटबॉलर क्रिस्टियानो रोनाल्डो ने कोक की जगह बोतलबंद पानी पीने की सलाह दी, ऑफ स्क्रीन शूट किया गया रोनाल्डो यह वीडियो दुनियाभर 1/1
में चर्चा का विषय बन गया और लोग रोनाल्डो को हीरो बताने लगे. रोनाल्डो के इस स्टंट के बाद कोका कोला का शेयर प्राइस 242 बिलियन डॉलर से 238 बिलियन डॉलर पर आ गया. इसके बाद कई सारे लोग रोनाल्डो को मसीहा की तरह पेश करने लगे. लेकिन इस स्टंटबाजी के दौरान रोनाल्डो शायद भूल गए थे कि 1/2
पूर्व में वे कोका कोला का प्रचार कर पैसा बटोर चुके हैं. जिन रोनाल्डो को हीरो की तरह पेश किया गया वे कोक का एड कर करोड़ों रुपये पीट चुके हैं.
वायरल वीडियो में रोनाल्डो कोक के बोतल को हटाकर बोतलबंद पानी पीने का सलाह देते हैं. इतना देखते ही मेरे जेहन में उन तमाम लोगों का संघर्ष 1/3
अपनी बेटी धरा के नाम मेरा दूसरा खत (तकरीबन एक साल पहले लिखा था)
प्यारी बेटी धरा,
अगस्त (2019) का महीना था. मेरा पूरा ध्यान एक खास वर्ग के कुछ लोगों के दिमागी कचरे को उजागर करने में लगा था और इधर तुम इस दुनिया में आने की शुरूआत कर चुकी थी. हालांकि मुझे तुम्हारे बारे में 1/1
सितम्बर में पता चला. जुलाई तक बीबीसी में थी और दो अगस्त से मैंने एक सच को बताना शुरू कर दिया था. मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि मेरे अंदर तुम जन्म ले चुकी हो.
ऐसे में तुम हर उस पल की गवाह हो जो मैंने उस दौरान महसूस किया. किस तरह जो लोग सामने और सोशल मीडिया पर अच्छे बनते थे, 1/2
उनके दिल और दिमाग अंदर से कितने मैले हैं! तुम्हारे बारे में पता चलते ही मुझे लगा जैसे मुझे हर बात बताने के लिए एक नया साथी मिल गया. कई बार राजा यानि तुम्हारे पापा को भी नहीं पता चलता था कि मैं दुखी हूं. उन्हें भी किस-किस के बारे में बताती और क्या-क्या बताती, 1/3
महिला होकर भी कंगना सवर्ण पुरुषों का हिंदू राष्ट्र चाहती हैं, ट्विटर ही नहीं हर प्लेटफॉर्म से कंगना को हटवाइए
फेक महिला अभिनेत्री @kanganateam दिन-रात एक समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने का काम करती हैं, इतना ही नहीं वे आरक्षण के खिलाफ भी जहर उगलती हैं और इस तरह से लगातार बहुजनों 1/1
को टारगेट करती रहती हैं. एक महिला होकर जिस तरह से उन्होंने रिया चक्रवर्ती के खिलाफ सोशल मीडिया पर प्रोपेगेंडा किया वह दोयम दर्जे का था.
कंगना कई बार सोशल मीडिया पर अपने प्रिविलेज का बखान कर चुकी हैं, वे लिख चुकी हैं कि उन्हें राजपूत होने का गर्व है. 1/2
कंगना जिस तरह से सरकार के लिए बैटिंग कर रही हैं वह साबित करता है कि कंगना रीढ़विहीन हैं, वे अपना जमीर बेच चुकी हैं. ऐसा व्यक्तित्व समाज के लिए बेहद ही खतरनाक है, कोरोना के इस विकट समय में वे कुछ रचनात्मक न कर दिन-रात हिंदू-मुसलमान कर रही हैं. 1/3
सो कॉल्ड ‘मेट्रोमैन’ श्रीधरन की हार में ही मानवता की जीत है...
जिन्हें आप ‘मेट्रोमैन’ कहते हैं उन श्रीधरन को केरल की जनता ने रिजेक्ट कर दिया है और इसका सबसे बड़ा कारण है श्रीधरन का BJP से चुनाव लड़ना. सबसे शिक्षित राज्य का दर्जा प्राप्त केरल में सांप्रदायिक नफरत के लिए कोई 1/1
जगह नहीं है चाहे आप कितने भी तीस मार खां क्यों नहीं हो...जहां भी सही मायने में शिक्षा का प्रचार-प्रसार होगा वहां फासिस्ट विचारधारा की हार तय है. भले ही आपने अपने नीजि/सार्वजनिक जीवन में कई कमाल किए हैं लेकिन आप नफरत की राजनीति से संबंध रखते हैं तो यहां की जनता आपको नकार देगी. 1/2
सो कॉल्ड ‘मेट्रोमैन’ श्रीधरन की हार में ही मानवता की जीत है. जो पूंजी श्रीधरन साहब ने कमाई थी वो सबकुछ उन्होंने गंवा दिया, वे चाहते तो इस विपदा में लोगों की मदद के लिए हाथ बढ़ाते, कुछ रचनात्मक करते लेकिन यह सब न कर उन्होंने हिंदू-मुसलमान करने वाली पार्टी का दामन थाम लिया 1/3