मित्रो, वह पाकिस्तान ही था जिसकी मदद से तालिबान ने न सिर्फ अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया, बल्कि विश्व की सर्वोच्च महाशक्ति अमेरिका को भी अफगानिस्तान से निकल भागने के लिए विवश भी होना पड़ा था।
इस हार के बाद से ही अमेरिका पाकिस्तान से खार खाये हुए था। करेले मे नीम तो तब पड़
गया, जब अपने हथियारों को अरब सागर से होकर निकालने के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान से रास्ता मांगा और पाकिस्तान ने साफ इनकार कर दिया था। चूंकि ईरान और रूसी गणराज्यों से अमेरिका की शत्रुता थी, अतः विवश होकर अमेरिका अपने 40 विलियन डालर के हथियारों को अफगानिस्तान मे ही छोड़कर
वहां से निकल गया। इसके बाद से आज तक अमेरिकी राष्ट्रपति ने इमरान से कभी टेलीफोन पर भी वार्ता तक नही की। इससे ही अमेरिका की पाकिस्तान से गहरी नाराजगी का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।
अफगानिस्तान से अपने नागरिकों और सैनिकों को किसी तरह वायुमार्ग से निकालने के बाद शुरु हुई
अमेरिकी प्रशासन की प्रतिक्रियाओं मे सबसे पहले तो अमेरिका ने पाकिस्तान को FATF की ग्रे लिस्ट से निकलने नही दिया, जबकि पाकिस्तान ने इससे निकलने हेतु अधिकांंश अर्हताएं अर्जित कर ली थीं।
इसके बाद पाकिस्तान को अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्ज लेने मे भी व्यवधान उत्पन्न कर
दिया, कि स्टेट बैंक आफ पाकिस्तान को मुद्राकोष की शर्तों चलना होगा और इस प्रकार पाकिस्तान को वहां से भी निराश होकर लौटने को विवश होना पड़ा।
अभी परसों ही तीसरी कार्यवाही मेंं दुनिया भर का ध्यान खींचते हुए अमेरिका ने पाकिस्तान पर अब तक का सबसे बड़ा प्रहार किया है। बाइडेन
प्रशासन ने गुलाम कश्मीर के पूर्व राष्ट्रपति मसूद खान को आतंकवाद प्रेरित व्यक्ति के रुप मे चिन्हित करते हुए अमेरिका में पाकिस्तान के नये राजदूत के रुप मे अस्वीकार कर दिया है।
पाकिस्तान की सोच यह थी कि मसूद खान को राजदूत बनाकर अमेरिका भेज देने से न सिर्फ कश्मीर के मुद्दे को
उठाने मे आसानी रहेगी, साथ ही कश्मीर को विवादित क्षेत्र के रुप मे अमेरिकी मान्यता भी मिल जायेगी। चूंकि मसूद खान इमरान सरकार द्वारा मनोनीत पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, गिलगित और बाल्टिस्तान के तथाकथित राष्ट्रपति भी रह चुके हैं।
इस बात की खबर मिलते ही अमेरिका में भारतीय लाबी
सक्रिय हो गयी, और बाइडेन प्रशासन को यह समझाने मे सफल रही कि इस छद्म कश्मीरी राष्ट्रपति मसूद खान के तार न सिर्फ अलकायदा और हिजबुल जैसे आतंकी संगठनों के साथ बल्कि लश्करे तैयबा से भी जुड़े हैं। यह वही मसूद खान हैं जो कभी कश्मीरी राष्ट्रपति की हैसियत से अमेरिकी जेल मे बन्द लेडी
अलकायदा की कश्मीर शाखा की आतंकी आफिया सिद्दिकी को छुड़ाने के लिए अमेरिका को खत भी लिख चुका है। भारतीय लाबी की बात अमेरिका को पूरी तरह समझ मे आ गयी, और पाकिस्तान का कुचक्र परवान चढ़ने से पूर्व ही धराशायी हो गया।
अब पाकिस्तान की नयी समस्या यह उत्पन्न हो गई है कि यदि वह किसी दूसरे
व्यक्ति को राजदूत बनाकर अमेरिका भेजता है तो यह उसकी स्वीकृति ही मान ली जायेगी कि पाकिस्तान वास्तव में एक आतंकी को न सिर्फ कश्मीर का राष्ट्रपति बना चुका है, बल्कि उसी आतंकी को राजदूत बनाकर अमेरिका मे भी भेज रहा था। दूसरी बड़ी समस्या यह हो गयी है कि यदि मसूद खान के स्थान पर किसी
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय एक शब्द की खोज हुई थी इन्फॉर्मेशन वारफेयर, हिन्दी मे अर्थ निकाले तो ये सूचना युद्धशैली जैसा कुछ बनेगा।
जर्मनी की वायुसेना लंदन पर बम गिरा रही थी और रेडियो पर घोषणा कर रही थी कि हमने ब्रिटेन का बहुत नुकसान कर दिया।
इस वजह से अंग्रेजो में डर बनता जा रहा था तब अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन रूजवेल्ट ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल को लिखा था कि नाजियों के एयरक्राफ्ट नही बल्कि इन्फॉर्मेशन वॉर से इंग्लैंड को बचाओ।
इन्फॉर्मेशन वारफेयर एक प्रकार का आतंकवाद है जो कि काफी योजनाबद्ध
तरीके से होता है। चाणक्य ने सिकन्दर के खेमे में एक अफवाह फैलवाई थी कि स्वर्ग के देवता ग्रीक सेना से नाराज है जिसके बाद सिकन्दर का विरोध शुरू हो गया था। फ़िल्म पदमावत में आपने देखा होगा कि जब राजपूत खिलचियो को चित्तौड़ में घुसने नही देते तो अलाउद्दीन गढ़ के सामने ही सारे
हाल ही में तीन नए देशों का सृजन हुआ है ! ईस्ट तिमोर, दक्षिणी सूडान और कोसोवो !
क्या हम अधिकांश भारतीयों को यह पता है, इन देशों का निर्माण किस आधार पर हुआ है ?
जिन्हें नहीं पता है उनके लिए जानकारी है कि इन देशों का निर्माण जनसांख्यिकीय परिवर्तन के कारण हुआ है !
ईस्ट तिमोर, जो इंडोनेशिया का एक भाग था, उसमें पहले ईसाइयों की जनसंख्या बहुत कम थी !
मुसलमानों एवं अन्य मत के मानने वाले नागरिकों की आबादी ८०% से अधिक थी ! केवल ५० वर्षों में ईसाई मिशनरियों के प्रयत्नों से, ईस्ट तिमोर में ईसाइयों की जनसंख्या ८०% से अधिक हो गई, परिणाम स्वरूप
"संयुक्त राष्ट्र संगठन" के दखल से जनमत संग्रह करा कर, ईस्ट तिमोर नाम के देश का निर्माण कर दिया गया! कोई युद्ध नहीं हुआ !
सूडान के दक्षिणी क्षेत्र में गरीबी थी मिशनरियों के प्रभाव में कुछ आदिवासी लोगों को पहले ही ईसाई बनाया गया !
धीरे धीरे इस मुस्लिम बहुल देश को दक्षिणी
पुरानी पेंशन नहीं मिलेगी.... अखिलेश राज आया तो तन्ख्वाह भी लुटेगी
30 साल बाद पेंशन तो भूल जाओ... जालीदार टोपी आएगी तो आपके बच्चों को घर से भी पलायन करना पड़ेगा... अपने बच्चों की सोचो !
- अखिलेश यादव ने वादा किया है कि वो उस पुरानी पेंशन को बहाल कर देंगे जो साल 2005 में बंद
की गई थी
-जब पुरानी पेंशन बंद हुई तब राज्य में अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव ही मुख्यमंत्री थे... तब मुलायम ने राजकोषीय घाटे का हवाला देकर ही पेंशन को बंद करने का समर्थन किया था लेकिन अब उनके पुत्र अखिलेश यादव ने कहा है कि वो पिता का फैसला पलट देंगे
-अगर देखा जाए तो यूपी में
2005 के बाद 13 लाख सरकारी कर्मचारी नियुक्त हुए हैं ये 13 लाख कर्मचारी अगर अपने साथ 5 वोट और जोड़ पाते हैं तो ये 65 लाख की आबादी हो जाती है इस तरह ये 65 लाख का एक बड़ा वोट बैंक बन जाता है
-कई लालची टाइप के लोग झूठे वायदों में फंसकर पैसे दो गुने करने के लालच में अपना सब कुछ गंवा
मीरा नायर ने दो समलैंगिक महिलाओं पे एक फ़िल्म बनाई थी फायर,
जिसमे एक का नाम राधा और दूसरी का नाम सीता था!!
मकबूल फिदा हुसैन नामक एक पेंटर हुआ करते थे जो हिन्दू देवियों की अश्लील पेंटिंग बनाया करते थे!!
दाऊद इब्राहिम को महिमामंडित करने के लिए कंपनी और डी जैसी फिल्में बनाई
जाती थी!
उस दौर में भी हम सब इनका विरोध करते थे तो कांग्रेस शासन में लाठी डंडों से स्वागत किया जाता था!!
हमारी विचारधारा में एक बात समझाई जाती थी,
अगर किसी देश को खत्म करना है तो उसकी संस्कृति को खत्म कर दो वो देश खुद ब खुद खत्म हो जाएगा!
आज फ़िल्म बन रही है रानी लक्ष्मी बाई पे, उरी की सर्जिकल स्ट्राइक पे, बाला साहेब पे, और ऐसे कई अच्छे विषयो पे जिनमे भारत ने कामयाबी के झंडे गाड़े हैं!!
अब अयोध्या में शानदार आयोजन कर दीवाली मनाई जा रही है जो आज तक तो किसी ने मनवाने की जहमत नही उठायी,
श्री शैलेन्द्र वाजपेयी मौजी लेखक हैं और खिंचाई में माहिर। उनकी यह विशुद्ध हास्य भाव की टिप्पणी पढ़नी चाहिए, बिल्कुल ठंढे मन से।
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ठंड एक अनोखा व्यंग कृपया अन्यथा न लें।
केवल आनंद लीजिए, छीटाकसी नही है।
देश भर में पड़ रही कंपकपाती ठण्ड पर विभिन्न दलों/नेताओं की
राय इस प्रकार हो सकती हैं।
भाजपा- ये कंपकपाती ठण्ड सबका साथ, सबका विश्वास का अद्भुत उदाहरण है। ये ठण्ड बिना किसी जाति, धर्म के भेदभाव किए बिना सभी पर समान रूप से पड़ रही है। हम इस सद्भावनापूर्ण ठण्ड का स्वागत करते हैं। भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं।
कांग्रेस - ऐसा नही हैं कि ये ठण्ड हमारी सरकार में नहीं पड़ती थी, पड़ती थी किन्तु ऐसी भेदभावपूर्ण, विद्वेषपूर्ण ठण्ड आज से पहले कभी नहीं पड़ी। हम पूछना चाहते हैं इस सरकार से अल्पसंख्यक इलाकों में ही ज्यादा ठण्ड क्यों पड़ रही हैं ❓❓.. लोकतंत्र में इतनी ठण्ड बर्दाश्त नहीं।
कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ रहे जनरल वीपी मलिक अपनी किताब "इंडियाज मिलिट्री कॉन्फ्लिक्टस एंड डिप्लोमेसी" में कहते हैं कि युद्ध के दौरान जब उन्होंने आर्म्स और एम्यूनशन की शॉर्टेज पर सरकार का ध्यान आकर्षित कराया था, तब उस समय के एक सीनियर
ब्यूरोक्रेट ने उनकी इस बात पर आलोचना की थी कि उन्होंने प्रेस में कहा था कि "हमारे पास जो कुछ भी है हम उसके साथ लड़ेंगे।"
जनरल मलिक कहते हैं कि जबकि उस समय शॉर्टेज का कारण बजटरी सपोर्ट में लगातार कमी और एक ऑलमोस्ट नॉन फंक्शनल प्रोक्योरमेंट सिस्टम था।
अब सोंचिये कि ऐसा क्यों था? राव, देवगौड़ा, गुजराल के बाद अटल जी की सरकार थी जो मात्र कुछ ही महीने पुरानी थी। तो यह लगातार कमी जो कि सालों की थी वो किस कारण थी और ऐसा बंद सा पड़ा प्रोक्योरमेंट सिस्टम था, वो किस कारण था?
जनरल मलिक बताते हैं कि रक्षा मंत्री के साथ होने वाली