हीरा गोल्ड में जब लोग बढ़ चढ़कर निवेश कर रहे थे तब मैंने हीरा गोल्ड के भोले भाले मासूम से निवेशकों को सावधान करनेके लिए छोटा सा ट्रैलर रिलीज़ कियाथा..तब मुझे पताचला कि हमारे शहरमें हीरा गोल्ड वाली चाचीके हाथमे बैत करने वालोंकी एक बहुत बड़ी तादाद रहती है।उसकेबाद मुझे कई सिरफिरे
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लोगों का सामना करना पड़ा और कई लोगों को समझाना पड़ा कि आख़िर क्यों मुझे हीरागोल्ड में जीरागोल्ड नज़र आया!लेकिन अफसोस.. सिवाय मेरे दो-चार दोस्तों के कोई नहीं समझा। सबने यही कहा कि चाची तो बुरखा पहनेहैं, चाचीतो हिजाबमें रहवे है,चाची तो नमाज़ पढ़े है..चाची तो बड़ी अल्लाह वाली है।
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चाची तो सिर्फ मुसलमानों का पैसा लेवेहै,चाची तो सिर्फ मुसलमानो का फायदा करेहै।तब मुझे लोगोंकी मासूमियतपर हँसीआई।
बहरहाल एक दिन आया,जब चाचीने कर्नाटक विधानसभा चुनावमें भाजपाको फायदा पहुंचाने के लिए नाटक करके दिखाया।तब ये बात साफ हो गई कि चाचीने अपनी सल्तनत बचाने के लिए सत्ता से
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डीलकर लीहै।लेकिन चाची बेहतर रीजल्ट नहीं दे पाई।उसके बाद चाचीका हीरागोल्ड पूरी तरह से फोल्डहो गया।हीरागोल्डके निवेशकोंकी बहुतसी कहानियां मेरे ज़ेहनमें तैरती हैं। एक बेवा को उसके ससुर का मकान बिकनेपर हिस्सा मिला था।वो पूरा पैसा उसने हीरागोल्ड में ये सोचकर डालदिया कि इससे होनेवाली
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इनकम से कमरे का किराया भर देंगे और रोटी पानी का जुगाड़ भी हो जाएगा,रकम सेफ रहेगी। लेकिन बेचारी..आज किराए के घर में रह रही है,और उसे कुछ पता नहीं कि कहाँ फरियाद की जाए!!ऐसी बहुतसी कहानियांहै। चाची ने सबसे ज़्यादा बर्बाद किया मौलाना लोगों को..क्योंकि मौलानाओ के पास बिज़नेस की कोई
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स्किल नहीं होती है..तो ऐसे में मौलानाओ का फंसना सबसे आसान था।और चाची वैसे भी नेक परहेजगार पूरी थी।बिज़नेस मीटिंग्स में बढिया तकरीर करती थी।मैं ये नहीं कहरहा कि चाचीको बुरखा पहनकर बिज़नेस नहीं करना चाहिए..करे बिज़नेस।बस तकरीरें वहांकरे जहाँ लोग तकरीरें सुनने आए हों।मेरी नज़र में
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चाचीजैसे लोग सबसे बड़ा नुकसान ये करतेहैं कि वे लोगोंमें पैसा कमानेकी स्वाभाविक स्किल को पैदाही नहीं होने देते।निवेशकोंको लगताहै अपनेको कहां दिमाग़ लगाने की, और हाथ हिलाने की जरूरत है..चाची है ना..अल्लाह की मदद है चाची के साथ..चाची दिमाग़ लगा लगी।
लुब्बे लुआब येहै कि धर्म बहुत
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ही निजी वस्तु है। कोई इसका इस्तेमाल राजनीति में करे या अपने प्लाट अथवा स्कीम बेचने में करे तो ऐसे में वो व्यक्ति या तो बेवकूफ़ है या धूर्त...। आपको काबा शरीफ के अंदर इब्लीस की छठी औलाद मिल सकती है। इसलिए अपने जज़्बातों को इन्वेस्ट करने से सदैव बचे।
8 @BramhRakshas
एक औरत कहती है शादी के सत्रह साल बाद मैं इस नतीज़े पर पहुंची के मर्द ख़ुदा की खूबसूरत तरीन मख़लूक़ है
वो अपनी जवानी को अपनी बीवी और बच्चों के लिए
क़ुरबान करता है,
ये वो हस्ती है जो पूरी कोशिश करता है के उसके बच्चों का आइंदा मुस्तक़बिल खूबसूरत और अच्छा बने, 5/1
लेक़िन उस क़ुरबानी के बदले हमेशा उसकी सर्ज़निश की जाती है,
अग़र कभी फ्रेशमेन्ट के लिए घर से बाहर क़दम रखे तो बेपरवाह
और अग़र घर मे रहे तो सुस्त और बेकार
अग़र बच्चों को ग़लती की वजह से डांटें तो वहशी
अग़र बीवी को नौकरी से रोके तो मुताक़बिर
और रौअब जमाने वाला!
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अग़र मां से दिलजोई करे तो माँ का लाड़ला
और अग़र बीवी से प्यारी बातें करे तो बीवी का मुरीद
उसके बावजूद मर्द दुनिया की वो हस्ती है जो अपने बच्चों को हर ऐतबार से ख़ुद से बेहतर देखना चाहता है,
बाप वो हस्ती है जो अपने बच्चों से नाउम्मीदी के बावजूद इश्क़ करता और हमेशा उनकी
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आजकल वो,
● मैं देश नहीं बिकने दूंगा, जैसी खुबसूरत बातें नहीं करते !
● अब वह स्विस बैंकों में जमा काला धन जो अब डबल हो चुका है, पर बात नहीं करते !
● अब वो सब के खाते में 15-15 लाख रुपए आने की बात नहीं करते !
● अब वह डॉलर के मुकाबले गिरते रुपए पर बात नहीं करते !
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● अब वो जिस देश का रुपया गिरता है उस देश के प्रधानमंत्री की इज्जत गिरती है, ऐसी बातें नहीं करते !
● अब वो देश की गिरी हुई जी. डी. पी. पर मुंह नहीं खोलते
● अब वो देश में हो रहे बलात्कारों व अत्याचारो पर बात नहीं करते !
● अब वो दागी मंत्रियों व नेताओं पर बात नहीं करते।
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●अब वह महिलाओं की सुरक्षा पर बात नहीं करते!
●अब वह जमाखोरी पर बात नहीं करते !
●अब वो मिलावटखोरी पर बात नहीं करते !
●अब वो रिश्वतखोरी पर बात नहीं करते!
●अब वो स्मार्ट सिटी बनाने की बात नहीं करते!
●अब वो बुलेट ट्रेन की बात नहीं करते!
●अब वो अच्छे दिनों की भी बात नहीं करते!
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बैंक यूनियन आता है, निजीकरण का डर दिखाता है, हड़ताल करवाता है। बैंक यूनियन के जाल में नही फंसना चाहिए।
यह तोता रटन्त रट लीजिए,
और कारण इस कथा से समझ लीजिए।
एक समय की बात है। भारतपुर में राम नामक लोहे का व्यापारी था। उसने100रुपये का कर्ज लेकर, लोहा खरीदा। जिसे वह130रुपये मे
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बेचकर,बैंक को 112 रुपये लौटा देता। इस तरह राम के 18 रुपये मुनाफे के बच जाते।
यह काम वह कई बरसों से सफलता से कर रहा था। लेकिन इस बार एक दरिंदर नामक गली का गुंडा, हावी हो गया है। वह राम की दुकान खुलने नही देता।उसके ग्राहकों को धमकाता है। उसकी दुकान के सामने गड्ढा खुदवा देता है।
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जब राम अपना लोहा बेचनहीं पाया,तो उसमे जंग लगने लगी।बैंकका कर्ज एनपीए हो गया। एनपीएहोने की,शहरके अखबारमें बड़ी बड़ी खबरें छपी।एंकरोंने डिबेट चलाई,राम बदनाम हो गया।आखिरकार,किश्ते न पटनेपर,बैंक राम की दुकान पर कब्जा करलिया और सारे लोहेकी नीलामी करवादी
अब मांग हो रही है कि लुटियन दिल्ली के अकबर रोड का नाम बदल आकर विपिन रावत पर रख दिया जाए- इससे पहले औरंगजेब रोड का नाम बदला गया था- ए पी जे अब्दुल कलाम के नाम पर .
जान लें इंडिया गेट के आसपास की दिल्ली जब सन 1912 में प्लान की गई थी तब उसका अनुमानित बजट10.01,66500 रुपये था ,
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बाद में यह बढ़ता गया क्योंकि छः हजार एकड़ में निर्माण का कार्य 1929में ख़त्म हुआ .लुटियन ने इसका डिजाइन बनाया था और उस समय सेंत स्टेफेन कालेज में के प्रोफेसर पेरिसेवत स्पीया ने सड़कों के नाम रखने पर सुझाव दीये थे --उनका सोच था की जिन लोगों नर भी दिल्ली पर राज किया उनके नाम हों
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यहाँ फिरोज शाह के नाम की भी सडक है और दारा शिकोह और बहादुर शाह जफ़र भी -- इंडिया गेट से निकलने वाले आठ मार्गों और उप मार्गों के लिए कुल13किस्म के पेड़ चुने गयी और तय किया गया की हर सडक पर केवल एक नस्ल का पेड़ होगा जैसे की अशोक रोड पर जामुन-- उस समय साक्षरता कम थी,लोग सडक के नाम
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एक थे जवाहरलाल नेहरू एक है नरेंद मोदी
एक थे लालबहादुर शास्त्री और एक है अजय मिश्रा टेनी
1956में लाल बहादुर शास्त्री रेलमंत्रीथे।इस दौरान तमिलनाडु के अरियालुर में भीषण ट्रेन हादसा हुआ, जिसमें कई लोग मारे गए थे, बड़ी संख्या में लोग घायल हुए थे।इस हादसे के लिए स्वयं को जिम्मेदार
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मानते हुए उन्होंने रेल मंत्रीके पदसे इस्तीफा दे दिया
देश एवं संसदने शास्त्रीजी की इस अभूतपूर्व पहल पर हैरान रह गया,किसीने उनसे इस्तीफा मांगानही था लेकिन उन्होंने हादसेकी नैतिक जिम्मेदारीको स्वीकारकिया और आगे बढ़कर स्वंय इस्तीफादे कर भारतीय लोकतंत्रके लिए एकअनूठी मिसाल प्रस्तुतकी
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरूने इस घटनापर संसदमें एक भाषण दिया जिसमें उन्होंने लाल बहादुर शास्त्रीकी ईमानदारी एवं उच्च आदर्शोंकी तारीफकी।नेहरूने संसद में कहाकि उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री का इस्तीफा इसलिए नहीं स्वीकार किया है कि जो कुछ हुआ वे इसकेलिए जिम्मेदार हैं बल्कि
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