सो कॉल्ड ‘मेट्रोमैन’ श्रीधरन की हार में ही मानवता की जीत है...
जिन्हें आप ‘मेट्रोमैन’ कहते हैं उन श्रीधरन को केरल की जनता ने रिजेक्ट कर दिया है और इसका सबसे बड़ा कारण है श्रीधरन का BJP से चुनाव लड़ना. सबसे शिक्षित राज्य का दर्जा प्राप्त केरल में सांप्रदायिक नफरत के लिए कोई 1/1
जगह नहीं है चाहे आप कितने भी तीस मार खां क्यों नहीं हो...जहां भी सही मायने में शिक्षा का प्रचार-प्रसार होगा वहां फासिस्ट विचारधारा की हार तय है. भले ही आपने अपने नीजि/सार्वजनिक जीवन में कई कमाल किए हैं लेकिन आप नफरत की राजनीति से संबंध रखते हैं तो यहां की जनता आपको नकार देगी. 1/2
सो कॉल्ड ‘मेट्रोमैन’ श्रीधरन की हार में ही मानवता की जीत है. जो पूंजी श्रीधरन साहब ने कमाई थी वो सबकुछ उन्होंने गंवा दिया, वे चाहते तो इस विपदा में लोगों की मदद के लिए हाथ बढ़ाते, कुछ रचनात्मक करते लेकिन यह सब न कर उन्होंने हिंदू-मुसलमान करने वाली पार्टी का दामन थाम लिया 1/3
हिंदू राष्ट्र बनाने की बात कहने वाली पार्टी के चुनाव चिन्ह से चुनाव लड़े. काश इतना वे सोच पाते कि हिंदू राष्ट्र मतलब सवर्ण पुरुषों का राष्ट्र...या ये सब कुछ उन्हें पता भी हो और वे भी इसकी कामना रखते हों!
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महिला होकर भी कंगना सवर्ण पुरुषों का हिंदू राष्ट्र चाहती हैं, ट्विटर ही नहीं हर प्लेटफॉर्म से कंगना को हटवाइए
फेक महिला अभिनेत्री @kanganateam दिन-रात एक समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने का काम करती हैं, इतना ही नहीं वे आरक्षण के खिलाफ भी जहर उगलती हैं और इस तरह से लगातार बहुजनों 1/1
को टारगेट करती रहती हैं. एक महिला होकर जिस तरह से उन्होंने रिया चक्रवर्ती के खिलाफ सोशल मीडिया पर प्रोपेगेंडा किया वह दोयम दर्जे का था.
कंगना कई बार सोशल मीडिया पर अपने प्रिविलेज का बखान कर चुकी हैं, वे लिख चुकी हैं कि उन्हें राजपूत होने का गर्व है. 1/2
कंगना जिस तरह से सरकार के लिए बैटिंग कर रही हैं वह साबित करता है कि कंगना रीढ़विहीन हैं, वे अपना जमीर बेच चुकी हैं. ऐसा व्यक्तित्व समाज के लिए बेहद ही खतरनाक है, कोरोना के इस विकट समय में वे कुछ रचनात्मक न कर दिन-रात हिंदू-मुसलमान कर रही हैं. 1/3
भारत की प्रथम महिला टीचर माता #सावित्रीबाई_फुले ने महिलाओं और शूद्रों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया था.
ऐसा करने के लिए उन्होंने अपनी जान की बाजी तक लगा दी थी. जब भी वे पढ़ाने जाती थीं तो ब्राह्मणवादी लोग उनपर गोबर और पत्थर फेंकते थे. मनुवादियों को लगता था कि ऐसा करने से (1/1)
सावित्री बाई फुले पढ़ाना छोड़ देंगी. लेकिन प्रथम महिला टीचर ब्राह्मणवादियों के आगे नहीं झूकीं. वे जब भी पढ़ाने जातीं तो 2 साड़ी साथ लेकर जाती. रास्ते में गोबर फेंकने वाले ब्राह्मणों का मानना था कि शूद्रों और महिलाओं को पढ़ने का अधिकार नहीं, यह पाप है, मनु के विधान के खिलाफ है 1/2
सावित्री बाई फुले घर से जो साड़ी पहनकर निकलती थीं वो दुर्गंध से भर जाती थी. स्कूल पहुंच कर वे दूसरी साड़ी पहन लेती. फिर महिलाओं को पढ़ाने लगती थीं. सावित्री बाई फुले उस दौर में अपने पति को खत लिखा करती थीं. उन खतों में सामाजिक मुद्दों और ब्राह्मणवादी व्यवस्था का जिक्र होता. 1/3
केरल में यह दलित लड़का अपने माता-पिता के लिए कब्र खोद रहा है, वह पुलिसवालों से कह रहा है, 'तुम लोगों ने मेरे मां-बाप की जान ले ली, अब बोलते हो कि मैं इनका अंतिम संस्कार भी नहीं कर सकता.'
तिरुवनंतपुरम के एक गांव में दलित लड़के के पिता खाना खा रहे होते हैं, तभी पुलिस आती है और 1/1
कहती है कि घर खाली करो. राहुल राज के पिता कहते हैं कि खाना खाकर हमलोग चले जाएंगे लेकिन पुलिस नहीं मानती है. इस अपमान और पीड़ा से व्यथित होकर राहुल के पिता खुद पर पेट्रोल डाल आग लगाने की धमकी देते हैं. जिसके बाद पुलिस के साथ लाइटर की छीना-झपटी में लाइटर जमीन पर गिर पड़ती है और 1/2
राहुल के माता पिता की जलकर मौत हो जाती है. आप जानते हैं कि कितनी जमीन के लिए राहुल राज के माता-पिता को अपनी जान गंवानी पड़ी? 1 एकड़ के 33वें हिस्से की खातिर राहुल की सिर से माता-पिता का हाथ हट गया. यह दलित लड़का बेसहारा हो चुका है, राहुल गुस्से और बेइंतहां गम में है लेकिन 1/3
पेशवा साम्राज्य के वक्त दलितों को थूकने के लिए अपने गले में हांडी लटकाना पड़ता था, कमर पर झाड़ू बांधना पड़ता था ताकि जब वे चले तो झाड़ू उनके पैरों के निशान मिटाता चले. पेशवा और उनके पूर्वज दलितों के साथ जानवरों जैसा व्यवहार करते थे (1/1)
दलित सवर्णों के तालाब से पानी निकालने की सोच भी नहीं सकते थे, इसलिए महार जाति के लोग पेशवाओं के ब्राह्मणवादी व्यवस्था से लड़ने के लिए ब्रिटिश सेना में शामिल हुए.
1 जनवरी 1818 को महार जाति (दलित) के 500 जाबांज लड़ाकों ने पेशवाओं की विशाल सेना को भीमा कोरेगांव में धूल चटा दिया 1/2
सदियों से अपमान झेल रहे दलितों ने पेशवाओं से बदला लिया, उन्होंने ब्राह्मणवादी व्यवस्था में कील ठोंक दिया. यह लड़ाई थी गरिमा और सम्मान वापस पाने की, यह लड़ाई थी हक छीनने की. सदियों की दासता की बेड़ियों को महारों ने तलवार से काट दिया था 1/3