सवाल भी बड़े अजीब हो गए हैं ?
मतलब टीवी चैनल जन्य संस्कृति द्वारा उठाए जा रहे सवाल !
कुछ बानगी देखिये -
कानून वापसी से बीजेपी को चुनावी फायदा होगा कि नहीं ?
क्या राहुल को दरकिनार कर ममता अपने लिए जोड़ पाएंगी अखाड़ा ?
यूपी में प्रियंका को हासिल होंगे कितने प्रतिशत वोट ?
पंजाब में कैप्टन - ढींढसा - भाजपा गठबन्धन का फायदा - नुकसान कांग्रेस को या केजरीवाल को ?
उत्तराखण्ड में क्या धामी और हरीश रावत के चेहरों पर लड़े जाएँगे चुनाव ?
क्या राकेश टिकैत चुनाव तक वापस नहीं लौटेंगे ?
आप रोज ही सुनते होंगे ये सवाल । प्रायः हर टीवी चैनल पर यही
चकल्लसबाजी होती है । शाम 5 बजे से लेकर रात 9 बजे तक के कार्यक्रम जैसे भी हों , उनके शीर्षक बड़े तीखे होंगे । सांध्यकालीन बहसों के टाइटल बनाने वाले कुछ खास लोग सभी चैनलों के पास हैं । किसी भी चैनल पर चले जाइये , बहस में बैठे नेता वही होंगे । पार्टियों और चैनल्स की ओर से
प्रवक्ताओं को ताक़ीद है कि सवाल का जवाब मत देना , सामने वाले प्रतिद्वंद्वी प्रवक्ताओं से लड़ना शुरू कर देना ।
मतलब विषय से बाहर भागो , जोर जोर से बोलकर मूल विषय को गायब कर दो । प्रवक्ता शिरोमणियों में अनुराग भदौरिया का नाम सबसे ऊपर हैं । उन्हें बस बोलना है , जबकि खुद उन्हें
समझ नहीं आता कि वे क्या बोल रहे हैं । अभय दुबे भी ऐसे ही हजरत प्रवक्ता हैं जो विषय पर कभी बोलते नहीं । रविश कुमार की तो शक्ल बताती है कि भीतर किसी से कितनी नफरत भरी है। एक लॉबी के पके पकाए मोहरे हैं । अंजना ओम कश्यप हैं जिन्हें राकेश टिकैत दुनिया जहान में सबसे महान लगते हैं।
रुबिका लियाकत भी बीजेपी की प्रवक्ता बनती जा रही हैं । कितने गिनाएं , आप सब जानते हैं । कौन कितने पानी में हैं सब पहचानते हैं ।
बात सवालों से शुरू हुई थी। सवाल सीधे हैं परन्तु जवाब टेढ़े आते हैं। अब सीधा जवाब तो तब मिले जब जवाब पता हो। मसलन राहुल के सवालों का सिलसिला देखिये ।
उनके पास मूल सवाल कोई नहीं , नारे हैं । जैसे चौकीदार चोर है , राफेल की खरीद में भ्रष्टाचार है , संसद में 15 मिनट दे दो , मुझसे बहस नहीं कर सकता मोदी , मुझसे आंख मिलाकर बात नहीं कर सकता मोदी आदि आदि । नारे भी ऐसे जो शीर्षक लगें , बिना विषयवस्तु का टाइटल लगें ।
कमाल यह है कि कांग्रेस की लड़ाई कहीं अखिलेश से है , कहीं ममता से , कहीं केजरीवाल से तो कहीं अकालियों से । लेकिन उन्हें लगता है कि उनकी लड़ाई तो मोदी से है , उन्हें घेरो । अखिलेश ,ममता ,केजरी ,उद्धव आदि पर चुप्पी साध लो । भले ही वे राज्यों में कांग्रेस का कबाड़ा क्यौं न कर दें ।
कमाल की बात है कि लोगों की अपनी जहनी काबलियत मीडिया की खबरों में गुम हो गई है , बाकी सोशल मीडिया में । मीडिया जो शीर्षक देता है उन्हें जनता अपने विचार बताकर फैलाना शुरू कर देती है । चाय की दुकानों पर चौपले और चौपालों पर लोग जब मिलते हैं तो उन्हीं बातों पर बोलते और बहसते हैं
जो टीवी मीडिया ने सैट की हैं । अपना चिंतन गायब हो जाना दुर्भाग्यपूर्ण है ।
समाज का निर्धारण टीवी पर आने वाली बहसों से होने लगे तो समाज में विचार कहाँ से पैदा होंगे ? तब तो शीर्षक पैदा होंगे । सामाजिक अस्तित्व का नैरेटिव मीडिया पर तय होना खतरनाक है ।
कुछ कारपोरेट हाउस ही देश की दिशा तय करेंगे क्या ? ऐसा कोई भी व्यक्ति दिखाई नहीं देता जो समाज को इस संकट से बचाए । जबकि समाज को उसके अपने मूल चिंतन पर लौटाकर देश का भविष्य तय करना लोकतंत्र के लिए सबसे जरूरी है।
साभार
- कौशल सिखौला @Sabhapa30724463@badal_saraswat@Sunnyharsh44
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यह फोटो जयपुर के एक आलीशान हॉटल की लॉबी में लगी हुई है...
हाल ही जब मैं वहाँ गया तो इसे आपके लिए ले आया..
गौर से देखिए इसे.. इसमें कुछ शिकारी लोग हैं जो इतने जांबाज थे कि चीते पालते थे..
चीता भारत के जंगलों में अंतिम बार 1969 में देखा गया था,
उसके बाद यह जीव भारत में कभी नहीं देखा गया..
यह अब अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के जंगलों में पाया जाता है..चीता दुनिया का सबसे फुर्तीला और तेज दौड़ने व लपक वाला जीव होता है..
अभी कुछ 80-100 साल पहले तक जयपुर में कुछ शिकारी लोग इन्हें अपने घर पर पालते थे और खाट से बाँधकर रखते थे..
उनका एक मोहल्ला (चीतावतान) भी था पुराने जयपुर में.. जो आज भी मौजूद है..
वे स्थानीय राजाओं और अंग्रेज अफसरों के लिए जंगली जीवों का शिकार इनसे करवाते थे..शिकार मुख्यतः आधुनिक साँगानेर और विद्याधर नगर के बीच में होता था...या फ़िर नाहरगढ़-झालाना में...चीते उनके आदेश पर हिरण मारकर
ऐसे नोबेल प्राइज पाने वाले
भारत के लिए किस काम के -
अभिजीत बनर्जी जैसे लोग,
अपना ज्ञान हमें न दें -
अमर्त्य सेन के बाद एक और
महान अर्थशात्री कहे जाने वाले
अभिजीत बनर्जी को भी भारत
में कमियां ही दिखाई देती रही
हैं --
अमृत्य सेन और बनर्जी जैसे लोगों
को लगता है भारत की निंदा करने
के लिए ही नोबल प्राइज दिए गए
थे --अमृत्य सेन मनमोहन सिंह
सरकार में मोटा पैसा भी बनाता
रहा और भारत को पिछड़ा देश
भी कहता रहा --
शनिवार 4 दिसंबर की रात को
अहमदाबाद विशवविद्यालय के
दीक्षांत समारोह में अमेरिका से
वर्चुअल तरीके से बोलते हुए
बनर्जी ने कहा - अब भी भारत
की अर्थव्यवस्था 2019 के स्तर
से नीचे है --
बंगाल में कुछ दिन रह कर लोगों
के स्तर को देख कर कह रहे थे
बनर्जी पूरे
अपनी दलाली वाली दुकान का शटर गिर जाने से कलपते Paid news के दल्ले....भांड मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर हमेशा की तरह एक बार फिर जुट गये है अपने साजिश वाले एजेंडा के नैरेटिव सेट करने वाले मिशन मे....भले ही पिछले सात साल मे उनकी लॉबी कई बार मुंह की खाई है...
लेकिन बेहया कुनबा मे एक फिर हर कोई जुट गया है कुछ सौ चुने लोगों के आधार पर किये गये सर्वे को दिखा कर जनता को बहकाने मे....तो कुछ दल्ले माइक लेकर अपने एजेंटों का सड़को पर लिये गये इंटरव्यू को दिखा कर जनता को फुसलाने मे...तो कुछ ऐसे पीड़ित पेड चम्मचचोर पत्तलकार हैं
जो बेसिरपैर के तर्क देकर बता रहे हैं कि बीजेपी तो पांचो राज्य हारने जा रही है.कुछ ऐसे भी हैं जो अपने कथित निष्पक्ष प्रोग्राम मे बैठाये गये चिलगोजों के पास ही माइक और कैमरा ले जाकर उनका सरकार विरोधी बयान दिखा कर बीजेपी सरकार विशेष कर योगी के विरूद्ध एक माहौल बनाने मे लग चुके हैं.
क्या आप जानते है? हमारे जज साहिबान कितने त्याग करते है? नहीं जानते? कोई बात नहीं ये लेख पढ़ें, सब जानकारी है।
हाईकोर्ट के जजों को लगभग 8 घरेलू नौकर मिलते हैं। घर के सभी काम करने के लिए, वो घर जो कम से कम चार बड़े कमरों वाला मकान होता है और जो साहब को देश की जनता के दिये
टैक्स से फ्री में रहने को दिया जाता है। जिसके हर कमरे में, और जज साहब चाहें तो टॉयलेट में भी AC लगे हुये होते हैं, जिनका बिल कभी साहब को नहीं चुकाना होता। हां, ये AC हर साल बदले जाते हैं, फ्री में, उसी तरह जैसे साहब का मोबाइल (जो हमेशा मार्केट में उपलब्ध सबसे मंहगा फोन होता है)
और लैपटॉप भी हर साल बदला जाता है। और ये पुराने AC, लैपटॉप या मोबाइल साहब को जमा नहीं करना पड़ता। वो उनके बच्चों या रिश्तेदारों के काम आते हैं।
साहब को सुरक्षा के नाम पर (तीन शिफ्टों के मिलाकर) 12 पुलिसवाले मिले होते हैं जिनमें एक समय में तीन हर समय घर की सुरक्षा करते हैं और
दोस्तो आजकल पूरी दुनिया में सिर्फ एक ही धंधा चल रहा हैं कि -जो जिसका जितना बड़ा बैवकूफ बनायेगा उतने बड़े प्रोफिट में रहेगा या कहो कि झटके का धंधा मने एक झटके में करोड़पति बनने का चस्का।इस धंधे में कामयाब एक आदमी होता हैं और बर्बाद करोड़ो लोग होते हैं।
और दुनिया में लोगो को बैवकूफ बनाने के लिए सबसे इजी टारगेट इस देश के लोग है जो शार्ट कट ढू़ढ़ते हैं और सबसे जल्दी शिकार हे जाते हैं।।
-अब आप देखिए आज मैं पीएनबी की खबर पढ रहा था जिसके माध्यम से कहा गया हैं कि पीएनबी अब बचत खाते धारको को केवल 2.80 का ब्याज देगा।
अब लोग क्या करेगें..अपना पैसा बेंको से निकालेगे और लालच में फंसकर वन टू का फोर करने के चक्कर में इन क्रिप्टो -लिर्पटो में पैसा लगायेगें। और फिर रोयेगें, सुसाईड करते फिरेगें। मैने पहले भी कई बार लिखा हैं कि गरीबो और मध्यम परिवारो तक पंहुचने वाली सारी नीतियों और योजनाओ में