Nitin Thakur Profile picture
Mar 2 5 tweets 2 min read
एडोल्फ हिटलर के पगलाए राष्ट्रवाद में सारा जर्मनी कूद पड़ा था।जब जर्मन सैनिक एक एक करके मरने लगे और हिटलर का मायाजाल टूटने लगा तो जर्मन सेना ने छोटे-छोटे बच्चों के लिए भी भर्ती खोल दी।आखिरी सांस ले रही नाज़ी सरकार को शर्म नहीं आई और उसने राष्ट्र के नाम पर बच्चों तक को हथियार थमाकर
युद्ध में भेज दिया।ये तस्वीर 16 साल के हैन्स जॉर्ज हेंक की है जिसे हथियार देकर लड़ने को कहा गया।वो अपने देश के ही हेसन में जंग करता हुआ पकड़ लिया गया था।जब पकड़ा गया तो ज़ार ज़ार रोने लगा।बच्चा ही तो था,रोना बनता भी था। तभी ये तस्वीर ले ली गई।बेचारे के पिता 1938 में मर गए थे।
मां भी 1944 में चल बसी।गुज़ारे के लिए कुछ करना था तो उसने 15 साल की उम्र में जर्मनी की वायु सेना में एंटी एयर स्क्वैड ज्वाइन कर लिया। साल भर लड़ा और फिर जर्मनी युद्ध हार गया। सोवियत सेना ने जर्मनी में घुसकर सबको घेर लिया था,वो उन्हीं में से एक था।फोटो अमेरिकी फोटोग्राफर जॉन
फ्लोरिया ने लिया था। हैंस ने आगे चलकर कम्युनिस्ट पार्टी ज्वाइन की और 1997 तक जिए। ये तस्वीर कई भावनाएं उजागर करती है। सबसे बड़ी तो यही कि बच्चे को आप कितना भी राष्ट्रवाद सिखा दें लेकिन दिल से वो बच्चा ही होता है। पकड़े जाने पर वो बच्चे की ही तरह फूट पड़ा। बच्चे को बच्चा ही रहने
दें।अपने पागलपन में उनको सनकी नहीं बनाना चाहिए। अपने बच्चों को भी बचाइए अगर आपको लग रहा हो कि वो बचपन में ही बड़ों जैसी बातें कर रहा है.. मरने -मारने, कटने-काटने की..
#इतिइतिहास

• • •

Missing some Tweet in this thread? You can try to force a refresh
 

Keep Current with Nitin Thakur

Nitin Thakur Profile picture

Stay in touch and get notified when new unrolls are available from this author!

Read all threads

This Thread may be Removed Anytime!

PDF

Twitter may remove this content at anytime! Save it as PDF for later use!

Try unrolling a thread yourself!

how to unroll video
  1. Follow @ThreadReaderApp to mention us!

  2. From a Twitter thread mention us with a keyword "unroll"
@threadreaderapp unroll

Practice here first or read more on our help page!

More from @thenitinnotes

Mar 2
इंटरनेट की गलियों से गुज़रते हुए एक बहुत प्यारी तस्वीर से सामना हुआ।तस्वीर आपके सामने पेश कर रहा हूं।दूसरे विश्व युद्ध का ज़माना था। सिपाही अपनी प्रेमिकाओं और पत्नियों को अलविदा कहकर ऐसे सफर पर निकल रहे थे जिससे लौट आने का कोई भी वादा झूठा साबित होना था।जंग से पहले विदाई की इस
तस्वीर के साथ साहिर लुधियानवी साहब की मशहूर कविता 'खून फिर खून है' की चंद पंक्तियां साझा कर रहा हूं।युद्ध की हुंकार भरते दिमागों में कोई बात बैठाना यूं तो मुश्किल है,लेकिन इंसान का जीवन बदलावों की किताब है सो कोशिश अपनी मुसलसल जारी है।उम्मीद है कि तस्वीर और कविता आपको ठंडक
पहुंचाएगी।

बम घरों पर गिरें या सरहद पर
रूहे–तामीर ज़ख्म खाती है
खेत अपने जले कि औरों के
ज़ीस्त फ़ाकों से तिलमिलाती है..

जंग तो खुद ही एक मअसला है
जंग क्या मअसलों का हल देगी
आग और खून आज बख्शेगी
भूख और अहतयाज कल देगी..
Read 4 tweets
Nov 17, 2021
इश्क में ताज़ा नाकाम हुए मेरे प्रिय दोस्त,
मुझे यकीन है कि तुम मेरा ये खत ज़रूर पढ़ोगे। ताज़ा ब्रेक अप से उबरने की कोशिश कर रहे तुम जैसे लोग मन बहलाने के लिए इन दिनों में वो सब करते हैं जो गर्लफ्रेंड के रहते नहीं करते। उन दिनों तुम मेरे फोन नहीं उठाते थे और अक्सर मैसेज पढ़ना भी
भूल जाते थे।देख रहा हूं कि आजकल क्विक रिस्पॉन्स करने की तुम्हारी क्षमता फिर लौट आई है। देखो ये अच्छा ही है। अब उन बातों पर ध्यान दो जिन पर पहले दे नहीं पाए थे। वैसे आज कल पुरानी फिल्मों और पुराने गानों को भी तुम ठीकठाक वक्त दे रहे होंगे। मेरी सलाह है कि इमोशनल फिल्म और गानों से
कुछ दिन दूर रहो। ग़म हलका करने की बजाय ये उसे गहरा कर देते हैं। मेरी मानो तो कहीं घूम फिर आओ।होता-वोता कुछ है नहीं मगर आदमी खुद को किसी ट्रैजिडी फिल्म का हीरो सा फील करने लगता है और हीरो कौन नहीं होना चाहता!!
एक बात और लिखनी थी। देखो यार, उस लड़की का नंबर डिलीट कर दो। ये तो मैं
Read 11 tweets
Nov 14, 2021
गांधी ने 1942 में नेहरू को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था और ऐसा शख्स कहा था 'जो मेरे ना रहने पर.. मेरी भाषा बोलेगा'। ऐसा ही हुआ भी।
1948 की जनवरी में जब गोड़से ने गोली चला कर देश के सबसे बड़े अभिभावक को मौत की नींद सुला दिया तब नेहरू ने दुख में डूबकर भी गांधी की ही भाषा बोली।
उन्होंने कहा था- ' हमें याद रखना है कि हम में से किसी को गुस्से में कोई कार्रवाई नहीं करनी है।हमें सशक्त और संकल्पवान लोगों की तरह व्यवहार करना चाहिए।सभी खतरों का सामना करने के संकल्प के साथ,हमारे महान गुरू और महान नेता द्वारा दिए गए आदेश को पूरा करने के संकल्प के साथ और हमेशा यह
ध्यान रखते हुए कि उनकी आत्मा हमें देख रही है, तो उसके लिए इससे अधिक कष्टदायक कुछ नहीं होगा कि हमें क्षुद्र व्यवहार या हिंसा में लिप्त देखें।'
वैसे ऐसा नहीं कि नेहरू किसी कट्टरपंथी की तरह गांधी के वचनों पर चलते रहे हों।परिस्थितियों के हिसाब से उन्होंने लचकदार रवैया भी अपनाया,
Read 19 tweets
Oct 20, 2021
बागपत में एक छोटा सा गांव है सनौली.जो उस ज़िले में रहते हैं वही इस गांव को जानते हैं और बाहर के लोगों के पास कोई वजह भी नहीं थी इसे जानने की पर फिर 2005 आया.किसान अपने खेत में काम कर रहे थे.अचानक ज़मीन से कुछ बर्तन भांडे निकले.उन्होंने सोचा ज़रूर किसी ने अंदर खज़ाना दबा रखा है.
धीरे धीरे खुदाई करने लगे पर बात कहां दबती. खुल गई.शोर मच गया.अखबारों तक में खबर छपी.आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को अंदाज़ा हो गया कि हो न हो फिर से सिंधु घाटी सभ्यता की एक साइट मिली है.2005 में विद्वानों का एक दल उस खेत में जा पहुंचा. महीनों खोदता रहा. कब्र मिलीं. बर्तन मिले.
सोने और बाकी धातुओं के कुछ आभूषण भी लेकिन ऐसा कुछ खास हुआ नहीं कि इतिहासकार चौंकते.खैर, खुदाई रुक गई.एक बार रुकी तो फिर 2018 तक रुकी ही रही.एक बार फिर एएसआई ने दल भेजा.उन्होंने खोदना शुरू किया लेकिन इस बार ये साधारण नहीं होनेवाला था.पहले तो कुछ ताबूत मिले.इनमें पुरुषों और महिलाओं
Read 8 tweets
Oct 13, 2021
Mercy Petition of Savarkar. 14 Nov 1913. To Reginald Craddock, Home member of the Government of India.
Source- Savarkar, Vikram Sampath.

- रिहा हुआ तो संवैधानिक प्रगति और ब्रिटिश सरकार की वफादारी का निष्ठावान पैरोकार बनूंगा.
- मेरे द्वारा संवैधानिक विचार अपनाने पर भारत और उससे
बाहर के बहुत से भटके युवा जो मुझे आदर्श मानते हैं वो भी इसी विचारधारा पर लौट आएंगे.
- सरकार जिस तरह चाहे मैं सेवा को तत्पर हूं.चूंकि मेरा परिवर्तन ईमानदारी से हो रहा है तो मेरे भविष्य के कार्यकलाप भी वैसे ही होंगे.
- शक्तिशाली ही केवल दयालु हो सकता है इसलिए पश्चातापी पुत्र सरकार
के अभिभावक जैसे द्वार के सिवाय कहां लौट सकता है?

जब ये लिखा जा रहा था तब गांधी भारत में नहीं थे. अब तक ऐसा कोई प्रमाण भी नहीं मिला जिससे पता चलता हो कि सावरकर को इस दया याचिका की सलाह गांधी से मिली हो. हालांकि कई याचिकाओं के बावजूद जब सावरकर और उनके भाई को मुक्ति नहीं मिली तो
Read 5 tweets
Oct 12, 2021
ता ना ना ना ना ना ना ना s s s s
ता ना ना ना ना ना ना ना ...

अगर ये धुन गाकर सुना दूं तो नब्बे के दशक का हर बच्चा इसे तुरंत पहचान लेगा। कुछ ने तो शायद अंदाज़ा लगा भी लिया होगा। ये धुन हमारे बचपन में यूं पैबस्त है मानो ज़िंदगी में सुखदुख। ब्लैक एंड व्हाइट टीवी पर दूरदर्शन के ज़रिए
गूंजती ये धुन बीन जैसा काम करती थी जिसे सुनकर हम बच्चे सांप की तरह लपककर टीवी के सामने कुंडली मार कर बैठ जाते थे। उसके बाद होश कहां रहता था...

हम पूरी चेतना के साथ मालगुडी कस्बे की दुनिया में प्रवेश करते थे।स्वामी का वो कस्बा मद्रास से कुछ ही दूरी पर बसा था..शायद 1935 के आसपास।
फ्रैरैडरिक लॉयले नाम के अंग्रेज़ ने उसे आबाद किया था।वही लॉयले जिसकी मूर्ति मालगुडी में लगी है।मेंपी के जंगल के पास जहां सरयू नाम की नदी बहती है ठीक उसी के किनारे मालगुडी की दुनिया थी।मैसूर और मद्रास को अलग करनेवाली सीमा पर उसका अस्तित्व था। सरयू के बहुत किस्से मिलते हैं।
Read 17 tweets

Did Thread Reader help you today?

Support us! We are indie developers!


This site is made by just two indie developers on a laptop doing marketing, support and development! Read more about the story.

Become a Premium Member ($3/month or $30/year) and get exclusive features!

Become Premium

Don't want to be a Premium member but still want to support us?

Make a small donation by buying us coffee ($5) or help with server cost ($10)

Donate via Paypal

Or Donate anonymously using crypto!

Ethereum

0xfe58350B80634f60Fa6Dc149a72b4DFbc17D341E copy

Bitcoin

3ATGMxNzCUFzxpMCHL5sWSt4DVtS8UqXpi copy

Thank you for your support!

Follow Us on Twitter!

:(