Cement की life मात्र 28 दिन होती हैं , उसके बाद उसमे 70% 80% ताकत बचती हैं। 3 महीने बाद cement की expiry होती हैं और वो बेकार हो जाती हैं ।
ग्रामीण इलाक़ों में लोग इस बात पर ध्यान नही देते इसलिय अधिकतम लोगों को खराब cement मिलता हैं और निर्माण कार्य कमज़ोर हो जाता हैं।
कोलम और लेंटेर में 28 दिन से पहले की फ्रेश Cement प्रयोग करें ।। plaster में भी फ्रेश का प्रयोग करें । 3 महीने की Expiry होती हैं और उसके बाद cement राख हो जाती हैं उससे बचें। । यही कारन हैं कि दीवारों से प्लास्टर गिरने लगता हैं ना पेंट रुकता हैं ।
Cement बैग पर Expiry date देखकर ले - एक साथ पूरे घर के निर्माण के लिए cement खरीद कर ना डाले ।।
फ्रेश Cement का प्रयोग करें ज़िस्से आपका निर्माण मजबूत और शानदार बनेगा ।।
- Master in Moder History from JNU,Delhi
- Master of Philosophy from JNU,Delhi
- Doctorate of Philosophy from JNU,Delhi.
पागल थे तुम जो IIT से B.Tech,M.Tech करने के बाद Europe के सबसे सम्पन्न देश Denmark से 10,650 USD(अमेरिका डॉलर) प्रति माह यानी तकरीबन 8,00,000 INR (भारतीय रुपए) प्रति माह की
एक तो वो, दिहाड़ी मजदूर, दो रुपये वाले। इनका काम बस इतना होता है कि आपकी पोस्ट पर आना और हग कर चले जाना। इनका काम बस हगना ही होता है, और कुछ नहीं।
एक बार हगे, दो रुपये पक्के। फिर ये आगे बढ़ कर किसी और एकाउंट में हगने चले जाते हैं।
आप सोचो कि इनसे बहस कर लो, गाली दे दो, पर तब तक तो ये आगे बढ़ लेते हैं। इनको सीधे इग्नोर मारना होता है, और बिल्कुल ही चिढ़ मचे तो ब्लॉक। दूसरा कोई रास्ता नहीं।
दूसरे टाइप के ट्रोल ज़्यादा मज़ेदार होते हैं। ये आई टी सेल नहीं, बल्कि व्हाट्सअप की पैदाइश होते हैं।
फ्री सेवा वाले। राष्ट्र और धर्म रक्षा का पूरा भार इन्हीं के कंधों पर है, ऐसा इन्हें लगता है। और मज़ा ये कि ये अपने आपको ट्रोल बिल्कुल नहीं मानते हैं। बल्कि कोई दूसरा इन्हें ट्रोल कहे तो इन्हें बड़ी मिर्ची लग जाती है। पर साथ साथ इन्हें
260 एकड़ जमीन को कवर करती एक बाउंड्री , उस बाउंड्री के अंदर व्यापार के लिए मालगोदाम, व्यापारियों के लिए मकान बनाए गए। उसी बाउंड्री के अंदर एक लगभग 120 फुट लंबी, दो मंजिला इमारत थी जिसके दो हिस्से थे। यह दो मंजिला इमारत भी उसी बाउंड्री के अंदर ही स्थित थी। उस पूरी 260 एकड़
जमीन का नाम था फोर्ट विलियम। तथा 120 फुट लंबी, दो मंजिला जो इमारत थी , उस इमारत का नाम था "फोर्ट विलियम कॉलेज"। सन् 1785 के आसपास बनाई गई थी वह इमारत।
उस इमारत में ब्रिटेन से, पूरे यूरोप से कुछ विद्वान आने लगे, "Royal Asiatic Society of Orientalists" मजबूत हो रही थी।
उनमें से एक विद्वान का नाम था John Gilchrist.
John Gilchrist चार साल तक घूमा , बनारस तक गया। उसके जासूस मेरठ, लाहौर, मुल्तान,अलवर, जोधपुर, भोपाल, अहमदाबाद, इंदौर, जबलपुर तक घूम आए।
आज हम बहुत सी बातों को चाहे ना समझें, लेकिन John Gilchrist उन दिनों बहुत कुछ प्लान कर रहा था।
पुराने जमाने की बात। एक था राजा।वैसा ही था अमूमन जैसे राजा होते हैं।भगवान का अवतार। तानाशाह,कान का कच्चा ,आवेगी ,लोकप्रिय और व्यवहार कुशल। हमारी कहानी के राजा का एक जिगरी दोस्त भी था। नगर सेठ था वो। खानदानी दोस्ती थी सो एक दूसरे के घर आना जाना,संग साथ उठना बैठना,खाना पीना भी था।
राजा का दोस्त होने की वजह से बनिए की धाक भी थी और व्यापार खूब फल फूल भी रहा था। पर सब दिन एक से नही रहते। एक दफा बनिये की कुंडली मे भी शनि की साढ़ेसाती आई और वो संकट मे पड़ा।
हुआ ये कि एक दिन सेठ टहलते हुए राजा के महल पहुंचा। रास्ते मे राजा के जमादार ने दुआ सलाम की उसने
और दो बोतल शराब की फ़रमाइश की। अब सेठ ठहरा राजा का दोस्त। हेठी लगी उसे यह बात। सो उसने चार बाते सुनाई जमादार को। और आगे बढ़ गया।
जमादार ने दिल पर ले ली ये बात। अगले दिन सुबह ,जब राजा टॉयलेट मे था तो उसके पास झाडू लगाते हुए उसने तेज आवाज मे बयान जारी किया। अरे ये राजा तो बुद्धू।