प्रश्न - धर्मका नाश हो जानेपर सम्पूर्ण कुलमें पाप भी बहुत फैल जाता है , इस कथनका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर - पाँच हेतु ऐसे हैं , जिनके कारण मनुष्य अधर्मसे बचता है और धर्मको सुरक्षित रखनेमें समर्थ होता है - ईश्वरका भय , शास्त्रका शासन , कुल - मर्यादाओंके टूटनेका डर राज्यका कानून
और शारीरिक तथा आर्थिक अनिष्टकी आशंका । इनमें ईश्वर और शास्त्र सर्वथा सत्य होनेपर भी वे श्रद्धापर निर्भर करते हैं , प्रत्यक्ष हेतु नहीं हैं । राज्यके कानून प्रजाके लिये ही प्रधानतया होते हैं , जिनके हाथों में अधिकार होता है , वे उन्हें प्राय : नहीं मानते ।
शारीरिक तथा आर्थिक अनिष्टकी आशंका अधिकतर व्यक्तिगत रूपमें हुआ करती है । एक कुल- मर्यादा ही ऐसी वस्तु है , जिसका सम्बन्ध सारे कुटुम्बके साथ रहता है । जिस समाज या कुलमें परम्परासे चली आती हुई शुभ और श्रेष्ठ मर्यादाएँ नष्ट हो जाती हैं ,
वह समाज या कुल बिना लगामके मतवाले घोड़ोंके समान यथेच्छाचारी हो जाता है । यथेच्छाचार किसी भी नियमको सहन नहीं कर सकता , वह मनुष्यको सर्वथा उच्छृंखल बना देता है । जिस समाजके मनुष्यों में इस प्रकारकी उच्छृंखलता आ जाती है , उस समाज या कुलमें स्वाभाविक ही सर्वत्र पाप छा जाता है ।
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प्रश्न = आध्यात्मिकता, क्या एक जन्मजात गुण है? अथवा जीवन में कुछ नहीं पाने के मलाल का परिणाम भी है ?
"भज गोविन्दम भज गोविन्दम गोविन्दम भज मूढ़मते" अरे मेरे मूर्ख मन! गोविंद का भजन कर! गोविंद का भजन कर!
मल मूत्र के छोटे से थैले में पड़ा हुआ असहनीय पीड़ा का दिन-रात अनुभव करता हुआ एक गर्भस्थ शिशु यही तो प्रार्थना करता है उस परब्रह्म परमेश्वर से जिसने उसे फिर से संसार चक्र में अनेको पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, कीट-पतंगों जैसी योनियों में उत्पन्न करते हुए।
अंत मे मनुष्य की योनि दया करके प्रदान की है।
उस गर्भ में जब से पिंड में जीव प्रवेश करता है, तभी से उस जीव को अपने सारे पूर्वजन्मों की स्मृतियाँ होने लगती है।
जाने कितनी बार ही मानव बनाया गया और भोग-विलास, अभिमान-क्रोध और धन के लोभ में अंधा होकर हर जन्म व्यर्थ कर दिया।
प्रश्न = श्री कृष्ण अपने ही वंश का नाश क्यों नहीं रोक पाए?
क्योंकि वो रोकना नहीं चाहते थे। यह सृष्टि के नियम, काल व कर्म के सिद्धांत के विरुद्ध होता। कृष्ण स्वयं धर्म हैं, तो वे ऐसे अधर्म को क्यों करते?
हम सब अपने रिश्ते-नातों के प्यार और आकर्षण में इतना डूबे रहते हैं कि हमें अच्छाई-बुराई कुछ दिखाई नहीं देती। हमें लगता है हम खुद तो सही हैं ही, हमारे माता-पिता, भाई-बहन, बेटा-बेटी, पति या पत्नी इत्यादि भी बिलकुल सही हैं और कोई कुछ ग़लत कर ही नहीं सकता।
और चाहे हमारे सगों ने जो किया हो, उनके हर सही-ग़लत काम पर पर्दा डालना और उन्हें उनके किए की सज़ा मिलने से रोकना भी हमें अपना फ़र्ज़ लगता है।
शायद यह भी एक फ़र्क़ है भगवान और इंसान में। कृष्ण जानते थे कि उनके कुल के लोग बेहद लालची और क्रूर हो गए हैं।
प्रश्न = टीभी सिरियल 'राधा कृष्ण' में क्या क्या त्रुटियाँ हैं जो कि सच्चाई से भिन्न हैं?
इसके लिए बहुत लंबे चौड़े उत्तर की आवश्यकता नही है। ये सीरियल कितना बकवास है, इसका अंदाजा तो केवल इसके प्रोमो को देख कर ही लगाया जा सकता है। क्या आप विश्वास करेंगे कि यूट्यूब पर इस सीरियल के
कॉमेडी सीन" बहुत मशहूर हैं। धर्म कभी हास्य का प्रतीक नही होता, ये जरा सी बात लोगों को समझ मे नही आती।
इसके अतिरिक्त श्रीकृष्ण और राधा के पवित्र संबंध को जब आज कल के कलियुगी निर्माताओं द्वारा "ड्रामा" एवं "रोमांस" की संज्ञा दे दी जाए तो उस वाहियात सीरियल के विषय में कुछ और बोलने की आवश्यकता ही क्या है?
प्रश्न = शास्त्रों के अनुसार मनुष्यों ने खेती बॉडी करना कैसे सीखा ?
दुनिया के अन्य महाद्वीपों के लोग जब वर्षा , बादलों की गड़गड़ाहट के होने पर भयभीत होकर गुफाओं में छुप जाते थे ! जब उन्हें एग्रीकल्चर का ककहरा भी मालूम नहीं था !
उससे भी हजारों वर्ष पूर्व महर्षि पाराशर मौसम व कृषि विज्ञान पर आधारित भारतवर्ष के किसानों के मार्गदर्शन के लिए " कृषि पाराशर ” नामक ग्रंथ की रचना कर चुके थे ! पराशर एक मन्त्रद्रष्टा ऋषि , शास्त्रवेत्ता , ब्रह्मज्ञानी एवं स्मृतिकार है !
यह महर्षि वसिष्ठ के पौत्र , गोत्रप्रवर्तक , वैदिक सूक्तों के द्रष्टा और ग्रंथकार भी हैं ! पराशर शर - शय्या पर पड़े भीष्म से मिलने गये थे ! परीक्षित् के प्रायोपवेश के समय उपस्थित कई ऋषि मुनियों में वे भी थे ! वह छब्बीसवें द्वापर के व्यास थे।