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Mar 23 16 tweets 5 min read
भगत सिंह सिर्फ गंभीर निबंध लिखनेवाले और ओज से भरे भाषण देनेवाले क्रांतिकारी ही नहीं थे, बल्कि ऐसे लड़के भी थे जो दूसरों की खूब मौज लेता था और मामला बिगड़ने पर हालात संभालने में भी गजब का हुनरमंद था.

एक बार किसी ने भगवानदास माहौर उर्फ कैलाश बाबू को बता दिया कि जाड़े में जॉन एक्शा
नंबर वन का रोज़ एक तौला पिया जाए तो बदन बड़ा चुस्त-दुरुस्त मज़बूत हो जाता है.अब ये तो थी ब्रांडी यानि विशुद्ध शराब लेकिन भगवानदास कहते हैं कि उनको तब ये बात समझ में आई नहीं. बस फिर क्या था. चंद्रशेखर आज़ाद जो दल के प्रमुख थे भागे भागे भगवान दास उनके पास पहुंचे और शक्तिवर्धक दवा
लाने के लिए चार रुपये मांगे.दे भी दिए गए. आज़ाद अपने क्रांतिकारी साथियों की वाजिब ज़रूरतों का ख्याल रखते थे तो हुआ ये कि बोतल आ गई.रोज़ एक एक तोला नापकर पिया जाने लगा.फिर कुछ दिन बाद वो अपने घर चले गए. एक रोज़ उन्हें क्रांतिकारियों के ठिकाने आगरा फिर से बुलाया गया. भगवानदास अपनी
बोतल बैग में रखकर पहुंच गए.सारे साथी वहीं जमे थे. यकुछ एक कमरे में रहते थे और कुछेक दूसरे कमरे में जो थोड़ी दूर अलग मौहल्ले में था वहां रहा करते थे. जब भगवानदास जी के बैग की तलाशी ली गई जो नियम था तो बोतल निकल आई.किसी ने पूछा ये क्या है तो भोलेपन में वही बोले जो समझ रहे थे.कहा कि
ताकत की दवा है और पंडितजी से पूछकर उनके दिए पैसों से ही लाए हैं.सब मान गए.बात खत्म हो गई लेकिन बोतल पर लिखा ब्रांडी शब्द भगवानदास को अखर रहा था.साथियों की शक भरी निगाह ने भी अपना काम किया.एक हुआ करते थे क्रांतिकारी डॉ गयाप्रसाद.उन्होंने सुझाव दिया कि हमें भी पिलाओ,हम भी देखें कि
कैसी है.गयाप्रसाद एक तोला पी गए.सदाशिवराव थे वो भी पी गए.राजगुरू ने भी पी लेकिन जब बटुकेश्वर दत्त का नंबर आया तो उन्होंने अपना प्याला आधा छोड़ा और खड़े हो गए.डॉ गयाप्रसाद ने वो भी गले से नीचे उतार लिया.इतने में पता चला कि विजय कुमार सिन्हा चले आए.भगत सिंह के पक्के साथी थे.
भगवानदास ने तब तक बोतल पर ढक्कन फिट किया और बोले अब किसी को नहीं देंगे.सिन्हा ने बोतल देख ली थी.बड़े गुस्साए. बोले- अभी जाकर पंडितजी से कहता हूं ,ये सुसंस्कृत चरित्रवान क्रांतिकारियों का अड्डा है या शराबखोरों का.कहीं अभी तलाशी हो जाए और हम लोग पकड़े जाएं तो देशभर में कितनी बदनामी
होगी. भगवानदास ने बात को लोड नहीं लिया.
विजय कुमार दूसरे मकान में पहुंचे.वहां भगत सिंह और आज़ाद बैठे थे.सारा क़िस्सा सुना दिया.कुछ तो भगत सिंह को वाकई सैद्धांतिक तौर पर बुरा लगा क्योंकि ये दल के नियम के खिलाफ था कि शराब पी जाए मगर कुछ पंडित जी को चिढ़ाने के लिए मौज करने लगे.
भगवानदास,सदाशिव वगैरह को पंडितजी का खास आदमी माना जाता था.विजय ने शिकायत कर दी कि पंडितजी कैलाश शराब पीकर रात भर लंगोट बांधकर नाचता रहा,ना खुद सोया ना किसी को सोने दिया.कैलाश नाम भगवानदास का ही छद्म नाम था.भगत सिंह ने इसमें खूब नमक मिर्च लगाया और क्रांतिकारियों के शराब पीने की
भयंकरता पर खूब भाषण दिया.बस पंडितजी और भगत सिंह सीधे वही पहुंचे जहां शराब पी गई थी. आते ही चंद्रशेखर आज़ाद यानि पंडितजी खूब बरसे.भगवानदास को दल से निष्कासित करने की घोषणा कर दी.अब बेचारे भगवानदास भी घबराए. बोले- पंडितजी ये वही जॉन एक्शा नंबर वन है जिसके लिए आपने चार रुपये दिए थे.
बस फिर क्या था..भगत सिंह के हाथ एक और मौका लग गया. बोले- वाह पंडितजी,आप खुद ही तो रुपए देते हैं और फिर नाराज़ होते हैं.पंडितजी रुआंसे हो गए.बोले- तो मैंने क्या कहा कि शराब ले आओ.भगवानदास भी हैरान परेशान.अब भगत सिंह ने समझा कि स्थिति ज़रा गंभीर है.बस फिर क्या था.तुरंत भगवानदास को
साइड ले गए.बोले- देखो इसमें मज़ाक नहीं है. तुम्हारा शराब ले आना अच्छा नहीं हुआ.पंडितजी को इतना ताव तो मैंने ही नमक मिर्च लगाकर दिया है.अभी शांत हुए जाते हैं लेकिन हम लोगों को ध्यान रखना होगा कि हमारे ज़रा ज़रा से काम की कड़ी से कड़ी आलोचना होगी.हम सब यहां मरने के लिए इकट्ठा हुए
हैं..इस आशा से नहीं कि कल हम ही अपने हाथों से ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकेंगे.अपने जैसे ना जाने कितने उसके पहले मर खप जाएंगे.हमें ध्यान रखना चाहिए कि हमारा कोई काम ऐसा ना हो जिससे लोग हमें बदनाम कर सकें.अपनी निजी बदनामी की बात होती तो कोई बात नहीं थी लेकिन ये क्रांतिकारियों की
बदनामी होगी, क्रांति प्रयास की बदनामी होगी.
इसके बाद मामला ठंडा पड़ा तो वो बोतल बक्स से निकाली गई.पंडित जी ने पटक कर तोड़ने की आज्ञा दी.डॉ गयाप्रसाद के हाथ में बोतल थी. आज़ाद गुस्से में तो थे ही लेकिन तभी भगत सिंह ने टोका.बोले- पंडित जी चीज़ बुरा नहीं है,इसका उपयोग बुरा होता है.
हम लोग एक्शन पर चल रहे हैं.ऐसी किसी उत्तेजक चीज़ को भी रखना चाहिए.ना मालूम हम में से कौन कब घायल हो जाए,इसके प्रभाव से मुर्दा भी दो चार मील चल सकता है. इसे फेंकिए मत, रख लीजिए.पंडितजी को भी बात समझ में आई और फाइनली बोतल डॉ गयाप्रसाद के पास चली गई जो बम बनाने का सामान रखने का काम
संभालते थे.
(क़िस्सा शिव वर्मा की संस्मृतियों से मिला था)

#इतिइतिहास

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