प्रश्न = आध्यात्मिकता, क्या एक जन्मजात गुण है? अथवा जीवन में कुछ नहीं पाने के मलाल का परिणाम भी है ?
"भज गोविन्दम भज गोविन्दम गोविन्दम भज मूढ़मते" अरे मेरे मूर्ख मन! गोविंद का भजन कर! गोविंद का भजन कर!
मल मूत्र के छोटे से थैले में पड़ा हुआ असहनीय पीड़ा का दिन-रात अनुभव करता हुआ एक गर्भस्थ शिशु यही तो प्रार्थना करता है उस परब्रह्म परमेश्वर से जिसने उसे फिर से संसार चक्र में अनेको पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, कीट-पतंगों जैसी योनियों में उत्पन्न करते हुए।
अंत मे मनुष्य की योनि दया करके प्रदान की है।
उस गर्भ में जब से पिंड में जीव प्रवेश करता है, तभी से उस जीव को अपने सारे पूर्वजन्मों की स्मृतियाँ होने लगती है।
जाने कितनी बार ही मानव बनाया गया और भोग-विलास, अभिमान-क्रोध और धन के लोभ में अंधा होकर हर जन्म व्यर्थ कर दिया।
अंत में ना भगवान मिले ना शांति।
जाने कितनी बार घोड़े, बकरे, हाथी आदि बनाया गया और जानवरों जैसे ही बस खाना-पीना और मैथुन करने में जन्म पूरा कर दिया।
जाने कितनी बार ही पेड़- पत्थर धूल-मिट्टी जैसे जड़ पदार्थ बना दिया गया और करोड़ो अरबो वर्षो बाद उस भीषण अचेतन जन्म से मुक्ति मिली।
इस बार वो जीव दृढ़ निश्चय करके आया है की प्रभु ने दया करके मनुष्य का जन्म दे दिया है जहाँ मुझे सोचने-समझने और करने की हर सामर्थ्य प्राप्त है, तो इस जन्म में तो मैं अपने चरम और परम और एकमात्र लक्ष्य को जो भगवान की प्राप्ति है (मोक्ष या निर्वाण) उस तक अवश्य पहुँचूँगा।
इस बार ना धन के लोभ में आऊँगा, ना स्त्री/पुरूष की लालसा में, ना क्रोध में अंधा होऊँगा और ना ही किसी से मोह रखूँगा।
गर्भ में से ही प्रार्थना करता है वो शिशु:
पुनरपि जननम् पुनरपि मरणम् पुनरपि जननी जठरे शयनं
जाने कितनी बार जन्म-मृत्यु और फिर जन्म-मृत्यु के चक्कर मे घूम रहा हूँ। इस बार इस चक्कर से मुक्ति लेकर ही रहूंगा।
एहि संसारे खलु दुस्तारे कृपया पारे पाहि मुरारे
हे गोविंद! ये कठिन संसार सागर मैं पार नही कर पा रहा हूँ, आप मेरी रक्षा करो मेरी रक्षा करो।
और फिर जैसे ही माँ के पेट से बाहर निकला, माया ने लपेटे में ले लिया तुरंत। बाहर आते से ही भूख-प्यास, नींद-आराम, सुख-दुःख सब होने लगे।
धीरे धीरे चलना बोलना सीख लिया। धीरे धीरे सोचना समझना सीख लिया और धीरे धीरे..
वो जीव जो बड़े हृदय से गर्भ में भगवान से मुक्ति की प्रार्थना कर रहा था वो अब भोग-विलास और धन-ऐश्वर्य की प्रार्थना करने लगा!
जो जन्म के पहले से आध्यात्म था शिशु में वो जन्म के बाद बड़े होते होते
एकदम ही धुंधला हो गया। आध्यात्म मिट तो कभी नही सकता क्योंकि वो तो आत्मा की वाणी है, हाँ अक्सर धुंधला हो जाता है सांसारिक कार्यक्रमों में लगे रहने के कारण।
अब जिनको वास्तव में पाना था "भगवान" को, उनकी तरफ शून्य ध्यान और रुपये-पैसे, गाड़ी-लाडी जो प्रारब्ध के अनुसार मिलनी ही थी
उनको पाने में ध्यान लगा दिया।
तो मेरे मित्रों आप ही बताइए कृपया:
आध्यात्म एक जन्मजात गुण है की नही?
जीवन मे सांसारिक वस्तुओं को ना पाने के मलाल का परिणाम आध्यात्म कैसे हो गया?
एक केवल उस परमशक्ति को जिसने ये सब संसार का खेल रचा है, उसको ना पाने का मलाल तो होना चाहिए।
यही आध्यात्म का आरंभ है ना!
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प्रश्न - धर्मका नाश हो जानेपर सम्पूर्ण कुलमें पाप भी बहुत फैल जाता है , इस कथनका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर - पाँच हेतु ऐसे हैं , जिनके कारण मनुष्य अधर्मसे बचता है और धर्मको सुरक्षित रखनेमें समर्थ होता है - ईश्वरका भय , शास्त्रका शासन , कुल - मर्यादाओंके टूटनेका डर राज्यका कानून
और शारीरिक तथा आर्थिक अनिष्टकी आशंका । इनमें ईश्वर और शास्त्र सर्वथा सत्य होनेपर भी वे श्रद्धापर निर्भर करते हैं , प्रत्यक्ष हेतु नहीं हैं । राज्यके कानून प्रजाके लिये ही प्रधानतया होते हैं , जिनके हाथों में अधिकार होता है , वे उन्हें प्राय : नहीं मानते ।
शारीरिक तथा आर्थिक अनिष्टकी आशंका अधिकतर व्यक्तिगत रूपमें हुआ करती है । एक कुल- मर्यादा ही ऐसी वस्तु है , जिसका सम्बन्ध सारे कुटुम्बके साथ रहता है । जिस समाज या कुलमें परम्परासे चली आती हुई शुभ और श्रेष्ठ मर्यादाएँ नष्ट हो जाती हैं ,
प्रश्न = श्री कृष्ण अपने ही वंश का नाश क्यों नहीं रोक पाए?
क्योंकि वो रोकना नहीं चाहते थे। यह सृष्टि के नियम, काल व कर्म के सिद्धांत के विरुद्ध होता। कृष्ण स्वयं धर्म हैं, तो वे ऐसे अधर्म को क्यों करते?
हम सब अपने रिश्ते-नातों के प्यार और आकर्षण में इतना डूबे रहते हैं कि हमें अच्छाई-बुराई कुछ दिखाई नहीं देती। हमें लगता है हम खुद तो सही हैं ही, हमारे माता-पिता, भाई-बहन, बेटा-बेटी, पति या पत्नी इत्यादि भी बिलकुल सही हैं और कोई कुछ ग़लत कर ही नहीं सकता।
और चाहे हमारे सगों ने जो किया हो, उनके हर सही-ग़लत काम पर पर्दा डालना और उन्हें उनके किए की सज़ा मिलने से रोकना भी हमें अपना फ़र्ज़ लगता है।
शायद यह भी एक फ़र्क़ है भगवान और इंसान में। कृष्ण जानते थे कि उनके कुल के लोग बेहद लालची और क्रूर हो गए हैं।
प्रश्न = टीभी सिरियल 'राधा कृष्ण' में क्या क्या त्रुटियाँ हैं जो कि सच्चाई से भिन्न हैं?
इसके लिए बहुत लंबे चौड़े उत्तर की आवश्यकता नही है। ये सीरियल कितना बकवास है, इसका अंदाजा तो केवल इसके प्रोमो को देख कर ही लगाया जा सकता है। क्या आप विश्वास करेंगे कि यूट्यूब पर इस सीरियल के
कॉमेडी सीन" बहुत मशहूर हैं। धर्म कभी हास्य का प्रतीक नही होता, ये जरा सी बात लोगों को समझ मे नही आती।
इसके अतिरिक्त श्रीकृष्ण और राधा के पवित्र संबंध को जब आज कल के कलियुगी निर्माताओं द्वारा "ड्रामा" एवं "रोमांस" की संज्ञा दे दी जाए तो उस वाहियात सीरियल के विषय में कुछ और बोलने की आवश्यकता ही क्या है?