प्रायः ट्वीटर पर पोस्ट देखने में आती है कि हमें इतिहास में हिन्दू राजाओ के बारे में कम सुल्तानों या #मुग़लों के बारे में ज़्यादा पढ़ाया गया। ये वो लोग हैं जो धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कपोल कल्पित बातों को तो आँख मीचकर मान लेते हैं+ #NCERT#UPBoard #मुग़ल #History#इतिहास
पर संदर्भो,तर्को के साथ लिखे इतिहास को अंग्रेजों और वामपंथियों द्वारा लिखा हुआ बताकर न केवल प्रश्नचिन्ह खड़े करते हैं बल्कि नकारने की हद तक चले जाते हैं. इस प्रकार की पोस्ट करने वाले लोग वो हैं जिनकी इतिहास में कोई रुचि कभी थी ही नहीं.और यदि अब है तो केवल राजनीतिक कारणों से या+
धर्मान्धता फैलाने के लिए. यदि आप ऐसी कोई ट्वीटर पर देखें तो पहले ये पूछें उससे कि क्या कक्षा 10 वीं पास करने के बाद उसने इतिहास विषय को चुना या साइंस अथवा कॉमर्स लेकर आगे का अध्धयन किया. यदि उसने साइंस या कॉमर्स चुनकर आगे की पढ़ाई की है तो उसे बताएं कि उसने 10 वीं तक इतिहास+
अलग विषय के रूप में नहीं पढ़ाया जाता बल्कि सामाजिक अध्ययन के साथ पढ़ाया जाता है. क्या उसे याद है उसने सामाजिक अध्ययन में क्या पढ़ा था ? उससे कहें एकबार और 10 वी तक का सामाजिक अध्धयन पढ़कर आये फिर बात करे.यदि उसने 10 वीं के बाद 12 वीं तक इतिहास विषय पढ़ा है और कह रहा है कि+
इतिहास में हिन्दू राजाओं का वर्णन बहुत कम है तो उसे कहें वो फिर से ग्यारहवीं और बारहवीं इतिहास पढ़े और फिर बात करे. यदि उसने BA में इतिहास एक विषय के रूप में पढ़ा है और फिर भी वो यहि बात कर रहा है कि हमें इतिहास में हिन्दू राजाओ के बारे में कम मुस्लिम सुल्तान या मुग़ल सम्राटों+
के बारे में ज़्यादा पढ़ाया गया तो समझ जाइये ये मूर्ख है. और यदि उसने MA इतिहास से करके रखा है फिर भी उपरोक्त बात कहता है तो वो महामूर्ख है. यदि इतिहास में और बड़ी डिग्री प्राप्त है और यही बात करता है कि हमें इतिहास में हिन्दू राजाओ के बारे में कम मुस्लिम सुल्तान या+
मुग़ल सम्राटों के बारे में ज़्यादा पढ़ाया गया तो उसे मूर्खाधिराज की संज्ञा दी जा सकती है.
जिन्होंने 10 वीं के बाद इतिहास नहीं पढ़ा पर प्रतियोगी परीक्षाओं की विशेष रूप से सिविल सर्विसेज ( psc, pcs ya upsc) जी तैयारी की है और वो उपरोक्त बात कह रहा है मतलब पूरी दाल काली है.+
अब इन बातों पर गौर करें -
*जब 11 वीं में इतिहास के दो पेपर हुआ करते थे तो-
प्रथम प्रश्र-पत्र - प्राचीन भारत का इतिहास
द्वितीय प्रश्न-पत्र- मध्यकालीन भारत का इतिहास
12 वीं में-
प्रथम प्रश्र-पत्र -आधुनिक भारत का इतिहास
द्वितीय प्रश्न-पत्र- समकालीन विश्व का इतिहास+
उपरोक्त 4 पेपर केवल एक पेपर में सल्तनत और मुगलकाल का जिसमें जहाँ जहाँ हिन्दू शासक थे उनका भी वर्णन था.
BA के तीन वर्षीय कोर्स में भी इसी प्रकार पाठ्यक्रम का विभाजन होता था. यहाँ पाठ्यक्रम में सारा इतिहास अत्यन्त विस्तृत विवरण के साथ मिलता है.
MA में प्रश्नपत्रों के विकल्प+
होते थे/हैं। महाविद्यालयों में और विश्वविद्यालयों में प्राचीन भारत का इतिहास विशेषज्ञता के साथ उपलब्ध था/है.
सिविल सर्विसेज या राष्ट्रीय/राज्य पात्रता परीक्षाओं में अतिविस्तृत पाठ्यक्रम सूक्ष्मता के साथ भारत के सारे इतिहास को कवर करता था.
अब उनके लिए विशेष बात+
जिन्होंने इतिहास की उच्च शिक्षा नहीं ली पर टिप्पणी करने से बाज नहीं आते . उनके लिए एक बड़ा उदाहरण या प्रेरणा @Ashok_Kashmir हो सकते हैं जिन्होंने इतिहास की उच्च शिक्षा नहीं ली पर इतिहास में रुचि होने के कारण न केवल इतिहास की गंभीर
समझ रखते हैं बल्कि इतिहास पर विश्लेषणात्मक+
किताबें लिखकर भारत भर में इतिहास में रुचि रखने वालों में विख्यात हैं. कश्मीर और कश्मीरी पंडित, कश्मीरनामा, उसने गांधी को क्यों मारा सहित सावरकर पर भी उन्होंने किताब लिखी है. इतिहास पर सतत लेखन चल रहा है उनका.
तो उनसे प्रेरणा ले और इतिहास पर टीका टिप्पणी करने से पहले इतिहास पढें.
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#अमृतकाल में विष उगलने वाले मनोज #मुंतशिर के धर्मनिरपेक्ष से #धर्मान्ध बनने
की दास्ताँ-
गौरीगंज की पगडंडियों से मुंबई के राजपथ तक का सफर तय करने वाले मनोज मुंतशिर की राह इतनी आसान भी न थी. इस राह में उनके हिस्से में मुंबई के फुटपाथ भी लिखे थे किस्मत ने. इन्हीं फुटपाथों+
ने संघर्ष के दौरान उन्हें जाति और धर्म की संकीर्णताओं परे सोचना सिखाया. उसकी झलक उनके काव्य में स्पष्ट दिखाई देती है. उन्होंने सीखा कि भाषाओं को संकीर्ण दायरों में नहीं बांधा जा सकता. उनके काव्य में भारत के विभाजन की पीड़ा भी
दिखाई देती है और धर्मान्धता के विरुद्ध आक्रोश भी.+
'मंदिर-मस्जिद' के विवादों पर #मुंतशिर कबिराना अंदाज़ में अपनी बेबाक राय रखते हुए लिखते हैं कि-
माफ़ करें नादानी मेरी,मैं मूरख पढ़े-लिखैय्यों में
मुझे फरक मालूम नहीं है लड्डू और सिवैयों में
मेरे अन्दर काबिज़ है वो,मुझसे जुदा नहीं रहता
दाढ़ी टोपी और तिलक में मेरा ख़ुदा नहीं रहता+
#Thread #अक़बर_महान एवं मुगलों का नाम लेकर लगातार न केवल धर्मान्धता फैलाई जा रही है बल्कि इतिहास को विकृत रूप से प्रस्तुत कर लोगों को बरगलाने की कोशिश भी हो रही है।इसीलिए मैं आपको #हल्दीघाटी के युद्ध के संबंध में कुछ तथ्यात्मक एवं मूलभूत बातों से परिचित कराना चाहता हूँ+
ताकि आपके भ्रम दूर हो सकें -
" यह संघर्ष (हल्दीघाटी का युद्व) हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष की समस्या नहीं था बल्कि मुग़ल साम्राज्य तथा मेवाड़ के मध्य की समस्या था.अगर ऐसा न होता तो #राणा_प्रताप अपनी सेना के एक भाग को हाकिम खां सूर के नेतृत्व में न रखता, न ही अक़बर की सारी+
फ़ौज़ मानसिंह के नेतृत्व में रही होती."
अक़बर का विजय अभियान समुद्रगुप्त की दिग्विजय के लिए किए गए "अश्वमेध यज्ञ" के पश्चात किये गए विजय अभियान की ही तरह था. जिसे एक बड़े इतिहासकार ने "शाही आवेग" या अन्य शब्दों में "अश्वमेधी अभियान " कहा हैं . इस शाही आवेग की चपेट में जिस+
अवश्य देखिये 😊
मैं सिर्फ़ एक बात ज़रूर कहना चाहूंगी कि हम 70 सालों से एक होके रहे हैं..
बचपन में हमको जो प्रोवोग सिखाते हैं #यूनिवर्सिटी_इन_डाइवर्सिटी' वगेरह..वो हमने जिया है.. बिलकुल.. 70 सालों तक हमने जिया है। पता नहीं पिछले 7-8 सालों में क्या हो गया है भारत को+ @baxiabhishek
कि हमारे बीच में ही अलग अलग टुकड़े हो गए हैं.. ये होना नहीं चाहिए.. आई थिंक एट द एंड ऑफ इट..हम सब एक ही मिट्टी के बने हुए हैं..सबको एक साथ.. इस देश का नागरिक बनके एक साथ भाईचारे से हम सबको रहना चाहिए। @irfaniyat सर लाजवाब एपिसोड 🙏
.@Ashok_Kashmir .@puru_ag
.@_sayema
मैकाले का 'अधोगामी निस्पंदन का सिद्धांत' और इतिहास के स्वयंभू छद्म व्याख्याता-
क्या इतिहास वर्तमान में सर्वाधिक आकर्षित करने वाला रुचिकर विषय बन गया है ?
मैकाले के'अधोगामी निस्पंदन का सिद्धांत'
(Downward Filtration Theory) जिसके तहत भारत के उच्च तथा मध्यम वर्ग के एक+
छोटे से हिस्से को शिक्षित करना था ताकि एक ऐसा वर्ग तैयार हो जो रंग और खून से भारतीय हो लेकिन विचारों, नैतिकता तथा बुद्धिमत्ता में ब्रिटिश हो.
अब इसी सिद्धांत को भारत में इतिहास विषय पर लागू किया जा रहा है. जिसके तहत इतिहास की एक छद्म शाखा विशेष से छद्म इतिहास में प्रशिक्षित+
छद्म इतिहास के नए व्याख्याता -
कंगना रनौत-@KangnaRanaut___ शैक्षणिक योग्यता 10 वीं पास,अभिनेत्री
"हमें सही इतिहास नहीं पढ़ाया गया"
"इतिहास वामपंथियों ने लिखा"
"हमें अपने हीरो सावधानी से चुनना चाहिए"
"गांधी,कांग्रेस,भारत छोड़ो आंदोलन का स्वतंत्रता दिलाने में कोई योगदान नहीं है
@manojmuntashir ने कहा था कि "हमे 'ग' से 'गणेश' की जगह 'ग' से गधा पढ़ाया गया.1971-72 में पाठ्यपुस्तकों में 'ग' से
'गणेश' की जगह 'ग' से 'गधा' कर दिया गया. " पर गोखले जी तो 75 वर्ष के हैं उन्होंने तो ग से गणेश ही पढ़ा होगा फिर ग से गधा जैसी बात क्यों कर रहे हैं ?
गोखले जी आप भी कंगना की तरह बिना इतिहास को जाने मूँह उठाकर चले आए. आइये आपको इतिहास भारतीय स्वतन्त्रता के समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री रहे क्लीमेंट एटली के 'भारतीय स्वतंत्रता विधेयक ' के विषय में आधिकारिक रूप से व्यक्त किए गए वक्तव्य से अवगत कराता हूँ.
" यह ( भारतीय स्वतंत्रता विधेयक )
उस घटना चक्र की लंबी श्रंखला का चरम बिंदु है. मिंटो मॉरले तथा मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुझाव, साइमन कमीशन की रिपोर्ट, गोलमेज़ कान्फ्रेंस, मेरे माननीय मित्रों का गत वर्ष भारत जाना ( मंत्रिमंडल का शिष्टमंडल ) यह सभी उस मार्ग के चरण बिंदु हैं."
पं.जवाहरलाल नेहरू को संसद में श्री अटल बिहारी वाजपेयी की श्रद्धांजलि
अध्यक्ष महोदय,
एक सपना था जो अधूरा रह गया,एक गीत था जो गूँगा हो गया, एक लौ थी जो अनन्त में विलीन हो गई। सपना था एक ऐसे संसार का जो भय और भूख से रहित होगा,गीत था एक ऐसे महाकाव्य का जिसमें गीता की गूँज और गुलाब+
की गंध थी। लौ थी एक ऐसे दीपक की जो रात भर जलता रहा, हर अँधेरे से लड़ता रहा और हमें रास्ता दिखाकर, एक प्रभात में निर्वाण को प्राप्त हो गया। लेकिन क्या यह ज़रूरी था कि मौत इतनी चोरी छिपे आती? जब संगी-साथी सोए पड़े थे, जब पहरेदार बेखबर थे, हमारे जीवन की एक अमूल्य निधि लुट गई।+
मृत्यु ध्रुव है, शरीर नश्वर है। कल कंचन की जिस काया को हम चंदन की चिता पर चढ़ा कर आए, उसका नाश निश्चित था। भारत माता आज शोकमग्ना है – उसका सबसे लाड़ला राजकुमार खो गया। मानवता आज खिन्नमना है – उसका पुजारी सो गया। शांति आज अशांत है – उसका रक्षक चला गया। +