अपनी बेटी धरा के नाम मेरा दूसरा खत (तकरीबन एक साल पहले लिखा था)
प्यारी बेटी धरा,
अगस्त (2019) का महीना था. मेरा पूरा ध्यान एक खास वर्ग के कुछ लोगों के दिमागी कचरे को उजागर करने में लगा था और इधर तुम इस दुनिया में आने की शुरूआत कर चुकी थी. हालांकि मुझे तुम्हारे बारे में 1/1
सितम्बर में पता चला. जुलाई तक बीबीसी में थी और दो अगस्त से मैंने एक सच को बताना शुरू कर दिया था. मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि मेरे अंदर तुम जन्म ले चुकी हो.
ऐसे में तुम हर उस पल की गवाह हो जो मैंने उस दौरान महसूस किया. किस तरह जो लोग सामने और सोशल मीडिया पर अच्छे बनते थे, 1/2
उनके दिल और दिमाग अंदर से कितने मैले हैं! तुम्हारे बारे में पता चलते ही मुझे लगा जैसे मुझे हर बात बताने के लिए एक नया साथी मिल गया. कई बार राजा यानि तुम्हारे पापा को भी नहीं पता चलता था कि मैं दुखी हूं. उन्हें भी किस-किस के बारे में बताती और क्या-क्या बताती, 1/3
वो भी सारी बाते सुनकर परेशान हो जाया करते थे. हो सकता था मुझे ज्यादा परेशान देखकर वो ये सब करने से भी मना कर देते. लेकिन उन्होंने मेरा पूरी तरह साथ दिया और इस पर कुछ भी करने का पूरा फैसला मुझ पर छोड़ दिया.
कई बार अंदर से इन दोगले लोगों को देख-परखकर मन हुआ कि सब छोड़-छाड़ दूं 1/4
और शांति से अपनी जिंदगी बिताऊं, इन सब से दूर. लेकिन दूसरे ही पल अंदर से ख्याल भी आया कि अगर मैं आज नहीं बोलूंगी तो कौन बोलेगा! जब मैं नहीं बोलूंगी तो मेरे लिए क्या ही कोई बोलेगा और ऐसा ही ये लोग किसी अगले के साथ भी करेंगे. इसलिए मैंने अपने करियर को दांव पर लगाकर सब सच कह दिया 1/5
जिसका नुकसान भले ही मुझे आज भी झेलना पड़ रहा है. लेकिन मेरे मन में कभी ये पछतावा नहीं रहेगा कि मैं उस समय चुप रही जब मुझे बोलना चाहिए था. समाज में हर स्तर पर हो रहे इस सबसे बड़े भेदभाव पर मैंने आवाज उठाई.
समानता, न्याय, एकता, भाईचारा की बातें करना आसान तो है लेकिन इन सब पर 1/6
खरा उतरना सबसे मुश्किल. ऐसे लोग जो इंसान के रूप में भेड़िए बन चुके हैं जो सदियों से दूसरों का हक खाकर भी हमारा मसीहा बनना चाहते हैं उनका चेहरा उजागर करना ही मैंने सही समझा. ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ इस देश में हो रहा है या सिर्फ मेरे साथ हो रहा है. 1/7
यह विश्व के हर कोने में कईयों के साथ किसी ना किसी रूप में हो रहा है और हर जगह इसके खिलाफ लड़ाईयां भी लड़ी जा रही हैं. मुझे नहीं पता है कि मैं इस लड़ाई में जीतूंगी या हारूंगी लेकिन मुझे इतना पता है कि मैंने मैदान छोड़कर भागने की बजाए लड़ना चुना है. 1/8
किसी की चाटूकारिता करने की बजाए अपने काम का सम्मान और अपने हक़ के लिए लड़ना चुना है.
प्यारी बेटी धरा, मैं चाहती हूं कि जब तुम होश संभालो तो सबसे पहले तुम्हारा साक्षात्कार बाबा साहेब आंबेडकर, मैल्कम एक्स, नेल्सन मंडेला, ज्योतिबा फूले, फातिमा शेख़ जैसे महान हस्तियों से हो, 1/9
जिन्होंने समाज में समानता और न्याय के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करना चुना था. तमाम तकलीफों के बाद भी कभी इन्होंने शोषणकारी व्यवस्था के सामने घुटने नहीं टेके.
खैर, उस वक़्त तुम तो सब मेरी आंखों से देख ही रही थी, मुझे सुन रही थी. 1/10
मैं जब भी अकेली होती थी तो तुम्हीं से तो बात करती थी. तुमने अपना साथ उस परिस्थिति में बनाए रखा, जब अधिकतर लोगों ने मेरा साथ छोड़ दिया था. जो अपने आप को मेरा दोस्त-रिश्तेदार कहते थे उनकी दोस्ती इस समय सर चढ़ कर बोल रही थी!, जिन्होंने बात करना ही बंद कर दिया. 1/11
सबको मेरी ही गलती लगी कि मुझे चुप रहना चाहिए था क्योंकि मेरे साथ गलत हुआ है तो मुझे कोई हक नहीं गलत को गलत कहने का! ऐसे समय में एक तुम ही तो थी जिससे मैं अपने दिल की हर बात बिना किसी डर के करती थी. उस समय मेरे साथ होने के लिए मैं जितनी बार तुम्हारा शुक्रिया करूं उतना ही कम है1/12
और उम्मीद करती हूं कि तुम भी हमेशा गलत के आगे घुटने ना टेक कर उसे गलत कहने की हिम्मत रखोगी.
महिला होकर भी कंगना सवर्ण पुरुषों का हिंदू राष्ट्र चाहती हैं, ट्विटर ही नहीं हर प्लेटफॉर्म से कंगना को हटवाइए
फेक महिला अभिनेत्री @kanganateam दिन-रात एक समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने का काम करती हैं, इतना ही नहीं वे आरक्षण के खिलाफ भी जहर उगलती हैं और इस तरह से लगातार बहुजनों 1/1
को टारगेट करती रहती हैं. एक महिला होकर जिस तरह से उन्होंने रिया चक्रवर्ती के खिलाफ सोशल मीडिया पर प्रोपेगेंडा किया वह दोयम दर्जे का था.
कंगना कई बार सोशल मीडिया पर अपने प्रिविलेज का बखान कर चुकी हैं, वे लिख चुकी हैं कि उन्हें राजपूत होने का गर्व है. 1/2
कंगना जिस तरह से सरकार के लिए बैटिंग कर रही हैं वह साबित करता है कि कंगना रीढ़विहीन हैं, वे अपना जमीर बेच चुकी हैं. ऐसा व्यक्तित्व समाज के लिए बेहद ही खतरनाक है, कोरोना के इस विकट समय में वे कुछ रचनात्मक न कर दिन-रात हिंदू-मुसलमान कर रही हैं. 1/3
सो कॉल्ड ‘मेट्रोमैन’ श्रीधरन की हार में ही मानवता की जीत है...
जिन्हें आप ‘मेट्रोमैन’ कहते हैं उन श्रीधरन को केरल की जनता ने रिजेक्ट कर दिया है और इसका सबसे बड़ा कारण है श्रीधरन का BJP से चुनाव लड़ना. सबसे शिक्षित राज्य का दर्जा प्राप्त केरल में सांप्रदायिक नफरत के लिए कोई 1/1
जगह नहीं है चाहे आप कितने भी तीस मार खां क्यों नहीं हो...जहां भी सही मायने में शिक्षा का प्रचार-प्रसार होगा वहां फासिस्ट विचारधारा की हार तय है. भले ही आपने अपने नीजि/सार्वजनिक जीवन में कई कमाल किए हैं लेकिन आप नफरत की राजनीति से संबंध रखते हैं तो यहां की जनता आपको नकार देगी. 1/2
सो कॉल्ड ‘मेट्रोमैन’ श्रीधरन की हार में ही मानवता की जीत है. जो पूंजी श्रीधरन साहब ने कमाई थी वो सबकुछ उन्होंने गंवा दिया, वे चाहते तो इस विपदा में लोगों की मदद के लिए हाथ बढ़ाते, कुछ रचनात्मक करते लेकिन यह सब न कर उन्होंने हिंदू-मुसलमान करने वाली पार्टी का दामन थाम लिया 1/3
भारत की प्रथम महिला टीचर माता #सावित्रीबाई_फुले ने महिलाओं और शूद्रों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया था.
ऐसा करने के लिए उन्होंने अपनी जान की बाजी तक लगा दी थी. जब भी वे पढ़ाने जाती थीं तो ब्राह्मणवादी लोग उनपर गोबर और पत्थर फेंकते थे. मनुवादियों को लगता था कि ऐसा करने से (1/1)
सावित्री बाई फुले पढ़ाना छोड़ देंगी. लेकिन प्रथम महिला टीचर ब्राह्मणवादियों के आगे नहीं झूकीं. वे जब भी पढ़ाने जातीं तो 2 साड़ी साथ लेकर जाती. रास्ते में गोबर फेंकने वाले ब्राह्मणों का मानना था कि शूद्रों और महिलाओं को पढ़ने का अधिकार नहीं, यह पाप है, मनु के विधान के खिलाफ है 1/2
सावित्री बाई फुले घर से जो साड़ी पहनकर निकलती थीं वो दुर्गंध से भर जाती थी. स्कूल पहुंच कर वे दूसरी साड़ी पहन लेती. फिर महिलाओं को पढ़ाने लगती थीं. सावित्री बाई फुले उस दौर में अपने पति को खत लिखा करती थीं. उन खतों में सामाजिक मुद्दों और ब्राह्मणवादी व्यवस्था का जिक्र होता. 1/3
केरल में यह दलित लड़का अपने माता-पिता के लिए कब्र खोद रहा है, वह पुलिसवालों से कह रहा है, 'तुम लोगों ने मेरे मां-बाप की जान ले ली, अब बोलते हो कि मैं इनका अंतिम संस्कार भी नहीं कर सकता.'
तिरुवनंतपुरम के एक गांव में दलित लड़के के पिता खाना खा रहे होते हैं, तभी पुलिस आती है और 1/1
कहती है कि घर खाली करो. राहुल राज के पिता कहते हैं कि खाना खाकर हमलोग चले जाएंगे लेकिन पुलिस नहीं मानती है. इस अपमान और पीड़ा से व्यथित होकर राहुल के पिता खुद पर पेट्रोल डाल आग लगाने की धमकी देते हैं. जिसके बाद पुलिस के साथ लाइटर की छीना-झपटी में लाइटर जमीन पर गिर पड़ती है और 1/2
राहुल के माता पिता की जलकर मौत हो जाती है. आप जानते हैं कि कितनी जमीन के लिए राहुल राज के माता-पिता को अपनी जान गंवानी पड़ी? 1 एकड़ के 33वें हिस्से की खातिर राहुल की सिर से माता-पिता का हाथ हट गया. यह दलित लड़का बेसहारा हो चुका है, राहुल गुस्से और बेइंतहां गम में है लेकिन 1/3
पेशवा साम्राज्य के वक्त दलितों को थूकने के लिए अपने गले में हांडी लटकाना पड़ता था, कमर पर झाड़ू बांधना पड़ता था ताकि जब वे चले तो झाड़ू उनके पैरों के निशान मिटाता चले. पेशवा और उनके पूर्वज दलितों के साथ जानवरों जैसा व्यवहार करते थे (1/1)
दलित सवर्णों के तालाब से पानी निकालने की सोच भी नहीं सकते थे, इसलिए महार जाति के लोग पेशवाओं के ब्राह्मणवादी व्यवस्था से लड़ने के लिए ब्रिटिश सेना में शामिल हुए.
1 जनवरी 1818 को महार जाति (दलित) के 500 जाबांज लड़ाकों ने पेशवाओं की विशाल सेना को भीमा कोरेगांव में धूल चटा दिया 1/2
सदियों से अपमान झेल रहे दलितों ने पेशवाओं से बदला लिया, उन्होंने ब्राह्मणवादी व्यवस्था में कील ठोंक दिया. यह लड़ाई थी गरिमा और सम्मान वापस पाने की, यह लड़ाई थी हक छीनने की. सदियों की दासता की बेड़ियों को महारों ने तलवार से काट दिया था 1/3