अब मांग हो रही है कि लुटियन दिल्ली के अकबर रोड का नाम बदल आकर विपिन रावत पर रख दिया जाए- इससे पहले औरंगजेब रोड का नाम बदला गया था- ए पी जे अब्दुल कलाम के नाम पर .
जान लें इंडिया गेट के आसपास की दिल्ली जब सन 1912 में प्लान की गई थी तब उसका अनुमानित बजट10.01,66500 रुपये था ,
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बाद में यह बढ़ता गया क्योंकि छः हजार एकड़ में निर्माण का कार्य 1929में ख़त्म हुआ .लुटियन ने इसका डिजाइन बनाया था और उस समय सेंत स्टेफेन कालेज में के प्रोफेसर पेरिसेवत स्पीया ने सड़कों के नाम रखने पर सुझाव दीये थे --उनका सोच था की जिन लोगों नर भी दिल्ली पर राज किया उनके नाम हों
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यहाँ फिरोज शाह के नाम की भी सडक है और दारा शिकोह और बहादुर शाह जफ़र भी -- इंडिया गेट से निकलने वाले आठ मार्गों और उप मार्गों के लिए कुल13किस्म के पेड़ चुने गयी और तय किया गया की हर सडक पर केवल एक नस्ल का पेड़ होगा जैसे की अशोक रोड पर जामुन-- उस समय साक्षरता कम थी,लोग सडक के नाम
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पढ़ नहीं पाते थे --महज पेड़ से सडक को याद रख सकें,क्योंकि तब दुनिया में बहुत कम शहर इस तरह के थे जहां एक चौकसे आठ सडक निकलें -अमलतास,नीम आदि को चुना गया रोपने को, जिनकी उम्र लम्बी होती है,घने होते हैं और दूर से चीन्ह सकते हैं --
हालाँकि आज़ादी के बाद काई सड़कों के नाम बदले गए
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जैसे किंग्सवे को राज पथ,क्विन वे को जनपथ, हार्डिंग एवेन्यू को तिलक रोड --और फिर अब यह सिलसिला निकल पडा --एक बात जान लें औरंगजेबके जजिया के कारण उसे भले ही हिन्दू विरोधी कह दें लेकिन उसका शासन 1658से लेकर1707में उनकी मृत्यु तक चला। अर्थात लगभग49साल -यदि वह हिंदी विरोधी होतातो तब
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देश में 23लाख मन्दिर न होते,कुम्भ- सिंहस्थ मेले बंद हो गए होते
हर शासक की कुछ बुराइयां होती ही हैं,शासन करना ही बुराई का बीज है लेकिन अकबर हो या औरंगजेब -- वे आक्रमणकारी तो थे नहीं - वे देहस के हिन्दू राजाओं की मद्द्से ही देश पर राज कर रहे थे--उस समय भी हिन्दू जनता और हिन्दू
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जागीरदारी बहुसंख्यक थी-इतने लम्बे समय तक कोई राजा भारत में हिदू विरोधी बन कर शासन आकर नहीं सकता था -
जो इतिहासको नकारतेहैं वे भी उसीका आगे चल आकर शिकार होतेहैं काश दिल्ली मने एक तीसरी रिंग रोडबने-ईस्टर्न और वेस्टर्न पेरिफीरल मार्गहैं ही उनको जर्नल विपिन रावतको समर्पित कर दियाजाए
एक कोंसेप्त के साथ विकसति गए सौ साल पुराने सहर को सेंट्रल विस्टा के नाम पर बहुत कुछ बदला जा रहा है
खैर --खुद की बड़ीलाईन खींच कर दूसरों की रेखा को छोटा करना हेई पुरुषार्थ होता है -दूसरों की बनायी रेखा को मिटा कर खुद की रेखा को बड़ा करने वाले घाघ कहलाते हैं पुरुषार्थी नहीं
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बैंक यूनियन आता है, निजीकरण का डर दिखाता है, हड़ताल करवाता है। बैंक यूनियन के जाल में नही फंसना चाहिए।
यह तोता रटन्त रट लीजिए,
और कारण इस कथा से समझ लीजिए।
एक समय की बात है। भारतपुर में राम नामक लोहे का व्यापारी था। उसने100रुपये का कर्ज लेकर, लोहा खरीदा। जिसे वह130रुपये मे
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बेचकर,बैंक को 112 रुपये लौटा देता। इस तरह राम के 18 रुपये मुनाफे के बच जाते।
यह काम वह कई बरसों से सफलता से कर रहा था। लेकिन इस बार एक दरिंदर नामक गली का गुंडा, हावी हो गया है। वह राम की दुकान खुलने नही देता।उसके ग्राहकों को धमकाता है। उसकी दुकान के सामने गड्ढा खुदवा देता है।
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जब राम अपना लोहा बेचनहीं पाया,तो उसमे जंग लगने लगी।बैंकका कर्ज एनपीए हो गया। एनपीएहोने की,शहरके अखबारमें बड़ी बड़ी खबरें छपी।एंकरोंने डिबेट चलाई,राम बदनाम हो गया।आखिरकार,किश्ते न पटनेपर,बैंक राम की दुकान पर कब्जा करलिया और सारे लोहेकी नीलामी करवादी
एक थे जवाहरलाल नेहरू एक है नरेंद मोदी
एक थे लालबहादुर शास्त्री और एक है अजय मिश्रा टेनी
1956में लाल बहादुर शास्त्री रेलमंत्रीथे।इस दौरान तमिलनाडु के अरियालुर में भीषण ट्रेन हादसा हुआ, जिसमें कई लोग मारे गए थे, बड़ी संख्या में लोग घायल हुए थे।इस हादसे के लिए स्वयं को जिम्मेदार
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मानते हुए उन्होंने रेल मंत्रीके पदसे इस्तीफा दे दिया
देश एवं संसदने शास्त्रीजी की इस अभूतपूर्व पहल पर हैरान रह गया,किसीने उनसे इस्तीफा मांगानही था लेकिन उन्होंने हादसेकी नैतिक जिम्मेदारीको स्वीकारकिया और आगे बढ़कर स्वंय इस्तीफादे कर भारतीय लोकतंत्रके लिए एकअनूठी मिसाल प्रस्तुतकी
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरूने इस घटनापर संसदमें एक भाषण दिया जिसमें उन्होंने लाल बहादुर शास्त्रीकी ईमानदारी एवं उच्च आदर्शोंकी तारीफकी।नेहरूने संसद में कहाकि उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री का इस्तीफा इसलिए नहीं स्वीकार किया है कि जो कुछ हुआ वे इसकेलिए जिम्मेदार हैं बल्कि
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धर्म की तुला पर राजनीति का सौदा करने में माहिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीने कल यूपी के चुनाव में औरंगज़ेबकी भी एंट्री करवादी।
उन्होंने कहा कि “जब औरंगज़ेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं,”जो उनकी इच्छानुसार आज अख़बारों की सुर्खी भी है।
उनका संबोधन उन संघियों को ध्यान मे 4/1
रखकर है, जिन्हें आरएसएस रात-दिन शिवाजी माने ‘हिंदू’ और औरंगज़ेब माने ‘मुसलमान’ पढ़ाता रहता है।
मोदी जी को जानना चाहिए कि औरंगज़ेब जब आता है तो मिर्ज़ा राजा जय सिंह और जसवंत सिंह की ताक़त पर आता है और जब शिवाजी उठते हैं तो इब्राहिम ख़ान जैसे तोपची और दौलत खां
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जैसे नौसेनाध्यक्ष को साथ लेकर उठते हैं।
शिवाजी हिंदू थे, हिंदुत्ववादी नहीं! (राहुल गांधी के शब्दों में)
शिवाजी का ‘हिंदवी साम्राज्य’ बीजापुरी मुस्लिम सिपाहियों समेत तमाम मुस्लिम सेनानायकों की कुर्बानियों से बना था।
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भारत के रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कल देश में बैंकिंग सेक्टर के भविष्य को लेकर बहुत ही चिंताजनक बात कही।
उन्होंने कहा कि लोगों को "ऊंचे ब्याज़ दरों" के लालच में बैंकों में ज़्यादा पैसा रखने से बाज़ आना चाहिए।
खासकर शहरी कोऑपरेटिव बैंक्स के लिए सरकार नए नियम लाने
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जा रही है। यानी जोखिम और बढ़ेगा।
दास के मुताबिक, इसमें जोखिम ज़्यादा है। साथ ही यह भी कहा कि बैंकों के डूबने पर90 दिन में 5लाख तक मिल जाएं, उसकी गारंटी नहीं है- अलबत्ता मोदीजी ने इसका वादा किया है।
दास का यह भी कहना था कि 5 लाख तक की जमा राशि की वापसी सिर्फ़ अंतिम विकल्प है।
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मतलब आप समझ लें।
आप यह भी जान लें कि कल ही मोदीजी ने कुछ लोगों को उनके डूबे पैसे का एक लाख का चेक भी दिया। ऐसे3लाख से ज़्यादा लोगों को बरसों बाद अब ये चेक मिलेंगे।
ये भारतकी आज की इकॉनमीहै और इसमें रोज़ हवा भरने वाली पेडिग्री मीडियाने दास के बयान को खास तवज़्ज़ो नहीं दिया-
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कथित दुर्घटनामें भारतके पहले सीडीएस एवं अन्य भारतीयभी लुक्मा ए अजल बनगए
बहुतसी कहानियां सोशल मीडिया और आपसी बातचीतमें कही सुनी जारहीहैं जिनका निराकरण यह सरकार कभीनहीं करेगी क्योंकि राजनीतिक उद्देश्यसे करनाभीनहीं चाहती लेकिन
आजकी यह खबर सरकारकी नाकामीपर जरूर सवाल खड़ेकर रही हैं।
यदि सीडीएस का महत्व होताहै तो उसकी नियुक्तिमें अभी कुछ समय क्यों लगेगा?
क्या इतने समय तक यह सीट खाली रहेगी अर्थात सीडीएस बनाना कोई जरूरी नहींहै और जनरल रावत को किसी और वजह से बनाया गया था!
क्या यह हैरानी का विषय नहीं है कि सीडीएस ऑफिसमें सेकंड इन कमांड जैसा कोई सिस्टम नहीं है
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अर्थात जनरल रावत वन मैन डिक्टेट करते थे ?
यदि इसमें कोई विदेशी साज़िश का संदेह है तो क्या हमारी एजेंसियां इतनी नकारा बना दी गई है या उनमें भी घुसपैठ हो चुकी है ?
यदि उत्तराखंड चुनाव में इनकी शहादत पर वोट मांगने की तैयारी की जा रही है तो उत्तराखंड वालो को पूछना चाहिए कि जो
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उत्तर प्रदेश के भईया लोगों से निवेदन है कि बेरोजगारी,भूखमरी,गरीबी पर ध्यान न दें और मंदिर के लिए वोट देते रहें। इससे आप के परिवार और आने वाली पीढ़ी को विकास के प्रत्यक्ष उदाहरण मिलेंगे जिन्हें आप कांगी, वामी, आपियों के मुंह पर मार सकते हैं।
आखिर भूखमरी है कहां? फिरोजाबाद में?
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बलिया में? फैज़ाबाद इत्यादि अन्य 70 शहरों में? उत्तर प्रदेश में तो नहीं है न? प्रदेश में तो विकास की आंधी चल रही है। अखिलेश के बनाए एक्सप्रेस वे पर हवाई जहाज लैंड कर रहे हैं तो योगी जी के बनाए सड़क पर नारियल फोड़ने पर नारियल नहीं सड़क फूट रही है। इससे क्या फर्क पड़ता है?
अगली बार जब सड़क का इनॉग्रेशन होतो टमाटर फोड़कर काम चलाया जा सकता है!! या फिर बिना इनॉग्रेशन ही जनता को मरने के लिए छोड़ा जा सकता है।आप क्यों परेशान हों? आप जनता थोड़ी हैं।आप तो भक्त हैं!!
उधर योगीजी के #मास्टरस्ट्रोक से रिज़वी त्यागी बनगए।सोचिए विकास की रफ्तार कितनी तेज़ होगी।3