थ्रेड: #अर्धसत्य

यहाँ निजीकरण भक्तों के कुछ तर्क और उनका प्रत्युत्तर पेश किया गया है।

1. सरकारी बैंक शेयर मार्केट में पैसा कमा कर नहीं देती।

SBI शेयर पिछले एक साल में 22.65% बढ़ा वही HDFC 8.68% गिरा।

#StopPrivatization
2. सरकारी बैंक घाटे में चलते हैं और टैक्सपेयर का पैसा बर्बाद करते हैं।

नीचे प्रॉफिट टेबल देख लें।

#StopPrivatization
3. सरकारी बैंक वाले आलसी होते हैं, काम नहीं करते।

जनधन खातों का आंकड़ा देखें।

#StopPrivatization
4. सरकारी बैंकों में जरूरत से ज्यादा स्टाफ होता है।

बैंकों में प्रति ब्रांच स्टाफ और कस्टमर प्रति स्टाफ का आंकड़ा नीचे दिया है। कोटक महिंद्रा में प्रति ब्रांच 25.7 का स्टाफ है वहीँ SBI में 11.5
कस्टमर प्रति स्टाफ SBI में 1700 है वहीँ HDFC में 467

#StopPrivatization
5. सरकारी बैंक वाले चार्जेज के नाम पे लूटते हैं ।

सरकारी बैंकों में आज भी कमाई का मुख्य जरिया ब्याज है। प्राइवेट बैंकों में चार्जेज से इनकम सरकारी बैंकों से कहीं ज्यादा है।
#StopPrivatization
6. सरकारी बैंक वाले जबरदस्ती का बीमा चिपकाते हैं।

सरकारी बैंकों की बीमे के कमीशन से कमाई निजी बैंकों से बहुत कम है।
#StopPrivatization
7. सरकारी बैंकों के खिलाफ ज्यादा शिकायतें आती हैं।

प्रति ब्रांच 13 शिकायतें RBL बैंक, 5 शिकायतें कोटक महिंद्रा और HDFC बैंक, वहीँ SBI प्रति ब्रांच 3 शिकायतें, ICICI, AXIS, HDFC और Kotak Mahindra सभी से नीचे।

#StopPrivatization
8. सरकारी बैंकों में ज्यादा फ्रॉड होते हैं।

वित्तीय वर्ष 2020-21 में सरकारी बैंकों में फ्रॉड की राशि में 25% गिरावट आई वहीँ निजी बैंकों में 35% बढ़ोतरी हुई। फ्रॉड्स की संख्या में भी सरकारी बैंकों में 15% गिरावट हुई वही निजी बैंकों में 21% बढ़ोतरी हुई।

#StopPrivatization

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Mar 12
थ्रेड: #बैंकिंग_हेल्थ_हैज़ार्डस

एक सीनियर बैंकर जिनसे सिर्फ दो दिन मुलाकात हुई मगर एक जैसी परिस्थितियों का भुक्तभोगी होने के कारण अच्छी मित्रता हो गई, कुछ दिन पहले मिले। बताया कि कुछ दिन से छुट्टी पे चल रहे हैं। हमने पूछा कि फरबरी-मार्च में छुट्टी?
वो भी बैंक में? वो भी ब्रांच मैनेजर रहते हुए? और वो भी सिंगल अफसर ब्रांच में? हम उनके इस सौभाग्य पर मन ही मन ईर्ष्या में जल-भुन रहे थे कि उन्होंने बताया कि उनको डॉक्टर ने MDD और GAD बताया है। अब ADS, CBS, CCDP वगैरह तो समझ में आता है ये MDD और GAD पहली बार सुना था।
पूछने पर सर ने बताया कि MDD मतलब Major Depression Disorder और GAD मतलब General Anxiety Disorder. अब बात थोड़ी गंभीर हो गई थी। सर ने बताया कि बीमारी का अंदेशा तो काफी पहले से था लेकिन डॉक्टर को दिखाने का समय ही नहीं मिल पा रहा था।
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Mar 11
बैंकर, विशेषकर ब्रांच मैनेजर्स जब आपस में मिलते हैं तो अक्सर मैनेजमेंट के खिलाफ अपना दुखड़ा रोते हैं जिसमें स्टाफ की कमी और कंट्रोलर के घटिया व्यवहार के साथ साथ सैटरडे संडे को जबरदस्ती बैंक खुलवाने वाला मुद्दा भी होता है।
उनमें से अक्सर कई लोग ये दावे करते हुए पाए जाते हैं कि चाहे जो हो जाए वो छुट्टी के दिन ब्रांच नहीं खोलते। ऐसे ब्रांच मैनेजरों को देखकर प्रेरणा मिलती है। लेकिन वही प्रेरणा बेवफा हो जाती है जब पता चलता है कि जो मैनेजर चौड़े होकर मैनेजमेंट के खिलाफ सीना ठोक रहे थे,
वही शनिवार रविवार के दिन व्हाट्सएप ग्रुप में साहब की नजरों में गुड बॉय बनने के लिए फोटो डाले बैठे रहते हैं
"branch opened for pending work",
"branch opened for compliance"
"branch opened for loan sourcing"
"branch opened for फलाना धिमका कैंपेन"
"branch opened for साहब की खुशी"
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Mar 1
अधिकतर बातों से सहमत हूँ। लेकिन "स्वहित" पूरा होने से सरकार का समर्थक बन जाने वाली बात से नहीं। अगर ये बात एक व्यक्ति के लिए कही गई है तो सही है। मगर ऐसा होना नहीं चाहिए। स्वहित पूरा होने से सरकार समर्थक बन जाने वाली समस्या से ही तो हमारे नौकरशाह और यूनियन लीडर ग्रसित हैं।
इनके अपने हित पूरे हो रहे हैं इसलिए देश और बैंकर जाए भाड़ में। सरकार भी यही चाहती है। आपका पेटभरा रहे तो दूसरे के भूखे होने पे सवाल मत उठाओ। इसमें कोई दोराय नहीं कि सोशल मीडिया पर बहुत सारे नैरेटिव चलते हैं। कई देश विरोधी भी हैं।
उदाहरण के तौर पर The Wire के संस्थापक को लेते हैं। इनका न्यूज़ पोर्टल बेहूदगी की हद तक जाकर भारत और भारतीय संस्कृति और की आलोचना करने से नहीं चूकता। कई लोग जानते भी होंगे कि इनके ही भाई एक अलगाववादी हैं और द्रविड़िस्तान बनाने का सपना देखते हैं। और भी ऐसे कई गिना सकता हूँ।
Read 8 tweets
Mar 1
थ्रेड: #विरोध_और_प्रतिशोध

लोगों की एक मानसिकता है कि सरकार का विरोध नहीं करना चाहिए। क्यूंकि अगर सरकार का विरोध करोगे तो फिर सरकार के सामने अपनी मांगें कैसे रख पाओगे? लॉजिकली सही बात है।
जिससे लड़ाई लड़ोगे, जिसके खिलाफ आवाज उठाओगे उससे तो ये उम्मीद तो नहीं करोगे न कि वो तुम्हारे भले की सोचे, तुम्हारी जरूरतें पूरी करे। जैसे, अगर बैंकर सरकार की विदेश नीति, कृषि नीति, आर्थिक नीति पर सवाल उठाते हैं तो फिर सरकार को पूरा हक़ है कि वो आपको निजी हाथों में सौंप दे।
कम से कम सरकार में बैठे कुछ लोग और सरकार के समर्थक तो यही मानते हैं। इसके प्रत्युत्तर में मैं दो तर्क दूंगा। जब 1885 में कांग्रेस का गठन हुआ था तो वहां नरम दल का राज था। ये लोग अंग्रेज सरकार का विरोध तो करते थे मगर तरीके से।
Read 11 tweets
Jan 22
थ्रेड: एक रिव्यु मीटिंग

साहब: यहाँ हम किसी को टारगेट नहीं देते। BM खुद अपने टारगेट सेट करते हैं। BM साहब, पिछले महीने किया बीमा किया?
BM: सर, 4 लाख।
साहब: पिछली मीटिंग में आपने कितना प्रॉमिस किया था?
BM: सर, 10 लाख।
साहब: फिर क्यों नहीं कर पाए? टारगेट खुद आपने ही बताया था न। खुद का टारगेट भी अचीव नहीं कर पाए?
BM: सर वो इस महीने एक स्टाफ छुट्टी पे था तो काम का लोड बढ़ गया था। फिर क्वार्टर क्लोजिंग थी इसलिए NPA रिकवरी भी करनी थी। लोक अदालत के नोटिस...
साहब: ये सब मुझे मत सुनाओ। BM तुम हो या कोई और?
BM : मैं ही हूँ सर।
साहब: तो ब्रांच की जिम्मेदारी किसकी है? NPA रिकवरी, लोक अदालत, ये सब मैं देखूँगा? ब्राँच के रेगुलर काम के लिए अलग से आदमी चाहिए तुमको? बैंकिंग का मतलब सिर्फ डेबिट-क्रेडिट नहीं होता।
Read 12 tweets
Jan 21
नए बिज़नेस खुल रहे हैं मगर या किसी न किसी तरीके से बड़े उद्योगपतियों का शिकार बन रहे हैं। यानी मार्किट में कम्पटीशन बढ़ने की बजाय कुछ बड़े उद्योगपतियों की मोनोपोली होती जा रही है। (ठीक वैसे ही जैसे मार्क्स ने कहा था)।

thehindubusinessline.com/opinion/psbs-h…
बड़ी कंपनियां बैंकों से लोन लेने की जगह सीधे मार्केट से पैसा उठाना ज्यादा पसंद कर रही हैं। और सरकारी बैंक हैं कि छोटे लोन की जगह बड़ी कंपनियों की तरफ ही भागे जा रहे हैं। और छोटे उद्योगों को PSBs से लोन नहीं मिल पा रहा।

कारण?
- सरकारी बैंकों में आजकल लोन के डिसीजन ब्रांचों के हाथों से छीन कर केंद्रीकृत कर दिए गए हैं। इससे छोटे लोन की प्रक्रिया भी जटिल हो गई है।
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