कस्टमर साहिबा: मैं इंटरनेट बैंकिंग का ID password भूल गई हूँ। रिसेट करवाना है।
बैंक स्टाफ: ओके, पिछली बार कब लॉगिन किया था?
कस्टमर साहिबा: याद नहीं, तीन चार साल हो गया।
बैंक स्टाफ: कोई बात नहीं। मोबाइल पर बैंक की इंटरनेटबैंकिंग की वेबसाइट खोलो। उसमें फॉरगेट पासवर्ड पे जाओ। फिर उसमें फॉरगेट यूजरनाम पे जाओ।
कस्टमर साहिबा: इसमें तो CIF और अकाउंट नंबर मांग रहा है?
बैंक स्टाफ: हाँ तो डालो न।
कस्टमर साहिबा: मेरे पास नहीं है।
बैंक स्टाफ: क्यों? पासबुक नहीं लाई?
कस्टमर साहिबा: नहीं।
बैंक स्टाफ: कल पासबुक लेकर आना। बाकी का काम तब होगा।
कस्टमर साहिबा: घर पर भी नहीं है पासबुक। शायद खो गई।
बैंक स्टाफ: अच्छा आधार और पैन कार्ड दीजिये।
कस्टमर साहिबा: ओरिजिनल नहीं है। मोबाइल में फोटो है।
बैंक स्टाफ: अच्छा वही दिखाइए।
बैंक स्टाफ आधार और पैन नंबर से अकाउंट नंबर ढूंढ के कस्टमर साहिबा को देता है।
बैंक स्टाफ: ये लीजिये अपना खाता नंबर। डुप्लीकेट पासबुक निकलवा लीजिये। ये फॉर्म भर दीजिये। आधार की फोटोकॉपी लगेगी। और 118 रूपये चार्ज भी लगेगा।
कस्टमर साहिबा: चार्ज किस बात का? मैं कोई चार्ज नहीं दूँगी।
बैंक स्टाफ: तो फिर पुरानी पासबुक ढूंढ के लाइए। नहीं तो चार्ज देना पड़ेगा।
कस्टमर साहिबा (115 मिनट चार्ज को लेकर झगड़ने के बाद): ये लीजिये फॉर्म, आधार की कॉपी आप निकाल लीजिये मैं व्हाट्सप्प कर देती हूँ।
बैंक स्टाफ: रहने दीजिये, e -Kyc कर देते हैं।
डुप्लीकेट पासबुक बनते समय स्टाफ को पता चलता है कि खाता इनऑपरेटिव है।
बैंक स्टाफ: मैडम, खाता उपयोग न करने कि वजह से बंद हो चुका है। KYC करनी पड़ेगी। एक फोटो और पैन कार्ड की फोटोकॉपी दीजिये।
कस्टमर साहिबा (चिढ़ते हुए) : न फोटो है, न फोटो कॉपी है। खाता अभी के अभी चालू करो। तुम सब कामचोर लोग हो। काम नहीं करना इसलिए बहाने बना रहे हो।
बैंक स्टाफ (फिर से वही बात दोहराते हुए): KYC तो करना पड़ेगा। डॉक्यूमेंट लेकर आइये।
कस्टमर साहिबा (झल्लाते हुए बैग में फोटो और पैन कार्ड निकालती हैं): ये लीजिये। फोटो कॉपी आप निकाल लीजिये।
बैंक स्टाफ फ़ालतू की मगज़मारी से बचने के लिए फोटोकॉपी के लिए पैन कार्ड मेस्सेंजर को दे देता है।
बैंक स्टाफ: जब बैग में फोटो था तो मना क्यों कर रही थी?
कस्टमर साहिबा: और कुछ भी चाहिए तो बता दीजिये।
KYC करने, खाता चालू करने और और नई पासबुक छपवाने के बाद कस्टमर साहिबा: हाँ तो अब इंटरनेट बैंकिंग चालू कर दीजिये।
बैंक स्टाफ: ठीक है, बैंक की इंटरनेट बैंकिंग की वेबसाइट पर जाइये और फॉरगॉट पासवर्ड पर क्लिक कीजिये।
कस्टमर साहिबा: मुझे नहीं आता, आप ही कर दीजिये।
बैंक स्टाफ (कस्टमर के हाथ से मोबाइल लेकर समझाता है।): अब OTP आएगा, डाल दीजिये।
कस्टमर साहिबा: फ़ोन तो घर पे है।
बैंक स्टाफ (सर पीटते हुए): तो कल फ़ोन लेकर आइयेगा। बिना OTP नहीं होगा।
(कस्टमर साहिबा 115 मिनट और झगड़ा करने के बाद ब्रांच से निकाल गई)
कस्टमर साहिबा (ट्विटर पर) : Today I went to government bank. They took two hours to reply "कल आना".
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कुछ दिनों पहले एक बैंकर साथी ने पिछले कुछ दिनों से बंद पड़े हमारे ज्ञान चक्षु खोलने की कोशिश करते हुए बताया कि पुरानी पेंशन स्कीम से सरकारी कर्मचारी बर्बाद हो जाएंगे और नई पेंशन स्कीम पुरानी वाली से कहीं बेहतर है।
पहले तो हमने इस तर्क को श्रीमदमोदीगीता का प्रभाव मनाते हुए नज़रअंदाज़ करने की कोशिश की मगर बाद में अहसास हुआ कि इस प्रकार तो ना जाने कितने बैंकर भाई और अन्य सरकारी कर्मचारी 'राष्ट्रहित' में अपने भविष्य का बलिदान देकर दधीचि के छद्माभास में बैठे होंगे।
इसलिए आज हम 2014 के बाद ही खुले कई ज्ञानचक्षुओं को पुनः बंद करने की असफल कोशिश करने के लिए अपना वित्तीय वर्षांत के अंतिम सप्ताहांत के चार घंटे बर्बाद करके ये थ्रेड लेकर आये हैं।
एक सीनियर बैंकर जिनसे सिर्फ दो दिन मुलाकात हुई मगर एक जैसी परिस्थितियों का भुक्तभोगी होने के कारण अच्छी मित्रता हो गई, कुछ दिन पहले मिले। बताया कि कुछ दिन से छुट्टी पे चल रहे हैं। हमने पूछा कि फरबरी-मार्च में छुट्टी?
वो भी बैंक में? वो भी ब्रांच मैनेजर रहते हुए? और वो भी सिंगल अफसर ब्रांच में? हम उनके इस सौभाग्य पर मन ही मन ईर्ष्या में जल-भुन रहे थे कि उन्होंने बताया कि उनको डॉक्टर ने MDD और GAD बताया है। अब ADS, CBS, CCDP वगैरह तो समझ में आता है ये MDD और GAD पहली बार सुना था।
पूछने पर सर ने बताया कि MDD मतलब Major Depression Disorder और GAD मतलब General Anxiety Disorder. अब बात थोड़ी गंभीर हो गई थी। सर ने बताया कि बीमारी का अंदेशा तो काफी पहले से था लेकिन डॉक्टर को दिखाने का समय ही नहीं मिल पा रहा था।
बैंकर, विशेषकर ब्रांच मैनेजर्स जब आपस में मिलते हैं तो अक्सर मैनेजमेंट के खिलाफ अपना दुखड़ा रोते हैं जिसमें स्टाफ की कमी और कंट्रोलर के घटिया व्यवहार के साथ साथ सैटरडे संडे को जबरदस्ती बैंक खुलवाने वाला मुद्दा भी होता है।
उनमें से अक्सर कई लोग ये दावे करते हुए पाए जाते हैं कि चाहे जो हो जाए वो छुट्टी के दिन ब्रांच नहीं खोलते। ऐसे ब्रांच मैनेजरों को देखकर प्रेरणा मिलती है। लेकिन वही प्रेरणा बेवफा हो जाती है जब पता चलता है कि जो मैनेजर चौड़े होकर मैनेजमेंट के खिलाफ सीना ठोक रहे थे,
वही शनिवार रविवार के दिन व्हाट्सएप ग्रुप में साहब की नजरों में गुड बॉय बनने के लिए फोटो डाले बैठे रहते हैं
"branch opened for pending work",
"branch opened for compliance"
"branch opened for loan sourcing"
"branch opened for फलाना धिमका कैंपेन"
"branch opened for साहब की खुशी"
अधिकतर बातों से सहमत हूँ। लेकिन "स्वहित" पूरा होने से सरकार का समर्थक बन जाने वाली बात से नहीं। अगर ये बात एक व्यक्ति के लिए कही गई है तो सही है। मगर ऐसा होना नहीं चाहिए। स्वहित पूरा होने से सरकार समर्थक बन जाने वाली समस्या से ही तो हमारे नौकरशाह और यूनियन लीडर ग्रसित हैं।
इनके अपने हित पूरे हो रहे हैं इसलिए देश और बैंकर जाए भाड़ में। सरकार भी यही चाहती है। आपका पेटभरा रहे तो दूसरे के भूखे होने पे सवाल मत उठाओ। इसमें कोई दोराय नहीं कि सोशल मीडिया पर बहुत सारे नैरेटिव चलते हैं। कई देश विरोधी भी हैं।
उदाहरण के तौर पर The Wire के संस्थापक को लेते हैं। इनका न्यूज़ पोर्टल बेहूदगी की हद तक जाकर भारत और भारतीय संस्कृति और की आलोचना करने से नहीं चूकता। कई लोग जानते भी होंगे कि इनके ही भाई एक अलगाववादी हैं और द्रविड़िस्तान बनाने का सपना देखते हैं। और भी ऐसे कई गिना सकता हूँ।
लोगों की एक मानसिकता है कि सरकार का विरोध नहीं करना चाहिए। क्यूंकि अगर सरकार का विरोध करोगे तो फिर सरकार के सामने अपनी मांगें कैसे रख पाओगे? लॉजिकली सही बात है।
जिससे लड़ाई लड़ोगे, जिसके खिलाफ आवाज उठाओगे उससे तो ये उम्मीद तो नहीं करोगे न कि वो तुम्हारे भले की सोचे, तुम्हारी जरूरतें पूरी करे। जैसे, अगर बैंकर सरकार की विदेश नीति, कृषि नीति, आर्थिक नीति पर सवाल उठाते हैं तो फिर सरकार को पूरा हक़ है कि वो आपको निजी हाथों में सौंप दे।
कम से कम सरकार में बैठे कुछ लोग और सरकार के समर्थक तो यही मानते हैं। इसके प्रत्युत्तर में मैं दो तर्क दूंगा। जब 1885 में कांग्रेस का गठन हुआ था तो वहां नरम दल का राज था। ये लोग अंग्रेज सरकार का विरोध तो करते थे मगर तरीके से।