कल जन्मदिन पर कईयों ने वाजपेयी जी को याद किया और कई जगहों पर क्रिसमस प्रोग्राम को खंडित किया गया,आयोजकों को डराया-धमकाया गया।इस वाजपेयी होते तो क्या करते ? आडवाणी क्या सोच रहे होंगे ?
थोड़ा पीछे चलते हैं।साल 1999। वाजपेयी सरकार।
ईसाई तब भी भारत की जनसंख्या में 3% से कम थे, आज भी हैं। यूं तो अतिवादी हिंदू को कभी ईसाइयों के शारीरिक बल से वैसा खतरा महसूस नहीं हुआ,जैसा कि मुसलमानों से होता है। लेकिन RSS लंबे समय से मिशनरी की तरफ से होने वाले धर्मांतरण को संदेह की नजर से देखा रहा है।
और..
वाजपेयी सरकार में 1999 से 2004 के बीच संदेह, हिंसा में बदलने लगा। 1997 की तुलना में साल 2000 आते-आते ईसाइयों पर होने वाले हमले 800% तक बढ़ गए।
VHP ने दावा किया कि ये हमले...'राष्ट्रविरोधी शक्तियों के विरुद्ध देशभक्त युवाओं के क्रोध का परिणाम थे' जो धर्मांतरण का नतीजा है...
हिंदुत्ववादी सरोकारों में धर्मांतरण इतना अहम विषय था कि ये उन कुछ मुद्दों में से था, जिस पर वाजपेयी भी RSS से सहमत थे। मगर हिंसा वाजपेयी को रास नहीं आई। वो यहां RSS के खिलाफ जाकर प्रयक्ष निंदा करने से बच निकले, मगर धर्मांतरण पर एक 'राष्ट्रीय बहस' की मांग कर गए।
मगर इन सबके बीच एक ऐसा कट्टर हिंदुत्ववादी नेता भी था जो ईसाइयों पर हुई हिंसा से व्यथित था।लालकृष्ण आडवाणी। आश्चर्यजनक रूप से आडवाणी RSS से यहां असहमत थे। वाजपेयी की ओर से बोलते हुए तत्कालीन NSA ब्रजेश मिश्र ने उन हमलों को इक्का-दुक्का और असामान्य बताया, मगर...
आडवाणी ने मुखर होकर ईसाइयों हो रहे हमलों पर कार्रवाई की मांग की। आडवाणी का ईसाइयों से लगाव था, उनका सम्मान करते थे और वजह ये भी हो सकती है कि उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई कराची के 'सेंट पैट्रिक्स स्कूल' से की।
जाहिर है कल हुई घटनाओं से आडवाणी जरूर आहत होंगे,मगर उससे कहीं ज्यादा असहाय हैं। क्योंकि वाजपेयी से तो वो कार्रवाई की मांग कर गए,मगर मोदी से वो भी नहीं कर पाए। सब वक्त...वक्त की बात है।
#इति_श्री_इतिहास
आजादी की लड़ाई में शहीद तो बहुत हुए, सीने पर गोली झेली, बहुतों की गर्दन ने फांसी झूली।
मगर मात्र 23 साल का एक लड़का शहीद-ए-आजम कैसे हुआ ? सोचा है कभी ?
वजह ये नहीं थी कि हथियार उठाया, वजह ये थी कि उन्होंने एक हाथ में हथियार,दूसरे में किताब उठाई।भगत सिंह तो...
खुद कहते थे।
"क्रांति शब्द का अर्थ प्रगति के लिए परिवर्तन की भावना और आकांक्षा है। हथियार और गोला बारूद क्रांति के लिए कभी-कभी आवश्यक हो सकते हैं लेकिन इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है।"
भगत सिंह साफ लिखते हैं कि
"बम और पिस्तौल क्रांति के पर्यायवाची नहीं हैं"
भगत सिंह को ढूंढना है तो बंदूक की नाल और बारूद की गंध में नहीं, किताबों की सुगंध में तलाशिए।भगत सिंह, ऊंचे स्वर में लगते नारों की जगह शांत भाव से लिखे अपने लेखों में मिलेंगे।
उनपर लिखी गई किताबों में दिखेंगे।
भगत सिंह अंग्रेजी हुकूमत के लिए वाकई घातक थे क्योंकि वो...
कई दिनों बाद #इतिश्रीइतिहास
जन्म जयंती से ठीक एक दिन पहले बात आज उस प्रधानमंत्री की जिसने असल मायने में हिंदुस्तान की तकदीर बदलकर रख दी। वो प्रधानमंत्री जिसके पास पूरी ताकत नहीं थी,जो आधा शेर था। फिर भी हिंदुस्तान के ख्वाबों की ताबीर बदल दी।
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वो जिनके व्यक्तित्व में नेहरू, इंदिरा, राजीव जैसा करिश्मा नहीं था, ना ही मोदी जैसा जादुई भाषण देना आता था। लेकिन फिर भी वो सब कर गए जिसकी ऋणि पीढ़ियां रहेंगी...वो प्रधानमंत्री जिसे यश की जगह अपयश मिला, उसे अच्छे की जगह बुरे कामों के लिए याद किया गया...
संन्यासी से सम्राट...
अप्रैल 1991 में कांग्रेस के टिकट बांटे जा रहे थे, गांधी परिवार के नजदीकी संकेत दे रहे थे कि राजीव गांधी युवा मंत्रीमंडल की योजना बना रहे हैं। लगातार 8 बार सांसद रह चुके नरसिम्हा राव बूढ़े हो चुके थे, उनका पत्ता कट चुका था, वो भी ये समझ चुके थे।
ST वर्ग के एक टोले में लालू यादव पहुंचते हैं,पूरा टोला भागकर आता है,उसमें 30 साल की महिला।वो लालू के नजर आना चाहती थी, नजर पड़ी तो लालू बोले-सुखमनिया तुम यहां ?तोहरा बिहाय यहां हुआ है ?
साथ में खड़े शिवानंद तिवारी अचंभित कि इसे कैसे जानते हैं ?यही लालू का करिश्मा है वो जिससे...
एक बार मिल लें उसे भूलते नहीं। वो महिला पटना के वेटरनरी कॉलेज के पास किसी टोले में रहती थी। लालू तब से उसे जानते थे।आशीर्वाद दिया,उसकी बहन का नाम लेकर पूछा, वो कहां है ? हाल-चाल लिया। हाथ में 500 रुपए रखे और चल दिए। यही बातें लालू प्रसाद यादव को आम लोगों का नेता बनाती है।
आज भी बिहार में लालू माइनस राजनीति की कल्पना नहीं हो सकती। लालू ही वो नेता हैं जिन्होंने दबी-पिछड़ी जनता को जुबान दी।
खेत में हेलिकॉप्टर उतरवा गरीबों को उसपर घुमाना हो या किसी भी सामान्य आदमी पूछ लेना- खैनी है तुम्हारे पास। ये वो अंदाज है जो उन्हें औरों से अलग करता है।
#इति_श्री_इतिहास
''एक सपना अधूरा रह गया,एक गीत मौन हो गया और एक लौ बुझ गई।दुनिया को भूख और भय से मुक्त करने का सपना,गुलाब की खुशबू,गीता के ज्ञान से भरा गीत और रास्ता दिखाने वाली लौ। कुछ भी नहीं रहा''
पं.नेहरू को श्रद्धाजंलि देते हुए ये वाजपेयी जी के शब्द थे। आगे कहते हैं...
''यह एक परिवार,समाज या पार्टी का नुकसान भर नहीं है। भारत माता शोक में है क्योंकि उसका सबसे प्रिय राजकुमार सो गया। मानवता शोक में है क्योंकि उसे पूजने वाला चला गया।दुनिया के मंच का मुख्य कलाकार अपना आखिरी एक्ट पूरा करके चला गया।उनकी जगह कोई नहीं ले सकता''
मई 1964 में जब...
वाजपेयी संसद ये भाषण दे रहे थे हर सांसद की आंखें नम थीं। वो यहीं नहीं रुके ''लीडर चला गया है लेकिन उसे मानने वाले अभी हैं, सूर्यास्त हो गया है,लेकिन तारों की छाया में हम रास्ता ढूंढ लेंगे। ये इम्तहान की घड़ी है, लेकिन उनको असली श्रद्धांजलि भारत को मजबूत बनाकर दी जा सकती है''...
लखनऊ में Era Medical college है, मीसम अली खान इसके कर्ताधर्ता हैं। हमारे RSS वाले अंकल यहीं से कोरोना को हराकर लौटे हैं। अंकल बताते हैं- अस्पताल अद्भुत है, यहां जो नर्सें हैं, शाहीन हों या शबनम या और कोई एकदम फ्लोरेंस नाइटिंगेल का रूप।मरीज को अपने हाथ से खाना तक खिलाती हैं। 1/2
करते हैं ऐसा सेवाभाव कहीं देखा ही नहीं। इससे पहले वो बलराम जिला अस्पताल में एडमिट थे, वहां की जो हालत थी उसे बताते हुए डर जाते हैं। मगर Era की इतनी तारीफ करते हैं कि पूछिए मत। नफरतों के दौर में मोहब्बतों ऐसे पैगाम जिंदगी के रौशनदान खोलते हैं।आदमी गलत हो सकता है कौम नहीं। 🙏
कोरोना का मरीज को बिना डरे खाना तक खिलाने वाली नर्सों और 24 घंटे इलाज करने वाले डॉक्टरों के हम सब का सलाम पहुंचे। ईश्वर से कामना है आप और आपका परिवार सलामत रहे