#वीर_सातलदेव_जी_राठौड़ #Thread

कहानी उस शासक की जिनके नाम के गीत आज भी राजस्थान के हर घर में गाए जाते हैं।

यह उस समय की बात है जब हिंदुस्तान पर अफ़ग़ान लुटेरों और सुल्तानों के हमले हो रहे थे। यह वो क्रुर लोग थे जो धन सम्पत्ति के साथ-२ हिंदू महिलाओं ख़ासकर सुहासनियों को ....1
अगवा करना और उन्हें हरम की दासियां बनाना अपना जीत का आधार मानते थे।
हिंदू लड़कियों को आक्रांताओं द्वारा अगवा करने की घटनायें उन दिनों होती रहती थी... एक ऐसी ही घटना घटित हुई मौजूदा नागौर ज़िले के पीपाड़ क्षेत्र के पास जब सन् 1492 के मार्च महीने में गणगौर के दिन गांव की.....2
महिलाएं एवं बच्चियां तीज पूजने गांव के तालाब के पास इकट्ठी हुई थी।

इसकी सूचना मिलते ही अजमेर का शाही सूबेदार "मीर घुड़ले खान" वहां पहुंच गया और उसने 140 सुहासनियों(कुंवारी कन्याओं) को अपने क़ब्ज़े में लेकर उन्हें अपने हरम की दासियां बनाने के उद्देश्य से रवाना हो गया।....3
यह खबर जैसे ही #मारवाड़_के_शासक "राव सातल देव" जी को मिली, वे तुरंत मौक़े पर उपस्थित अपनी छोटी सी सेना लेकर 'मीर घुड़ले खान' का पीछा करने लग गए।

शाम हो गई थी और क्षत्रिय युद्ध_नीति के अनुसार सूर्यास्त के बाद युद्ध नहीं करते थे। मंत्रियों ने राव सातलदेवजी को युद्ध नीति व सुबह...4
तक मीर का मुक़ाबला करने लायक़ सेना इकट्ठी कर लेने की बात कहकर प्रतीक्षा करने का निवेदन किया लेकिन राव सातलदेवजी ने अपने मंत्रियों के उस प्रस्ताव को तुरंत ठुकरा दिया।

वे जानते थे अगर उन्होंने सुबह होने का इंतज़ार किया, तो यह रात उन 140 कन्याओं के पूरे जीवन को काला कर देगी।....5
उन्होंने अपने मंत्रियों से कहा कि जिन्हें अपनी जान की परवाह हैं वो यहीं रुक जाएं लेकिन मैं पलभर के लिए भी यहां रूककर अपने क्षत्रिय कुल को नहीं लगाऊंगा।

मारवाड़ के महान शासक राव सातलदेव जी जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी के पुत्र और बीकानेर के संस्थापक राव बीकाजी के भाई जो थे।....6
उन्होंने अपनी छोटी सेना के साथ मीर घुड़लै खान का पीछा किया और उसे पीपाड़ के थोड़े आगे ही स्थित कोसाणा गांव पहुंचने से पहले ही रोक लिया।
कहते हैं राव सातलदेव जी को देखते ही मीर घुड़ले खान का चेहरा सफ़ेद पड़ गया था क्यूंकि उसने मारवाड़ के शासक की वीरता के बारे में सुना हुआ था.....7
अपने राजा को देखकर बेड़ियों में बंधी कन्याओं के मुख से भय और निराशा अचानक ग़ायब हो गई लेकिन उन कन्याओं की दशा को देखते ही राव_सातलदेवजी को इतना ग़ुस्सा आया कि समझाइश की कोई कोशिश किए बिना उन्होंने मीर घुड़लै खान पर आक्रमण कर दिया।

ग्रामीण कथाएं कहती हैं कि मारवाड़ की सेना उन...8
अफ़ग़ानों पर ऐसी टूट पड़ी जैसे भेड़ों के झुंड पर शेर टूट पड़ते हैं। संख्या और हथियारों में बड़ी होने के बावजूद अफ़ग़ान सेना बिखर गयी।
मारवाड़ का एक एक वीर 10-10 अफ़ग़ानों को यमलोक दिखाकर वीरगति प्राप्त कर रहा था। मीर की अधिकांश सेना मारी गई। कहते हैं मीर घुड़ले खान ने इतना.....9
भारी सुरक्षा_कवच पहन रखा था कि कोई भी हथियार उसका कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा था.. इतने में राव सातलदेव जी ने मीर घुड़ले खान की गर्दन पर तलवार से ऐसा वार किया की मीर घुड़ले खान का सिर कटकर शरीर से अलग हो गया। मीर घुड़ले खान का यह हाल देखकर बचे कुचे अफ़ग़ान सैनिकों ने मारवाड़ की....10
सेना के सामने हथियार डाल दिए।

राव सातलदेवजी के आदेश पर उनकी सेना ने सभी सुहासनियों को बेड़ियों से आज़ाद कर दिया और सूबेदार मीर घुड़ले खान का सिर उनको सतीत्व की रक्षा के सबूत के तौर पर उपहार स्वरूप दे दिया। राव सातलदेवजी ने खुद उन सुहासनियों को सुरक्षित उनके गांव तक पहुंचाया...11
कहते हैं उन सुहासनियों और महिलाओं ने 'मीर घुड़ले खान' के कटे हुए सिर में छेद कर उसे पूरे गाँव में घुमाया और अपने महान शासक राव सातलदेवजी की वीर गाथा सभी को सुनाई।
तब से लेकर आज तक मारवाड़ में यह रीत निभाई जाती हैं गणगौरी तीज पर सुहासिनियां एक घड़ा जिसमें खूब सारे छेद हो.....12
को लेकर ठीक उस ही तरह गांव भर में घूमती हैं जैसे उस वक्त मीर घुड़ले खान का सिर लेकर घूमी थी। यह घड़ा मीर घुड़ले खान के सिर का प्रतीक होता है घुड़ले को गाँव भर में घुमाते हुए महिलाएं प्रसिद्ध गीत गातीं हैं
“घुड़लो घूमेलो जी घूमेलो
सिंहणी जायो पूत
घुड़लो घूमेलो जी घूमेलो”

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31 Dec 21
#भैंसचोर_इतिहासचोरों_की_पोल_खोल_अभियान #THREAD

सोशल-मीडिया आजकल बंदर के हाथ में उस्तरे की तरह हो गया है। यही हालत कई चोरों की हो रही है जो कि कॉपी, पेस्ट व एडिटिंग से अपना इतिहास बनाने की चेष्टा कर रहे है।

लेकिन जगजाहिर हैं कि इतिहास सिर कटवाकर पूर्वजों ने रक्त से लिखा है....1
हमारे देश में नकल करने की जन्मजात प्रवृत्ति रही है।
यही हालात हमारे क्षत्रिय समाज में खांप (सरनेमों और गोत्रों) की कॉपी-पेस्ट से जुड़ी हैं।

राज परिवारों से अपने_आप को जोड़ने की चेष्टा के चलते प्राचीन काल से राजा-महाराजाओं के गोत्र अन्य समाज के लोग लगाते आये हैं.....2
सबसे बड़ा उदाहरण जब #वीर_दुर्गादास_राठौड़ जी को मारवाड़ से देश निकाला दिया गया था तब उनके साथ मारवाड़ से हजारों की संख्या में लोग भी उनके साथ चले गये थे....
जिनके वंशज आज बहुत बड़ी संख्या में उज्जैन, ग्वालियर व आगरा के आसपास के क्षेत्रों में विराजते है।.....3
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28 Dec 21
"वीर झुंझारसिंह शेखावत, गुढ़ा-गौड़जी का"

खंडेला के प्रथम शेखावत राजा रायसल दरबारी के 12 पुत्रों को जागीर में अलग-२ ठिकाने मिलें जिनसे आगे जाकर शेखावतों की विभिन्न शाखाएं चली। इन्हीं के पुत्रों में से एक ठाकुर भोजराज जी को उदयपुरवाटी जागीर के रूप में मिली....१
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इन्हीं के वंशज 'भोजराज जी के शेखावत' कहलाते हैं। भोजराज जी के पश्चात उनके पुत्र टोडरमल उदयपुरवाटी(शेखावाटी) के स्वामी बनें। टोडरमल जी दानशीलता के लिए इतिहास में विख्यात है। टोडरमलजी के पुत्रों में से एक झुंझारसिंह थे, झुंझारसिंह सबसे वीर, परम-प्रतापी, निडर व कुशल योद्धा थे....२
तत्कालीन समय "केड़" नामक गांव पर नवाब का शासन था.... नवाब की बढ़ती ताकत से टोडरमल जी चिंतित हुए परन्तु वो काफी वृद्ध हो चुके थें इसलिए केड़ गांव पर चाहकर भी अधिकार नहीं कर पा रहे थे।
कहते हैं कि टोडरमलजी जब मृत्यु शय्या पर थें तब उनको मन-ही-मन एक बैचेनी उन्हें हर समय खटकती थी...३
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3 Dec 21
ठाकुर लक्ष्मणसिंह जी सोढ़ा:-

छाछरो हवेली के राणा तथा पाकिस्तान के पूर्व रेलमंत्री जिनका दिल सदैव हिंदुस्तान राष्ट्र के लिए धड़कता था जिस कारण 1969 में दोनों देशों के बीच टकराव की स्थिति को चलते उनपर पाकिस्तान सरकार द्वारा जासूसी का आरोप लगाया गया....1
Thread अवश्य पढ़ें:- 👇 Image
ऐसे माहौल के बीच सोढ़ा ठाकुर साहब छाछरो की हुकूमत छोड़ ऊंट पर सामान बांधकर हिंदुस्तान आ गये तब वहां की 'मांगणियार महिलाओं' ने विदाई गीत गाएं... "बोल्या चाल्या माफ़ करज्यो, म्हारा राणा रायचंद रे"

अब छाछरो ठाकुर साहब हिंदुस्तान आकर खेती-बाड़ी करने लगे। .....2
दूसरी तरफ़ 71 की जंग छिड़ चुकी थी और कमान जयपुर महाराजा ब्रिगेडियर भवानीसिंह जी के हाथों में थी। छाछरो के मुख्य मौर्चे पर "20राजपूत इन्फैंट्री" व "दरबार की ब्रिगेड" थी।

कहते हैं छाछरो पर अटैक करने से पहले जयपुर दरबार बिग्रेडियर साहब और सोढ़ा ठाकुर साहब की बात हों चुकी थी.....3
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3 Oct 21
#आधुनिक_राजस्थान_निर्माण_में_राजे_रजवाड़ों_के_अद्वितीय_योगदान_को_साज़िश_के_तहत_दरकिनार_करना

द्वितीय-विश्वयुद्ध में जोधपुर एयरबेस से 1000 जंगी जहाजों ने उड़ान भरी थी.... इस एयरपोर्ट का निर्माण मारवाड़(जोधपुर) के तत्कालीन महाराजा उम्मेदसिंह जी राठौड़ ने करवाया था....1 Image
राजस्थान की सबसे बड़ी हॉस्पिटल सवाई मानसिंह अस्पताल जयपुर हैं.... इस अस्पताल का निर्माण महाराजा साहेब सवाई मानसिंह जी कच्छवाह (द्वितीय) ने करवाया था.... दिल्ली एम्स के बाद यह उत्तर-भारत की दूसरी/तीसरी सबसे बड़ी अस्पताल हैं.... सरकारी अस्पताल हैं.... मुफ्त अस्पताल हैं.... 2
राजस्थान के पूर्व व वर्तमान राज्यपालों/मुख्यमंत्रियों/मंत्रियों/सांसदों/विधायकों से ले के प्रदेश की अंतिम पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति का इलाज इसी अस्पताल में होता हैं.... शानदार इलाज होता हैं.... आधुनिक उपकरणों मशीनों से इलाज होता हैं.... 3
Read 13 tweets
10 Sep 21
#तुंगा_की_युद्ध(28जुलाई1787):-

मुगलों की ताकत मिलने के बाद महादजी सिंधिया ने राजपूताना की रियासतों में तोप व तलवार के बल पर अवैध वसूली और लूटपाट करनी चाही।
कहते हैं कि महादजी सिंधिया ने जयपुर महाराजा प्रतापसिंह जी से 60 लाख रुपए मांगे थे लेकिन जयपुर महाराजा ने....1 Image
60लाख रुपए देने से इंकार कर दिया तब यहादजी सिंधिया ने फ्रांसिसी डिबॉयन को कमांडर बनाकर जयपुर पर चढ़ाई कर दी। अतः परिणामस्वरूप तुंगा नामक स्थान पर भीषण युद्ध हुआ।

तुंगा का युद्ध 28 जुलाई 1787 को जयपुर नरेश सवाई प्रतापसिंह कछवाह तथा मराठा सेनापति महादजी सिंधिया के बीच शुरू हुआ...2
इस युद्ध में जयपुर राज्य की ओर से कछवाहों राजवंश की शेखावत, राजावत, धिरावत, खंगारोत, बलभद्रोत तथा नाथावत शाखाओं ने भाग लिया साथ ही जोधपुर (मारवाड़) के राठौड़ सैनिकों ने भी जयपुर राजघराने का सहयोग किया जबकि मराठों की सेना का नेतृत्व अपने समय के सबसे बड़े सेनानायक....3
Read 6 tweets
8 Sep 21
#मांडण_का_युद्ध
यह युद्ध 1822 वि.स. (6 जून 1775) में लड़ा गया था, जिसकी स्मृति प्रत्येक शेखावत घराने में आज भी ताजा बनी हुई है विशेष रूप से झुंझुनू और उदयपुरवाटी परगनों का प्रत्येक शेखावत परिवार इस बात का दावा करता है कि उसका कोई एक पुरखा माण्डण के युद्ध में अवश्य लड़ा था...1 Image
अधिकांश कुटुम्बों के योद्धाओं ने माण्डण के समरांगण में प्राणों की आहुतियाँ देकर अपने वंशजों को ऊँचा मस्तक रखने का गौरव प्रदान किया था। कहा जाता है- माण्डण के उस रक्तरंजित युद्ध में सैकड़ों ऐसे नवयुवा वीरों ने अपना रक्त बहाया था, जो उसी समय विवाह करके अपनी नव वधुओं के साथ....2
घरों को लौटे थे और जिनके मंगल सूचक कांकड़-डोरड़े (विवाह के समय हाथ की कलाई पर बांधा जाने वाला रक्षा सूत्र) विधिवत खोले ही नहीं जा सके थे।

यह युद्ध उस वक्त लड़ा गया जिस युग के षड्यंत्रों से दूषित राजनीतिक वातावरण में पले उन शेखावत योद्धाओं ने किस प्रकार एक दिल-दिमाग होकर....3
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