बैंक यूनियन आता है, निजीकरण का डर दिखाता है, हड़ताल करवाता है। बैंक यूनियन के जाल में नही फंसना चाहिए।
यह तोता रटन्त रट लीजिए,
और कारण इस कथा से समझ लीजिए।
एक समय की बात है। भारतपुर में राम नामक लोहे का व्यापारी था। उसने100रुपये का कर्ज लेकर, लोहा खरीदा। जिसे वह130रुपये मे
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बेचकर,बैंक को 112 रुपये लौटा देता। इस तरह राम के 18 रुपये मुनाफे के बच जाते।
यह काम वह कई बरसों से सफलता से कर रहा था। लेकिन इस बार एक दरिंदर नामक गली का गुंडा, हावी हो गया है। वह राम की दुकान खुलने नही देता।उसके ग्राहकों को धमकाता है। उसकी दुकान के सामने गड्ढा खुदवा देता है।
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जब राम अपना लोहा बेचनहीं पाया,तो उसमे जंग लगने लगी।बैंकका कर्ज एनपीए हो गया। एनपीएहोने की,शहरके अखबारमें बड़ी बड़ी खबरें छपी।एंकरोंने डिबेट चलाई,राम बदनाम हो गया।आखिरकार,किश्ते न पटनेपर,बैंक राम की दुकान पर कब्जा करलिया और सारे लोहेकी नीलामी करवादी
श्याम, जो दरिंदर का दोस्त था,3
और तेल बेचता था। अब उसने चटपट एक लोहे की दुकान खोल ली। फिर 100 का माल, (जो अब ब्याज के साथ 150 का हो चुका) नीलामी में मात्र 30 रुपये में खरीद लिया (क्योकि दरिंदर ने और किसी को, नीलामी में घुसने ही नही देता)
इस तरह बैंक को 150 के बदले 30मिलते हैं। और श्याम को 100 का माल 30 मे।
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बैंक के 120रुपये डूब जाते हैं, लेकिन श्याम को, एक झटके में 70रुपये का मुनाफा हो जाता है। वह रातोरात अब उसका नाम फोर्ब्स की लिस्ट में आ जाता है। वह एशिया का सबसे बड़ा अमीर हो जाता है। मोहल्लेवाले उसकी सफलता पर रोज सुबह उठकर गर्व करते है।
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यह न्यू इंडिया में सफलता का शार्टकट है
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जहां पूरी मेहनत के बाद राम,महज18रुपये कमाता,श्याम झटके में70रुपये कमा गया।उसे सिर्फ एक काम करना था।उसे दरिंदरके गैंग का पूरा खर्च उठानाथा,और नई दुकान खोलनेका स्वांग करना था।
पिक्चर अभी बाकीहै मेरे दोस्त।
बैंकका बिकना बाकी है मेरे दोस्त।तो बैंक ऐसे कई रामः,रामौ, रामा:का घाटा
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सह-सहकर डूब जाताहै।लेकिन अभी भी उसके पास बहुत पैसेहै।तो अब दरिंदर और श्याम उसेभी खरीदनेके जुगाड़मेंहैं।
बैंक एसोसिएशन हड़ताल करतीहै।पर हमें उसका साथ नहीदेना चाहिए।क्योकि
(1)बैंक यूनियन वामपन्थकी निशानीहै।बैंकके कामचोर,ताश खेलनेवाले,बदतमीजऔर आलसी कर्मचारियोंपर ध्यान नही देनाचाहिए
(आइडियोलॉजीकल कारण)
(2)यूनियन मे जो हिन्दू है,वो गद्दारहैं।जो मुसलमानहै वो पाकिस्तानीहै,औरजो सिखहैं,वो खालिस्तानी है।ये सब लोग टुकड़े टुकड़े गैंग है।(राष्टवादी कारण)
(2)दरअसल अगर बैंक ही न होता,तो राम कर्ज ही न लेता,और न यह सब झमेला पैदा होता।आगेभी अगर बैंक रहेगा,दरिंदररहेगा,
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तो रामः,रामौ, रामा: कर्जा लेते रहेंगे,श्याम उन्हें बर्बाद करता रहेगा,इस तरह जनता का पैसा डूबता रहेगा।जब न रहेगा बैंक,तो न बचेगी बांसुरी(इकॉनमिस्ट कारण)
(3)इंदिरा ने प्राइवेट सेक्टर के बैंक,अधिग्रहण किये थे।यह अन्याय था,जिस तरह एयरइंडिया को टाटासे छीन लेना अन्याय था।देश मे बहुत
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कुछ गलत हो चुका।अब हम,सत्तर साल की गलतियां,सारी एक साथ, सही करेंगे।टाटा की एयरलाइन टाटा को, और बाटा का बैंक बाटा को लौटाएंगे ( न्यायपूर्ण कारण)
(4)दरिंदर रोज भंडारे चलाता है। गली के मंदिर भी बनवाता है। उसके होने से अब्दुल की पंचर वाली दुकान पहले ही बन्द हो चुकी। वही अब्दुल,
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जो बीफ खाता है, और जिसने 132 पीढ़ी पहले तराइन के युद्ध मे पृथ्वीराज चौहान को हराया था। ( धार्मिक, सांस्कृतिक एवम ऐतिहासिक कारण)
(5) .....( आज वाला फ़ारवर्ड आते ही जोड़ दूंगा)
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तपस्या में थोड़ी कमी जरूर है दरिंदर में, लेकिन विकल्प भी तो नही है। दरिंदर नही तो और कौन..???
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हमे दरिंदर को थोड़ा और वक्त देना चाहिए। यही कोई, दस बीस या पचास साल, क्योकि मार्किट में और भी बहुत सी दुकानें श्याम के लिए बिकनी बाकी है।
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इसलिए भाइयों, भैनो, च्युतियों। तोता रटन्त रट लीजिये।
"बैंक यूनियन आता है, निजीकरण का डर दिखाता है, हड़ताल करवाता है।
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बैंक यूनियन के जाल में नही फंसना चाहिए"
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डिसक्लेमर -कथा कपोलकल्पित है, और इसकी किसी भी व्यक्ति से कोई समानता मात्र संयोग हो सकता हे। तस्वीरें प्रतीकात्मक हैं।
13 @BramhRakshas
आजकल वो,
● मैं देश नहीं बिकने दूंगा, जैसी खुबसूरत बातें नहीं करते !
● अब वह स्विस बैंकों में जमा काला धन जो अब डबल हो चुका है, पर बात नहीं करते !
● अब वो सब के खाते में 15-15 लाख रुपए आने की बात नहीं करते !
● अब वह डॉलर के मुकाबले गिरते रुपए पर बात नहीं करते !
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● अब वो जिस देश का रुपया गिरता है उस देश के प्रधानमंत्री की इज्जत गिरती है, ऐसी बातें नहीं करते !
● अब वो देश की गिरी हुई जी. डी. पी. पर मुंह नहीं खोलते
● अब वो देश में हो रहे बलात्कारों व अत्याचारो पर बात नहीं करते !
● अब वो दागी मंत्रियों व नेताओं पर बात नहीं करते।
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●अब वह महिलाओं की सुरक्षा पर बात नहीं करते!
●अब वह जमाखोरी पर बात नहीं करते !
●अब वो मिलावटखोरी पर बात नहीं करते !
●अब वो रिश्वतखोरी पर बात नहीं करते!
●अब वो स्मार्ट सिटी बनाने की बात नहीं करते!
●अब वो बुलेट ट्रेन की बात नहीं करते!
●अब वो अच्छे दिनों की भी बात नहीं करते!
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अब मांग हो रही है कि लुटियन दिल्ली के अकबर रोड का नाम बदल आकर विपिन रावत पर रख दिया जाए- इससे पहले औरंगजेब रोड का नाम बदला गया था- ए पी जे अब्दुल कलाम के नाम पर .
जान लें इंडिया गेट के आसपास की दिल्ली जब सन 1912 में प्लान की गई थी तब उसका अनुमानित बजट10.01,66500 रुपये था ,
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बाद में यह बढ़ता गया क्योंकि छः हजार एकड़ में निर्माण का कार्य 1929में ख़त्म हुआ .लुटियन ने इसका डिजाइन बनाया था और उस समय सेंत स्टेफेन कालेज में के प्रोफेसर पेरिसेवत स्पीया ने सड़कों के नाम रखने पर सुझाव दीये थे --उनका सोच था की जिन लोगों नर भी दिल्ली पर राज किया उनके नाम हों
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यहाँ फिरोज शाह के नाम की भी सडक है और दारा शिकोह और बहादुर शाह जफ़र भी -- इंडिया गेट से निकलने वाले आठ मार्गों और उप मार्गों के लिए कुल13किस्म के पेड़ चुने गयी और तय किया गया की हर सडक पर केवल एक नस्ल का पेड़ होगा जैसे की अशोक रोड पर जामुन-- उस समय साक्षरता कम थी,लोग सडक के नाम
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एक थे जवाहरलाल नेहरू एक है नरेंद मोदी
एक थे लालबहादुर शास्त्री और एक है अजय मिश्रा टेनी
1956में लाल बहादुर शास्त्री रेलमंत्रीथे।इस दौरान तमिलनाडु के अरियालुर में भीषण ट्रेन हादसा हुआ, जिसमें कई लोग मारे गए थे, बड़ी संख्या में लोग घायल हुए थे।इस हादसे के लिए स्वयं को जिम्मेदार
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मानते हुए उन्होंने रेल मंत्रीके पदसे इस्तीफा दे दिया
देश एवं संसदने शास्त्रीजी की इस अभूतपूर्व पहल पर हैरान रह गया,किसीने उनसे इस्तीफा मांगानही था लेकिन उन्होंने हादसेकी नैतिक जिम्मेदारीको स्वीकारकिया और आगे बढ़कर स्वंय इस्तीफादे कर भारतीय लोकतंत्रके लिए एकअनूठी मिसाल प्रस्तुतकी
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरूने इस घटनापर संसदमें एक भाषण दिया जिसमें उन्होंने लाल बहादुर शास्त्रीकी ईमानदारी एवं उच्च आदर्शोंकी तारीफकी।नेहरूने संसद में कहाकि उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री का इस्तीफा इसलिए नहीं स्वीकार किया है कि जो कुछ हुआ वे इसकेलिए जिम्मेदार हैं बल्कि
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धर्म की तुला पर राजनीति का सौदा करने में माहिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीने कल यूपी के चुनाव में औरंगज़ेबकी भी एंट्री करवादी।
उन्होंने कहा कि “जब औरंगज़ेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं,”जो उनकी इच्छानुसार आज अख़बारों की सुर्खी भी है।
उनका संबोधन उन संघियों को ध्यान मे 4/1
रखकर है, जिन्हें आरएसएस रात-दिन शिवाजी माने ‘हिंदू’ और औरंगज़ेब माने ‘मुसलमान’ पढ़ाता रहता है।
मोदी जी को जानना चाहिए कि औरंगज़ेब जब आता है तो मिर्ज़ा राजा जय सिंह और जसवंत सिंह की ताक़त पर आता है और जब शिवाजी उठते हैं तो इब्राहिम ख़ान जैसे तोपची और दौलत खां
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जैसे नौसेनाध्यक्ष को साथ लेकर उठते हैं।
शिवाजी हिंदू थे, हिंदुत्ववादी नहीं! (राहुल गांधी के शब्दों में)
शिवाजी का ‘हिंदवी साम्राज्य’ बीजापुरी मुस्लिम सिपाहियों समेत तमाम मुस्लिम सेनानायकों की कुर्बानियों से बना था।
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भारत के रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कल देश में बैंकिंग सेक्टर के भविष्य को लेकर बहुत ही चिंताजनक बात कही।
उन्होंने कहा कि लोगों को "ऊंचे ब्याज़ दरों" के लालच में बैंकों में ज़्यादा पैसा रखने से बाज़ आना चाहिए।
खासकर शहरी कोऑपरेटिव बैंक्स के लिए सरकार नए नियम लाने
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जा रही है। यानी जोखिम और बढ़ेगा।
दास के मुताबिक, इसमें जोखिम ज़्यादा है। साथ ही यह भी कहा कि बैंकों के डूबने पर90 दिन में 5लाख तक मिल जाएं, उसकी गारंटी नहीं है- अलबत्ता मोदीजी ने इसका वादा किया है।
दास का यह भी कहना था कि 5 लाख तक की जमा राशि की वापसी सिर्फ़ अंतिम विकल्प है।
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मतलब आप समझ लें।
आप यह भी जान लें कि कल ही मोदीजी ने कुछ लोगों को उनके डूबे पैसे का एक लाख का चेक भी दिया। ऐसे3लाख से ज़्यादा लोगों को बरसों बाद अब ये चेक मिलेंगे।
ये भारतकी आज की इकॉनमीहै और इसमें रोज़ हवा भरने वाली पेडिग्री मीडियाने दास के बयान को खास तवज़्ज़ो नहीं दिया-
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