बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग एक आज़ाद मुल्क बनाने में शेख मुजीबुर्रहमान के अलावा किसी और नेता का हाथ रहा तो वो इंदिरा गांधी थीं। इंदिरा ने दुनिया के सामने बांग्लादेश की समस्या रखने की ठानी थी। उन्होंने इस मसले पर दुनिया को अपने पक्ष में करने के लिए विशेष दूतों को थाइलैंड,
सिंगापुर, मलेशिया, हांगकांग, जापान और ऑस्ट्रेलिया तक दौड़ाया।खुद वो सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, ऑस्ट्रिया गई। इन सबमें अमेरिकी दौरा सबसे ज़्यादा कड़वा था जहां राष्ट्रपति निक्सन भारत की इस मामले में भूमिका को नापसंद करते थे।वो चाहते थे कि इंदिरा गांधी
पाकिस्तान से सुलह करके बांग्लादेश का मुद्दा भूल जाएं लेकिन इंदिरा गांधी मानने को तैयार नहीं थीं। उन्होंने निक्सन से समर्थन ना मिलने के बावजूद वॉशिंगटन प्रेस क्लब में भाषण दिया।ये इंदिरा थीं जब उन्होंने माना कि अपनी आत्मरक्षा में उन्होंने प्रेस की आलोचना करने से परहेज नहीं किया,
बावजूद इसके ये प्रेस था जिसने बांग्लादेश के मामले को दुनिया भर में उठाकर बड़ा बनाया।
निक्सन इंदिरा से इतना चिढ़ रहा था कि भारत के सैनिक हिस्सों-पुर्ज़ों के एक्सपोर्ट लाइसेंस रद्द कर दिए।नाज़ुक समय था।पाकिस्तान ने पश्चिम से भारत पर हमला बोल दिया।अमेरिका यही तमाशा देखना चाहता था।
उसने चाहा कि मामला सुरक्षा परिषद में जाकर फंस जाए लेकिन नेहरू ने रूस से जो दोस्ती गांठी थी वो काम आई और वीटो लगने के बाद निक्सन के अरमान धरे रह गए।अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कठोर बयान जारी करके कहा कि बांग्लादेश युद्ध की वजह भारत है।हालांकि इंदिरा ने तब तक पूरी दुनिया में घूमकर यह
समझा दिया था कि पाकिस्तान के नेताओं ने ही बांग्ला जनता का गला दबाया है।खुद अमेरिकी सीनेटर एडवर्ड कैनेडी ने निक्सन को झाड़ते हुए माना कि युद्ध का ज़िम्मेदार भारत नहीं बल्कि पाकिस्तान खुद है।डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी में सबसे आगे चल रहीं सीनेटर मस्की ने भी
ऐसा ही माना।
हालांकि यूएनओ ने 11 वोटों के विरुद्ध 140 वोटों से एक प्रस्ताव पास कर युद्ध विराम कर दोनों देशों को पीछे हटने को कहा।भारत अपने खिलाफ इतने वोटों को देख हैरत में था।अमेरिका ने छोटे देशों पर ज़बरदस्त दबाव डाला था,लेकिन रूस भारत के साथ खड़ा था। फ्रांस और ब्रिटेन ने वोट
ही नहीं डाला।अमेरिका और चीन पाकिस्तान के साथ थे।निक्सन इतने पर ही नहीं माना बल्कि अपनी नेवी को प्रशांत महासागर में ताकतवर सातवें बेड़े की तैनाती के आदेश दे दिए।वक्त उतना नहीं था जितना अमेरिका खराब कर रहा था। भारत की सेनाएं बहुत तेज़ी से पाकिस्तानी सेना को मात दे रही थीं और
आखिरकार दुनिया का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण हुआ।हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन, उसके एनएसए किसिंजर और यूएस के तत्कालीन चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ की बातचीत के ब्यौरे सार्वजनिक किए गए हैं।5 नवंबर और 7 दिसंबर 1971 के बीच की बातचीत सामने आई तो पता चला कि इंदिरा ने अमेरिकियों की ईगो तोड़कर
रख दी थी। इसी बिलबिलाहट में निक्सन ने इंदिरा को बिच और किसिंजर ने भारतीयों को बास्टर्ड बोला था। #इतिइतिहास
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सुभाषचंद्र बोस के साथ महात्मा गांधी के मतभेदों को गांधी विरोधियों ने खूब उछाला है। 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नेताजी के सामने गांधी ने पट्टाभिसीतारमैया को उतारा था। उनके पास कई कांग्रेसी सुभाष के खिलाफ शिकायत लेकर आए थे। चुनाव हुए और गांधी के समर्थन के बावजूद सीतारमैया
हार गए सुभाष को 1580 वोट मिले थे जबकि सीतारमैया को महज़ 1377 वोट मिल सके। गांधी जी ने इसके बाद एक बड़ी गलती की। अपनी हताशा नहीं छिपा सके और इस हार को अपनी हार बताते हुए कह दिया कि जो भी कार्यकारिणी छोड़ना चाहें वो छोड़ सकते हैं। 14 में से 12 सदस्यों ने तुरंत इस्तीफा दे दिया
जिसके बाद सुभाष ने भी इस्तीफा सौंप कर कांग्रेस से हमेशा के लिए किनारा कर लिया।
अब सुनाता हूं गांधी से जुड़ी दूसरी कहानी जो कम ही बताई जाती है। इस घटना के करीब तीन साल बाद 1942 के अगस्त महीने में AICC के 13 वामपंथी सदस्यों ने भारत छोड़ो आंदोलन प्रस्ताव के खिलाफ वोट दिया। ऐसा करने
एडोल्फ हिटलर के पगलाए राष्ट्रवाद में सारा जर्मनी कूद पड़ा था।जब जर्मन सैनिक एक एक करके मरने लगे और हिटलर का मायाजाल टूटने लगा तो जर्मन सेना ने छोटे-छोटे बच्चों के लिए भी भर्ती खोल दी।आखिरी सांस ले रही नाज़ी सरकार को शर्म नहीं आई और उसने राष्ट्र के नाम पर बच्चों तक को हथियार थमाकर
युद्ध में भेज दिया।ये तस्वीर 16 साल के हैन्स जॉर्ज हेंक की है जिसे हथियार देकर लड़ने को कहा गया।वो अपने देश के ही हेसन में जंग करता हुआ पकड़ लिया गया था।जब पकड़ा गया तो ज़ार ज़ार रोने लगा।बच्चा ही तो था,रोना बनता भी था। तभी ये तस्वीर ले ली गई।बेचारे के पिता 1938 में मर गए थे।
मां भी 1944 में चल बसी।गुज़ारे के लिए कुछ करना था तो उसने 15 साल की उम्र में जर्मनी की वायु सेना में एंटी एयर स्क्वैड ज्वाइन कर लिया। साल भर लड़ा और फिर जर्मनी युद्ध हार गया। सोवियत सेना ने जर्मनी में घुसकर सबको घेर लिया था,वो उन्हीं में से एक था।फोटो अमेरिकी फोटोग्राफर जॉन
इंटरनेट की गलियों से गुज़रते हुए एक बहुत प्यारी तस्वीर से सामना हुआ।तस्वीर आपके सामने पेश कर रहा हूं।दूसरे विश्व युद्ध का ज़माना था। सिपाही अपनी प्रेमिकाओं और पत्नियों को अलविदा कहकर ऐसे सफर पर निकल रहे थे जिससे लौट आने का कोई भी वादा झूठा साबित होना था।जंग से पहले विदाई की इस
तस्वीर के साथ साहिर लुधियानवी साहब की मशहूर कविता 'खून फिर खून है' की चंद पंक्तियां साझा कर रहा हूं।युद्ध की हुंकार भरते दिमागों में कोई बात बैठाना यूं तो मुश्किल है,लेकिन इंसान का जीवन बदलावों की किताब है सो कोशिश अपनी मुसलसल जारी है।उम्मीद है कि तस्वीर और कविता आपको ठंडक
पहुंचाएगी।
बम घरों पर गिरें या सरहद पर
रूहे–तामीर ज़ख्म खाती है
खेत अपने जले कि औरों के
ज़ीस्त फ़ाकों से तिलमिलाती है..
जंग तो खुद ही एक मअसला है
जंग क्या मअसलों का हल देगी
आग और खून आज बख्शेगी
भूख और अहतयाज कल देगी..
इश्क में ताज़ा नाकाम हुए मेरे प्रिय दोस्त,
मुझे यकीन है कि तुम मेरा ये खत ज़रूर पढ़ोगे। ताज़ा ब्रेक अप से उबरने की कोशिश कर रहे तुम जैसे लोग मन बहलाने के लिए इन दिनों में वो सब करते हैं जो गर्लफ्रेंड के रहते नहीं करते। उन दिनों तुम मेरे फोन नहीं उठाते थे और अक्सर मैसेज पढ़ना भी
भूल जाते थे।देख रहा हूं कि आजकल क्विक रिस्पॉन्स करने की तुम्हारी क्षमता फिर लौट आई है। देखो ये अच्छा ही है। अब उन बातों पर ध्यान दो जिन पर पहले दे नहीं पाए थे। वैसे आज कल पुरानी फिल्मों और पुराने गानों को भी तुम ठीकठाक वक्त दे रहे होंगे। मेरी सलाह है कि इमोशनल फिल्म और गानों से
कुछ दिन दूर रहो। ग़म हलका करने की बजाय ये उसे गहरा कर देते हैं। मेरी मानो तो कहीं घूम फिर आओ।होता-वोता कुछ है नहीं मगर आदमी खुद को किसी ट्रैजिडी फिल्म का हीरो सा फील करने लगता है और हीरो कौन नहीं होना चाहता!!
एक बात और लिखनी थी। देखो यार, उस लड़की का नंबर डिलीट कर दो। ये तो मैं
गांधी ने 1942 में नेहरू को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था और ऐसा शख्स कहा था 'जो मेरे ना रहने पर.. मेरी भाषा बोलेगा'। ऐसा ही हुआ भी।
1948 की जनवरी में जब गोड़से ने गोली चला कर देश के सबसे बड़े अभिभावक को मौत की नींद सुला दिया तब नेहरू ने दुख में डूबकर भी गांधी की ही भाषा बोली।
उन्होंने कहा था- ' हमें याद रखना है कि हम में से किसी को गुस्से में कोई कार्रवाई नहीं करनी है।हमें सशक्त और संकल्पवान लोगों की तरह व्यवहार करना चाहिए।सभी खतरों का सामना करने के संकल्प के साथ,हमारे महान गुरू और महान नेता द्वारा दिए गए आदेश को पूरा करने के संकल्प के साथ और हमेशा यह
ध्यान रखते हुए कि उनकी आत्मा हमें देख रही है, तो उसके लिए इससे अधिक कष्टदायक कुछ नहीं होगा कि हमें क्षुद्र व्यवहार या हिंसा में लिप्त देखें।'
वैसे ऐसा नहीं कि नेहरू किसी कट्टरपंथी की तरह गांधी के वचनों पर चलते रहे हों।परिस्थितियों के हिसाब से उन्होंने लचकदार रवैया भी अपनाया,
बागपत में एक छोटा सा गांव है सनौली.जो उस ज़िले में रहते हैं वही इस गांव को जानते हैं और बाहर के लोगों के पास कोई वजह भी नहीं थी इसे जानने की पर फिर 2005 आया.किसान अपने खेत में काम कर रहे थे.अचानक ज़मीन से कुछ बर्तन भांडे निकले.उन्होंने सोचा ज़रूर किसी ने अंदर खज़ाना दबा रखा है.
धीरे धीरे खुदाई करने लगे पर बात कहां दबती. खुल गई.शोर मच गया.अखबारों तक में खबर छपी.आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को अंदाज़ा हो गया कि हो न हो फिर से सिंधु घाटी सभ्यता की एक साइट मिली है.2005 में विद्वानों का एक दल उस खेत में जा पहुंचा. महीनों खोदता रहा. कब्र मिलीं. बर्तन मिले.
सोने और बाकी धातुओं के कुछ आभूषण भी लेकिन ऐसा कुछ खास हुआ नहीं कि इतिहासकार चौंकते.खैर, खुदाई रुक गई.एक बार रुकी तो फिर 2018 तक रुकी ही रही.एक बार फिर एएसआई ने दल भेजा.उन्होंने खोदना शुरू किया लेकिन इस बार ये साधारण नहीं होनेवाला था.पहले तो कुछ ताबूत मिले.इनमें पुरुषों और महिलाओं