1990 में 'ब्राह्मण पॉवर' शीर्षक से लिखे एक लेख में खुशवंत सिंह ने कहा-
ब्राह्मणों की जनसंख्या हमारे देश की कुल जनसंख्या में से 3.5 फीसदी से अधिक नहीं है लेकिन आज वे 70 फीसदी नौकरियों पर काबिज हैं. मैं यह मानकर चलता हूं कि यह आंकड़ा केवल 1/1
राजपत्रित पदों का है. उपसचिव से ऊपर के उच्च प्रशासनिक पदों पर 500 में से 310 ब्राह्मण हैं यानी 63 फीसदी, 26 प्रदेश मुख्य सचिवों में से 19 ब्राह्मण हैं, 27 राज्यपाल और उपराज्यपालों में से 13 ब्राह्मण हैं, सुप्रीम कोर्ट के 16 न्यायधीशों में 9 ब्राह्मण हैं, 330 उच्च न्यायालय के 1/2
न्यायधीशों में से 166 ब्राह्मण है, और 140 राजदूतों में से 58 ब्राह्मण है. कुल 3300 भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों में से 2376 ब्राह्मण है. निर्वाचित पदों पर भी इनका प्रदर्शन इतना ही बढ़िया है. 508 लोकसभा सदस्यों में से 190 ब्राह्मण है, 244 राज्यसभा सदस्यों में से 89 ब्राह्मण है. 1/3
ये आंकड़े साफ तौर पर सिद्ध करते हैं कि भारत के 3.5 फीसदी ब्राह्मण समुदाय का देश में उपलब्ध बढ़िया नौकरियों पर कब्जा है. ऐसा कैसे हो गया, मुझे नहीं मालूम, लेकिन मेरे लिए यह विश्वास करना मुश्किल है कि यह सब ब्राह्मणों की कुशाग्र बुद्धि की वजह से ही हुआ है.
ब्रांड्स के जरिए अरबों कमाने वाले को पूंजीवाद कैसे मसीहा बनाता है, इसकी बानगी है रोनाल्डो-कोक प्रकरण
हाल ही में मीडिया में यह मामला छाया रहा कि कैसे फुटबॉलर क्रिस्टियानो रोनाल्डो ने कोक की जगह बोतलबंद पानी पीने की सलाह दी, ऑफ स्क्रीन शूट किया गया रोनाल्डो यह वीडियो दुनियाभर 1/1
में चर्चा का विषय बन गया और लोग रोनाल्डो को हीरो बताने लगे. रोनाल्डो के इस स्टंट के बाद कोका कोला का शेयर प्राइस 242 बिलियन डॉलर से 238 बिलियन डॉलर पर आ गया. इसके बाद कई सारे लोग रोनाल्डो को मसीहा की तरह पेश करने लगे. लेकिन इस स्टंटबाजी के दौरान रोनाल्डो शायद भूल गए थे कि 1/2
पूर्व में वे कोका कोला का प्रचार कर पैसा बटोर चुके हैं. जिन रोनाल्डो को हीरो की तरह पेश किया गया वे कोक का एड कर करोड़ों रुपये पीट चुके हैं.
वायरल वीडियो में रोनाल्डो कोक के बोतल को हटाकर बोतलबंद पानी पीने का सलाह देते हैं. इतना देखते ही मेरे जेहन में उन तमाम लोगों का संघर्ष 1/3
अपनी बेटी धरा के नाम मेरा दूसरा खत (तकरीबन एक साल पहले लिखा था)
प्यारी बेटी धरा,
अगस्त (2019) का महीना था. मेरा पूरा ध्यान एक खास वर्ग के कुछ लोगों के दिमागी कचरे को उजागर करने में लगा था और इधर तुम इस दुनिया में आने की शुरूआत कर चुकी थी. हालांकि मुझे तुम्हारे बारे में 1/1
सितम्बर में पता चला. जुलाई तक बीबीसी में थी और दो अगस्त से मैंने एक सच को बताना शुरू कर दिया था. मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि मेरे अंदर तुम जन्म ले चुकी हो.
ऐसे में तुम हर उस पल की गवाह हो जो मैंने उस दौरान महसूस किया. किस तरह जो लोग सामने और सोशल मीडिया पर अच्छे बनते थे, 1/2
उनके दिल और दिमाग अंदर से कितने मैले हैं! तुम्हारे बारे में पता चलते ही मुझे लगा जैसे मुझे हर बात बताने के लिए एक नया साथी मिल गया. कई बार राजा यानि तुम्हारे पापा को भी नहीं पता चलता था कि मैं दुखी हूं. उन्हें भी किस-किस के बारे में बताती और क्या-क्या बताती, 1/3
महिला होकर भी कंगना सवर्ण पुरुषों का हिंदू राष्ट्र चाहती हैं, ट्विटर ही नहीं हर प्लेटफॉर्म से कंगना को हटवाइए
फेक महिला अभिनेत्री @kanganateam दिन-रात एक समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने का काम करती हैं, इतना ही नहीं वे आरक्षण के खिलाफ भी जहर उगलती हैं और इस तरह से लगातार बहुजनों 1/1
को टारगेट करती रहती हैं. एक महिला होकर जिस तरह से उन्होंने रिया चक्रवर्ती के खिलाफ सोशल मीडिया पर प्रोपेगेंडा किया वह दोयम दर्जे का था.
कंगना कई बार सोशल मीडिया पर अपने प्रिविलेज का बखान कर चुकी हैं, वे लिख चुकी हैं कि उन्हें राजपूत होने का गर्व है. 1/2
कंगना जिस तरह से सरकार के लिए बैटिंग कर रही हैं वह साबित करता है कि कंगना रीढ़विहीन हैं, वे अपना जमीर बेच चुकी हैं. ऐसा व्यक्तित्व समाज के लिए बेहद ही खतरनाक है, कोरोना के इस विकट समय में वे कुछ रचनात्मक न कर दिन-रात हिंदू-मुसलमान कर रही हैं. 1/3
सो कॉल्ड ‘मेट्रोमैन’ श्रीधरन की हार में ही मानवता की जीत है...
जिन्हें आप ‘मेट्रोमैन’ कहते हैं उन श्रीधरन को केरल की जनता ने रिजेक्ट कर दिया है और इसका सबसे बड़ा कारण है श्रीधरन का BJP से चुनाव लड़ना. सबसे शिक्षित राज्य का दर्जा प्राप्त केरल में सांप्रदायिक नफरत के लिए कोई 1/1
जगह नहीं है चाहे आप कितने भी तीस मार खां क्यों नहीं हो...जहां भी सही मायने में शिक्षा का प्रचार-प्रसार होगा वहां फासिस्ट विचारधारा की हार तय है. भले ही आपने अपने नीजि/सार्वजनिक जीवन में कई कमाल किए हैं लेकिन आप नफरत की राजनीति से संबंध रखते हैं तो यहां की जनता आपको नकार देगी. 1/2
सो कॉल्ड ‘मेट्रोमैन’ श्रीधरन की हार में ही मानवता की जीत है. जो पूंजी श्रीधरन साहब ने कमाई थी वो सबकुछ उन्होंने गंवा दिया, वे चाहते तो इस विपदा में लोगों की मदद के लिए हाथ बढ़ाते, कुछ रचनात्मक करते लेकिन यह सब न कर उन्होंने हिंदू-मुसलमान करने वाली पार्टी का दामन थाम लिया 1/3
भारत की प्रथम महिला टीचर माता #सावित्रीबाई_फुले ने महिलाओं और शूद्रों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया था.
ऐसा करने के लिए उन्होंने अपनी जान की बाजी तक लगा दी थी. जब भी वे पढ़ाने जाती थीं तो ब्राह्मणवादी लोग उनपर गोबर और पत्थर फेंकते थे. मनुवादियों को लगता था कि ऐसा करने से (1/1)
सावित्री बाई फुले पढ़ाना छोड़ देंगी. लेकिन प्रथम महिला टीचर ब्राह्मणवादियों के आगे नहीं झूकीं. वे जब भी पढ़ाने जातीं तो 2 साड़ी साथ लेकर जाती. रास्ते में गोबर फेंकने वाले ब्राह्मणों का मानना था कि शूद्रों और महिलाओं को पढ़ने का अधिकार नहीं, यह पाप है, मनु के विधान के खिलाफ है 1/2
सावित्री बाई फुले घर से जो साड़ी पहनकर निकलती थीं वो दुर्गंध से भर जाती थी. स्कूल पहुंच कर वे दूसरी साड़ी पहन लेती. फिर महिलाओं को पढ़ाने लगती थीं. सावित्री बाई फुले उस दौर में अपने पति को खत लिखा करती थीं. उन खतों में सामाजिक मुद्दों और ब्राह्मणवादी व्यवस्था का जिक्र होता. 1/3
केरल में यह दलित लड़का अपने माता-पिता के लिए कब्र खोद रहा है, वह पुलिसवालों से कह रहा है, 'तुम लोगों ने मेरे मां-बाप की जान ले ली, अब बोलते हो कि मैं इनका अंतिम संस्कार भी नहीं कर सकता.'
तिरुवनंतपुरम के एक गांव में दलित लड़के के पिता खाना खा रहे होते हैं, तभी पुलिस आती है और 1/1
कहती है कि घर खाली करो. राहुल राज के पिता कहते हैं कि खाना खाकर हमलोग चले जाएंगे लेकिन पुलिस नहीं मानती है. इस अपमान और पीड़ा से व्यथित होकर राहुल के पिता खुद पर पेट्रोल डाल आग लगाने की धमकी देते हैं. जिसके बाद पुलिस के साथ लाइटर की छीना-झपटी में लाइटर जमीन पर गिर पड़ती है और 1/2
राहुल के माता पिता की जलकर मौत हो जाती है. आप जानते हैं कि कितनी जमीन के लिए राहुल राज के माता-पिता को अपनी जान गंवानी पड़ी? 1 एकड़ के 33वें हिस्से की खातिर राहुल की सिर से माता-पिता का हाथ हट गया. यह दलित लड़का बेसहारा हो चुका है, राहुल गुस्से और बेइंतहां गम में है लेकिन 1/3