Description of different types of Brahmins.
विभिन्न प्रकार के ब्राह्मणों का वर्णन।
सदाचारयुतो विद्वान् ब्राह्मणो नाम नामत।
वेदाचारयुतो विप्रो ह्येतैरेकैकवान्द्विजः॥ १-१२-२॥
सदाचार का पालन करनेवाला विद्वान ब्राह्मण ही 'ब्राह्मण' नाम धारण करने का अधिकारी है।
वेदोक्त आचार और विद्या से युक्त ब्राह्मण 'विप्र' कहलाता है। सदाचार, वेदाचार और विद्या से युक्त ब्राह्मण 'द्विज' कहलाता है।
अल्पाचारोऽल्पवेदश्च क्षत्रियो राजसेवकः।
किञ्चिदाचारवान्वैश्यः कृषिवाणिज्यकृत्तथा॥१-१२-३॥
जिसमें स्वल्पमात्रामें ही आचारका पालन देखा जाता है, जिसने वेदाध्ययन भी बहुत कम किया हे तथा जो राजा का सेवक(मन्त्रि,पुरोहित इत्यादि) है वह 'क्षत्रियब्राह्मण' कहा जाता है।
जो अल्पमात्रा में ब्राह्मणोचित आचार का पालन करता है और कृषि तथा वाणिज्य कर्म करता है वह 'वैश्यब्राह्मण' कहलाता है।
शूद्रब्राह्मण इत्युक्तः स्वयमेव हि कर्षकः।
असूयालुः परद्रोही चण्डालद्विज उच्यते॥१-१२-४
जो स्वयं ही कृषि कार्य करता है वह 'शूद्रब्राह्मण' कहलाता है। तथा
जो दूसरों के दोष देखता है तथा परद्रोही है वह 'चाण्डालद्विज' कहाजाता है।
शिवप्रियतमो ज्ञेयो रुद्राक्षः परपावनः।
दर्शनात् स्पर्शनाज्जाप्यात् सर्वपापहरः स्मृतः।।२-५-२।।
रुद्राक्ष शिव को अत्यंत प्रिय है। इसे परम पावन समझना चाहिये। रुद्राक्ष का स्पर्श,दर्शन और जप समस्त पापों का हरण करनेवाला कहा गया है।
वर्णैस्तु तत्फलं धार्यं भुक्तिमुक्तिफलेुसुभिः।
शिवभक्तैर्विशेषेण शिवयोः प्रीतये सदा॥२-५-१३॥
भोग और मोक्ष की इच्छा वाले चारों वर्णों के लोगों और विशेषत शिवभक्तों शिव पार्वती की प्रसन्नताके लिये रुद्राक्ष फलोंको अवश्य धारण करना चाहिये॥