मैस्सी के फुटबॉल विश्वकप जीतने के बाद से #CristianoRonaldo के प्रशंसकों का पारा सातवें आसमान पर है। #Messi की जीत को वे लोग पचा ही नहीं पा रहे हैं। कुछ ने तो ये तक कह डाला है कि ये विश्व कप मैस्सी को जीताने के लिए ही आयोजित किया गया था
इस प्रकार के आरोप लगा रहे #CR7 के फैंस ने क्या कभी इस बात पर ध्यान दिया कि मैस्सी को विश्वकप जीताने के लिए उसकी टीम के खिलाड़ी और कोच जी-जान लगाने की तैयारी करके आए थे। स्वयं मैस्सी भी एड़ी चोटी का जोर लगाने के लिए आए थे और मैस्सी सहित अर्जेंटीना के खिलाड़ीयों ने ऐसा किया भी।
लेकिन #CristianoRonaldo का क्या? खराब फॉर्म के चलते मैनचेस्टर यूनाइटेड के कोच ने रोनाल्डो को बैंच पर बिठाया इस फ्रस्ट्रेशन में विश्व कप प्रारंभ होने के पूर्व एक विस्फोट साक्षात्कार में रोनाल्डो ने अपने क्लब (मैनचेस्टर यूनाइटेड) को गरियाया।
मैनचेस्टर यूनाइटेड के कोच एरिक टेन हेग को गरियाया।
क्या परिणाम हुआ इसका? रोनाल्डो की फॉर्म वापस आ गई? उल्टा मैनचेस्टर और पुर्तगाल की राष्ट्रीय टीम के साथी खिलाड़ी ब्रूनो फर्नाडेज रोनाल्डो से कन्नी काटने लगे।
रोनाल्डो द्वारा अपनी खराब फॉर्म के फ्रस्ट्रेशन में पैदा किए गए अनावश्यक विवाद के कारण पुर्तगाल की टीम में अजीब और अनिश्चित वातावरण का निर्माण हुआ। खिलाड़ीयों की आपस में बोलचाल बंद होने तक की खबरें आई।
विश्व कप के ऐन पहले #CR7 ने गड्ढा खोदा और उनकी टीम उसमें जाकर गिर गई तो फिर गलती किसकी?
जब टीम का दूसरा बड़ा खिलाड़ी ब्रूनो फर्नाडेज, रोनाल्डो से कन्नी काट रहा हो, जब ड्रेसिंग रूम का पूरा माहौल ही खराब हो गया हो तब ऐसी टीम की जीतने की आशा कैसे की जा सकती है?
बार्सिलोना छोड़कर मैस्सी जब PSG पहुंचे तब कुछ मैचों में उनको भी बैंच पर बिठाया गया लेकिन उन्होंने रोनाल्डो जैसी हाय-तौबा नहीं मचाई। चीजों को, परिस्थितियों को स्वीकार किया।
इसलिए रोनाल्डो के प्रशंसकों को नाराज, क्रोधित या फ्रस्ट्रेट नहीं होना चाहिए। रोनाल्डो द्वारा निर्मित अनावश्यक विवाद के कारण बने नकारात्मक वातावरण के बाद रोनाल्डो या पुर्तगाल की हार का दोष किसी अन्य "कारण" को मत दिजिए।
विपक्ष ने अपने नाकार, निठल्लेपन के कारण चुनाव को मुद्दा विहीन बना दिया है?
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विपक्ष जानबूझकर जनता के मुद्दों को नहीं उठा रहा क्योंकि सत्ता मिलने पर वो भी जनता की समस्याओं का समाधान नहीं करना चाहता?
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सबसे पहले तो ये बात स्पष्ट हो जानी चाहिए कि सत्तापक्ष के लिए ये स्थिति सबसे अनुकूल होती है जब चुनाव मुख्य मुद्दों से हटकर गैर जरूरी और मनगढ़ंत मुद्दों पर होने लगता है। आज स्थिति वही है विपक्षी कांग्रेस गठबंधन मुख्य मुद्दों को छोड़कर ऐसे मुद्दों पर मुखर है...
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....जो जनता से सीधे जुड़े हुए तो नहीं कहे जा सकते हैं।
एक बहुत ही आम वोटर की दृष्टि से देखे तो कम से कम ये चुनाव मुद्दा विहीन तो नहीं ही थे।
- महंगाई,
- बेरोजगारी
- शिक्षा और स्वास्थ्य की गुणवत्ता, इनकी लगातार ऊंची होती कीमतें,
- छोटे से छोटे स्तर पर होने वाला भ्रष्टाचार,
एक माता के कई संतानें थी। माता अपनी सभी संतानों से एक समान प्रेम करती थी। लेकिन फिर समय का ऐसा चक्र चला कि उस माता कि एक संतान उन्नति करने लगी। माता का प्रेम भी अपनी उस एक संतान के लिए अधिक होता चला गया।
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अन्य संतानों ने इस पर आपत्ति भी नहीं की और वे अपने उस भाई की उन्नति में और सहयोग करने लगे संभवतः इस सोच के साथ कि समय आने पर उनका भाई उनके लिए कुछ न कुछ अवश्य ही करेगा।
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कुछ अपनी मेहनत, कुछ अपने भाईयों के अथक परिश्रम से उस भाई बहुत उन्नति की। ऐसी उन्नति की पहले विभिन्न राज्यों और फिर केंद्र की सत्ता उसे मिल गई।
आज के समय यदी आपको लगता है कि मीडिया सिर्फ मोदी सरकार का गुणगान कर रहा है और विपक्ष को नहीं दिखा रहा तो एक वो दौर भी याद करिए जब मीडिया में सिर्फ गुजरात दंगा ही छाया हुआ था। हर घटना को गुजरात दंगों से जोड़ दिया जाता था।
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2010 से अप्रैल 2014 तक ये क्रिया अपने चरम पर थी। आजकल यू-ट्यूब पर निष्पक्षता का चोला ओढ़कर बैठे क्रांतिकारी पत्रकार इस काम में बढ़-चढ़कर भागीदारी करने को लालायित रहते थे।
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मोदी ही निंदा के पात्र थे,
मोदी ही आलोचना के पात्र थे,
गुजरात दंगा देश में हुआ एकमात्र दंगा था,
गुजरात दंगे क्यों हुए इस बात को छिपाया जाता था,
राजधर्म वाली क्लिप आधी काटकर चलाई जाती थी।
बहुत ही आम लोगों के लिए लिखा है। अगर आपकी नेताओं, पत्रकारों और अधिकारियों से सेटिंग वगैरह है तो इसे पढ़ने में अपना अमूल्य समय व्यर्थ मत किजिएगा।
#UPSC का परिणाम आया, प्रधानमंत्री से लेकर पत्रकारों तक ने और पत्रकारों से लेकर उन लोगों तक ने अभ्यर्थियों को बधाई, शुभकामनाएं दे डालीं जिनका उनसे दूर दूर तक कोई नाता नहीं है।
नेताओं और पत्रकारों का तो समझ आता है लेकिन भाई तु न तीन में न तेरह में फिर तु किस बात पर खुश हो रहा है? तु किस बात की बधाई दे रहा है?
पास होने वालों ने समाज पर कौन सा उपकार कर दिया? या पद पर बैठने के बाद समाज के लिए करते क्या हैं ये लोग?
चीन ने अपने न आने का कारण गिना ही दिया, तुर्की व सऊदी न आने को लेकर कुछ बोले ही नहीं।
एक बात विशेष ध्यान रखिए, बात जब कश्मीर (मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र) की हो तो कुछ भी कूटनीतिक नहीं होता, सब एजेंडे के अनुसार ही होता है। इसलिए ये देश अपने एजेंडों की पूर्ति हेतु ही कश्मीर नहीं आए।
चीन :-
अव्वल तो भारत से नफरत के कारण उपजे पाकिस्तानी प्रेम के चलते चीन ने #G20Kashmir में आने से मना किया।दूसरा यदी चीन कश्मीर आता तो अक्साई-चिन पर उसका दावा कमजोर होता।
पाक के मुस्लिम एजेंडा को भी साधना था और अपनी विस्तारवादी नीति को भी। दोनों साधे चीन ने।
शिवराज मामा के नेतृत्व में सत्ताधारी हिंदू हितैषी कमल दल ने एक चुनाव के पहले एक योजना निकाली है "लाड़ली बहना योजना"।
इस योजना में महिलाओं को प्रति माह 1000 रुपए दिए जाएंगे। इस योजना का लाभ लेने के लिए बैंकों के बाहर, सरकारी कार्यालयों के बाहर माताओं की लंबी लाइनें लगी हुई हैं।
अब यहां से शुरू होता है असली खेल, लाड़ली बहना योजना की आड़ में खेला जा रहा तृप्तिकरण का असली खेल, उनके "कागज" बनाने का असली खेल।
"उनके इलाकों में" हिंदू हितैषी दल के नेता शिविर/कैंप लगा रहे हैं ताकि इस योजना के लिए "उनके" आवश्यक "कागज" (कागज को ध्यान में रखियेगा) बनाए जा सकें।