कैसे अकेले बाबा साहेब ने करोड़ों लोगों की जिंदगी बदल दी-
फर्ज कीजिए बाबा साहेब इस दुनिया में आए ही नहीं होते तो..!! तो आज यहां महिलाओं की स्थिति क्या होती? वंचितों की स्थिति क्या होती? संविधान लागू होने से पहले इस देश में महिलाओं और शूद्रों की स्थिति जानवरों से भी बदतर थी. 1/1
सवर्ण जानवर को तो टच करता था, गौमूत्र और गोबर का सेवन भी करता था, लेकिन दलितों की परछाई पड़नेभर मात्र से उन्हें लिंच तक कर देता था. महिलाओं और शूद्रों को पढ़ने देने तक का अधिकार नहीं था क्योंकि यहां बीमार और दुष्ट व्यक्ति मनु का विधान चलता था. 2/2
दलितों को गांव से बाहर रखा जाता था, उनके पहनावे, खाने, रंग हर चीज से नफरत की जाती थी. उनपर तमाम तरह की गालियां बनाई गई, स्तन कर जैसे अमानवीय टैक्स लगाए गए, गर्दन में बर्तन और कमर पर झाड़ू लटकाना पड़ता था, ताकि सो कॉल्ड सवर्ण समाज 'अपवित्र' न हो जाए. 3/3
इतना ही नहीं तालाब और कुएं से पानी पीने तक का अधिकार नहीं था यहां के बहुजनों को.
आज भी कई जगहों पर भारत में जाति की यह व्यवस्था जारी है क्योंकि पॉवर में बैठे लोग स्वार्थी और निष्क्रिय हो गए हैं. इन सवर्णों से लाख गुना अच्छे तो अंग्रेज थे जिन्होंने 3/3
हमारे देश में आकर हमारी कमर की झाड़ू और गर्दन में लटके बर्तन को हटाया और हमारे हाथों में कलम थमाया, जिसने कम से कम हमें इंसान तो माना, नहीं तो अब तक हम जानवर से बदतर तो थे ही!
बात जहां से शुरू हुई थी् वहीं पर आते हैं, इस दुनिया में अगर बाबा साहेब नहीं आते तो 5/5
मैं अपने ही देश के किसी गांव के बाहर से ही गुलामों जैसी जिंदगी जी रही होती, गालियां खा रही होती, धिक्कार की जिंदगी जी रही होती, स्तन कर दे रही होती, देवदासी होती या यह भी हो सकता था कि मर चुकी होती! लेकिन ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि मुझे पढ़ने और लिखने का मौका मिला, 6/6
संघर्ष करने का अवसर मिला. मेरे मां-बाप सिर्फ इसलिए नहीं पढ़ पाए क्योंकि सदियों से पूरा खानदान मजदूरी करता आया था और इसे ही अपनी नियती मान बैठा. लेकिन उन्होंने बस मेरी उंगली पकड़ी और मैं चलना, दौड़ना, उछलना, लड़ना और आंख में आंख डालकर बात करना सीख गई. 7/7
मैं समझ गई सदियों से चले आ रहे इस दुष्चक्र को और उनकी नीयत को. जब मैंने खुद को तलाशना शुरू किया तो मेरा वाबस्ता बाबा साहेब से हुआ. जैसे-जैसे मेरी काबिलियत और वजूद पर सवाल खड़े किए गए मैं बाबा साहेब के नजदीक होती चली गई. जब-जब उन्होंने मेरे आत्मसम्मान/वजूद को रौंदना चाहा 8/8
मैंने बाबा साहेब को साथ पाया.
मैं महसूस कर पाई बाबा साहेब के अथाह संघर्ष को, आज भी जब कभी परेशान होती हूं तो खुद को बाबा साहेब के सामने रखती हूं, तब खुद ब खुद वो परेशानी खत्म हो जाती है. जिन महान शख्स ने देश निर्माण के लिए अपने परिवार/बच्चों को भूला दिया हो 9/9
उनके सामने मेरा संघर्ष कुछ भी नहीं है.
आज मुझ जैसे करोड़ों लोग जो पढ़, लिख, बोल और लड़ पा रहे हैं वो बाबा साहेब के संविधान की वजह से संभव हो पाया है. उनके एक हस्ताक्षर ने इस देश के तकरीबन 90 फीसदी जनसंख्या को जानवर से आदमी का दर्जा दिला दिया, सपनों को पंख लगा दिया 10/10
सो कॉल्ड सवर्ण पुरुषों के हिंदू राष्ट्र के लेबल से यह देश आजाद हो गया, सही मायनों में सच्ची आजादी, जिसमें सभी एकसमान हैं, पंख फैलाकर उड़ सकते हैं. लव यू बाबासाहेब, आप थे तो हम हैं.
Feminism कई तरह से की जाती है। हमारे आसपास सरेआम पुरुष अंडरवियर में दिख जाएंगे, पेशाब करते भी! लेकिन महिलाएं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सकती, महिलाओं पर सबको कंट्रोल चाहिए, चरित्र हनन करना भी आसान है।
रही बात गर्मी/सर्दी की तो पुरुष मौसम/जगह कोई भी हो रेप करने को आतुर रहते हैं! 1/1
.@Arjun_Mehar भाई महिला की बॉडी है इसलिए आप शायद जजमेंटल हो गए, लेकिन एक पुरुष की बॉडी पर कोई सवाल नहीं होता जब वो नागा बन कर घूमता है, जब वो लड़कियों को देखकर हस्तमैथुन करने लगते हैं, वीर्य फेंकने लगते हैं, जब वो अपनी लपलपाती आंखों से बलात्कार करते हैं और पता नहीं क्या क्या? 1/2
महिला का शरीर है इसलिए इस सभ्य समाज के पुरुष ही फैसला करते आए हैं कि उसे अपने शरीर का कौन सा हिस्सा कैसे/कब दिखाना है! कौन सी बात करनी है और कौन सी नहीं! उससे थोड़ा भी ऊपर नीचे हुआ तो स्थिति भयावह हो जाती है! क्योंकि यह पुरुषवादी समाज हर तरह से महिलाओं पर कंट्रोल चाहता है! 1/3
मैं एक दलित-मजदूर परिवार में जन्मी, हमारा जन्मना ही इस सभ्य समाज के लिए किसी हादसे से कम नहीं. इस बात का बहुत दुख है कि जन्म के साथ ही इस देश में जाति/धर्म के आधार पर आपका कसूर लिख दिया जाता है. मेरे मां-बाप ने अपमान का घूंट पीकर पढ़ाया. जब बाबा साहेब को जाना तो 1/1
अपने वजूद का पता चला, उनकी किताबों और विचारों ने हमें हमारा होना समझाया.
साथियों, बाबा साहेब ने हमारे लिए हजारों कष्ट सहे, कदम-कदम पर अपमान के घूंट पिए, अपने बच्चों की कुर्बानी देकर हमें सदियों की दासता से मुक्ति दिलवाई. उन्हें पता था कि ब्राह्मणवादी-पितृसत्तात्मक व्यवस्था 2/2
हम जैसे करोड़ों लोगों को गुलाम बनाए रखना चाहती है. वे उस दौर में लड़े और जीते. सही मायने में उन्होंने ही हमें आजादी दिलवाई.
बचपन में बाबा साहेब को स्कूल में अलग बैठाया गया, साथ में पानी तक नहीं पीने दिया गया. तमाम कष्ट सहकर उन्होंने दलितों-आदिवासियों-महिलाओं-अल्पसंख्यकों 3/3
कई लोगों ने मुझे फोन और मैसेज कर कहा कि BBC के पत्रकार विकास त्रिवेदी ने बाबासाहेब के बारे में जो अपमानजनक कमेंट किया है उसपर अपनी राय जरूर रखें. ट्विटर पर #ArrestVikasTrivedi ट्रेंड कराया जा रहा है और मुझे भी ज्यादातर ट्वीट में टैग किया जा रहा है. विकास त्रिवेदी ने बाबासाहेब 1/1
के लिए जो कमेंट किया है, उससे पता चलता है कि विकास को समाजिक न्याय की बिल्कुल भी समझ नहीं है, ना ही उन्हें बाबा साहेब के संघर्ष का रत्ती भर भी एहसास है. अगर समाजिक न्याय की समझ विकास को है भी तो शायद उनके मन में बाबा साहेब के प्रति घृणा का भाव है जो ज्यादातर विशेषाधिकार 1/2
प्राप्त लोगों में होता है. ऐसे लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता कि एक अछूत जाति में जन्म लेने की वजह से यहां जिंदगी तबाह हो जाती है, जिंदगी बदत्तर हो जाती है. चूंकि इस देश में सबसे बड़ा गुनाह माना जाता है जब आप अछूत घर में जन्म लेते हैं.
1990 में 'ब्राह्मण पॉवर' शीर्षक से लिखे एक लेख में खुशवंत सिंह ने कहा-
ब्राह्मणों की जनसंख्या हमारे देश की कुल जनसंख्या में से 3.5 फीसदी से अधिक नहीं है लेकिन आज वे 70 फीसदी नौकरियों पर काबिज हैं. मैं यह मानकर चलता हूं कि यह आंकड़ा केवल 1/1
राजपत्रित पदों का है. उपसचिव से ऊपर के उच्च प्रशासनिक पदों पर 500 में से 310 ब्राह्मण हैं यानी 63 फीसदी, 26 प्रदेश मुख्य सचिवों में से 19 ब्राह्मण हैं, 27 राज्यपाल और उपराज्यपालों में से 13 ब्राह्मण हैं, सुप्रीम कोर्ट के 16 न्यायधीशों में 9 ब्राह्मण हैं, 330 उच्च न्यायालय के 1/2
न्यायधीशों में से 166 ब्राह्मण है, और 140 राजदूतों में से 58 ब्राह्मण है. कुल 3300 भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों में से 2376 ब्राह्मण है. निर्वाचित पदों पर भी इनका प्रदर्शन इतना ही बढ़िया है. 508 लोकसभा सदस्यों में से 190 ब्राह्मण है, 244 राज्यसभा सदस्यों में से 89 ब्राह्मण है. 1/3
ब्रांड्स के जरिए अरबों कमाने वाले को पूंजीवाद कैसे मसीहा बनाता है, इसकी बानगी है रोनाल्डो-कोक प्रकरण
हाल ही में मीडिया में यह मामला छाया रहा कि कैसे फुटबॉलर क्रिस्टियानो रोनाल्डो ने कोक की जगह बोतलबंद पानी पीने की सलाह दी, ऑफ स्क्रीन शूट किया गया रोनाल्डो यह वीडियो दुनियाभर 1/1
में चर्चा का विषय बन गया और लोग रोनाल्डो को हीरो बताने लगे. रोनाल्डो के इस स्टंट के बाद कोका कोला का शेयर प्राइस 242 बिलियन डॉलर से 238 बिलियन डॉलर पर आ गया. इसके बाद कई सारे लोग रोनाल्डो को मसीहा की तरह पेश करने लगे. लेकिन इस स्टंटबाजी के दौरान रोनाल्डो शायद भूल गए थे कि 1/2
पूर्व में वे कोका कोला का प्रचार कर पैसा बटोर चुके हैं. जिन रोनाल्डो को हीरो की तरह पेश किया गया वे कोक का एड कर करोड़ों रुपये पीट चुके हैं.
वायरल वीडियो में रोनाल्डो कोक के बोतल को हटाकर बोतलबंद पानी पीने का सलाह देते हैं. इतना देखते ही मेरे जेहन में उन तमाम लोगों का संघर्ष 1/3
अपनी बेटी धरा के नाम मेरा दूसरा खत (तकरीबन एक साल पहले लिखा था)
प्यारी बेटी धरा,
अगस्त (2019) का महीना था. मेरा पूरा ध्यान एक खास वर्ग के कुछ लोगों के दिमागी कचरे को उजागर करने में लगा था और इधर तुम इस दुनिया में आने की शुरूआत कर चुकी थी. हालांकि मुझे तुम्हारे बारे में 1/1
सितम्बर में पता चला. जुलाई तक बीबीसी में थी और दो अगस्त से मैंने एक सच को बताना शुरू कर दिया था. मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि मेरे अंदर तुम जन्म ले चुकी हो.
ऐसे में तुम हर उस पल की गवाह हो जो मैंने उस दौरान महसूस किया. किस तरह जो लोग सामने और सोशल मीडिया पर अच्छे बनते थे, 1/2
उनके दिल और दिमाग अंदर से कितने मैले हैं! तुम्हारे बारे में पता चलते ही मुझे लगा जैसे मुझे हर बात बताने के लिए एक नया साथी मिल गया. कई बार राजा यानि तुम्हारे पापा को भी नहीं पता चलता था कि मैं दुखी हूं. उन्हें भी किस-किस के बारे में बताती और क्या-क्या बताती, 1/3