द्वितीय विश्वयुद्ध के समय एक शब्द की खोज हुई थी इन्फॉर्मेशन वारफेयर, हिन्दी मे अर्थ निकाले तो ये सूचना युद्धशैली जैसा कुछ बनेगा।
जर्मनी की वायुसेना लंदन पर बम गिरा रही थी और रेडियो पर घोषणा कर रही थी कि हमने ब्रिटेन का बहुत नुकसान कर दिया।
इस वजह से अंग्रेजो में डर बनता जा रहा था तब अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन रूजवेल्ट ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल को लिखा था कि नाजियों के एयरक्राफ्ट नही बल्कि इन्फॉर्मेशन वॉर से इंग्लैंड को बचाओ।
इन्फॉर्मेशन वारफेयर एक प्रकार का आतंकवाद है जो कि काफी योजनाबद्ध
तरीके से होता है। चाणक्य ने सिकन्दर के खेमे में एक अफवाह फैलवाई थी कि स्वर्ग के देवता ग्रीक सेना से नाराज है जिसके बाद सिकन्दर का विरोध शुरू हो गया था। फ़िल्म पदमावत में आपने देखा होगा कि जब राजपूत खिलचियो को चित्तौड़ में घुसने नही देते तो अलाउद्दीन गढ़ के सामने ही सारे
टेंट लगा देता है।
ये सब इन्फॉर्मेशन वारफेयर का उदाहरण है, अब बात असल मुद्दों की करते है। यह युद्ध पहले अमेरिका और सोवियत संघ में हुआ करता था मगर आज के समय इसे भारत के विरुद्ध तीन प्रकार के लोग कर रहे है - कम्युनिस्ट, मुसलमान और भारत के बाहर बैठे भारत विरोधी।
भारत की सेना बहुत शक्तिशाली है मगर लगता है चीन से युद्ध हुआ तो सेना शायद 2-3 दिनों में हार जाएगी। इसका उदाहरण गलवान घाटी में देखने को मिला भारतीय सेना के 20 और चीन के 43 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। चीन की सेना ने ये आंकड़ा 4 दिखाया वो भी 1 साल बाद, वही भारतीय सेना के पराक्रम
पर भारत के ही लोगो ने 20 वीरो की वीरगति पर आँसू बहाए।
भारत के लोग चाहते है कि उनके सैनिक अमरता का कवच पहनकर युद्ध करे जो कि प्रकृति के नियम में नही है। अगर कल को भारत चीन युद्ध होता है और चीन की कोई मिसाइल पहले ही दिन हमारे कुछ सैनिकों को मार दे, तो सेना के सामने दो चुनौती
होगी पहली आपको चीनियों को मारना है जो कि शारीरिक चुनौती है।
लेकिन दूसरी सबसे बड़ी चुनौती होगी भारत के राष्ट्रवादी, क्योकि जैसे ही वे सैनिकों की मृत्यु के समाचार सुनेंगे ये लोग सरकार को कोसना, विधवा आलाप करना और सैनिकों की रोती विधवाओं के फोटो फैलाने शुरू कर देंगे जो कि भारतीय
सेना का मनोबल गिरा देगी।
चीन के विरुद्ध हम जल्द ही घुटने टेकेंगे क्योकि जिन लोगो के लिये सैनिक लड़ रहे होंगे वे ही लोग सैनिकों के परिवारों की दर्दभरी तस्वीरे दिखाकर उनका मनोबल तोड़ चुके होंगे।चीनियों नही बल्कि राष्ट्रवादियो के कारण।दूसरा इन्फॉर्मेशन वारफेयर है जो हमने खालिस्तान
मुद्दे पर देखा, ये वार पाकिस्तान की तरफ से है जिसे वो जीत रहा है। कनाडा का एक अलगाववादी सिख संगठन है जिसे हम तवज्जो देते है वही इंग्लैंड के सबसे बड़े सिख संगठन ने भारत का समर्थन किया हम खामोश थे।
हमे चारो ओर से घेरा जा रहा है और चूंकि हम इन्फॉर्मेशन वारफेयर के बारे में कुछ नही
जानते इसलिए हम हार रहे है। ये लोग किसी तरह हमे महिला पुरुष, ब्राह्मण दलित, हिन्दू सिख में बांटना चाहते है और इसमे ये हमारी ही सहायता ले रहे है।
इन्फॉर्मेशन वारफेयर का एक ही अर्थ है शत्रु को हतोत्साहित कर दो, भले ही पोस्ट एक हिंदूवादी की होती है मगर उसके पीछे जो अदृश्य सोच काम
करती है वह देश विरोधी की होती है। जहाँ तक सैनिकों का प्रश्न है तो आप निर्णय ले आपको पीओके और लद्दाख लेना है या नही।
लेना है तो तैयार रहिये बलिदान तो देना होगा, महाभारत में कृष्ण भगवान ने कहा है कि वीरो के बलिदान पर रोना उनकी वीरता का अपमान है।यदि आपको रोना आता है तो कृष्ण भक्ति
और भारतीय दर्शन के लिये अपना ढोंग दिखाना बंद कीजिये।
मित्रो, वह पाकिस्तान ही था जिसकी मदद से तालिबान ने न सिर्फ अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया, बल्कि विश्व की सर्वोच्च महाशक्ति अमेरिका को भी अफगानिस्तान से निकल भागने के लिए विवश भी होना पड़ा था।
इस हार के बाद से ही अमेरिका पाकिस्तान से खार खाये हुए था। करेले मे नीम तो तब पड़
गया, जब अपने हथियारों को अरब सागर से होकर निकालने के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान से रास्ता मांगा और पाकिस्तान ने साफ इनकार कर दिया था। चूंकि ईरान और रूसी गणराज्यों से अमेरिका की शत्रुता थी, अतः विवश होकर अमेरिका अपने 40 विलियन डालर के हथियारों को अफगानिस्तान मे ही छोड़कर
वहां से निकल गया। इसके बाद से आज तक अमेरिकी राष्ट्रपति ने इमरान से कभी टेलीफोन पर भी वार्ता तक नही की। इससे ही अमेरिका की पाकिस्तान से गहरी नाराजगी का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।
अफगानिस्तान से अपने नागरिकों और सैनिकों को किसी तरह वायुमार्ग से निकालने के बाद शुरु हुई
हाल ही में तीन नए देशों का सृजन हुआ है ! ईस्ट तिमोर, दक्षिणी सूडान और कोसोवो !
क्या हम अधिकांश भारतीयों को यह पता है, इन देशों का निर्माण किस आधार पर हुआ है ?
जिन्हें नहीं पता है उनके लिए जानकारी है कि इन देशों का निर्माण जनसांख्यिकीय परिवर्तन के कारण हुआ है !
ईस्ट तिमोर, जो इंडोनेशिया का एक भाग था, उसमें पहले ईसाइयों की जनसंख्या बहुत कम थी !
मुसलमानों एवं अन्य मत के मानने वाले नागरिकों की आबादी ८०% से अधिक थी ! केवल ५० वर्षों में ईसाई मिशनरियों के प्रयत्नों से, ईस्ट तिमोर में ईसाइयों की जनसंख्या ८०% से अधिक हो गई, परिणाम स्वरूप
"संयुक्त राष्ट्र संगठन" के दखल से जनमत संग्रह करा कर, ईस्ट तिमोर नाम के देश का निर्माण कर दिया गया! कोई युद्ध नहीं हुआ !
सूडान के दक्षिणी क्षेत्र में गरीबी थी मिशनरियों के प्रभाव में कुछ आदिवासी लोगों को पहले ही ईसाई बनाया गया !
धीरे धीरे इस मुस्लिम बहुल देश को दक्षिणी
पुरानी पेंशन नहीं मिलेगी.... अखिलेश राज आया तो तन्ख्वाह भी लुटेगी
30 साल बाद पेंशन तो भूल जाओ... जालीदार टोपी आएगी तो आपके बच्चों को घर से भी पलायन करना पड़ेगा... अपने बच्चों की सोचो !
- अखिलेश यादव ने वादा किया है कि वो उस पुरानी पेंशन को बहाल कर देंगे जो साल 2005 में बंद
की गई थी
-जब पुरानी पेंशन बंद हुई तब राज्य में अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव ही मुख्यमंत्री थे... तब मुलायम ने राजकोषीय घाटे का हवाला देकर ही पेंशन को बंद करने का समर्थन किया था लेकिन अब उनके पुत्र अखिलेश यादव ने कहा है कि वो पिता का फैसला पलट देंगे
-अगर देखा जाए तो यूपी में
2005 के बाद 13 लाख सरकारी कर्मचारी नियुक्त हुए हैं ये 13 लाख कर्मचारी अगर अपने साथ 5 वोट और जोड़ पाते हैं तो ये 65 लाख की आबादी हो जाती है इस तरह ये 65 लाख का एक बड़ा वोट बैंक बन जाता है
-कई लालची टाइप के लोग झूठे वायदों में फंसकर पैसे दो गुने करने के लालच में अपना सब कुछ गंवा
मीरा नायर ने दो समलैंगिक महिलाओं पे एक फ़िल्म बनाई थी फायर,
जिसमे एक का नाम राधा और दूसरी का नाम सीता था!!
मकबूल फिदा हुसैन नामक एक पेंटर हुआ करते थे जो हिन्दू देवियों की अश्लील पेंटिंग बनाया करते थे!!
दाऊद इब्राहिम को महिमामंडित करने के लिए कंपनी और डी जैसी फिल्में बनाई
जाती थी!
उस दौर में भी हम सब इनका विरोध करते थे तो कांग्रेस शासन में लाठी डंडों से स्वागत किया जाता था!!
हमारी विचारधारा में एक बात समझाई जाती थी,
अगर किसी देश को खत्म करना है तो उसकी संस्कृति को खत्म कर दो वो देश खुद ब खुद खत्म हो जाएगा!
आज फ़िल्म बन रही है रानी लक्ष्मी बाई पे, उरी की सर्जिकल स्ट्राइक पे, बाला साहेब पे, और ऐसे कई अच्छे विषयो पे जिनमे भारत ने कामयाबी के झंडे गाड़े हैं!!
अब अयोध्या में शानदार आयोजन कर दीवाली मनाई जा रही है जो आज तक तो किसी ने मनवाने की जहमत नही उठायी,
श्री शैलेन्द्र वाजपेयी मौजी लेखक हैं और खिंचाई में माहिर। उनकी यह विशुद्ध हास्य भाव की टिप्पणी पढ़नी चाहिए, बिल्कुल ठंढे मन से।
*
ठंड एक अनोखा व्यंग कृपया अन्यथा न लें।
केवल आनंद लीजिए, छीटाकसी नही है।
देश भर में पड़ रही कंपकपाती ठण्ड पर विभिन्न दलों/नेताओं की
राय इस प्रकार हो सकती हैं।
भाजपा- ये कंपकपाती ठण्ड सबका साथ, सबका विश्वास का अद्भुत उदाहरण है। ये ठण्ड बिना किसी जाति, धर्म के भेदभाव किए बिना सभी पर समान रूप से पड़ रही है। हम इस सद्भावनापूर्ण ठण्ड का स्वागत करते हैं। भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं।
कांग्रेस - ऐसा नही हैं कि ये ठण्ड हमारी सरकार में नहीं पड़ती थी, पड़ती थी किन्तु ऐसी भेदभावपूर्ण, विद्वेषपूर्ण ठण्ड आज से पहले कभी नहीं पड़ी। हम पूछना चाहते हैं इस सरकार से अल्पसंख्यक इलाकों में ही ज्यादा ठण्ड क्यों पड़ रही हैं ❓❓.. लोकतंत्र में इतनी ठण्ड बर्दाश्त नहीं।
कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ रहे जनरल वीपी मलिक अपनी किताब "इंडियाज मिलिट्री कॉन्फ्लिक्टस एंड डिप्लोमेसी" में कहते हैं कि युद्ध के दौरान जब उन्होंने आर्म्स और एम्यूनशन की शॉर्टेज पर सरकार का ध्यान आकर्षित कराया था, तब उस समय के एक सीनियर
ब्यूरोक्रेट ने उनकी इस बात पर आलोचना की थी कि उन्होंने प्रेस में कहा था कि "हमारे पास जो कुछ भी है हम उसके साथ लड़ेंगे।"
जनरल मलिक कहते हैं कि जबकि उस समय शॉर्टेज का कारण बजटरी सपोर्ट में लगातार कमी और एक ऑलमोस्ट नॉन फंक्शनल प्रोक्योरमेंट सिस्टम था।
अब सोंचिये कि ऐसा क्यों था? राव, देवगौड़ा, गुजराल के बाद अटल जी की सरकार थी जो मात्र कुछ ही महीने पुरानी थी। तो यह लगातार कमी जो कि सालों की थी वो किस कारण थी और ऐसा बंद सा पड़ा प्रोक्योरमेंट सिस्टम था, वो किस कारण था?
जनरल मलिक बताते हैं कि रक्षा मंत्री के साथ होने वाली