महाभारत कथामें अंकित रहस्यमयी व्यूहरचना,जो युद्ध के तेरहवें दिन रची गयी थी। सात परतों में अपने कमजोर और मजबूत सैनिकों का ऐसा संयोजन की हर दीवार को बगल की दीवार का सहयोग मिले,और दुश्मन कुचल दिया जाये।
देखने मे लगता है कि यह डिफेंसिव है।पर व्यूह के सैनिक स्थिर नही
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वे घूम रहे हैं,आगे चल रहे हैं।लेकिन इसके साथ पूरा व्यूह भी दुश्मन की तरफ बढ़ रहा है।इस व्यूह को रचना और चलाना आसान काम नही। पर बना लिया,तो इसे तोड़ना औऱ कठिन।
चक्रव्यूह की सात परतें हैं।हर परत के बारे में बताता हूँ।
पहली परत, प्रोपगंडा है।टीवी, रेडियों, अखबार,और सोशल मीडिया
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पर महारथी इसकी कमान सम्हालते हैं।फेक तस्वीरें,फेक डेटा,फेक उपलब्धियां,ओपिनियन पोल, एग्जिट पोल..हाथ का भाला है। तो नकली इतिहास, आइडिओलिजी, क्रिया प्रतिक्रिया की थ्योरी इनकी ढाल है।
दूसरी परत पैसा है। इसमे कानून काम आता है। पैसे लेन देंन की अनुमत प्रक्रिया ऐसी, की व्यूहकर्ता का
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अतुलित धन कहाँ से आ रहा है,यह पता न चले। लेकिन दुश्मन का धन कहाँ से आ रहा है, आपको तुरन्त मालूम हो जाये।
फिर उसे आधे रास्ते मे धमका कर फंड अपनी जेब में डाल दिया जाए,या उस व्यक्ति या कम्पनी को नेस्तनाबूद कर दिया जाए।बांड्स की यह व्यवस्था सुनिश्चित करती है कि व्यूहकर्ता तो 5 साल
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लगातार लड़ सके, लेकिन शत्रु तीन माह भी लड़ने लायक दाना पानी न जुगाड़ पाए।।
तीसरी परत ला एन्ड ऑर्डर है। इसका मतलब की हर वैठक धरना विरोध को लॉ एन्ड ऑर्डर के लिए खतरा करार देकर विरोधी को जेल डालना, या सम्पत्ति जप्त करना है। इससे व्यूहकर्ता तो अपना संगठन और बूथ मजबूत कर लेता है,
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लेकिन विपक्षी के सैनिक हिम्मत खो देते हैं।
चौथी परत वोटर रोल है।इसमे दुश्मन को बल देने वाले सारे सैनिक किसी न किसी कारण से रोल से खारिज कर दिए जाते हैं।इससे हर युद्ध क्षेत्र में शत्रु को 5 से 15 हजार सैनिकों का नुकसान होता है।
पांचवी परत मशीन है।कहते हैं कि इसमें कोई भी संगीत
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बजाओ,सिर्फ जय श्रीराम का साउंड बजता है।
हालांकि इस पर विद्वानों में मतभिन्नता है।अलग अलग विचारों के अनुशीलन से यह समझ मे आता है,कि यह मशीन दरअसल गैर जरूरी है।सुविद्जन सिर्फ यही प्रमाणित करने का प्रयास करते हैं कि यह कितनी शुद्ध और अपवित्रताप्रूफ है।
परंतु इसकी मूल आवश्यकताके
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सवाल पर मौन यह बताता है कि मशीन दरअसल व्यूहरचना की जरूरत है।
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छटवी परत अफसर हैं, जो बैठकर गिनती करते हैं। अक्सर इस परत में उन अफसरों को प्रभार मिलता है, जिनका कार्यकाल समापन के करीब हो, जिनपर जांच वगेरह लम्बित हो या जिनका आचार विचार व्यूहकर्ता से मैच करे।
8 @NiranjanTripa16
यह अफसर हर बराबरी के मुकाबले को खत्म होने के पहले ही, विजय का प्रमाण पत्र, व्यूहकर्ता के घोड़े को देने को तैयार खड़े रहते हैं।
सातवी परत राज्यपाल है। वह सुबह पांच बजे उठकर व्यूहकर्ता को शपथ दिला देता है। इसके बाद कुछ समय, और रिजॉर्ट के मैप दिये जाते हैं, जहां से घोड़े उठाकर
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संख्या पूरी की जा सकें। तमाम दांव पेंच के बाद अभिमन्यु, चक्रव्यूह की इस परत तक तक आते आते दम तोड़ देता है।
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व्यूह की हर परत एक दूसरे को मजबूती देती है, और शत्रु की नैसर्गिक ऊर्जा चाट लेती है। महाभारत में चक्रव्यूह को पद्म व्यूह भी कहा गया है। इसलिए कि इसकी संरचना खिलते
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कमल की तरह होती है।
पाठक को भ्रम है, कि इस व्यूह का अभिमन्यु कोई विपक्षी दल है। असलियत यह है कि वह नागरिक जिसे इस व्यवस्था द्वारा सर आंखों रखा जाना था, अपनी प्रासंगिकता बचाने के लिए इस व्यूह से लोहा ले रहा है।
नए भारत की इस महाभारत में, उसके अपने ही उसे गिराकर,
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उस पर वार कर रहे हैं, पराए व्यूह की रक्षा कर रहे हैं। रथ का पहिया लिए अभिमन्यु इन महारथियों से लड़ रहा है।
झण्डे ही झंडे हैं।
सारे चीन के है।
चीन के भीतर चीन के हैं।
एक ठो मेन झंडा है, जिसे आप पहचानते है।
पांच औऱ झण्डे है
उसके बाद दो झण्डे और हैं..
किसके???
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चीन में 5 ऑटोनॉमस क्षेत्र हैं। उनके नाम खोजना आपका काम है। ऑटोनॉमस क्षेत्र का
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मतलब जहां का लोकल प्रशाशन, वहां के लोकल कस्टम्स, लोकल बॉडी के द्वारा चलाया जाता है। मुख्य चीन के बहुत से कानून यहां लागू नही होते।
ये पांच क्षेत्र, प्राचीन काल से स्थानीय ट्राइब के द्वारा रूल किये जाते रहे हैं, लेकिन वो बीजिंग वाले राजा को सुप्रीम मानते थे। यानी बीजिंग राजा के
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कुछ बेसिक नियम के अलावे बाकी में स्वत्रंत।
अपना झंडा,अपना कानून,अपना शासन।इस व्यवस्था को माओ ने पहले खारिज किया।लेकिन असन्तोष देखा तो वापस लागू किया। चीनी पासपोर्ट,बॉर्डर्स पर चीनी सेना,संचार व्यवस्था चीन के कंट्रोल में।बाकी अपने क्षेत्र में सरपंची करते रहो।
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जंगल का सबसे ताकतवर, विशालकाय, इंटेलिजेंट, सामाजिक, शाकाहारी जीव, जिसे ऐसे गगनभेदी नारों से मूर्ख बनाकर सवारी गांठी जाती है।
हाथी सिकंदर के दौर से, मालिकों की लड़ाइयां लड़ता रहा है, उनका हौदा पीठ पर ढोता रहा है। शीश का दान कर, वह
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पूजनीय बन सकता है,मगर राजा नही।
नो पॉलिटिक्स- ऑनली वाइल्डलाइफ सीरीज में गिरगिट, शेर,गैंडे,जंगली गधे, मगरमच्छ, उल्लू, गिद्ध पर बात हो चुकी है, मगर हाथी यहां हमसे भी उपेक्षित रह गया था।
तो आज बात हमारी, याने हाथी की..
साहबान, कदरदान, मितरों,मूर्खो।
आप जानते हैं कि धरती पर
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चलने वाला सबसे विशालकाय मेमल, हाथी है। संस्कृत के हस्ति शब्द से इसका प्रादुर्भाव है। जहां सारे हाथी पकड़कर सेवा में लाये जायें, वह माइथोलॉजिकल शहर हस्तिनापुर कहलाया।
अंग्रेजी में एलिफेंट कहते है, जो ग्रीक शब्द एलिफ़ास से बनता है।एलिफ़ास का मतलब है आइवरी, याने वो दांत, जो बड़े
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राजस्थान और छत्तीसगढ़ के इन शानदार स्कूलों के लिए धन्यवाद अरविंद केजरीवाल..
जी नही। ये स्कूल तो छत्तीसगढ़ और राजस्थान के कांग्रेसी सरकारें ही बना रही हैं। मगर इसका श्रेय कहीं न कहीं दिल्ली सरकार, मनीष सिसोदिया और केजरीवाल को जाता है।
इसलिए, कि सरकारे एक दूसरे से सीखती है।
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दिल्ली की सरकार ने स्कूलों को लेकर जो सिरियस एप्रोच शुरू की,उसकी चुनावी सफलता ने दूसरी सरकारों को प्रेरणा दी है।
राजस्थान की ओल्ड पेंशन लागू कराने को भी भूपेश बघेल ने कॉपी किया है।पिछले हफ्ते सरकारी कार्यालयों में समय पूर्व होली खेली गई, जश्न हुआ।
अजीत जोगी की "मितानिन योजना"
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को केंद्र ने देश भर में "आशा वर्कर" योजना के रूप में लागू किया था। राजस्थान की RTI और रोजगार गारंटी स्कीम को देश की आरटीआई और मनरेगा में ढाला गया।अम्मा कैंटीन को छत्तीसगढ़ में दाल भात केंद्र के रूप में शुरू किया गया था,जो असफल रही। पर उसकी जगह अभी "गढ़ कलेवा" चल रहा है, सफल है।
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बहुत जोर शोर से कश्मीर पर किसी प्रोपेगेंडा फिल्म का जिक्र चल रहा है,क्योंकि हमे समयाभाव के कारण फिल्मे देखनेका अवसर नहीं मिलता तो हमने देखी भी नहीं( लास्ट फिल्म फना देखी थी,आमिर खान की वो भी कश्मीर के बैकग्राउंड पर बनी थी )
लेकिन कथित कश्मीर फाइल्स की चर्चा और जिक्र सुनकर यकीन
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हो गया है कि भारतमें अन्दर तक घुसपैठ हो चुकी है।
शीत युद्ध के समय की हॉलीवुड फिल्मे देखे तो उनमें अकेला रैंबो सोवियत मिलेट्री अड्डों में घुसकर सबको नेस्तनाबूत कर देता है।
फिर चीन की फिल्म देखे तो उसमे चिंग पिंग अपने मार्शल आर्ट्स से ही गोरोंको बर्बाद करके निकल लेताहै।एक फिल्म
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में तो काफी मारा पीटी के बाद हीरो बचकर निकलता है और चीन का पासपोर्ट दिखाता है इसी के साथ द एंड का बैनर लग जाता है( इस प्रकार की चाइनीज फिल्मे दो तीन साल से आ रही है )
जब हम तेजी से विश्व शक्ति बनने की ओर बढ़ रहे थे तो पड़ोसी का मनोबल तोड़ने के लिए हमारे यहांभी Hero,The spyजैसी
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अगर झटके में सोचने बैठें तो पाएंगे पूरे विश्व में रुस द्वारा दिए गए कम्युनिज्म से भी दसियों गुना ज्यादा लोकप्रिय और दिल खोलकर आजमाई गई चीज AK 47 ही है. इसको दुनिया के कोने कोने के लोगों ने बगैर किसी नैतिक दुविधा के खुले दिल से अपनाया और ये
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उनकी आशाओं पर उम्मीद से ज्यादा खरी उतरी.
लेनिन, दोस्तोवस्की और चेखव से ज्यादा संसार मेंAK 47को जानने और चाहने वाले लोग हैं.
एक अनुमान के अनुसार एक करोड़ से ज्यादा AK 47अभी तक बन कर प्रचलन में आ चुकी है अगर एक एके 47 अपने लगभग पचास साल के पूरे जीवन काल में दस से बारह हाथों में
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भी गई हो तो मान लीजिए भारत की लगभग पूरी आबादी के बराबर लोग इसे अपने हाथों में थाम चुके हैं.
अनुमान है कि धरती पर हर सत्तर व्यक्ति पर एक एके 47 राइफल विद्यमान है और हर साल लगभग ढाई लाख लोग धरती पर इसका शिकार होते हैं.
एके 47 का संतुलन और इसकी शक्ति इसे धरती का सबसे आकर्षक और
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चुनाव, व्यवस्था से असन्तोष का सेफ पैसेज है।ठीक वैसे ही, जैसे प्रेशर कुकर में सीटी होती है। जो इतनी भारी होती है कि भाप को रोक सके, लेकिन इतनी हल्की होती है, कि कुकर फटने से पहले उठकर भाप निकाल दे।
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"अच्छे दिन आएंगे" से "खेला होबे" और "
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"खदेड़ा होबे' तक, नारों के टोन में अंतर महसूस कीजिए। पहला एस्पिरेशन, दूसरा खीज, और तीसरा गुस्सा है।पहला नारा भाजपा के लिए और बाकी दो उसके खिलाफ है।
व्यवस्था जैसी भी हो, नागरिक को एक समय के बाद थकावट और ऊब होने लगती है।सब अच्छा हो, तो और अच्छा चाहिए।सब बुरा हो, तो जल्द से जल्द
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बदलकर पुरानी वाली अवस्था मे लौटने का मन होता है।
यहीं पर आरएसएस-भाजपा और कांग्रेस समेत दूसरी पार्टियों का अंतर है।कांग्रेस,और दूसरी पार्टियां जानती हैं कि सत्ता आज जा रही है, तो कल फिर आ जायेगी।नो बिग डील..